इंडिया टुडे चैनल पर बेरहमी से हो रहा नेताओं का वंदे मातरम ट्रायल क्‍या ‘फिक्‍स’ है?

अभिषेक श्रीवास्तव
अभी-अभी Published On :


वंदे मातरम पर हो रही राजनीति ने अब एक दिलचस्‍प मोड़ ले लिया है। मीडिया में इसकी शुरुआत भारतीय जनता पार्टी के कुछ छोटे स्‍तर के नेताओं, पार्षदों और कार्यकर्ताओं से होती है जो अंत में योगी आदित्‍यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर पहुंचकर मत्‍था टेक देती है। जनता के ऊपर भले अब तक केवल जुमले फेंके जाते रहे, लेकिन चैनलों के स्‍टूडियो में लाइव बैठे नेताओं से ऐंकर वंदे मातरम गाने का आग्रह कर के अत्‍याचार पर उतर आए हैं।

दो दिन पहले इंडिया टुडे ने अलग-अलग राज्‍यों के भाजपा के कुछ पार्षदों और छुटभैये नेताओं से वंदे मातरम गाने का आग्रह किया और उनके न गा पाने पर उनका मज़ाक बनाया। रियलिटी चेक करने वाले इस वीडियो में कोटा, ग्‍वालियर, मेरठ के मेयर, पार्षदों और कुछ काडरों से वंदे मातरम गवाकर उनका मखौल उड़ाया गया लेकिन वीडियो का अंत जब योगी आदित्‍यनाथ के क्षेत्र गोरखपुर में हुआ, तो रिपोर्टर का स्‍वर बदल गया।

https://twitter.com/realkeerthi/status/926092277260304385

रिपोर्टर कहता है, ”लेकिन चीज़ें अचानक तेज़ी से पलटीं जब हम सीएम योगी के गढ़ गोरखपुर पहुंचे। मेयर सत्‍या पांडे ने वंदे मातरम का त्रुटिहीन पाठ कर के हमें सुखद आश्‍चर्य में डाल दिया।” इस रिपोर्ट का मतलब अंत में यह निकलता है कि नेताओं को यदि वंदे मातरम थोपना है, तो पहले उन्‍हें यह गाने आना चाहिए। जिन्‍हें गाने नहीं आएगा, मीडिया उनकी खिंचाई करेगा।

ताज़ा मामला आरएसएस के विचारक राकेश सिन्‍हा का है जिन्‍होंने एनडीटीवी पर 1 नवंबर को कई बार कहे जाने पर भी वंदे मातरम नहीं गाया, जबकि उनके साथ बैठे थिएटर कलाकार आमिर रज़ा हुसैन ने सहर्ष इसे गा दिया। ऐंकर निधि राज़दान ने कई बार सिन्‍हा से इसे गाने का आग्रह किया, लेकिन वे टालमटोल करते रहे।

निधि ने तो फिर भी काफी विनम्रता से राकेश सिन्‍हा के टालमटोल को स्‍वीकार कर लिया, लेकिन कुछ दिनों पहले ऐसी ही एक बहस में राहुल कंवल इंडिया टुडे पर यूपी के एक अल्‍पसंख्‍यक मंत्री को बेइज्‍जत करने पर उतर आए थे जबकि साक्षी महाराज को उन्‍होंने आसानी से रियायत दे दी थी।

राहुल कंवल तीन महीने पुराने एक प्राइम टाइम शो में पूरे आठ मिनट तक यूपी के अल्‍पसंख्‍यक मंत्री औलख को वंदे मातरम गाने के लिए रगड़ते रहे लेकिन दूसरी विंडो में बैठे सांसद साक्षी महाराज ने जब कहा कि ”राहुलजी मैं गा दूं क्‍या”? तब ऐंकर का स्‍वर मद्धम पड़ गया और उसने कहा, ”आप तो जानते ही हैं, मैं जानता हूं न… ।” और साक्षी महाराज अपने बगल में अपनी ही पार्टी के एक छोटे नेता की हो रही हो रही बेइज्‍जती पर हंसते रहे जबकि राहुल कंवल गरजते रहे।

ये दोनों वीडियो एक बात को साफ़ करते हैं कि इंडिया टुडे वंदे मातरम को थोपने का दोषी केवल उन्‍हें मानता है जो खुद राष्‍ट्रगीत गाना नहीं जानते। राहुल कंवल ने दो बार बड़ी बेशर्मी से औलख का मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि वंदे मातरम सुनाने में इन्‍हें ”पसीने फूट” गए। मतलब पत्रकार की गर्जना के सामने जहां एक अल्‍पसंख्‍यक बिरादरी के नेता को पसीने ‘छूटने’ की जगह ‘फूट’ जा रहे हैं, वहीं योगी की करीबी सत्‍या पांडे या मोदी के करीबी साक्षी महाराज को केवल हंस कर ही रियायत नहीं दी जा रही बल्कि पत्रकार को ”सुखद आश्‍चर्य” भी करना पड़ रहा है।

वंदे मातरम पर हो रही बहस में मीडिया ने जो रुख़ अपनाया है, उससे बुनियादी दलील यह निकल रही है कि इस देश में सबको वंदे मातरम गाने आना ही चाहिए, और सबसे पहले उन नेताओं को जो इसे थोपना चाहते हैं। यह जि़च अपने आप में असंवैधानिक है। राष्‍ट्रगान ‘जन गण मन’ न गाने पर तो संवैधानिकता का सवाल बनता है, लेकिन वंदे मातरम पर यह लागू नहीं होता।

मीडिया खुलकर यह नहीं कह रहा है कि वंदे मातरम को थोपा जाना ही असंवैधानिक है। वह चुनिंदा तरीके से नेताओं को इसे गाने को मजबूर कर के यह संदेश दे रहा है कि इसके थोपे जाने में दिक्‍कत नहीं, बल्कि इसका ज्ञान न होना अपराध है।

दिक्‍कत यह भी है कि भाजपा या संघ से जुड़े लोगों के वंदे मातरम न गा पाने पर सोशल मीडिया पर काफी मज़ाक बन रहा है, लेकिन इसके पीछे की मीडिया राजनीति को लोग नहीं समझ पा रहे हैं।

मीडिया वंदे मातरम का विरोध करता सतह पर तो दिख रहा है लेकिन वह दरअसल उन लोगों के ही पाले में खड़ा है जो इसे थोपना चाहते हैं। इससे दो कदम आगे जाकर पत्रकार इसका ज्ञान होना भी अनिवार्य कसौटी बता रहे हैं। इंडिया टुडे का वंदे मातरम टेस्‍ट और राहुल कंवल का गुस्‍सा, सब कुछ कहीं फिक्‍स तो नहीं है?