कॉर्पोरेटपरस्त और छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के ख़िलाफ़ हैं बजट- माकपा

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केंद्र सरकार द्वारा आज पेश आम बजट को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की छत्तीसगढ़ इकाई ने अर्थव्यवस्था को निजीकरण की ओर धकेलने वाला जनविरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बजट करार दिया है, जिसमें कोरोना संकट और मंदी की दुहरी मार से जूझ रही आम जनता के लिए महंगाई, बेकारी और आय में गिरावट के सिवा और कुछ नहीं है। इस बजट के जरिये राष्ट्र की संपत्ति को मुट्ठी भर बड़े पूंजीपति घरानों की तिजोरियों में भरा गया है और सार्वजनिक खर्चों में बड़े पैमाने पर कटौती करके आम जनता के साथ विश्वासघात किया गया है।

छत्तीसगढ़ माकपा राज्य सचिवमंडल ने कहा है कि बजट में जिस प्रकार विनिवेशीकरण की लकीर को लंबा खींचकर सरकारी उद्योगों के पास पड़ी जमीनों को बेचने की घोषणा की गई है, उससे कोरबा, बस्तर, कोरिया व सूरजपुर जैसे जिलों में एसईसीएल, एनएमडीसी व एनटीपीसी जैसे सार्वजनिक उद्योगों द्वारा अधिग्रहित, लेकिन अप्रयुक्त जमीनों पर काबिज मजदूर-किसानों और आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा। पार्टी ने कहा है कि बजट में जीवन बीमा, बंदरगाह, बिजली, सड़क, रेलवे, स्वास्थ्य आदि सभी प्रमुख क्षेत्रों के रणनीतिक विनिवेश की घोषणा की गई है, जो अपना घर बेचकर सरकारी खर्च चलाने के समान है। सरकार द्वारा इसे आत्मनिर्भरता बताना हास्यास्पद है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था का और पतन होगा।

माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने कहा है कि कोरोना वैक्सीन पर 35000 करोड़ रुपये के बजट से मुश्किल से एक-तिहाई आबादी का ही टीकाकरण हो सकेगा। सैनिक स्कूलों के लिए निजी क्षेत्र के सहयोग की आड़ में सैन्य शिक्षा में संघी गिरोह की घुसपैठ कराने का काम किया जा रहा है और यह सैन्य बलों के निजीकरण का रास्ता ही खोलेगा। इसी प्रकार 2.5 लाख करोड़ रुपये के बजट से उतना भी खाद्यान्न भंडारण नहीं होगा, जितना कि पिछले साल हुआ है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष के बजट में वास्तव में खाद्यान्न सब्सिडी में 41% की कटौती ही की गई है। इससे स्पष्ट है कि किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की जगह उन्हें किसान विरोधी कानूनों की मंशा के अनुरूप खुले बाजार में धकेलने की योजना लागू की जा रही है। इससे देश की खाद्यान्न सुरक्षा और आत्मनिर्भरता तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली खतरे में पड़ने वाली है।

उन्होंने कहा कि जब अर्थव्यवस्था मांग के अभाव और मंदी से जूझ रही हो, तब जरूरत बड़े पैमाने पर नौकरियों के सृजन, मुफ्त खाद्यान्न वितरण और नगद राशि से मदद करने की होती है, ताकि आम जनता बाजार से सामान खरीद सके, मांग बढ़े और अर्थव्यवस्था को गति मिले। लेकिन ऐसे किसी उपाय पर अमल करने के बजाय बजट में आम जनता की रोजमर्रा के उपयोग की चीजों के दाम ही बढ़ाये गए हैं।

माकपा नेता ने कहा कि आजादी के बाद का यह पहला आधा-अधूरा बजट है, जिसमें मनरेगा और रक्षा क्षेत्र के लिए बजट आबंटन का प्रस्ताव ही नहीं है। ग्रामीण विकास और कृषि के लिए सरकारी खर्च में कोई वृद्धि नहीं की गई है और रोजी-रोटी खोकर गांवों में पहुंचने वाले आप्रवासी मजदूरों के लिए राहत के छींटे तक नहीं हैं। एक ओर पिछले वर्ष की तुलना में कुल मिलाकर कॉर्पोरेट टैक्स व आयकर में 2 लाख करोड़ रुपयों की छूट दी गई है, वहीं दूसरी ओर महंगाई से परेशान मध्यवर्गीय जनता को आयकर में कोई छूट नहीं दी गई है। इसका नतीजा है कि राज्यों को हस्तांतरित की जाने वाली राशि में भी 40000 करोड़ रुपयों से भी ज्यादा की कमी आ रही है।

उंन्होने कहा है कि यह केवल एक चुनावी बजट है, जिसमें 1.8 लाख करोड़ रुपये चुनावी राज्यों में ही राजमार्ग निर्माण के नाम पर झोंके जा रहे हैं, लेकिन इससे कोई रोजगार पैदा नहीं होने वाला है।

माकपा ने इस बजट के खिलाफ अभियान चलाने की भी घोषणा की है।