किसान आंदोलन के 8 माह: यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी की संभवानाओं पर धान बोने का फ़ैसला!


इस मिशन के तहत संयुक्त किसान मोर्चा ने आह्वान किया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सभी टोल प्लाजा को फ्री किया जाए, अडानी और अंबानी के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएं तथा बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के कार्यक्रमों का विरोध और उनके नेताओं का बहिष्कार किया जाए। इस मिशन को कार्य रूप देने के लिए पूरे प्रदेश में बैठकों, यात्राओं और रैलियों का सिलसिला शुरू हो रहा है।


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संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहा कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन के आज आठ महीने पूरे हो गये। इस मौके पर जंतर-मंतर पर महिलाओं की किसान संसद का आयोजन किया गया। इसी के साथ मिशन उत्तर प्रदेश और मिशन उत्तराखंड का ऐलान हुआ जिसका मक़सद इन राज्यों में सत्तारूढ़ बीजेपी को चुनाव में पटकनी देना है। इसके तहत 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में एक महारैली होगी और सभी मंडल मुख्यालयों में महापंचायत के जॉरिये तीनों कृषि कानूनों की वापसी की माँग उठेगी।

आज पूरे मानसून सत्र के दौरान भारत की संसद के समानांतर जंतर-मंतर पर चलाई जा रही किसान संसद के तहत एक विशेष महिला संसद आयोजित कि गई। महिला किसान संसद में आज के बहस का मुद्दा आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम 2020 रहा। बहस में भाग लेने वाली महिला किसान संसद के सदस्यों ने बताया कि इन संशोधनों ने खाद्य आपूर्ति में बड़े कॉर्पोरेट और अन्य लोगों द्वारा जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मंजूरी दे दी है। उन्होंने कहा कि इस कानून का कुप्रभाव सिर्फ किसानों पर ही नहीं बल्कि उपभोक्ताओं पर भी परेगा। उन्होंने बताया कि निर्यात आदेशों के नाम पर देश में अत्यधिक आपात स्थिति में भी बड़ी पूंजी द्वारा कितनी भी जमाखोरी की जा सकेगी। यह बताया गया की सरकार ने इस 2020 के कानून के माध्यम से आम नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए अपने जनादेश, इरादे और शक्ति को त्याग दिया है। महिलाओं ने तर्क दिया कि घर की खाद्य सुरक्षा का ख्याल रखने के लिए महिलाओं पर जोर देने वाली लैंगिक भूमिकाओं को देखते हुए, यह कानून खाद्य सुरक्षा प्रदान करने की महिलाओं की क्षमता को कमजोर करता है। जब इस कानून के कारण भोजन भी पहुंच से बाहर हो जाएगा तो हमें खाने मे कटौती करने को मजबूर होना परेगा। महिला किसान संसद के सदस्यों ने बताया कि इस कानून का ख़मियज़ा महिलाओं को काफी भुगतना पड़ेगा।

महिला किसान संसद की एक सदस्य श्रीमती रमेश थीं, जिन्होंने इस आंदोलन के दौरान अपने पति को खो दिया था। अपने व्यक्तिगत नुकसान के बावजूद, वह संघर्ष में सक्रिय रहीं। संसद सदस्यों ने आज विजय दिवस पर कारगिल शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की, जिन्होंने 1999 में आज के ही दिन राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

महिला किसान संसद में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया गया कि भारतीय कृषि में महिलाओं के अपार योगदान के बावजूद, उन्हें वह सम्मान और दर्जा नहीं मिल पाया है जो उन्हें चाहिए – किसान आंदोलन में महिला किसानों की भूमिका को मजबूत करने के लिये सोच-समझकर कदम उठाने की आवश्यकता है। महिला किसान संसद ने सर्वसम्मति से यह भी निर्णय लिया कि पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों की तर्ज पर संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण होना चाहिए। इस संबंध में महिला किसान संसद ने प्रस्ताव पारित किया की एक संवैधानिक संशोधन किया जाना चाहिए ताकि महिलायें, जो हमारी आबादी का 50% हिस्सा है, को उचित प्रतिनिधित्व मिल सके।

पंजाब में, 108 स्थानीय विरोध स्थलों (ये वे स्थल हैं जहां प्रदर्शनकारी कॉर्पोरेट ठिकानों, अदानी ड्राई पोर्ट के बाहर, टोल प्लाजा, आदि पर लगातार धरना दे रहे हैं) मे बहुमत पर महिला किसानों ने आज की कार्यवाही का नेतृत्व किया।

इस बीच, महिला किसान संसद के सदस्यों के स्वागत के लिए जंतर-मंतर पहुंची दिल्ली की महिला अधिकार कार्यकर्ताओं के एक समूह को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में ले लिया। उन्हें जंतर-मंतर से उठाया गया और बाराखंभा पुलिस स्टेशन में कई घंटों तक हिरासत में रखा गया, और बाद में छोड़ दिया गया।

हरियाणा में, भिवानी और हिसार में, राज्य सरकार के मंत्रियों को कल किसानों के काले झंडे के विरोध का सामना करना पड़ा। करनाल में भाजपा की एक बैठक का किसानों ने काले झंडों से विरोध किया। पंजाब के फिरोजपुर में भी प्रदर्शनकारियों ने एक भाजपा नेता सुरिंदर सिंह का घेराव किया।

आज यूपी की राजधानी लखनऊ  में संयुक्त किसान मोर्चा की एक विशेष प्रेस कान्फ्रंस हुई। किसान नेताओं ने कहा कि किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने तथा एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर चल रहा ऐतिहासिक किसान आंदोलन आज आठ माह पूरे कर चुका है। इन आठ महीनों में किसानों के आत्मसम्मान और एकता का प्रतीक बना यह आंदोलन अब किसान ही नहीं देश के सभी संघर्षशील वर्गों का लोकतंत्र बचाने और देश बचाने का आंदोलन बन चुका है। इस अवसर पर आंदोलन को और तीव्र, सघन तथा असरदार बनाने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा ने इस राष्ट्रीय आंदोलन के अगले पड़ाव के रूप में ‘मिशन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड’ शुरू करने का फैसला किया है।

इस मिशन के तहत संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले संघर्षरत इन दो प्रदेशों के किसान संगठन सहित पूरे देश के किसान संगठन अपनी पूरी ऊर्जा इन दो प्रांतों में आंदोलन की धार तेज करने पर लगाएंगे। इस मिशन का उद्देश्य होगा कि पंजाब और हरियाणा की तरह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी हर गांव किसान आंदोलन का दुर्ग बने, कोने – कोने में किसान पर हमलावर कॉरपोरेट सत्ता के प्रतीकों को चुनौती दी जाए, और किसान विरोधी भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों का हर कदम पर विरोध हो। आज स्वामी सहजानंद सरस्वती, चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत की धरती पर जिम्मेवारी आन पड़ी है कि उसे भारतीय खेती और किसानों को कारपोरेट और उनके राजनैतिक दलालों से बचाना है।

इस मिशन के तहत संयुक्त किसान मोर्चा ने आह्वान किया है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में सभी टोल प्लाजा को फ्री किया जाए, अडानी और अंबानी के व्यवसायिक प्रतिष्ठानों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएं तथा बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के कार्यक्रमों का विरोध और उनके नेताओं का बहिष्कार किया जाए। इस मिशन को कार्य रूप देने के लिए पूरे प्रदेश में बैठकों, यात्राओं और रैलियों का सिलसिला शुरू हो रहा है।

इस मिशन के मुख्य कार्यक्रम इस प्रकार रहेंगे:

चरण १: प्रदेशों के आंदोलन में सक्रिय संगठनों के साथ संपर्क व समन्वय स्थापित करना
चरण २: मंडलवार किसान कन्वेंशन और जिलेवार तैयारी बैठक
चरण ३: 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में देश भर से किसानों की ऐतिहासिक महापंचायत
चरण ४: सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत का आयोजन

