अख़बारनामा: सोशल मीडिया का ‘इनाम’, अख़बारों में ‘ठुकराया प्रस्ताव’

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संजय कुमार सिंह

सोशल मीडिया की खबरें आमतौर पर अखबारों में नहीं आतीं। लेकिन आज एक खबर कई अखबारों में प्रमुखता से है। खबर है, “जस्टिस एके सीकरी ने ठुकराया सरकार का प्रस्ताव, अब नहीं होंगे सीएसए ट्रिब्यूनल के सदस्य।” मैं जितने अखबार देखता हूं उनमें नवोदय टाइम्स अकेला है जिसने इसे पहले पन्ने पर नहीं छापा है। कल इतवार था और इतवार को अमूमन सरकारी घोषणाएं नहीं होती हैं। प्रस्ताव कल का तो होगा नहीं और न्यायमूर्ति हमारे यहां अमूमन सार्वजनिक बयान नहीं देते हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि यह खबर इतवार को आई और सोमवार के अखबारों में छपी है। असल में न्यायमूर्ति सीकरी उस नियुक्ति समिति के सदस्य थे जिसने सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हटाने का निर्णय लिया। इस समिति के एक सदस्य कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खडगे थे और उनकी राय सार्वजनिक है।

न्यूजपोर्टल ‘प्रिंट’ ने कल खबर दी कि केंद्र सरकार ने तय किया है कि सुप्रीम कोर्ट के जज न्यायमूर्ति एके सीकरी को लंदन आधार वाले कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट (सीएसएटी) आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल में नामांकित किया जाएगा। यह निर्णय गए महीने लिया गया था। न्यायमूर्ति सीकरी 6 मार्च को रिटायर होने वाले हैं। वे आलोक वर्मा को सीबीआई के निदेशक पद से हटाने का निर्णय करने वाली तीन सदस्यीय कमेटी में थे और हटाने का समर्थन किया था। इसके बाद सोशल मीडिया पर बहस चल पड़ी। इस नामांकन को इनाम के रूप में देखा जाने लगा। न्यामूर्ति सीकरी को लेकर भिन्न राय रही। सोशल मीडिया पर इतना हंगामा रहा कि न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने न्यायमूर्ति एके सीकरी का पक्ष तो रखा ही है, अपने फेसबुक पोस्ट में और विवरण देने की बात भी की। यही नहीं, न्यायमूर्ति सीकरी का लैंडलाइन नंबर और ई-मेल भी सार्वजनिक किया था।

मुझे आज के अखबारों से ही पता चला कि इस मामले में राहुल गांधी ने भी ट्वीट किया था। दैनिक भास्कर में आज इस संबंध में पहले पन्ने पर प्रकाशित खबर का शीर्षक है-‘राहुल ने सवाल उठाए तो जस्टिस सीकरी ने सीएसएटी में नियुक्ति का प्रस्ताव ठुकराया’, उपशीर्षक है – ‘पहले राजी हो गए थे, विवाद बढ़ा तो कानून मंत्रालय को चिट्ठी लिखी।’ इसके साथ एक बॉक्स में यह भी बताया गया है कि सीएसएटी कॉमनवेल्थ देशों के विवादों का निपटारा करता है। इस खबर का महत्वपूर्ण हिस्सा राहुल का सवाल है जो उन्होंने ट्वीट कर उठाया था। अखबार के शीर्षक में तो राहुल हैं पर खबर में पहले पन्ने पर जो जानकारी दी गई है उसमें राहुल का ट्वीट नहीं है। वह पेज सात पर सिंगल कॉलम में छपे खबर के बाकी अंश में है।

मैं वह अंश जस का तस पेश कर रहा हूं – “दरअसल इसके पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ ट्वीट में कहा था कि जब न्याय के तराजू से छेड़छाड़ की जाती है तब अराजकता होती है। ये प्रधानमंत्री रफाल घोटाला छुपाने के लिए सब नष्ट कर देंगे। प्रधानमंत्री डरे हुए हैं इसलिए भ्रष्ट हो गए हैं। वह प्रमुख संस्थानों को नष्ट कर रहे हैं।” अंग्रेजी से अनुवाद में भाव भर बताने के रिवाज के कारण वाक्य का एक अंश छूट गया है। पूरा वाक्य इस प्रकार होना चाहिए, “ये प्रधानमंत्री कहीं नहीं रुकेंगे, किसी भी स्तर तक जाएंगे और सब कुछ नष्ट कर देंगे।”

