गौरी लंकेश को ईसाई बताने वाले नहीं जानते कि लिंगायतों को दफ़नाया जाता है !

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गौरी लंकेश का पूरा नाम गौरी लंकेश पैट्रिक है, यानी वह ईसाई थी -सोशल मीडिया के वीर बालक इस अभियान को ज़ोर शोर से चला रहे थे कि उन्हें हर तरफ़ से डाँट पड़ गई। बताया गया कि जिसे वे पैट्रिक पढ़ रहे हैं, वह दरअसल पत्रिके है। इस कन्नड़ शब्द का अर्थ वही होता है जिसे हिंदी में पत्रिका कहते हैं। गौरी के पिता द्वारा स्थापित लंकेश पत्रिके को भाई से विवाद के बाद गौरी लंकेश पत्रिके नाम दे दिया गया था। साथ ही वे लिंगायत संप्रदाय से ताल्लुक रखती थीं, जहाँ दफ़नाने की परंपरा है। लेकिन जिस तेज़ी से इसे लेकर अफ़वाहें उड़ीं, वह हमारे समाज में सामान्य सूचनाओं के घोर अभाव की बानगी है। समझ ही नहीं आता कि आख़िर सूचना क्रांति का अर्थ सूचनाएँ फैलाना था, या उनसे लोगों को वंचित करना। बहरहाल, लिंगायतों की परंपरा के बारे में मशहू टी.वी. पत्रकार वीश कुमार ने तुरंत एक लेख लिखा, जिसे ज़्यादा से ज़्यादा फैलाकर हम हिंदी जगत की दरिद्रता कम करने में योगदान दे सकते हैं—संपादक

गौरी लंकेश को दफ़नाए जाने को लेकर तरह-तरह की अफ़वाहें फैलाई जा रही हैं। लिंगायत परंपरा में निधन के बाद शव को दफ़नाया जाता है। दो तरह से दफ़नाने की परंपरा है। एक बिठा कर और दूसरा लिटा कर। किस तरह से दफ़नाना है, ये परिवार तय करता है। निधन के बाद शव को नहलाया जाता है और तभी बिठा दिया जाता है। कपड़े या लकड़ी के सहारे बांध जाता है। जब किसी बुज़ुर्ग लिंगायत का निधन होता है तो उसे सजा धजाकर कुर्सी पर बिठाया जाता है और फिर कंधे पर उठाया जाता है। इसे विमान बांधना कहते हैं।

गांवों में परिवार के अपने क़ब्रिस्तान होते हैं और सामुदायिक भी होते हैं। कई गांवों में लिंगायतों के अलग क़ब्रिस्तान होते हैं, मुसलमानों के तो होते ही हैं। गौरी लंकेश को लिटा कर ले जाया गया है। मगर उन्हें दफ़नाते समय लिंगायतों की बाकी विधियों का पालन नहीं किया गया। जैसे जंगम या स्वामी आकर मंत्रजाप करते हैं, वो सब नहीं हुआ होगा। गौरी लंकेश नास्तिक थी।

लिंगायत लोग शिवलिंग के लघु आकार की पूजा करते हैं। इन्हें ईष्टलिंग कहते हैं। लिंग की ऊंचाई एक सेंटीमीटर की होती है और परिधि भी एक सेंटीमीटर की होती है। ईष्टलिंग का रंग काला होता है। इनकी पूजा बायें हाथ में रखकर की जाती है। दायें हाथ से फूल वगैरह चढ़ाया जाता है। मंत्र जाप होता है और फिर लोग या तो तय स्थान पर रख देते हैं या लाकेट में रखकर गले में डाल लेते हैं। स्त्री पुरुष दोनों ही लाकेट की तरह अपने ईष्ट को डालते हैं। पांच मिनट की पूजा होती है। बसवन्ना कर्नाटक के बड़े संत हुए हैं। बसवा नाम है और इसमें अन्ना लगता है। अन्ना मतलब बड़ा भाई।

अगर आप तक गौरी लंकेश के दफ़नाने को लेकर अफ़वाह पहुंची है तो समझ लीजिए कि वो कौन सी ताकत है जो आपको इस देश की परंपराओं के बारे में भी नहीं जानने देना चाहती है। आपको मूर्ख समझती है कि कुछ भी व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी के ज़रिये फैला देंगे और लोग नौकरी, अस्पताल और शिक्षा भूलकर कुएं में कूद जाएंगे। इस तरह की अफ़वाह फ़ैलाने की ज़रूरत क्यों थीं, क्योंकि कोई ताकत है जो मान चुकी है कि आप मूर्ख हैं और अगर इस तरह झूठ और नफ़रत के ख़ुराक की सप्लाई होती रही तो आप उनके हिसाब की हिंसा को अंजाम दे सकते हैं।

माता पिता को विशेष रूप से सावधान रहने की ज़रूरत है। आपके बच्चे झूठ की चपेट में आ सकते हैं। नेताओं का तो काम निकल जाएगा, आपके बच्चे अफ़वाह फैलाते फैलाते बेरोज़गार हो चुके होंगे और दंगाई मानसिकता से बीमार।

लंबे समय से लिंगायत समुदाय मांग करता रहा है कि उसे अलग धर्म की मान्यता दी जाए। उसे हिन्दू नहीं कहा जाए। हाल ही में कर्नाटक में लिंगायतों की एक सभा हुई थी। इंडियन एक्सप्रेस ने इस घटनाक्रम को रिपोर्ट किया है। हम लोग दक्षिण के बारे में बहुत कम जानते हैं। जानना चाहिए। इसमें कोई और जानकारी जोड़ना चाहे तो स्वागत है। कमेंट बाक्स में आप कुछ भी पोस्ट कीजिए, तीन चार तरह के मेसेज हैं जो अलग अलग नामों से लोग पोस्ट करते हैं। इसका मतलब है कि ट्रोल फैक्ट्री से तैयार किया हुआ मेसेज है। इस मेसेज को दूर दूर तर फैला दीजिए।