अख़बारनामा: सरकार की चमचागीरी में सिंगल कॉलम ख़बर बनी हेडलाइन !


पेड न्यूज से आगे बढ़कर सरकारी खबर जबरदस्ती लंबी और पहले पन्ने के लायक बनाई जाती है।


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पेड न्यूज के बाद बिकी हुई पत्रकारिता, पढ़िए कैसे

संजय कुमार सिंह



सरकार नहीं चाहती है कि रफाल सौदे पर निर्णय लेने की प्रक्रिया पर टीका टिप्पणी हो तो शासकीय गुप्त बात अधिनियम से लेकर तमाम बहाने बना रही है। खोजी पत्रकारिता करते हुए ‘द हिन्दू’ ने खबरें छाप दीं तो उसे कानून का डर दिखाया गया और चोर साबित करने की कोशिश भी की गई। जब प्रतिकूल खबर से बचाव का मौका आया तो तुरंत गुप्त फाइल का वही गुप्त पन्ना एएनआई ने जारी कर दिया।

इस तरह, पूरा माहौल यही लगता है कि सरकार चाहती है कि खबरें अनुकूल ही छपें, प्रतिकूल बिल्कुल नहीं। और सरकार बाकायदा प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रतिकूल खबरों का मुकाबला कर रही है। सरकार के ऐसा चाहने में कोई बुराई नहीं है। ‘पेड न्यूज़’ के जमाने में पैसे लेकर सरकार के पक्ष में खबरें छापने के आरोप लगे ही थे। समस्या यह है कि अब मीडिया गोदी में है और प्रतिकूल खबर तो नहीं के बराबर छपती है। पेड न्यूज से आगे बढ़कर सरकारी खबर जबरदस्ती लंबी और पहले पन्ने के लायक बनाई जाती है। और मामला सरकार के पक्ष में है, इसलिए पूरी प्रक्रिया की बाल की खाल खबर बन रही है। 

जैश ए मोहम्मद के आतंकवादी अजहर मसूद का मामला ऐसा ही है और इसे जबरन तीसरे दिन पहले पन्ने पर रखा गया है। कल यह खबर आई थी कि मसूद अजहर की संपत्तियों को फ्रीज करेगा फ्रांस। आज यह खबर पहले पन्ने पर है। मैंने कल ही लिखा था कि अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित कराने का प्रस्ताव पास नहीं हुआ तो नहीं हुआ, अब उसमें पहले पन्ने जैसा कुछ नहीं है। खबर मामूली सी है या कहिए कि जबरन पहले पन्ने पर छपवाने के लिए ही है। द टेलीग्राफ में (यह खबर) आतंकी अजहर मसूद की संपत्ति जब्त करने का फ्रांस का निर्णय – अंदर के पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। इसमें कहा गया है कि यह पता नहीं चला कि फ्रांस में अजहर की कौन सी संपत्ति है पर फ्रांस के इस प्रतिबंध से उन लोगों को दिक्कत होगी जो अजहर और उसकी इकाइयों के साथ धन का लेन-देन करेंगे। निश्चित रूप से यह खबर तीसरे दिन पहले पन्ने के लायक नहीं है। 

फिर भी, अन्य अखबारों को छोड़िए, इंडियन एक्सप्रेस में भी पहले पन्ने पर है। फ्रांस ने अजहर की संपत्तियां जब्त कीं, उसे आतंकवादियों की ईयू की सूची में डालने के लिए दबाव डालेगा। यह खबर विस्तार में है और इसका हिस्सा अंदर के पन्ने पर है। इसमें कहा गया है- फ्रांस ने कहा है कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में वह हमेशा भारत के साथ रहा है और रहेगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के (यूएनएससी) से निन्दा बयान जारी करवाने में भी फ्रांस की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यह चीन पर दबाव बनाने के लिए है। अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव डालने के लिए दिल्ली (भारत सरकार) अपने अहम सहयोगियों से बात कर रही है। अखबार ने लिखा है कि विेदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने शुक्रवार को कहा कि अजहर के खिलाफ यूएनएससी में प्रस्ताव पास न होना कूटनीतिक नाकामी नहीं है। ऐसा कहने वालों को समझना चाहिए कि 2009  में यूपीए शासन में जब पहली बार यह प्रस्ताव रखा गया था तो भारत अकेला था जबकि 2019 में इसे विश्वव्यापी समर्थन है। 

