जानिये, किसे कहते हैं ‘टूलकिट’, जिसके नाम पर कार्यकर्ता देशद्रोही ठहराये जा रहे हैं!

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काॅलम Published On :


आजकल टूलकिट बहुत चर्चा में है। टूलकिट को आम लोक रिंच और प्लास वगैरह का बक्सा समझते थे जो दोपहिया या चारपहिया जैसी चीजों को ठीक करने के लिए साथ रखा जाता था। लेकिन अब पता चला है कि टूलकिट जैसी चीज़ देशद्रोही हो सकती ही। यूएपीए लग सकता है। दिल्ली पुलिस ग्रेटा थनबर्ग के ट्वीट को लेकर तफ़्तीश की जिस दिशा में बढ़ रही है, उसमें यह अचानक कोई ख़तरनाक चीज़ हो चुकी है। बंगलुरु की पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि गिरफ्तार है तो वजह है टूलकिट है। वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी बता रहे हैं कि यह टूलकिट आख़िर है क्या बला। बात छोटी है, लेकिन आजकल छोटी-छोटी चीज़ें भी बड़े-बड़े लोग भूल चुके हैं।

 

पंकज चतुर्वेदी

 

बंगलुरू की दिशा रवि की गिरफ्तारी का कारण एक टूल किट बताया जा रहा है। हालांकि अधिकांश लोग जानते नहीं कि यह है क्या? यह लेख ध्यान से पढ़ें और जाने कि किस तरह प्रतिरोध स्वरों को कुचलने के लिए साजिशें होती हैं।

 

क्या होता है टूलकिट?

“टूलकिट” किसी भी मुद्दे को समझाने के लिए बनाया गया एक गूगल डॉक्यूमेंट होता है। यह इस बात की जानकारी देता है कि किसी समस्या के समाधान के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिए? यानी इसमें एक्शन प्वाइंट्स दर्ज होते हैं। इसे ही टूलकिट कहते हैं। इसका इस्तेमाल सोशल मीडिया के संदर्भ में होता है, जिसमें सोशल मीडिया पर कैम्पेन स्ट्रेटजी के अलावा वास्तविक रूप में सामूहिक प्रदर्शन या आंदोलन करने से जुड़ी जानकारी दी जाती है। इसमें किसी भी मुद्दे पर दर्ज याचिकाओं, विरोध-प्रदर्शन और जनांदोलनों के बारे में जानकारी शामिल हो सकती है।

वर्तमान दौर में दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में जो भी आंदोलन हो रहे हैं, चाहे वो ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ हो, या अमेरिका का ‘एंटी-लॉकडाउन प्रोटेस्ट’ या फिर दुनियाभर में ‘क्लाइमेट स्ट्राइक कैंपेन’ हो, सभी मामलों में उन आंदोलनों से जुड़े लोग टूलकिट के जरिए ही ‘एक्शन पॉइंट्स’ तैयार करते हैं, और आंदोलनों को आगे बढ़ाते हैं।

 

ग्रेटा थंडबर द्वारा साझा टूलकिट में क्या है?

तीन पन्ने की इस टूलकिट में सबसे ऊपर एक नोट लिखा हुआ है, जिसके अनुसार “यह एक दस्तावेज़ है जो भारत में चल रहे किसान आंदोलन से अपरिचित लोगों को कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति और किसानों के हालिया प्रदर्शनों  बारे में जानकारी देता है।”

नोट में लिखा है कि “इस टूलकिट का मक़सद लोगों को यह बताना है कि वो कैसे अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए किसानों का समर्थन कर सकते हैं.”

