Super Blue Blood Moon 2018: मीडिया की अवैज्ञानिक रिपोर्टिंग संवैधानिक मूल्य के खिलाफ़ है!

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आयुष शुक्ल 

31 जनवरी की शाम पूरे विश्व में एक ग़जब नज़ारा देखने को मिला जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट था और पूर्ण चन्द्र ग्रहण को भारत में सीधे देखा जा सकता था. इस बार सुपरमून (जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है) और पूर्ण चन्द्र ग्रहण की घटना एक साथ हुई. भारत में भी लोगों ने इस नज़ारे को अपने कैमरों में कैद किया और सोशल मीडिया के माध्यम से शेयर किया. सोशल मीडिया साईट ट्विटर पर ही सद्गुरु वासुदेव जग्गी माहराज ने एक लेख शेयर किया जिसमें वो बता रहे हैं कि ग्रहण के समय भोजन करना क्यों हानिकारक है? इसके बाद ट्विटर पर ही तमाम वैज्ञानिक पत्रकारों और शोधकर्ताओं ने जग्गी वासुदेव को सूडो साइंस को बढ़ावा देने की लिए आलोचना की और मीडिया में ग्रहण से सम्बंधित रिपोर्टिंग पर एक रोचक बहस हुई.

वैसे तो चन्द्र ग्रहण एक सामान्य खगोलीय घटना है जिसमे चंद्रमा और सूर्य के मध्य पृथ्वी आ जाती है जिससे पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है और सूर्य का प्रकाश चंद्रमा तक नहीं पहुँच पता है. लेकिन समाज में चन्द्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण से जुडी तमाम किवदंतियां प्रचलित हैं. कुछ इसे राहू-केतु का प्रकोप मानते हैं और ग्रहण के समय को ‘सूतक’ कहते हैं जिसे अशुभ माना जाता है. इसी तरह 31 जनवरी 2018 की शाम को पूर्ण चन्द्र ग्रहण हुआ जिसकी घोषणा खगोल अन्वेषण से जुडी संस्थाओं ने पहले ही कर दी थी. भारत में साइंसदानों के साथ-साथ आम जनता में भी इस घटना को लेकर काफी उत्साह था. कई जगहों पर लोगों ने अपनी छतों पर टेलिस्कोप से तो कई जगहों पर सार्वजनिक स्थानों पर पूर्ण चन्द्र ग्रहण की इस घटना को देखा.

31 जनवरी को 12:55 (PM) पर सदगुरु जग्गी वासुदेव नें अपने ट्विटर से एक लेख शेयर किया जिसमे वो ये बताते हैं कि चन्द्र एवं सूर्य ग्रहण के समय भोजन करना क्यों हानिकारक है? असल में जग्गी वासुदेव द्वारा लिखा गया यह लेख 2 अप्रैल 2015 को उनकी वेबसाइट पर पहली बार प्रकाशित हुआ था जिसमें वो बताते है कि ग्रहण के समय किस प्रकार भोजन जहर में बदल जाता है जिसे खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. जग्गी के ऑफिसियल ट्विटर अकाउंट (@SadhguruJV) से इस लेख को शेयर करने के बाद ही ट्विटर पर उनके द्वारा सूडो साइंस को बढावा देने के लिए कड़ी आलोचना हुई. प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द हिन्दू के साइंस एडिटर आर प्रसाद (@RPrasad12) ने लिखा, “जब तक हम इस देश में उन लोगों से ऐसी मूर्खतापूर्ण और अवैज्ञानिक बातें सुनते रहेंगे जिनका बड़ी संख्यां में लोग अनुसरण करते हैं तब तक देश वैज्ञानिक प्रगति में पिछड़ा ही रहेगा. आश्चर्य होता है कि दूसरे देशों में लोग जो इन बातों को नहीं मानते वो कैसे स्वस्थ्य रहते हैं?”.