अंग्रेजी अखबारों में द टेलीग्राफ ने इसे लीड बनाया है और शीर्षक ही नहीं, खबर भी ऐसे लिखी गई है जिससे पूरा मामला समझ में आता है और इसे लीड बनाने की तुक भी। ज्यादातर दूसरे अखबारों ने इसे एक सकारात्मक खबर की तरह पहले पन्ने पर छापा है जबकि सोशल मीडिया पर सुबह शुरू हुआ विवाद रात तक सोशल मीडिया पर ही खत्म हो गया था। ऐसे में टेलीग्राफ की चिन्ता अलग है जो शीर्षक से स्पष्ट है। हिन्दी अनुवाद इस तरह होगा- “आस्था के मंदिर : क्षतिग्रस्त” उपशीर्षक है-“प्रधानमंत्री ने सीबीआई के संकट को बिगड़ने दिया; जज ने पद के लिए दी सहमति वापस ली।” अखबार ने लिखा है कि इस मामले की शुरुआत न्यूज पोर्टल प्रिंट में खबर आने के बाद हुई।

खबर यह थी कि नरेन्द्र मोदी सरकार ने गए महीने न्यायमूर्ति सीकरी को लंदन आधार वाले कॉमनवेल्थ सेक्रेटेरिएट आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल के प्रेसिडेंट/सदस्य के पद पर नामांकित किया है। ….. दूसरी ओर, सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को बदनाम करने का अभियान भी चलता रहा। यह सर्वोच्च पदों की प्रतिक्रिया के मद्देनजर था। ऐसे में संतोषजनक प्रतिक्रिया की जिम्मेदारी सिर्फ प्रधानमंत्री की थी क्योंकि जज आमतौर पर सार्वजनिक बयान नहीं देते हैं। …. अखबार ने इस मामले में विस्तृत खबर दी है और राहुल गांधी का ट्वीट भी छापा है।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने इस खबर को पहले पेज पर दो कॉलम में छापा है। शीर्षक है- ‘विवाद के बाद न्यायमूर्ति सीकरी ने कहा कि वे कॉमनवेल्थ संस्था से नहीं जुड़ेंगे।’ इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को पहले पेज पर चार कॉलम में टॉप पर छापा है। शीर्षक है- “लंदन असाइनमेंट को सीबीआई पैनल के निर्णय से जोड़े जाने से ‘दुखी’ न्यायमूर्ति सीकरी अलग हुए।” टाइम्स ऑफ इंडिया ने तो इस खबर को लीड बना दिया है और शीर्षक बनाया है- ‘सीबीआई प्रमुख के खिलाफ वोट देने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज ने कॉमनवेल्थ पद से इनकार किया।’ इंट्रो है, “दोनों को जोड़े जाने से बेहद दुखी : सीकरी।”

हिन्दी अखबारों में दैनिक भास्कर की चर्चा कर चुका हूं। आइए, बाकी अखबारों को देखें। दैनिक जागरण में यह खबर दो कॉलम में टॉप पर है। शीर्षक है, “विवाद सीबीआई का, पद छोड़ा जस्टिस सीकरी ने।” अखबार ने एक कॉलम में न्यायमूर्ति सीकरी की छोटी सी फोटो लगाई है और उसके ऊपर लिखा है- ‘सरकार ने दिया था कॉमनवेल्थ ट्रिब्यूनल में नामित करने का प्रस्ताव, जस्टिस सीकरी ने पहले दी ती सहमति, अब पीछे हटे।’ अमर उजाला में भी यह खबर पहले पन्ने पर है। शीर्षक है- “आलोक वर्मा को हटाने वाले पैनल में शामिल जस्टिस सीकरी ने केंद्र सरकार का प्रस्ताव ठुकराया।” उपशीर्षक है- “विवाद में घिरने के बाद सीसैट में नामांकन के लिए दी सहमति वापस ली।” अखबार ने इसके साथ एक छोटा बॉक्स छापा है, “क्यों हुआ विवाद।”

राजस्थान पत्रिका में यह खबर सात कॉलम में टॉप पर है । शीर्षक है- ‘जस्टिस सीकरी को केंद्र ने दिया था बड़े पद का प्रस्ताव, विवाद हुआ तो ठुकराया।’ अखबार ने इस खबर का फ्लैग शीर्षक लगाया है- “एक और विवाद : वर्मा को सीबीआई प्रमुख पद से हटाने में पीएम की अगुआई वाली चयन समिति में जस्टिस सीकरी का मत था निर्णायक।’ अखबार ने इसके साथ राहुल गांधी का ट्वीट भी पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा है। दैनिक हिन्दुस्तान ने तीन कॉलम में छोटी सी खबर छापी है। शीर्षक है- “जज सीकरी राष्ट्र्मंडल सचिवालय नहीं जाएंगे।” नवभारत टाइम्स में यह खबर पहले पन्ने पर तीन कॉलम में है। शीर्षक है- “विवाद के बाद जस्टिस सीकरी ने ठुकराया सरकार का ऑफर।” लेकिन मुझे लगता है कि सबसे सही निर्णय नवोदय टाइम्स का रहा। उसने इस खबर को पहले पन्ने पर नहीं छापा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )