राजस्‍थान पत्रिका में 6 अक्‍टूबर को छपा एक अदालती फ़रमान- 180 किसान 8 सितंबर को हाजिर हों!

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जितेंद्र चाहर

देश में सरकारें, मीडिया, कॉरपोरेट और न्यायालय किस तरह मिल कर किसानों की जमीने हड़प रहे हैं इसका एक नमूना राजस्थान के झुंझुनू जिले में सामने आया है। 6 अक्टूबर, 2017 को जिला एवं सत्र न्यायालय झुंझुनू की ओर से राजस्थान पत्रिका के झुंझुनू संस्‍करण में गोडड़ा गांव के 180 किसानों को 8 सितम्बर, 2017 को सत्र न्यायालय झुंझुनू में उपस्थित होने का आदेश छपा है। 8 सितम्बर, 2017 की तारीख पढ़ कर चौंकिए मत! यह तारीख पिछले महीने गुजर गई है लेकिन न्यायालय में हाजिर होने के लिए आदेश 6 अक्टूबर को अख़बार में छपा है। जिला एवं सत्र न्यायालय झुंझुनू ने अपनी विज्ञप्ति में 180 किसानों की सूची प्रकाशित की है जिन पर 2014 में भूमि अवाप्ति अधिकारी ने 31 मुकदमे कर्ज करवाए हैं। इन किसानों की 1278 बीघा जमीन श्रीसीमेंट के प्लांट के लिए अधिग्रहण किया जाना प्रस्तावित है।

नवलगढ़ जिले में किसान पिछले दस साल से अपने क्षेत्र में लगने वाली तीन सीमेंट फैक्ट्रियों के विरुद्ध संघर्षरत हैं। गौरतलब है कि जिला प्रशासन ने सीमेंट फैक्ट्रियों के लिए जमीन अधिग्रहण करने के लिए इस क्षेत्र की उपजाऊ जमीन को बंजर घोषित कर जमीन सीमेंट फैक्ट्रियों को देकर किसानों के लिए जबरन मुआवजा घोषित कर दिया। किसानों ने मुआवजे के चेक नहीं लिए तो प्रशासन ने मुआवजे के चेक कोर्ट में जमा करवा दिए तथा किसानों की जमीन कम्पनी के नाम दर्ज कर दी है जबकि इस क्षेत्र के किसान किसी भी कीमत पर अपनी जमीन छोड़ना नहीं चाहते और वे पिछले सात साल से नवलगढ़ किसान संघर्ष समिति के तहत संगठित होकर जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ नवलगढ़ तहसील के सामने धरने पर बैठे हैं।

नवलगढ़ किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष दीप सिंह शेखावत कहते हैं- ”इस तरह का एक आदेश पिछने साल भी आया था। किसानों ने एक स्वर में न्यायालय में हाजिर होकर जमीन देने से मना कर दिया था। कल फिर से अख़बार में बैक डेट में न्यायालय द्वारा विज्ञप्ति देने का एक ही औचित्‍य है किसानों पर एकतरफ़ा कार्यवाही करना। हमें न कोई नोटिस मिला है, न समय पर अख़बार में दिया गया है। सरकार शुरू से ही एकतरफ़ा कार्यवाही कर रही है जबकि इस जबरन भूमि अधिग्रहण के खिलाफ हमारा 2835 दिनों से धरना जारी है। 8 अक्टूबर को संघर्ष समिति की कार्यकारिणी की बैठक है जिसमें आगे की रणनीति तय की जाएगी।”

ज्ञात रहे कि श्रीसीमेंट और अल्ट्राटेक सीमेंट प्लांट और खनन के लिए नवलगढ़ में लगभग 72,000 बीघा भूमि का अधिग्रहण प्रस्तावित हैं। इस 72000 बीघे में 18 गांव आ रहे हैं जिनमें 45000 से भी ज्यादा लोग पीढि़यों से यहां रह रहे हैं। ये जमीनें न सिर्फ उनकी जीविका का साधन हैं बल्कि उनके अस्तित्व की पहचान भी हैं। प्रस्तावित भूमि बहुफसली भूमि है जिसको प्रशासन द्वारा बंजर दिखाने का भी प्रयास किया गया। बहुफसली जमीनों के साथ श्‍मशान घाट, आम रास्ते, तीर्थस्थल, गोचर भूमि भी श्रीसीमेंट कंपनी के लिए रीको (राजस्‍थान औद्योगिक निवेश निगम) के नाम की जा चुकी है। इनके अलावा पर्यटन स्थल, पर्यावरण, जोहड़, खेजड़ी, मोर इत्यादि को हानि पहुंचेगी। इस भूमि अधिग्रहण में 45,000 लोगों के विस्थापन से इस पूरी आबादी का अस्तित्व संकट में आ जाएगा। अधिग्रहण में जा रही इस जमीन का लगभग 83 प्रतिशत हिस्सा कृषि भूमि का है और यहां के निवासी मुख्यतः किसान हैं जिनका उगाया अन्न इस देश की जनता का पेट भरता है।

इस अधिग्रहण के प्रस्ताव के समय से ही किसान अधिग्रहण का विरोध कर रहे हैं जिसके बावजूद प्रशासन बिना किसानों की सहमति और मुआवजा उठाए ही उनकी जमीनें राजस्थान इंडस्ट्रियल इन्वेस्‍टमेंट कॉर्पोरेशन (रीको) के नाम कर चुका है जो कि संविधान का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। प्रशासन द्वारा लगातार इलाके में समाचार-पत्रों के माध्यम से यह खबर फैलाकर कि बहुत जल्द इस क्षेत्र को जबरन खाली करा दिया जाएगा, किसानों को डराने का प्रयास किया जा रहा है। प्रशासन लगातार इस कोशिश में है कि किसान डर कर अपना आंदोलन छोड़ दें जबकि किसान इस बात के लिए दृढ़ संकल्प हैं कि वे जान दे देंगे किंतु अपनी जमीनें नहीं छोड़ेंगे।

सात साल से अपना आंदोलन शांतिपूर्वक लड़ रहे ये किसान अपने देश के संविधान में पूरी तरह से भरोसा करते हैं और संविधान के तहत दिए गए अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के तहत ही अपने विरोध को दर्ज करवा रहे हैं किंतु प्रशासन सभी संवैधानिक प्रावधानों को दरकिनार कर चंद उद्योगपतियों के मुनाफे के लिए हजारों परिवारों के जीवन की बलि चढ़ाने पर तुला हुआ है।


(जितेंद्र चाहर सामाजिक कार्यकर्ता हैं और जन संघर्षों पर रिपोर्ट करने वाली वेबसाइट www.sangharshsamvad.org के मॉडरेटर हैं)