मेरा सवाल है कि 10 साल में 14-15 या 20 देशों का समर्थन पाकर क्या मिला? आतंकवाद कम तो नहीं हुआ है और अगर किसी खास लक्ष्य के लिए ‘प्रक्रिया’ है तो राफेल सौदे की प्रक्रिया की तरह गुप्त क्यों नहीं रखा जा रहा है? उल्टे इसका प्रचार क्यों किया जा रहा है? अखबार के मुताबिक स्वराज ने इस बारे में ट्वीटर पर लिखा है, यह प्रस्ताव चार बार रखा गया है, 2009 में जब यूपीए की सरकार थी। फिर 2016, 2017 और 2019 में। हर बार इसे समर्थन बढ़ा है और अब यूएनएससी के 15 में से 14 देशों को इसका समर्थन है। इसका मतलब यह भी तो है कि पिछली सरकार को 2009 में ही समझ में आ गया था कि यह बेकार का काम है और इसमें जितनी परेशानी है उतना लाभ नहीं है, इसलिए छोड़ दिया हो। इस सरकार को लग रहा है कि इसमें लाभ ही लाभ है तो वह इसके पीछे पड़े ही। हालांकि यह गलत नहीं है। और दोनों सरकारों की सोच अलग हो सकती है। पर हो जाए तब ना। यह भी तो संभव है कि कांग्रेस सरकार ने कोशिश नहीं की और यह सरकार कह रही है कि उससे हुआ नहीं। अखबार का काम है इसमें कांग्रेस का पक्ष लिया जाता या इस बात को लिखा जाता।

पहले किसी देश ने भारत का समर्थन चाहे नहीं किया हो। यह तो नहीं ही कहा होगा कि हम समर्थन नहीं करेंगे वह खुद निपटे। आतंकवाद के खिलाफ समर्थन कौन नहीं देगा, क्यों नहीं देगा। जो नहीं दे रहा है वह क्यों नहीं दे रहा है यह मुद्दा है और वह गायब है। अखबार के मुताबिक सुषमा स्वराज ने जोर देकर लिखा है कि, (इस मामले में) भारत को अंतरराष्ट्रीय समाज से बेजोड़ समर्थन मिल रहा है। अंत में अखबार ने सुषमा स्वराज के हवाले से यह भी लिखा है, मैंने यह सब आप के साथ साझा किया है ताकि जो (मसूद को वैश्विक आतंकवादी नहीं करार दिए जाने को) हमारी कूटनीतिक नाकामी बता रहे हैं वे खुद यह देख सकें कि 2019 में भारत अकेले था और अब हमें दुनिया भर का समर्थन है। ऐसी खबरें और गलतियां पहले भी होती थीं। पर तब उसे रिपोर्टर द्वारा चमचागिरी करना माना जाता था। अब स्थिति दूसरी है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह खबर पहले पन्ने पर है, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की फोटो के साथ। शीर्षक लगभग वही है जो एक्सप्रेस में है। यहां भी यह खबर अंदर के पन्ने पर जारी है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर तो नहीं है लेकिन राष्ट्रीय खबरों के पन्ने पर विस्तार से है। दिल्ली के इन दोनों अंग्रेजी के अखबारों ने इस खबर के साथ (अंदर के पन्ने पर) भाजपा अध्यक्ष का यह बयान छापा है कि 1999 में अजहर मसूद को रिहा करने के निर्णय में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह भी शामिल थे। मुझे इस सर्वदलीय बैठक की याद थी और मैं इस खुलासे का इंतजार कर रहा था। गनीमत है, यह खबर अंदर के पन्ने पर है। पहले पन्ने पर भी हो सकती था। इस खबर के मुताबिक अमित शाह ने कांग्रेस अध्यक्ष पर कंधार विमान अपहरण कांड का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है। 

