‘याद करोगे कि गोदी मीडिया के दौर में शिक्षा और रोज़गार पर बात करने वाला रवीश भी था !’

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रेलवे की परीक्षा देने से चूक गए 11 लाख नौजवान, यूपी में बीटीसी बनाम बीएड का विवाद

 

रवीश कुमार

11 लाख परीक्षार्थी रेलवे की परीक्षा नहीं दे सके। 11 लाख क्या छोटी संख्या है? 47 लाख परीक्षार्थियों में से 11 लाख परीक्षा में शामिल नहीं हो सके, यह बात हर दर्ज़े से शर्मनाक़ है। आप जानते हैं कि रेलवे ने अगस्त में 64,037 पदों के लिए परीक्षा ली है। यह परीक्षा सहायक लोको पायलट और टेक्निशियन के पोस्ट के लिए थी। रेल मंत्रालय ने ख़ुद ही ट्विट कर बताया है कि 76.76 प्रतिशत छात्र ही परीक्षा में शामिल हो सके।

जब परीक्षा ऑनलाइन हो और 11 लाख नौजवान इम्तहान न दे सकें तो फिर किस बात की ऑनलाइन परीक्षा है ये। इस बार परीक्षा के केंद्र काफी दूर दूर थे। कई छात्र ग़रीबी के कारण नहीं जा सके तो कई इसलिए नहीं दे सके कि एक नए शहर में परीक्षा केंद्र खोजते खोजते देर हो गई। कइयों के परीक्षा न देने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। आप ख़ुद भी रेलवे के परीक्षार्थियों से पता कर लें।

हर समय पिछली सरकार से श्रेष्ठ बताने का ऐसा नशा तारी है कि संदर्भ का भी ठीक से ज़िक्र नहीं होता। रेलवे ने ट्विट कर दिया कि पिछली बार जब सहायक लोको पायलट और टेक्निशियन की परीक्षा हुई थी तब 32 लाख नौजवानों ने फार्म भरा था। यह परीक्षा चार साल पहले हुई थी। तब 16.8 लाख छात्र नहीं दे सके थे। रेल मंत्रालय यह कहना चाहता है कि इस बार 11 लाख ही नहीं दे सके। क्या चार साल पहले भी ऑनलाइन परीक्षा हुई थी?

इंडियन एक्सप्रेस के करियर डेस्क ने ट्विट के आधार पर यह ख़बर लिखी है। इसमें एक जानकारी है जो और भी भयानक है। अख़बार ने लिखा है कि सहायक लोको पायलट और टेक्निशियन के लिए 48 लाख आवेदन आए थे। इसमें से 1 लाख 33 हज़ार फार्म रिजेक्ट कर दिए गए। इसका मतलब तो यही हुआ न कि 47 लाख से कुछ कम छात्रों का फार्म स्वीकार किया गया। इसमें से भी 11 लाख नौजवान अलग अलग कारणों से परीक्षा देने नहीं जा सके। ये कैसे ऑनलाइन परीक्षा है जिसे देने के लिए ऑफलाइन यात्रा करनी पड़ती है। वो भी 500 से 2000 किमी।

आप रेल मंत्री के ट्विटर की टाइमलाइन पर जाइये। अभी भी नौजवान लिख रहे हैं कि उनकी परीक्षा दूर सेंटर होने के कारण छूट गई। इंजीनियर लिख रहे हैं कि चार साल से रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग में कोई वैकेंसी नहीं आई है। जूनियर इंजीनियर लिख रहे हैं कि वैकेंसी कब आएगी। छात्र यह भी लिख रहे हैं कि जो परीक्षा हुई है उसकी उत्तर पुस्तिका कब आएगी जिससे वे मिलान कर सकें कि क्या सही लिखा है और क्या ग़लत।

रेलवे ने जब फार्म निकाला था तब फार्म भरने की फीस 500 रुपए ले लिए थे। जब प्राइम टाइम में इस सवाल को उठाया और नौजवानों ने भी यह बात ईमानदारी से रखी कि आई ए एस के इम्तहान के लिए 100 रुपये का फार्म और ग्रुप सी और डी के इम्तहान का फार्म 500 रुपये में तब रेल मंत्री ने एलान किया था कि 400 रुपये लौटा दिए जाएंगे। फार्म के लिए सिर्फ 100 रुपये देने होंगे। आज तक वो 400 रुपया नहीं लौटाया गया है। जब सब डिजिटल हो गया है तो देरी किस बात की है मंत्री जी। परीक्षा न दे सकने वाले 11 लाख छात्रों से भी रेलवे को बैठे बिठाए 11 करोड़ की आमदनी हो गई।