इस नोट के बाद, टूलकिट में भारतीय कृषि क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर बात की गई है. बताया गया है कि भारत में छोटे और सीमांत किसानों की संख्या सबसे अधिक है और उनकी स्थिति वाक़ई ख़राब है। टूलकिट में किसानों को ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़’ बताया गया है। लिखा गया है कि “ऐतिहासिक रूप से हाशिये पर खड़े इन किसानों का पहले सामंती ज़मींदारों ने शोषण किया। उनके बाद उपनिवेशवादियों ने और फिर 1990 के दशक में लायी गईं भूमण्डलीकरण और उदारीकरण की नीतियों ने इनकी कमर तोड़ी। इसके बावजूद, आज भी किसान ‘भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़’ हैं।”

टूलकिट में आत्महत्या करने को मजबूर हुए भारतीय किसानों का भी ज़िक्र है. साथ ही, कृषि क्षेत्र में प्राइवेटाइज़ेशन (निजीकरण) को वैश्विक स्तर की समस्या बताया गया है। इसके बाद, टूलकिट में लिखा है कि “लोग फ़ौरी तौर पर इस बारे में क्या कर सकते हैं।”

टूलकिट में सुझाव दिया गया है कि लोग #FarmersProtest और #StandWithFarmers हैशटैग्स का इस्तेमाल करते हुए, किसानों के समर्थन में ट्वीट कर सकते हैं।” रिहाना और ग्रेटा थनबर्ग ने अपने ट्वीट्स में #FarmersProtest हैशटैग का प्रयोग किया था।

टूलकिट में लिखा है कि “लोग अपने स्थानीय प्रतिनिधियों को मेल कर सकते हैं, उन्हें कॉल कर सकते हैं और उनसे पूछ सकते हैं कि वो किसानों के मामले में क्या एक्शन ले रहे हैं।”

टूलकिट में किसानों के समर्थन में कुछ ऑनलाइन-पिटीशन साइन करने की भी अपील की गई है, जिनमें से एक ऑनलाइन-पिटीशन तीनों कृषि बिल वापस लेने की है। टूलकिट में लोगों से आह्वान किया गया है कि “वो संगठित होकर, 13-14 फ़रवरी को पास के भारतीय दूतावासों, मीडिया संस्थानों और सरकारी दफ़्तरों के बाहर प्रदर्शन करें और अपनी तस्वीरें #FarmersProtest और #StandWithFarmers के साथ सोशल मीडिया पर डालें।”

टूलकिट में लोगों से किसानों के समर्थन में वीडियो बनाने, फ़ोटो शेयर करने और अपने संदेश लिखने का भी आह्वान किया गया है। इसमें लोगों को सुझाव दिया गया है कि वो किसानों के समर्थन में जो भी पोस्ट करें, उसमें प्रधानमंत्री कार्यालय, कृषि मंत्री और अन्य सरकारी संस्थानों के आधिकारिक ट्विटर हैंडल को शामिल करें।

टूलकिट में दिल्ली की सीमाओं से शहर की ओर किसानों की एक परेड या मार्च निकालने का भी ज़िक्र है और लोगों से उसमें शामिल होने की अपील की गई है। मगर इसमें कहीं भी लाल क़िले का ज़िक्र नहीं मिलता और ना ही किसी को हिंसा करने के लिए उकसाया गया है।

गुरुवार को दिल्ली पुलिस के स्पेशल कमिश्नर प्रवीर रंजन ने टूलकिट में किसानों की परेड वाले पॉइंट पर ख़ासा ज़ोर देते हुए कहा था कि “टूलकिट में पूरा एक्शन प्लान बताया गया है कि कैसे डिजिटल स्ट्राइक करनी है, कैसे ट्विटर स्टॉर्म करना है और क्या फ़िजिकल एक्शन हो सकता है। 26 जनवरी के आसपास जो भी हुआ, वो इसी प्लान के तहत हुआ, ऐसा प्रतीत होता है।”

हाँलाकि, दिल्ली पुलिस अब तक यह जानकारी नहीं दे पायी है कि ये टूलकिट कब से सोशल मीडिया पर शेयर हो रही थी। पुलिस का कहना है कि यह टूल किट कनाडा की पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन की है जो खालिस्तानी संगठन है। जान लें पोएटिक जस्टिस पर भारत में कोई रोक नहीं है और न ही वह निगरानी संगठन है। इसकी वेबसाइट है, फेसबुक पेज भी है। यदि उसका कोई दस्तावेज साझा भी हो तो वह कैसे गैर कानूनी हो गया?

यह लेख पंकज चतुर्वेदी के फ़ेसबुक पेज से साभार लिया गया है।