बेशक राहुल गांधी ने ऐसा किया है और पता नहीं अखबारों ने यह पहले क्यों नहीं लिखा या उन्हें कैसे याद नहीं था। भाजपा ने भी इस तथ्य को सामने लाने में देर कर दी। जानते हैं क्यों? मुझे लगता है कि एक कुख्यात आतंकवादी, जिसे मजबूरी में छोड़ना पड़ा था उसे दोबारा भारत को सौंपने की मांग करना भी राजनीति है। और इसे याद दिलाना तो निश्चित रूप से है – पर जवाब है। उस पर चुप रहना जवाब नहीं मिलना है और आगे पीछे सोचने में समय लगना है। मुझे लगता है इस बयान को पहले पन्ने पर प्रमुखता दी जाती तो राहुल गांधी जवाब में यही कहते कि आप (यानी भाजपा की उस समय की सरकार) विमान अपहरण को हैंडल नहीं कर पाए, विमान को अमृतसर से उड़ जाने दिया गया इसलिए स्थिति खराब हुई आदि। पर ये सब तकनीकी जानकारी है जो छप चुकी है और पहले पन्ने की खबर नहीं बनेगी। इसलिए शायद राहुल गांधी यह सब न बोलें। देखते रहिए आगे क्या-क्या होता है। 

हिन्दी अखबारों में यह खबर दैनिक भास्कर में पहले पन्ने पर है। दो कॉलम की छोटी सी यह खबर पेरिस डेटलाइन से एजेंसी के हवाले से है। शीर्षक है, मसूद अजहर की संपत्तियों को फ्रीज करेगा फ्रांस, कहा – हम भारत के साथ। नवभारत टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर तीन कॉलम में है। शीर्षक है, मसूद पर भारत को कामयाबी, फ्रांस ने लिया ऐक्शन, संपत्तियां होंगी जब्त। इसके साथ अखबार ने एक तरफ मसूद अजहर और दूसरी तरफ सुषमा स्वराज की फोटो छापी है। नई दिल्ली डेटलाइन की यह खबर पीटीआई की है। इसमें कहा गया है कि फ्रांस अब ‘खुद’ ऐक्शन लेने जा रहा है। जैश के खिलाफ फ्रांस की यह अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है। सुषमा स्वराज की फोटो के साथ लिखा है मसूद मामले में 2009 में भारत अकेला था जबकि 2019 में हमें दुनिया भर से समर्थन मिला है। 

हिन्दुस्तान में यह खबर दो कॉलम में टॉप पर है और नई दिल्ली से विशेष संवाददाता की है जो गौरतलब है। शीर्षक है, फ्रांस जैश सरगना मसूद की संपत्ति जब्त करेगा। अमर उजाला में भी यह खबर टॉप पर दो कॉलम में है। इसके साथ सुषमा स्वराज और अजहर की फोटो भी है। सुषमा स्वराज की फोटो के साथ खबर है, मसूद पर 21 देश भारत के साथ। दैनिक जागरण में खबरों के पहले पन्ने पर खूब विज्ञापन है और उसमें मुख्य रूप से न्यूजीलैंड वाली खबर है। अजहर की फ्रांस वाली खबर आज दूसरे पहले पन्ने पर लीड है। शीर्षक तो वही है जो दूसरे अखबारों में है पर यह पांच कॉलम में है और पूरे विस्तार से सुषमा स्वराज की फोटो के साथ है। आज इस मामले में मुझे इंडियन एक्सप्रेस की खबर ठीक नहीं लगी तो जागरण की खबर पर क्या टिप्पणी करूं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )

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