कृषि कानून: छत्तीसगढ़ के कई जिलों में हुआ चक्का जाम और धरना-प्रदर्शन!

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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर छत्तीसगढ़ किसान सभा और आदिवासी एकता महासभा सहित छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े विभिन्न घटक संगठनों द्वारा आज रायपुर, कोरबा, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायगढ़, कांकेर, दुर्ग, सरगुजा, सूरजपुर व बालोद जिलों सहित पूरे प्रदेश में चक्का जाम, धरना और प्रदर्शन किया गया। यह आंदोलन किसान विरोधी कानूनों को वापस लेने, सी-2 लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करने का कानून बनाने, देशव्यापी किसान आंदोलन पर दमन बंद करने तथा केंद्र सरकार के किसान विरोधी और कॉर्पोरेटपरस्त बजट के खिलाफ आयोजित किया गया था।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते व महासचिव ऋषि गुप्ता ने बताया कि कोरबा जिले के दो ब्लॉकों पाली व कटघोरा में तीन स्थानों पर – हरदी बाजार, कुसमुंडा व मड़वाढोढा में चक्का जाम किया गया। राजधानी रायपुर में तीन जगहों पर आयोजित चक्का जाम में छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन से जुड़े सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने सारागांव में बलौदाबाजार मुख्य राजमार्ग को जाम कर दिया। इस आंदोलन में छत्तीसगढ़ किसान सभा के प्रदेश अध्यक्ष संजय पराते और छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने भी हिस्सा लिया। किसान सभा ने मजदूर संगठन सीटू और अन्य ट्रेड यूनियनों ने मिलकर धमतरी-जगदलपुर मार्ग को अवरूद्ध कर दिया।

इसी प्रकार सूरजपुर जिले में सीटू, एटक और किसान सभा ने मिलकर बनारस मार्ग को दो घंटे से ज्यादा रोका, जबकि इसी जिले के ग्रामीणों ने कल्याणपुर में भी दूसरा मोर्चा खोलकर अम्बिकापुर मार्ग की आवाजाही ठप्प कर दी थी। दुर्ग के भिलाई में और बालोद जिले के दल्ली-राजहरा में जगदलपुर-राजनांदगांव मार्ग को सीटू सहित वामपंथी ट्रेड  यूनियन के सैकड़ों सदस्यों ने जाम कर  दिया। राजनांदगांव जिले के कई ब्लॉकों में, रायगढ़ जिले के सरिया में व बिलासपुर में मजदूरों के साथ मिलकर सैकड़ों नागरिकों ने चक्का जाम आंदोलन में किसानों का साथ दिया। कांकेर जिले के दूरस्थ आदिवासी अंचल पखांजुर भी आज चक्का जाम से प्रभावित हुआ और कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने की खबर है।

चक्का जाम के साथ ही कई जगहों पर सभाएं भी हुई, जिसे किसान नेताओं ने संबोधित किया। रायपुर में सारागांव की सभा को संबोधित करते हुए किसान सभा नेता संजय पराते ने किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ दिल्ली में धरनारत किसानों और इस आंदोलन को कवर कर रहे पत्रकारों के दमन की तीखी निंदा की। सूरजपुर में आदिवासी एकता महासभा के बालसिंह ने कहा कि सरकार के किसी भी कानून या फैसले के खिलाफ शांतिपूर्ण आंदोलन करना इस देश के हर नागरिक का अधिकार है, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने भी की है। बिलासपुर में किसान नेता नंद कश्यप ने आरोप लगाया कि इस देशव्यापी आंदोलन को कुचलने के लिए यह सरकार भाड़े के टट्टू असामाजिक तत्वों और संघी गिरोह का इस्तेमाल कर रही है। 26 जनवरी को लाल किले में हुई हिंसा इसी का परिणाम थी, जिसकी आड़ में किसान आंदोलन को बदनाम करने की असफल कोशिश इस सरकार ने की है।

कोरबा में किसान सभा नेता प्रशांत झा ने कहा कि एक ओर तो सरकार तीन किसान विरोधी कानूनों को डेढ़ साल तक स्थगित करने का प्रस्ताव रख रही है, लेकिन दूसरी ओर अपने बजट प्रस्तावों के जरिये ठीक इन्ही कानूनों को अमल में ला रही है। इस वर्ष के बजट में वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र में किये गए वास्तविक खर्च की तुलना में 8% की और खाद्यान्न सब्सिडी में 41% की कटौती की गई है। इसके कारण किसानों को मंडियों और सरकारी सोसाइटियों की तथा गरीब नागरिकों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जो सुरक्षा प्राप्त है, वह कमजोर हो जाएगी। किसान नेता लंबोदर साव ने कहा कि इस बार के बजट में फिर किसानों की आय दुगुनी करने की जुमलेबाजी की गई है। इस बजट के जरिये जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर डकैती डालने की कोशिश की जा रही है, जिस पर किसानों और आदिवासियों का अधिकार है। इससे मोदी सरकार का किसान विरोधी चेहरा उजागर हो गया है।

किसान सभा नेताओं ने कहा है कि देश का किसान इन काले कानूनों की वापसी के लिए खंदक की लड़ाई लड़ रहा है, क्योंकि कृषि क्षेत्र का कॉरपोरेटीकरण देश की समूची अर्थव्यवस्था, नागरिक अधिकारों और उनकी आजीविका को तबाह करने वाला साबित होगा। उन्होंने कहा कि जब तक ये सरकार किसान विरोधी कानूनों को वापस नहीं लेती, किसानों का देशव्यापी आंदोलन जारी रहेगा और मोदी सरकार को गद्दी छोड़ना होगा।