जिन्हें याद रखना होगा- सिल्विया पंखुरुस्ट जो इतिहास के पन्नों में कहीं खो गयीं.. 

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डॉ. वर्तिका

इतिहास के पन्नों में अक्सर महिलाएँ खो जाती हैं और तब ये सिर्फ़ ज़रूरी नहीं बल्कि एक ज़िम्मेदारी सी लगती है कि ऐसी महिलाओं के बारे में लिखा-पढ़ा जाए और बातें की जाएं. इन्हीं महिलाओं में से एक थी सिल्विया पंखुरुस्ट. सिल्विया का जन्म 5 मई, 1882 को इंग्लैंड में हुआ था. वो अपनी पढ़ाई करती हुई पूरे समय अपनी माँ के साथ महिला मताधिकार के लिए लड़ती रहीं. उन्होंने अपनी माँ और छोटी बहन के साथ मिलकर 1903 में वोमेंस सोशल एंड पॉलिटिकल यूनियन (WSPU) बनाया, जिसके तहत वो लगातार महिला मुक्ति और महिलाओं के समान अधिकार की बातों को उठाती रहीं. सिल्विया ने 1909 के इर्द-गिर्द उत्तरी इंग्लैंड में घूम-घूमकर उन तमाम औरतों से बातें की, उनके बारे में लिखा और उनकी तस्वीरें बनायी जो कल-करखानो में काम करती थीं.

सिल्विया की उनकी बहन और माँ से वैचारिक दूरी तब बनने लगी जब वो WSPU में आम महिलाओं को शामिल करने की बात करने लगी. सिल्विया का मानना था कि नारी मुक्ति की बात तब तक नहीं की जा सकती जब तक आम महिलाएँ जो कारख़ानों और खेतों में काम करती हैं उनकी बात ना की जाए जबकि उनकी माँ और बहन पहले “मिडल क्लास’ औरतों के मताधिकार की बात करती थीं. इसी लड़ाई में सिल्विया को 1914 में WSPU निष्काषित कर दिया गया. पहले विश्वयुद्ध ने इस वैचारिक लड़ाई को और तेज कर दिया जब सिल्विया की माँ और बहन दोनों ख़ुद को “देश भक्त” कहकर इंगलैंड के सेना के लिए वालंटियर्स की बहाली करने लगे. दूसरी तरफ़ सिल्विया समाजवाद की बातें कह रहीं थीं और ये बता रहीं थीं कि युद्ध कैसे पूँजीवाद की ही देन है और उसको ही मदद पहुँचायेगा. वो लगातार युद्ध के ख़िलाफ़ बोलती रहीं और उन समस्त महिलाओं और बच्चों के लिए काम करती रहीं जो युद्ध से प्रभावित हुए थे.

1917 में हुए रूसी की बोल्शेविक क्रांति से सिल्विया काफ़ी प्रभावित थीं. वो ‘इंटरनेशनल कम्यून’ में लगातार सक्रिय रहीं जो मास्को से छपता था. हालाँकि ये बहुत कम लोगों को पता होगा की उन्होंने लेनिन से भी सोशलिस्ट विचारधारा को लेकर अपना विरोध जताया था. उन्होंने 1919 को एक पत्र में लेनिन को लिखा था कि सोशलिस्ट विचारधारा बहुत सारे समझौतों को लेकर आगे बढ़ रही है. उन्होंने 1920 में हो रहे कम्युनिस्ट पार्टी समारोह में भी भाग लेने से मना कर दिया. लेनिन ने इसको लेकर सिल्विया का विरोध भी किया था. 1921 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी समारोह में भाग तो लिया लेकिन लगातार अपने विचारों को लेकर निडर होकर बोलतीं रहीं और इसी कारण उनको 1921 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ ग्रेट ब्रिटेन (CPGB) से भी निष्काषित कर दिया गया.

सिल्विया सालों तक कम्युनिस्ट पॉलिटिक्स से जुड़ी रहीं और तमाम तरह की महिला विरोधी ताक़तों और पूँजीवाद के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद करती रहीं. वो पहली बार 1909 में जेल गईं और दुबारा 1921 में “द ड्रेड्नॉट’ में राजद्रोह के आरोप में उन्हें लगभग सात महीने जेल में रहना पड़ा था. ग़ौरतलब ये बात है कि उनपर राजद्रोह का मामला सिर्फ़ एक लेख लिखने पर लगाया गया था. हालाँकि 1930 में  सिल्विया ने अपने आप को कम्युनिस्ट पॉलिटिक्स से दूर कर लिया, लेकिन वो अपनी पूरी ज़िंदगी फासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ती  रहीं. 1930 के दशक में उन्होंने ख़ूब लिखा जिसमें उन्होंने अपने बारे में, मज़दूरों के बारे में, अपनी माँ की जीवनी और बहुत सारी कविताओं का अनुवाद भी किया.

दूसरे विश्व युद्ध के वक़्त जब इटली ने इथियोपिया पर हमला किया था तब वो लगातार इसके ख़िलाफ़ बोलती, लिखती और और लड़ती रहीं. वो 1956 में इथियोपिया में अपने बेटे के साथ शिफ़्ट हो गईं और लगातार वहाँ की कला और सभ्यता के बारे में लिखती रहीं थीं. सिल्विया ने इथियोपिया के विकास में भी काफ़ी सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने “इथियोपिया ऑब्ज़र्वर” के नाम से एक जर्नल भी शुरू किया जो आज भी इथियोपिया की इतिहास, राजनीति और कला सम्बन्धी प्रमुख जर्नल है. उनका देहांत 1960 में ऑडीस अबाबा में हुआ जो आख़िर के कुछ सालों में उनकी पहली प्राथमिकता थी जिससे उन्हें काफी लगाव था.

आज सिल्विया को याद करना ज़रूरी है. सिल्विया ने न सिर्फ़ मज़दूरों और महिलाओं के हक़ों के बारे में लिखा और बोला है बल्कि उसको जिया भी है. वो लगातार युद्ध के ख़िलाफ़ भी बोलती रहीं और अपनी कला को एक माध्यम बनाकर लोगों के बीच अपनी बात पहुँचाती रहीं. आज जब ये दुनिया और समाज युद्ध की बातें कर रहा है तो हमें सिल्विया जैसी महिलाओं को याद करना महत्वपूर्ण हो जाता है जिन्होंने अपना जीवन इसके ख़िलाफ़ बोलने में और लड़ने में लगा दिया। सिल्विया ने अपनी विचारों के लिए अपनी बहन और माँ तक से लड़ाई की और तमाम मतभेदों के बीच अपनी आवाज़ को बुलंद रखा. हमें अपने वक़्त की लड़ाई लड़ने में सिल्विया और इनकी जैसी हज़ारों महिलाओं से प्रेरणा लेनी होगी.


डॉ. वर्तिका ने अपनी पीएचडी जवाहरलाल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से किया है. उनसे उनके ईमेल vartikajnu3007@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है.