‘जियो’ मोदी: घर में टी.वी है तो 1000 रुपये महीना तक जाएगा अंबानी की जेब में !


ट्राई के नए नियम 29 दिसम्बर से लागू हो रहे हैं। अभी यह नियम था कि फ्री टू एयर चैनल देखने के लिए कोई पैसा उपभोक्ता से वसूला नही जा सकता था।





गिरीश मालवीय

मोदी जी ने  अंबानी की झोली भरने का एक नया प्लान तैयार किया है। अब उसे हर घर से 500 से 1000 रुपये हर महीने दिलवाए जाएंगे ओर आप उसे खुशी खुशी देंगे भी !

ट्राई के नए नियम 29 दिसम्बर से लागू हो रहे हैं। अभी यह नियम था कि फ्री टू एयर चैनल देखने के लिए कोई पैसा उपभोक्ता से वसूला नही जा सकता था। केबल टीवी ऑपरेटर आपको 200 से 250 रुपये में इसीलिए सर्विस उपलब्ध करा पाता था कि उसे ये चैनल फ्री पड़ते थे लेकिन अब 100 फ्री-टू-एयर चैनल देखने के लिए ग्राहक को 130 रुपये प्रति माह का फिक्स चार्ज देना ही होगा। इसके ऊपर प्रत्येक चैनल के लिए प्रति चैनल 2 से 19 रुपये अतिरिक्त खर्च करने होंगे। ज्यादातर पॉपुलर चैनल देखने के लिए लगभग 15 रुपये प्रति चैनल खर्च करने होंगे। यानी अब आप का केबल का बिल लगभग 450 से 500 रु आएगा।  HD चेनल देखने के लिये तो 700 से 1000 भी खर्च करना पड़ सकता है।

पिछले कुछ सालों में भारत जियो क्रांति से ग़ुज़रा है। लगभग मुफ़्त में गाँव-गाँव नेट की सुविधा पहुँचाई गई। इसी के ज़रिए, झूठ और नफ़रत का वह दरिया बहाया गया जिस पर नाव खेते हुए योगी जैसे बीजेपी के नए ब्रांड एंबेस्डर सत्ता तक पहुँचे और मोदी विरोधियों को राष्ट्रविरोधी साबित किया गया। अब वक्त अंबानी की इस क्रांतिकारी परियोजना की क़ीमत देना है। तो इसमें जियो का क्या रोल है वह भी समझिए–

2010 से अनेक डीटीएच ऑपरेटर, जैसे वीडियोकॉन DTH, टाटा स्काई आदि केबल और ब्रॉडकास्टिंग इंडस्ट्री में उतरे और शहरी उच्च वर्ग और मध्य वर्ग में केबल द्वारा सेवाएँ पहुँचाने का व्यवसाय लगभग खत्म सा हो गया। इसके बावजूद बड़ी संख्या में एक वर्ग बच गया जो अभी भी घरों में केबल टीवी ऑपरेटर द्वारा बिछाई गई लाइनों से अपना मनोरंजन कर रहा था (खासकर ग्रामीण इलाके) , लेकिन इस बीच यह इंडस्ट्री भी ऊपरी स्तर पर ऑर्गेनाइज़ हो गयी थी , लोकल केबल ऑपरेटर्स बड़े MSO से यह चैनल दिखाने की सुविधाएं ले रहे थे। बड़े स्तर की केबल टीवी कंपनी को इंडस्ट्री में एसएमओ कहा जाता है। ऐसी कंपनियां ब्रॉडकास्टर्स के साथ कंटेंट और कैरिज डील साइन करती हैं और लोकल केबल ऑपरेटर्स (एलसीओ) को सेवाएं देती हैं।

अब जियो इस खेल मे कैसे एंटर हुआ ये समझिए।  जियो जबसे बनी हैं उसका एक ही उद्देश्य था कि देश के हर घर से 1000 से 1500 रुपए वसूले जाएँ, जियो ने मोबाइल जगत में सस्ता डाटा देकर जो क्रांति की उसका बड़ा लक्ष्य यही है। लेकिन उसका उद्देश्य अभी अधूरा है। उसकी अगला स्टैप है जियो की ब्रॉडबैंड सर्विसेस (Jio Giga Fibre) ओर जियो का डीटीएच (Jio Giga TV)। यह लगभग एक साथ ही मार्केट में आएगा।

अब असली खेल समझिए। बड़ी डीटीएच कम्पनिया तो जियो की आमद से घबरा गईं लेकिन उसे तो जियो कभी भी खत्म कर सकता है जैसे उसने मोबाइल मार्केट में किया है। उसकी असली समस्या ऑर्गेनाइज सेक्टर नही था। उसकी समस्या असंगठित  लोकल केबल ऑपरेटर थे जो छोटे बड़े गाँव कस्बों में जनता को 200 से 250 रु में केबल टीवी की सुविधा उपलब्ध करा रहे थे।

उसने सबसे पहले बड़े MSO पर हाथ डाला जो इन लोकल केबल ऑपरेटर को यह सुविधा उपलब्ध करा रहे थ। बड़े MSO में दो नाम प्रमुख हैं- Hathway और Den network। रिलायंस ने सबसे पहले इन दोनों कम्पनियों में बड़ा स्टेक खरीदकरअपने मे शामिल कर लिया। इस तरह बैठे बिठाए अपनी सर्विसेज को लॉन्च करने से पहले ही रिलायंस इस इंडस्ट्री में बहुत बड़ा खिलाड़ी बन गया। अब रिलायंस जियो को हैथवे और डेन नेटवर्क्स के साथ 24 मिलियन ग्राहकों तक सीधे पहुंच मिल चुकी है।

लेकिन जियो गीगा फाइबर जल्दी से लाभ में कैसे आए? उसके लिए सबसे जरूरी है इस इंडस्ट्री में दी जा रही सस्ती सुविधाओं को बंद किये जाना। मोदी सरकार रिलायंस इंडस्ट्रीज के लिए घर की सरकार है। उसने ट्राई से कहकर फ्री टू एयर वाले चैनल ही बन्द करवा दिए। ब्रॉडकास्टर के रूप में उसके पास नेटवर्क 18 जैसा बड़ा ओर लोकप्रिय चैनलो का बेड़ा था। उसने अन्य सभी चैनलो पर दबाब डाल कर उन्हें पेड कैटेगरी में डाल दिया।

ट्राई के फ्री चैनलों को पेड किये जाने से लोकल केबल ऑपरेटर इस व्यवसाय में अब टिक ही नही पाएँगे और उन्हें अपना व्यवसाय हैथवे ओर den जैसी बड़ी कम्पनियों को सौपना पड़ेगा, जो वास्तव में रिलायंस जियो ही है। इस तरह से जियो इस क्षेत्र में सबसे बड़ा खिलाड़ी बन कर उभरेगा ओर आपसे मनोरंजन के नाम पर 500 से 1000 रु हर महीने वसूलेगा।

वाक़ई मोदी जी किसी का अहसान रखते नहीं। अंबानी ने उनके लिए जो भी किया होगा, उसे 2019 के चुनाव के पहले ही सूद समेत उतारने का इंतज़ाम कर रहे हैं। वरना झोला उठाकर जाना पड़ा तो अंबानी को घाटा हो सकता है।

तो एक बार ज़ोर से बोलिे- वाह मोदीजी वाह !


लेखक आर्थिक मामलों के जानकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।