जग्गी के ट्वीट को आधार बनाकर IUCAA के वैज्ञानिक सोमक रायचौधरी (@somakrc) नें प्रसिद्ध खगोल वैज्ञानिक जयंत विष्णु नार्लीकर के साथ ग्रहण के समय खाने की फोटो डालते हुए लिखा, “कुछ प्रभावशाली किन्तु अंध विश्वासी लोग हमें ग्रहण के समय न खाने की सलाह दे रहे हैं. यहाँ हम प्रो० नार्लीकर और प्रो० संजीव धुरंदर के साथ प्रो० रंजन गुप्ता के विदाई समारोह में ग्रहण के समय खा रहे हैं.” ऐसे में एक बार फिर से यह प्रश्न बनता है कि उस देश के नागरिक जिसके संविधान में वैज्ञानिक चेतना (साइंटिफिक टेम्पर) बढ़ाने को मूल कर्तव्य की श्रेणी में रखा गया है तो वहाँ वैज्ञानिकों को समझे या धर्मगुरुओं की मानें?

वैसे ग्रहण से जुडी हुई भ्रांतियों के प्रचार-प्रसार की यह पहली घटना नहीं है. भारतीय मीडिया इस प्रकार की तमाम उलजलूल अवैज्ञानिक बातों को दिखाता रहता है. चाहे वो ग्रहण में भोजन न करने को लेकर हो या गाय द्वारा ऑक्सीजन लेने और छोड़ने की बात हो मीडिया के लिए यह सामान्य रिपोर्टिंग है.

7 अगस्त 2017 को फाइनेंसियल एक्सप्रेस में एक लेख छपा था जिसमें भी यह बताने का प्रयास किया गया कि ग्रहण के समय भोजन करना स्वस्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है. उसके बाद 8 अगस्त को एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के वैज्ञानिकों नें अखबार के संपादक को ‘फाइनेंसियल एक्सप्रेस में चन्द्र ग्रहण से सम्बंधित एंटी साइंस लेख’ के नाम से एक ख़त लिखा. उस ख़त में वैज्ञानिकों ने बताया कि ग्रहण एक प्राकृतिक घटना है जिसमें तीन खगोलीय पिंड एक रेखा में आ जाते हैं और एक की छाया दूसरे पर पड़ती है. उसमें यह भी लिखा गया कि ग्रहण के समय भोजन करना हानिकारक है इस बात के कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है और कोई भी ग्रहण के समय, उसके बाद या पहले खा सकता है. फाइनेंसियल एक्सप्रेस के सम्पादक के नाम लिखे गये इस ख़त के बाद 20 अगस्त को NCRA की डॉ० नीरुज रामानुजन और विज्ञान प्रसार के डॉ० टी वी वेंकटेश्वरन द्वारा ग्रहण के वैज्ञानिक तथ्यों और सांस्कृतिक मिथ्याओं पर लिखा लेख फाइनेंसियल एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ. लेकिन 7 अगस्त के उस लेख को वेबसाइट से हटाया नहीं गया बल्कि 31 जनवरी 2018 को होने वाले पूर्ण चन्द्र ग्रहण के लिए अपडेट कर दिया गया.

जग्गी वासुदेव की उसी ट्विटर पोस्ट को रीट्वीट करते हुए बेंगलोर की साइंस जर्नलिस्ट संध्या रमेश (@sandygrains) ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया से लेकर NDTV हिंदी, आजतक और डीएनए जैसे मुख्य मीडिया आउटलेट्स में ग्रहण को लेकर हुई भ्रामक और अवैज्ञानिक पत्रकारिता को दिखाया. जिसमे कोई ग्रहण के समय प्रेग्नेंट महिलाओं को मन्त्र पढने के सुझाव दे रहा है तो कोई उन्हें बाहर न निकलने की.

देश के प्रतिष्ठित अख़बारों एवं मिडिया चैनलों द्वारा वैज्ञानिक विषयों पर इस प्रकार की गैर-जिम्मेदाराना पत्रकारिता और धर्मगुरुओं द्वारा अवैज्ञानिक तथ्यों के प्रचार की ये घटनाएँ यह बताती हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार भले ही हमारे मूल अधिकारों में क्यों न हो लेकिन अभी भी भारत में वैज्ञानिक सम्प्रेषण (साइंस  कम्युनिकेशन) और वैज्ञानिक पत्रकारिता (साइंस जर्नलिज्म) के एक विस्तृत स्वरुप की आवश्यकता है ताकि वैज्ञानिक चेतना और तार्किक दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया जा सके.


लेखक विज्ञान पत्रकारिता और विज्ञान संचार के शोधार्थी हैं