मैं जब भी व्हाट्स एप देखता हूं कहीं न कहीं से युवाओं की चीख पुखार की आवाज़ सुनाई देती है। धर्मांधता की राजनीति ने इन युवाओं को बर्बाद कर दिया है। अब जब उनकी जवानी के पांच साल बीत गए और नौकरी नहीं मिल रही है तो उनका ध्यान गया है कि ये क्या हो गया। पांच साल से कह रहा था कि न्यूज़ चैनलों को आगे कर दिन रात हिन्दू मुस्लिम डिबेट कराया जा रहा है ताकि आप धर्म के नशे में रहें और कब बर्बाद हो जाए पता न चले। मुझे पड़ने वाली गाली की चिन्ता न करें, मैंने आपको सही समय पर बताया है कि आपको बर्बाद किया जा रहा है। सत्ता के इशारे से दो दो एंकरों की नौकरी ले ली गई, मगर आप चुप रहे। आपकी यह चुप्पी आपको सताएगी। जो समाज सवाल पूछने वालों के साथ खड़ा नहीं हो जाता है, वह अपने ही चुने हुए नेता के हाथों कुचल दिया जाता है।

मेरे पोस्ट पर कमेंट करने से डरने वाले नौजवानों से मुझे कोई उम्मीद नहीं है, मगर खुद बर्बाद होने और सब कुछ बर्बाद होते हुए देखते रहने वाले ये युवा किस हक से मुझे मेसेज भेजते हैं कि मैं ही उम्मीद हूं। मैं उनका प्यार और सम्मान समझता हूं, कद्र भी करता हूं मगर जब तक वे यह नहीं देखेंगे कि उनका इंडिया कब से बुज़दिल इंडिया हो गया जहां सवाल पूछने पर एंकरों को हटवा दिया जाता है, तब तक वे कैसे उम्मीद करते हैं कि कोई उनकी बात उठाने की हिम्मत करेगा। वो गाना सुनते रहना दोस्तों। वो जवानी जवानी नहीं, जिसकी कोई कहानी नहीं। क्रांति फिल्म का। मनोज कुमार भारत वाले की फ़िल्म है।

उत्तर प्रदेश के बीटीसी धारियों की बात में दम है कि पहली से पांचवी के छात्रों को पढ़ाने की ट्रेनिंग अलग होती है। बीटीसी की दो साल की ट्रेनिंग होती है। इन छात्रों का दावा है कि यूपी में ही बीटीसी धारी की संख्या 7 लाख के करीब है। एक दावा यह भी है कि यह संख्या एक लाख के क़रीब है। जिसमें बीटीसी पढ़ चुके और पास कर चुके दोनों शामिल हैं। बीटीसी वाले इसके जवाब में दावा किया है कि सर 2016, 2017 बैच में करीब 225000 2018 में करीब 231000 प्रशिक्षु अध्ययनरत है। सबको सही दावेदारी करना चाहिए। पर सवाल संख्या का नहीं पात्रता के पीछे तर्क का है।

क्यों बीएड वालों को बीटीसी में लाने के लिए नियम बनाए गए। यह प्रावधान क्यों किया गया कि बीएड वाले प्राथमिक शिक्षक की नौकरी ले लें और फिर दो साल के भीतर 6 महीने का एक ब्रिज कोर्स कर लें। जब पहले से ही लाखों की संख्या में बीटीसी धारी हैं ही तो यह करने की क्या ज़रूरत थी।

बी एड बनाम बी टी सी में सरकार की ही मौज है। बीएड वाले अपनी संख्या बताएँगे कि हम भी दस लाख हैं। कभी बी एड को प्राइमरी में आवेदन करने की पात्रता थी। युवाओं का बड़ा हिस्सा आपस में टकराता रहेगा। जबकि दोनों के लिए नौकरियाँ पर्याप्त है। पात्रता के इस खेल में मौज कौन ले रहा है वो बी एड वाले भी जानते हैं, बी टी सी वाले भी जानते है।

याद रखिए पूरे देश में शिक्षकों के करीब दस लाख पद ख़ाली है। सरकार ने संसद में यह आंकड़ा रखा है। हिन्दू मुस्लिम डिबेट छोड़ दीजिए, सिर्फ इसे याद रखिए। चैनल आपको दंगाई बनाना चाहते हैं, रवीश कुमार आपको मास्टर बनते हुए देखना चाहता है। प्रधानमंत्री ने शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को पत्र लिखा है। उन्हें दस लाख ख़ाली पदों को पत्र लिखना चाहिए था कि इन पदों पर आपके नहीं होने से हमारे बच्चों का भविष्य बर्बाद हो रहा है।

मेरी बात तीखी लगती है मगर दस साल बाद आप याद करोगे। मुमकिन है कि मुझे भी बाकी दो एंकरों की तरह हटवा दिया जाए लेकिन आप याद करोगे कि दुनिया के इतिहास में यही वो एंकर था जिसने प्राइम टाइम को आपकी आवाज़ में बदल दिया। जिसने लगातार नौ महीने नौकरी और यूनिर्सिटी की बात की थी। यह अहंकार में नहीं बता रहा बल्कि विनम्रता में बता रहा हूं कि ऐसा आपके देश में और वो भी गोदी मीडिया के दौर में हुआ है। अब जब मीडिया ख़त्म कर दिया गया है तो किसी एक से उम्मीद करना ख़ुद से ही ढोंग करना होगा। इस बर्बादी में आप भी शामिल हैं।

लेखक मशहूर टीवी पत्रकार हैं।