1.7 लाख करोड़ का पैकेज बोले तो हर खाते में 1000 रुपया माह! कैसे जीयेंगे लोग?

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भारत के नागरिकों पर COVID-19 महामारी के प्रकोप को कम करने के लिए भारतीय वित्त मंत्रालय ने 1.7 लाख करोड़ का पैकेज का घोषित किया है. यह पैकेज अपर्याप्त और अपमानजनक है क्योंकि इसके तहत लाभार्थियों के खाते में मात्र 1000 रुपए ही प्रतिमाह हस्तांतरित किया जा सकेगा, जो संकट से जूझने के लिए काफी नहीं है. इस राशि के खिलाफ़ सोशल सिक्यूरिटी नाउ ने एक याचिका लगाते हुए प्रतिमाह 15,000 रुपये हस्तांतरित करने की मांग की है.

सोशल सिक्यूरिटी नाउ, नागर संस्थानों और अनौपचारिक श्रमिक संगठनों का एक राष्ट्रीय नेटवर्क हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय, वित्त मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और श्रम मंत्रालय को एक याचिका भेज कर सोशल सिक्यूरिटी नाउ ने मांग की है कि अगले तीन महीनों के लिए सभी नागरिकों के खाते में 15,000 रुपये का हस्तांतरण किया जाए.

इस याचिका पर 900 से भी अधिक लोगों ने हस्ताक्षर किया है जिसमें ट्रेड यूनियन एवं मेहनतकश संगठनों के प्रतिनिधि जैसे एटक, एआइसीसीटीयू, यूटीयूसी, सेवा (केरल), नेशनल डोमेस्टिक वर्कर्स यूनियन, महिला किसान अधिकार मंच, नेशनल अलायन्स फॉर पीपल्स मूवमेंट, विदर्भ मोलकरीण संगठना, एनसीसीआरडब्लू, इत्यादि शामिल हैं. इनके अलावा अर्थशास्त्री अरुण कुमार, बिस्वजीत धर, साहित्य आलोचक हिरेन गोहाई, समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर, सतीश देशपांडे, नारीवादी विद्वान निवेदिता मेनन, राजनीतिक वैज्ञानिक आदित्य निगम और अन्य लोगों ने भी याचिका में हस्ताक्षर किया हैं.

याचिका में सोशल सिक्यूरिटी नाउ का कहना है कि इस नाजुक मोड़ पर संगठित-असंगठित या बीपीएल-एपीएल के बीच का अंतर प्रशासनिक रूप से तय करना एक बोझिल काम हैं और इसलिए बिना किसी भेदभाव के यह हस्तांतरण सार्वभौमिक (यूनिवर्सल) रूप से किया जाना चाहिए. याचिका में यह भी कहा गया है कि ऐसे सार्वभौमिक हस्तांतरण से मेहनतकशों का वित्तीय सशक्तिकरण होगा और उन्हें दैनिक खाद्य सामग्री खरीदने के लिए, किराया, बिजली, पानी, दवाई, मोबाइल शुल्क, कपड़े और अन्य आवश्यक दैनिक खर्चों का भुगतान करने में कुछ मदद मिलेगी.

याचिका में आगे यह मांग की गयी हैं कि देश में लगभग 25 करोड़ ही राशन कार्ड धारक हैं; वर्त्तमान हालत को देखते हुए सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम) तक सभी लोगों की पहुँच होनी चाहिए. महामारी की अवधि के दौरान आवश्यक खाद्य सामग्री सबको मिलनी चाहिए, भले वो बीपीएल या एपीएल में शामिल हो या न हो.

याचिका में उल्लेख किया गया हैं कि राहत प्लान के लिए संसाधन जुटाने के लिए हर बड़ी कंपनी को कम से कम 50 फीसद सीएसआर फंड एक अलग अकाउंट में जमा करने को कहा जाए.

“कोरोना योद्धाओं” के लिए 50 लाख की बीमा योजना की सराहना करते हुए सोशल सिक्यूरिटी नाउ ने कहा है कि सभी कोरोना वायरस परीक्षण नि:शुल्क किए जाने चाहिए- चाहे वे सार्वजनिक या निजी अस्पतालों और प्रयोगशालाओं में आयोजित किए जा रहे हों.

याचिका में जोर दिया गया है कि जहां पूरी आबादी को कोविड-19 संकट के कहर से बचाने की जरूरत है, वहीं प्रवासी श्रमिकों, बेघर महिलाओं (विशेषकर महिला मुखिया परिवारों एवं एकल महिलाओं), यौनकर्मियों, वरिष्ठ नागरिकों, बच्चों और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों को राहत पैकेज में पूर्ण रूप से शामिल करने का भरपुर प्रयास किया जाए. कमजोर समुदायों की विशिष्ट आवश्यकताओं की देखभाल के लिए विशेष कदम उठाए जाने चाहिए. अस्पतालों में सुरक्षित प्रसव सुनिश्चित करने के लिए अलग क्लीनिक की सुविधा मुहैया करवाना इस समय बेहद जरूरी होगा.

सार्वजनिक भवन और सुविधाएं- जैसे कि सामुदायिक भवन, पंचायत, स्कूल, एसी ट्रेन कोच आदि का उपयोग बेघर, प्रवासी श्रमिकों और अन्य आपदाग्रस्त वर्गों को तुरंत आश्रय और भोजन प्रदान करने के लिए किया जा सकता है.

सोशल सिक्योरिटी नाउ 500 से भी अधिक संगठनों का एक दशक पुराना मंच है जिसमें ट्रेड यूनियन, नारीवादी संगठन, दलित अधिकार संगठन, महिलाएं, किसान, शिक्षा, स्वास्थ्य अभियान संगठन और अन्य शामिल हैं- जो भारत में सार्वभौमिक सामाजिक सुरक्षा के लिए अभियान चलाता है.


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