उल्टा तीर, कमान को डांटे – ”श्री” मत कहो उसे….उसकी लंका लग गई है!

कपिल शर्मा कपिल शर्मा
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दोस्तों जैसे ही आपने ये शीर्षक पढ़ा होगा, आपको एक बात तो फौरन आपकी समझ में आई होगी कि ये बात लंका के बारे में हो रही है। क्योंकि पूूरी दुनिया में श्री के साथ नाम वाला यही एक देश है। दूसरी बात ये कि रामानंद सागर रचित रामायण नामक सीरियल में लंका की गद्दी पर बैठा रावण, राम के बारे में गुस्से में कहता है, “श्री मत कहो उसे….” जाहिर है उसके दरबार में हर बार कोई ना कोई राम को श्री राम के नाम से संबोधित करता है और रावण को गुस्सा आता है। अपने दुश्मन के नाम के आगे “श्री” लगने से किसी राजा को गुस्सा आना स्वाभाविक ही है। आज भी राहुल गांधी का नाम सुनकर भक्तों के तेवर (जो देखने वाले होते हैं), वो लगभग वैसे ही लगते हैं।

ख़ैर आज ही हमारे एक दोस्त बता रहे थे कि कोई भक्त उन्हे समझा रहा था कि ये असल में अखंड भारत की महती योजना का ही हिस्सा है, जिसके तहत सारे आर्यावर्त को फिर से कब्जे में लिया जाएगा, और इसलिए मोदी जी ने जानबूझकर लंका की ये हालत की है। मेरा निजी तौर पर इस अंदरूनी खबर पर यकीन नहीं है, लेकिन जो बात हुई वो आपके सामने रख दी। हालांकि अपने देश की इकाॅनामी को बर्बाद करने के अनुभव के बाद किसी और देश की इकाॅनामी को बर्बाद कर देने की क्षमता विकसित हो गई हो, ऐसा बिल्कुल संभव है। लेकिन हालात देख कर नहीं लगता कि श्री लंका के सिर्फ लंका होने के पीछे भारत का कोई जाहिर हाथ हो सकता है।


जो भी हो, ये तो सच है कि श्री लंका की ”श्री” चली गई है, और अब जो हो रहा है उसे चलताऊ भाषा में सिर्फ ‘लंका लगना’ ही कहा जा सकता है। जो आप यकीन मानें तो भारत की भी लगी ही हुई है। सुनने में आया है कि लंका जल रही है, लेकिन पहले की तरह भारत के किसी राज्य के किसी दूत ने वहां अपनी पूंछ से आग नहीं लगाई है। इस बार ये काम लंकावासियों ने खुद ही कर दिया है। सारे सत्ताधारी अपनी पूंछ बचाकर यहां-वहां छुपे बैठे हैं, सत्ता परिवर्तन की आशंका भी जताई जा रही है। हमने तो यहां तक सुना है कि जनता चुन-चुन कर ढूंढ-ढूंढ कर, भक्तों को भी धो रही है। जो शायद अब भी इस मुगालते में हैं कि महंगाई चाहे जितनी हो जाए, दुनिया में लंका का डंका बज रहा है और वो दिन दूर नहीं जब अखंड लंका पूरी दुनिया पर राज करेगा।
नैरेटिव यही होता है दोस्तों, मुसोलिनी का यही नैरेटिव था कि इटली दुनिया का सबसे महान देश है, मैं दुनिया का सबसे महान इंसान हूं और मैं दुनिया में इटली का डंका बजवा दूंगा। हिटलर ने भी यही किया था, वो थर्ड राइख का डंका बजवाने निकला था। और लंका…जब वो श्री लंका हुआ करता था, इसी नैरेटिव के साथ, साम्प्रदायिक उन्माद और नफरत की राजनीति को चाशनी में घोल कर, जनता को राष्ट्रवाद का काढ़ा पिलाते हुए, देश की लंका लगा रहा था। तब वहां लोग चिल्लाते थे, “रोटी नहीं चाहिए, सड़क नहीं चाहिए, रोजगार नहीं चाहिए…..” बौद्ध धर्म जो कि अहिंसा का प्रतीक था, उसी की आड़ में ईसाईयत पर, इस्लाम पर हमला बोला गया। तमिल जनता के नरसंहार को पूरी दुनिया ने देखा और राजपक्षे के पक्ष में खड़ी हुई। इसके बाद लगातार जनजातीय और धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले हुए, देशवाासियों ने खुशियां मनाई। जो एक-आध आवाजें, इस नफ़रत के खिलाफ उठीं, उन्हे देशद्रोही और राष्ट्रविरोधी कहकर जेल भेज दिया गया। न्यायालयों ने कानून की वो व्याख्या की, जो राजपक्षे और उनके पक्ष के लोग चाहते थे। न्यायाधीशों को रिटायरमेंट के बाद उच्च पद सुशोभित करने थे और जैसा किसी भी दुनिया भर में डंका बजाने वाले राज में होना चाहिए, लोकतंत्र की लाश पर स्मार्ट तानाशाही का नाटक खेला गया।


