जम्मू से वापस लाए गए मज़दूरों को, बिलासपुर स्टेशन पर छोड़ भूल गई सरकार!

आदर्श तिवारी
छत्‍तीसगढ़ Published On :


कोरोना महामारी के दौरान मजदूरों के साथ जो समस्याएं हो रही हैं उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया के माध्यम से लगातार सामने आ रही हैं। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा मजदूरों और गरीबों की मदद के तमाम दावों को झूठा साबित करती ऐसी ही एक तस्वीर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर से सामने आई है। जहां जम्मू से अपने गृह राज्य छत्तीसगढ़ पहुंचे करीब 400 लोगों में कौशल्या भारती और उनके पति भी हैं। कौशल्या भारती बीमार हैं, पैरों में सूजन है, पेट फूला हुआ है, सांस लेने में भी समस्या हो रही है। कौशल्या ठीक से बात भी नहीं कर पा रही हैं। नाकारा अफ़सरशाही और आंखों पर पट्टी बांधे हुए सरकारी कर्मचारियों के सामने ही कौशल्या के पति उन्हें लेकर इलाज के लिए भटकते रहे। लेकिन सुनवाई कहीं नहीं हुई।

 

 

 

 

 

 

रात 8 बजे से सुबह 4 बजे तक बस नहीं, खाना भी ख़राब उपलब्ध कराया गया

दरअसल ये सब लोग ज़म्मू में फंसे हुए थे। जहां से इन लोगों को छत्तीसगढ़ में  बिलासपुर लाया गया। बिलासपुर पहुंचने के बाद इन सब लोगों को जांच के लिए और क्वारंटाइन करने के लिए बलौदाबाज़ार स्थित क्वारंटाइन सेंटर ले जाना था। रात 8 बजे बिलासपुर पहुंचने के बाद भी बलौदाबाज़ार तक पहुंचने के लिए जिन बसों को आना था वो नहीं आई थीं। इंतज़ार करते-करते रात के लगभग 4 बज गए। जिसके बाद कौशल्या भारती और उनके पति को छोड़कर बाकी सभी लोग पैदल ही अपने-अपने घरों की तरफ़ चल दिए।

इस बारे में पता चलने पर सामाजिक कार्यकर्ता, प्रियंका शुक्ला और उनके साथ अन्य सामाजिक कार्यकर्ता साथी बिलासपुर स्टेशन पहुंचे। इन लोगों द्वारा पूछे जाने पर ज़म्मू से बिलासपुर आये लोगों ने बताया कि रात 8 बजे से हम यहां बैठे हैं लेकिन अभी तक कोई बस नहीं आई है। सुबह के 4 बजने वाले हैं। हम सब भूखे-प्यासे बसों का इंतजार कर रहे है। जो खाना दिया गया है वो ख़राब हो गया है। कोई हमारी बात सुन ही नहीं रहा। अधिकारियों से कहने पर बस एक जवाब मिल रहा है कि इंतजार करो बस आ जाएगी। हम कब तक इंतजार करें ?

प्रियंका और उनके साथियों ने इन लोगों को रोककर भोजन की व्यवस्था की। स्थानीय प्रशासन तक भी बात पहुंची तो वहां से भी कुछ भोजन की व्यवस्था की गयी। जिसके बाद ज़म्मू से आये इन लोगों को भोजन उपलब्ध कराया जा सका। अधिकारियों की लापरवाही और खस्ताहाल सरकारी व्यवस्था के कारण बसों के न पहुंचने पर, कुछ लोगों ने तोरबा चौक के पास प्रदर्शन कर दिया। जिसके बाद उन्हें बस मिल सकी।

कुछ मजदूर पैदल ही बलौदाबाज़ार के लिए निकल गए। लेकिन बीमार कौशल्या भारती अपने पति के साथ वहीं सड़क किनारे रुक गयीं। प्रियंका और उनके साथियों की काफ़ी कोशिशों के बाद एम्बुलेंस आती है, जो कौशल्या भारती को छत्तीसगढ़ इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (सीआईएमएस) लेकर जाती है। प्रियंका और अन्य साथी किसी भी समस्या के होने पर सूचित करने के लिए अपना नंबर देकर वापस चले जाते हैं।

 

 

 

 

 

 

 

 

सीआईएमएस में नहीं मिला इलाज, एम्स रेफ़र करने पर एम्बुलेंस ने अम्बेडकर अस्पताल छोड़ दिया

सीआईएमएस पहुंचने के बाद भी काफ़ी समय तक कौशल्या को कोई उचित इलाज नहीं मिलता है। कौशल्या के पति फ़ोन करके प्रियंका शुक्ला को इस बारे में सूचित करते हैं। सीआईएमएस से कौशल्या भारती को एम्स रायपुर रेफ़र कर दिया जाता है। प्रशासन द्वारा संचालित 108 एम्बुलेंस उन्हें लेकर जाती है लेकिन वो भी उन्हें एम्स के बजाय अम्बेडकर मेमोरियल हॉस्पिटल, रायपुर में छोड़ कर चली जाती है।  यहां से भी कौशल्या के पति ने प्रियंका शुक्ला को फ़ोन कर के सारी स्थिति बताई। जिसके बाद प्रियंका के कुछ सहयोगियों ने मिलकर स्वास्थ्य मंत्री तक अपनी बात पहुंचाई तब जाकर कहीं कौशल्या का इलाज होना शुरू हुआ।

 

स्वास्थ्य मंत्री तक बात जाने पर ही होगा इलाज ?

इसका क्या अर्थ निकाला जाए ? कि अगर आप अपनी बात सीधा स्वास्थ्य मंत्री तक नहीं पहंचा पाते तो आपको इलाज ही नहीं मिलेगा ? या सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं दम तोड़ चुकी हैं ? क्या सरकारी नौकरी प्राप्त कर चुके लोग जो बाबू बन गए हैं, उनको किसी गरीब की आह नहीं सुनाई देती, उनकी बेबसी नहीं दिखाई देती ? अगर इलाज मिलने में जो देरी हुई उसकी वजह से कौशल्या की जान चली जाती तो कौन ज़िम्मेदार होता ? सरकारें सिर्फ़ दुख जता कर अपना फ़र्ज़ निभा देती लेकिन कौशल्या के परिवार का क्या होता ? कोरोना वायरस के दौरान हुए लॉकडाउन ने सरकारी व्यवस्थाओं और नेताओं की पोल खोलने का जो काम किया है। वो शायद किसी स्टिंग ऑपरेशन में या अधिकतर टीवी चैनलों पर कभी दिखाई नहीं देगा।


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