अख़बारनामा: रिज़र्व बैंक को धारा 7 से काटे सरकार, पर ख़बर से ‘कट’ लिए हिंदी अख़बार !

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संजय कुमार सिंह


आज की खबरों में सबसे प्रमुख है, सरकार, आरबीआई और उर्जित पटेल का विवाद और पटेल इस्तीफा दे सकते हैं जैसी खबर के साथ रिजर्व बैंक के मामले में पहली बार धारा सात लागू किया जाना। इस पर कांग्रेस और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की प्रतिक्रिया भी महत्वपूर्ण है। दैनिक भास्कर ने इस विवाद को समझाकर विस्तार से छापा है। पर ज्यादातर हिन्दी अखबारों में यह खबर नहीं है या सरकारी पक्ष ज्यादा है या ऐसे छपी है जिससे स्थिति की गंभीरता का पता नहीं चलता है। हालांकि, नवोदय टाइम्स और राजस्थान पत्रिका में इसपर विशेष टिप्पणी है। अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने इसे पटेल की प्रतिमा के अनावरण वाले दिन एक पटेल के नाराज होने की तरह प्रस्तुत किया है और यह देश की राजनीतिक-आर्थिक स्थिति का अभिनव चित्रण है।

दैनिक भास्कर ने इस खबर को लीड बनाया है। शीर्षक है, “टकराव : एनपीए और नकदी संकट पर ठनी, सरकार ने लागू की धारा 7।” मुख्य शीर्षक है, “पहली बार आरबीआई पर दबाव, गवर्नर पद छोड़ सकते हैं उर्जित।” खबर की शुरुआत में बोल्ड अक्षर में लिखा है, “83 साल में पहली बार सरकार ने किया था धारा 7 का उपयोग, यानी जरूरत पड़ने पर आरबीआई को निर्देश दे सकती है सरकार।” अखबार ने इस बारे में पूर्व वित्त मंत्री का बयान प्रमुखता से छापा है। शीर्षक है, “सरकार तथ्य छिपा रही है, कुछ बुरी खबर मिल सकती है : चिदंबरम”..  अखबार ने यह भी बताया है कि धारा सात के दो हिस्से हैं। पहला, सरकार जरूरी मुद्दों पर विचार के लिए आरबीआई गवर्नर को पत्र लिख सकती है। और दूसरा यह कि, मतभेद होने पर वह रिजर्व बैंक को अपनी बात मानने का निर्देश दे सकती है। यही खबर अमर उजाला में भी लीड है। पर दोनों प्रस्तुतियों में जमीन आसमान का फर्क है।

नवभारत टाइम्स में रफाल पर सुप्रीम कोर्ट की खबर लीड है। शीर्षक है, “मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश।” मुख्य शीर्षक है, “राफेल के दाम बताओ नहीं तो एफिडेविट दो।” इसके साथ एक बॉक्स है जिसका शीर्षक है, केंद्र ने कहा, “गोपनीय डिटेल्स नहीं दे सकते।” इसके तहत बताया गया है कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि कई जानकारियां गोपनीय हैं। ये सरकारी गोपनीयता कानून के तहत सुरक्षित हैं और कीमत तो संसद में भी नहीं बताई गई। इस पर अदालत ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि अगर आप कीमत को गोपनीय मानते हैं और नहीं बता सकते तो हलफनामा दाखिल करें। दो कॉलम की इस खबर के नीचे सिंगल कॉलम में दो खबरें हैं। एक का शीर्षक है, “सीबीआई जांच? पहले वो घर ठीक कर लें।” दूसरी में बताया गया है कि याचिकाकर्ता एमएल शर्मा ने कहा कि पांच राज्यों में चुनाव होने हैं, लिहाजा सुनवाई टाली जाए। (इसपर) मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हमें इससे क्या लेना-देना।”

यह खबर भी कई अखबारों में पहले पेज पर नहीं है। अंग्रेजी अखबारों में (जो मैंने देखे) दोनों खबरें पहले पेज पर हैं और लगभग समान प्रमुखता से हैं। नवभारत टाइम्स में बिजनेस आसान बनाने में भारत 23 रैंक ऊपर शीर्षक खबर है दो कॉलम में पहले पेज पर है। इसके साथ आरबीआई की आजादी जरूरी, पर सुझाव देते रहेंगे शीर्षक से छोटी सिंगल कॉलम खबर से आरबीआई विवाद निपटा दिया गया है। अंदर कुछ हो तो मैंने नहीं देखा। एक कॉलम की इस खबर में आधे कॉलम में वित्त मंत्री अरुण जेटली की तस्वीर का स्केच है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में खबरों के पहले पेज पर आधा विज्ञापन है। और आधे में अखबार ने राफेल पर सुप्रीम कोर्ट की खबर छापी है और रिजर्व बैंक-उर्जित पटेल सरकार की विवाद की खबर भी पहले पेज पर है। शीर्षक है, “वित्त मंत्री के सौम्य बयान में आरबीआई के लिए संदेश”। खबर की शुरुआत से पहले बड़े अक्षरों में लिखा है, अर्थव्यवस्था की सेवा करें, समस्याओं को सार्वजनिक न करें। अखबार ने खबरों के अपने पहले अधपन्ने पर ईज ऑफ बिजनेस रैंकिंग में भारत 23 स्थान ऊपर चढ़ा शीर्षक खबर भी छापी है। इंडियन एक्सप्रेस ने आरबीआई की खबर को लीड बनाया है। शीर्षक है, सरकार ने आरबीआई की स्वायत्तता के मामले को कम किया और कहा जनहित हमारा मार्गदर्शक है। सुप्रीम कोर्ट की खबर भी अखबार में पहले पन्ने पर है और फोल्ड से ऊपर है। टेलीग्राफ ने सुप्रीम कोर्ट की खबर को बॉटम बनाया है।

हिन्दी अखबारों में दैनिक हिन्दुस्तान में राफेल की कीमत पर सुप्रीम कोर्ट वाली खबर तो है पर रिजर्व बैंक और गवर्नर उर्जित पटेल से सरकार के विवाद की खबर नहीं है। नवोदय टाइम्स में रिजर्व बैंक वाली खबर है तो सुप्रीम कोर्ट वाली नहीं है। नवभारत टाइम्स में दोनों है पर रिजर्व बैंक वाली नहीं बराबर। राजस्थान पत्रिका में दोनों खबरें हैं। जागरण में सुप्रीम कोर्ट वाली खबर ही है। रिजर्व बैंक अर्थ पेज पर ही है। अमर उजाला में रिजर्व बैंक की खबर है पर सुप्रीम कोर्ट की नहीं है। इसमें विज्ञापन की भूमिका भी हो सकती है। कई अखबारों में खबरों के पहले पेज पर आधा विज्ञापन है। हालांकि अंग्रेजी अखबारों ने विज्ञापन के बावजूद दोनों खबरों को पहले पेज पर रखा है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।