इन कार्यक्रमों की समीक्षा कर आगामी कार्यक्रम फिर निर्धारित किए जाएंगे। उत्तराखंड की कार्य योजना अलग से जारी की जाएगी।

संयुक्त किसान मोर्चा ने यह फैसला किया है कि इस मिशन के तहत राष्ट्रीय मुद्दों के साथ-साथ इन दोनों प्रदेशों के किसानों के स्थानीय मुद्दे भी उठाए जाएंगे। इनमें से कुछ निम्नांकित हैं:

● उत्तर प्रदेश सरकार ने किस वर्ष गाजे -बाजे के साथ प्रदेश के किसान का एक-एक दाना गेहूं खरीदने की घोषणा का मखौल बनाया है। प्रदेश में गेहूं के कुल अनुमानित 308 लाख टन उत्पादन में से सिर्फ 56 लाख टन ज्ञानी 18% गेहूं ही सरकार ने खरीदा है (तालिका1)

● अन्य फसलों (अरहर, मसूर, उड़द, चना, मक्का ,मूंगफली, सरसों)में सरकारी खरीदी शून्य या नगण्य प्राय रही है। केंद्र सरकार की प्राइस स्टेबलाइजेशन स्कीम के तहत तिलहन और दलहन की खरीद के प्रावधान का इस्तेमाल भी नहीं के बराबर हुआ है।

● इसके चलते किसान को इस सीजन में अपनी फसल निर्धारित एमएसपी से नीचे बेचनी पड़ी है। भारत सरकार के अपने पोर्टल एग्री मार्ग नेट के अनुसार उत्तर प्रदेश में मार्च से 20 जुलाई तक गेहूं का औसत रेट 1884 रुपए था जो कि न्यूनतम समर्थन मूल्य से 91 रुपए कम था। यही बात मूंग, बाजरा, ज्वार और मक्का की फसलों पर भी लागू होती है। सरसों, चनाऔर सोयाबीन जैसी फसलों में किसान को न्यूनतम समर्थन मूल्य से बेहतर रेट बाजार में मिला, लेकिन उसमें केंद्र या राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं थी ( तालिका 2)

● गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का मुद्दा अब भी ज्यों का त्यों लटका हुआ है। 14 दिन के भीतर भुगतान का वादा एक और जुमला साबित हो चुका है। आज गन्ना किसान का लगभग 12000 करोड रुपए बकाया है। उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद गन्ना किसानों के 5000 करोड रुपए का ब्याज का भुगतान नहीं हुआ है। 3 साल से गन्ना मूल्य ज्यों का त्यों है।

● आलू किसान को 3 वर्ष तक उत्पादन लागत नहीं मिली। आलू निर्यात पर बैन को फ्री करवाने में सरकार ने कुछ नहीं किया।

● पूरे प्रदेश के किसान आवारा पशुओं की समस्या से त्रस्त हैं। फसल के साथ जानमल का नुकसान हो रहा है। गौशाला के नाम पर शोषण और भ्रष्टाचार हो रहा है।

● खेती में बिजली की कमी और घरेलू बिजली की दरों से किसान की कमर टूट गई है।

प्रेस वार्ता को भारतीय किसान यूनियन के श्री राकेश टिकैत, जय किसान आंदोलन के प्रो. योगेंद्र यादव, राष्ट्रीय किसान मजदूर महासंघ के श्री शिवकुमार कक्का जी, राष्ट्रीय किसान मज़दूर महासंघ भा.कि. यू.(सिद्धूपुर) के श्री जगजीत सिंह दल्लेवाल, तथा ऑल इंडिया किसान मजदूर सभा के डॉ आशीष मित्तल आदि किसान नेताओं ने संबोधित किया।

संयुक्त किसान मोर्चा
प्रेस वक्तव्य / लखनऊ, 26 जुलाई 2021