ब्राज़ील में छाया कोवैक्सीन ख़रीद ‘घोटाला’ पर भारतीय मीडिया के मुँह पर ताला!


मामला तब खुला जब भारत बायोटेक ने सिंगापुर स्थित एक ऑफशोर कंपनी को 45 लाख डॉलर का एडवांस दिलाने की कोशिश की जबकि उसका नाम भी कांट्रैक्ट में नहीं था। वैक्सीन आयात करने की प्रक्रिया से जुड़े एक वरिष्ठ  अधिकारी ने इस भुगतान पर सवाल उठा दिया और इसे लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात भी की। यह सीधे-सीधे सरकारी ख़ज़ाने पर डाका डालने की कोशिश थी।


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बीते दस साल से ब्राज़ील में रह रहे भारतीय पत्रकार शोभन सक्सेना को अपने स्थानीय साथी पत्रकारों के इस सवाल का जवाब बेहद परेशान करता है कि ‘कोवैक्सीन-गेट’ को लेकर भारतीय मीडिया में क्या छापा या दिखाया जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के दौर में निक्सन-गेट के बवाल के बाद ‘गेट’ शब्द लग जाते ही यह स्पष्ट हो जाता है कि बात भ्रष्टाचार की हो रही है।

‘कोवैक्सीन-गेट’ इन दिनों ब्राज़ील के मीडिया में छाया हुआ है। बात भारत बायोटेक की बनायी कोवैक्सीन की है जिसकी दो करोड़ डोज़ ख़रीदने का समझौता हुआ था जबकि इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता नहीं दी है साथ ही ब्राज़ील की ड्रग कंट्रोल एजेंसी ने इसे रिजेक्ट कर दिया है। यह डील 300 मिलियन डॉलर यानी 22 अरब रुपये से ज़्यादा की थी। विवाद बढ़ते देख फिलहाल इस डील को निलंबित कर दिया गया है।

शोभन की नज़र भारतीय मीडिया पर है और वे यह देखकर बेहद अफ़सोस से भरे हैं कि भारत की प्रतिष्ठा से जुड़ी एक बेहद महत्वपूर्ण ख़बर पर भारतीय मीडया या तो ख़ामोश है या फिर लीपापोती में जुटा है। जबकि ब्राज़ील में संसदीय आयोग इस मसले की जाँच कर रहा है। इसकी सुनवाई का सीधा प्रसारण होता है। इन सुनवाइयों में आये दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम इस रूप में आता है कि राष्ट्रपति जैर बोल्सोनारो ने इस डील के लिए उनसे बात की।

ब्राज़ील कोविड से बुरी तरह पीड़ित देश है। आज भी रोज़ाना 70 हज़ार के क़रीब नये केस आ रहे हैं और मरने वालों की तादाद 5 लाख 18 हज़ार से ज़्यादा है।

बोल्सोनारो पर आरोप है कि उन्होंने देश को कोविड की भयावहता में ढकेला है। उन्होंने पहले तो बीमारी मानने से ही इंकार कर दिया था। मास्क का मज़ाक उड़ाया। वैक्सीन का मज़ाक़ उड़ाया। उनके रवैये को लेकर लोगों में भयंकर गुस्सा है और हज़ारों की तादाद में लोग सड़क पर उतरकर विरोध जता रहे हैं।

हैरानी की बात ये है कि बेहद प्रभावी मानी जाने वाली फ़ाइज़र कंपनी ने वैक्सीन सौदे के लिए सैकड़ों मेल लिखे, लेकिन उसे कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली, लेकि कोवैक्सीन को लेकर राष्ट्रपति के स्तर पर काफ़ी उत्साह देखा गया जबकि इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मान्यता भी नहीं दी है। मामला तब खुला जब भारत बायोटेक ने सिंगापुर स्थित एक ऑफशोर कंपनी को 45 लाख डॉलर का एडवांस दिलाने की कोशिश की जबकि उसका नाम भी कांट्रैक्ट में नहीं था। वैक्सीन आयात करने की प्रक्रिया से जुड़े एक वरिष्ठ  अधिकारी ने इस भुगतान पर सवाल उठा दिया और इसे लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात भी की। यह सीधे-सीधे सरकारी ख़ज़ाने पर डाका डालने की कोशिश थी।

हालाँकि यह भुगतान हुआ नहीं, लेकिन इसे लेकर जिस तरह का उच्चस्तरीय दबाव था उसने डील में शामिल भ्रष्टाचार को उजागर कर दिया। इसी के साथ भारत के फ़ार्मा उद्योग और सरकार की साख पर भी सवाल उठ गया है। लेकिन अफ़सोस, हज़ारों चैनलों और लाखों अख़बार वाले देश भारत के पाठक और दर्शक इस ख़बर से वंचित ही है।

ख़ैर, शोभन ने इस मुद्दे पर मीडिया विजिल से खुलकर बात की। आप यह वीडियो देखिये और विस्तार से मसले को समझिये।


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