बिहार में NDA को हराना लक्ष्य, पर समझौता सम्मानजनक हो- माले

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राजनीति Published On :


बिहार विधानसभा चुनाव के सम्बन्ध में भाकपा-माले 29 जून को चुनाव आयोग को एक ज्ञापन सौंपेगी, जिसमें चुनाव में जनता की व्यापक भागीदारी और तमाम पार्टियों को समान अवसर प्रदान किये जाने की मांग प्रमुखता से उठाएगी. इसके साथ ही भाकपा-माले ने कहा कि विधानसभा चुनाव में एनडीए को हराना वामपंथ का लक्ष्य है, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव की तरह नहीं, बल्कि सम्मानजनक समझौता होना चाहिए. माले ने कहा कि वो वाम दलों को लेकर भाजपा-जदयू विरोधी ताकतों के साथ एक राजनीतिक समझदारी विकसित करने का काम करेगा.

भाकपा-माले का मानना है कि वर्चुअल प्रचार का तरीका भाजपा और सत्ताधारी पार्टियों के लिए ही मुफीद साबित होगा और आर्थिक रूप से कमजोर दल अपनी बात आंशिक रूप से ही जनता तक पहुंचा पाएंगे. ऐसी स्थिति में चुनाव की पूरी प्रक्रिया एकांगी होगी , जो जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों की वास्तविक अभिव्यक्ति नहीं होगी. इसलिए भाकपा-माले चुनाव आयोग से यह जानना चाहेगी कि वह जनता के बड़े हिस्से को चुनाव प्रक्रिया में कैसे शामिल करेगा और सभी दलों को समान अवसर कैसे प्रदान करेगा?

भाकपा-माले राज्य सचिव कुणाल, भाकपा माले पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा, ऐपवा महासचिव मीना तिवारी और भाकपा माले राज्य स्थायी समिति के सदस्य राजराम ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि- सितम्बर-अगस्त तक कोरोना का प्रकोप और बढ़ने वाला है. ऐसी स्थिति में कोरोना से वचाब के उपाय के बारे में आयोग क्या करेगा?  क्या वह हर बार मतदान के बाद ईवीएम मशीन को सेनिटाइज करेगा? आयोग कह रहा है कि एक बूथ पर 1000 से अधिक मतदाता नहीं होंगे, फिर भी यह संख्या काफी अधिक है, ऐसे में कोरोना संक्रमण की संभावना प्रबल है. अतः, इस बिंदु पर भी आयोग को गम्भीरता से विचार करना चाहिए.

चुनाव आयोग कोरोना से बचाव, जनता की व्यापक भागीदारी और सभी पार्टियों को समान अवसर कैसे प्रदान करेगा, इसे स्पष्ट किया जाना चाहिए.

संवाददाता सम्मेलन #Patna 28 जून #CPIML

Posted by CPIML – Liberation, Bihar on Sunday, June 28, 2020

 

माले नेताओं ने कहा कि चीन के खिलाफ बोर्डर का विवाद शांतिपूर्ण और राजनयिक तरीके से ही निकल सकता है, लेकिन हम देख रहे हैं कि भाजपा और जदयू चीन के खिलाफ युद्धोन्माद व आंचलिक भड़काकर असली समस्याओं पर पर्दा डालने और इसी की आड़ में बिहार चुनाव को हड़प लेने के प्रयास में हैं. प्रधानमंत्री द्वारा ‘बिहार रेजिमेंट’ की बहादुरी की अलग से चर्चा आंचलिक भावना भड़काकर चुनावी इस्तेमाल की कोशिश है. सीमा विवाद पर सरकार तो देश को अंधेरे में रखे हुए है. अगर सीमा पर कोई अतिक्रमण हुआ ही नहीं, तो हमारे सैनिक मारे कैसे गए. हम सरकार वर्तमान घटनाक्रम पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग करते हैं.

लॉक डाउन ने प्रवासी मजदूरों से लेकर तमाम मेहनतकशों की कमर तोड़ दी है. बिहार लौटे प्रवासी मजदूरों के सामने भारी संकट है लेकिन सरकार ने उनसे मुंह मोड़ लिया है. लोग वापस भी लौटने लगे हैं, लेकिन उनका भविष्य  पूरी तरह अंधकारमय है. उनके अधिकारों की रक्षा करने की बजाय भाजपा-जदयू के लोग वर्चुअल रैली में व्यस्त हो गए हैं. आखिर वे किस मुंह से उनसे वोट मांग रहे हैं, यह तो बेशर्मी की हद है.