जंगल बिके, रेल बिकी, खदाने और पहाड़ बिके, एयरपोर्ट और सी-पोर्ट बिके, देश की हर परिसंपत्ति को औने-पौने दामों पर बेचा गया। इसे देश का विकास बताया गया। जब तक चल पाया तब तक, झूठे और फर्जी आंकड़ों से जनता को बहलाया गया। भक्त मीडिया को लालच और धमकी के साथ सरकारी नैरेटिव के साथ खड़ा रहने को कहा गया। स्टूडियोज़ में नफरत और साम्प्रदायिक प्रोपेगैंडा को थाली में सजा कर न्यूज़ की तरह पेश किया गया। जब भी किसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने इस आसन्न संकट की तरफ इशारा किया, उसे राजपक्षे के खिलाफ साजिश करार दिया गया। कहा गया कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के आंकड़े झूठे हैं और लंका के बजते डंके से सारी दुनिया जलती है। धीरे-धीरे इन झूठों की पाॅलिश उतरने लगी, पहले सिर्फ तेल के दाम बढ़े, फिर धीरे-धीरे बाकी चीजों के दाम भी बढ़ने लगे, रोजगार खत्म हो गए, और जनता – जिसमें भक्त मंडली भी शामिल थी, बेचारी होती चली गई। और अंततः श्री लंका की ”श्री” चली गई और डंके की जगह लंका की लंका लग गई।


हो सकता है, आपको ये बातें कुछ जानी-पहचानी लग रही हों, हो सकता है कि आपको यही सब किसी और देश में भी देखने – सुनने को मिल रहा हो। लेकिन यकीन मानिए ये लंका की ही खबर है। मैं सिर्फ लंका की बात कर रहा हूं और अगर आपको ये अपने देश की बात लग रही है, तो दोष आपकी समझ का, आपके “देशाध्यक्ष” (विद्वजन ध्यान दें, एक और नये शब्द की खोज की है), की करनी का है, लेखक का नहीं है।
कुल मिलाकर लंका की ”श्री” खत्म और लंका का डंका खामोश है। लेकिन लंका लगी हुई है, इसी बारे में चचा ग़ालिब जो शायद दुनिया के अकेले ऐसे शायर है जो मरने के बाद तक शायरी कर रहे हैं ने कहा है,

देख ना तू जो फिर से जल रई, सागर पार की लंका
तू देख अखंड भारत को जिसका बजता जा रहा डंका

शेर को सही से समझने के लिए लेखक को ना परेशान करें, नये कवियों को इसका अर्थ पता है, उनसे पूछें।

(उल्टा तीर-कमान को डांटे, फिल्मकार-संस्कृतिकर्मी कपिल शर्मा के नियमित व्यंग्य स्तंभ के तौर पर मीडिया विजिल पर प्रकाशित होगा।)