भाकपा माले नेताओं ने कहा कि मजदूरों के लिए लॉकडाउन भत्ता, राशन-रोजगार की गारंटी, मनरेगा में काम आदि अत्यंत जरुरी सवालों पर सरकार की खामोशीय राहत पैकेज के नाम पर छलावा, देश के संसाधनों को कौड़ी के भाव नीलाम किये जाने तथा पेट्रोल-डीजल के दामों में लगातार बढ़ोतरी व उसके कारण लगातार बढ़ती महंगाई के कारण मोदी-नीतीश सरकार के खिलाफ गुस्सा आज चरम पर है. गुजरात से आये मजदूर कह रहे हैं कि वहां दर्जनों बार उनपर लाठीचार्ज हुआ और संगीन मुकदमे ठोके गए. लेकिन एक दिन भी पीएम मोदी या अमित शाह का बयान नहीं आया, यहां तक कि सान्तवना के दो शब्द भी नहीं निकले.

बिहार की तथाकथित डबल इंजन वाली सरकार हर तरह से गरीबों-दलितों पर बुलडोजर चलाने वाली सरकार साबित हुई है. इस सरकार से मुक्ति की आकांक्षा बिहार वासियों के अंदर है. विगत 15 वर्षों में इन्होंने जो तथाकथित विकास का नरेटिव बनाया था, आज वह ध्वस्त हो चुका है. पलायन बदस्तूर जारी है. गरीबों की झोपड़िया उजाड़ी जा रही है. बेरोजगारी चरम पर है. कृषि में विकाश शून्य है और अब जाकर चुनाव के पहले उद्योग में निवेश का दिखावा सरकार कर रही है. कुल मिलाकर यह सरकार एक आततायी और विश्वासघाती सरकार ही साबित हुई है. इसके खिलाफ भाकपा-माले अगले दो महीने घर-घर चलो अभियान संगठित करेगी .

भाकपा माले नेताओं ने कहा कि चुनाव में हमारी कोशिश होगी कि भाजपा विरोधी ताकतों के साथ एक बेहतर अंडरस्टैंडिंग विकसित की जाए. वामदलों के साथ-साथ अन्य विपक्षी पार्टियों के साथ व्यापक एकता कायम करने का प्रयास जारी है. लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव का अनुभव लेफ्ट के लिए अच्छा नहीं था. लेफ्ट बिहार में आंदोलन की पार्टी है, इसलिए सम्मानजनक समझौता होना चाहिए.

स्वयं सहायता समूहों को दिए गए कर्ज माफ करने, माइक्रो फायनांस कम्पनियों द्वारा दिए गए कर्जों का भुगतान सरकार द्वारा किये जाने, हर समूह को उसकी क्षमता के अनुसार या कलस्टर बनाकर रोजगार  का साधन उपलब्ध कराने, उनके उत्पादों की खरीद सुनिश्चित करने, स्वयं सहायता समूह को ब्याज रहित ऋण देने और जीविका कार्यकर्ताओं को न्यूनतम 15 हजार रुपए मासिक मानदेय देने के सवाल पर 10 जुलाई को जिला मुख्यालयों पर मांग पत्र सौंपे जायेंगे.

प्रवासी मजदूरों के लिए रोजगार, आयकर के दायरे से बाहर सभी परिवारों को 7500 रुपया लगातार 6 महीना तक लॉक डाउन भत्ता, 6 महीने तक 10 किलो अनाज, मनरेगा में 200 दिन काम व 500 न्यूनतम मजदूरी की मांग पर 7 जुलाई को प्रखंड मुख्यालयों पर मांग पत्र सौंपे जायेंगे.

वज्रपात के कारण तकरीबन 100 लोग बेमौत मारे गए हैं. हर प्राकृतिक आपदा के समय सरकार का आपदा प्रबंधन फिसड्डी साबित होता है. हमारी मांग है कि मृतक परिजनों को सरकार 20 लाख का मुआवजा दे और निचले स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं को दुरूस्त करे.

तमाम वादों के बावजूद इस बार तो पहली ही बारिश में पटना डूबने-उतराने लगा है और सरकार की पोल खुल गई है. विगत साल भयानक जलजमाव से पटना वासी अभी भी डरे सहमे हैं. और इस बार भी हालत उसी दिशा में चिंताजनक तरीके से बढ़ रहे हैं.


विज्ञप्ति पर आधारित