प्रधानमंत्री के ‘’मैं भी चौकीदार’’ कार्यक्रम में संबोधन की अखबारी और डिजिटल रिपोर्टिंग

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
काॅलम Published On :


संजय कुमार सिंह


आप जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल अपने “मैं भी चौकीदार” कार्यक्रम को संबोधित किया। रविवार को अपने इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने विपक्ष के आरोपों का जवाब दिया। अपने अंदाज में पांच साल के काम का हिसाब दिया और अगले पांच साल के लिए कार्यक्रमों की रूपरेखा भी रखी। इसके तहत उन्होंने यह भी कहा कि जनता के पैसों पर पंजा नहीं पड़ने दूंगा। लेकिन जो सीधे आरोप हैं उनसे कन्नी काट गए। प्रचार और मूर्ति पर पैसे उड़ाने से लेकर विदेश घूमने के खर्चों पर ना कुछ कहा और ना पूछा गया (कम से कम खबर तो नहीं है)।

इस क्रम में उन्होंने कई ऐसी बातें भी कीं जो अभी तक की उनकी चुनावी रणनीति और जोश भरने की कोशिशों के उलट हैं। जैसे बालाकोट में हवाई हमले का श्रेय सेना के जवानों को देते हुए उन्होंने कहा कि बहुत सारा समय इंडिया-पाकिस्तान में निकाल दिया। आतंकियों को पनाह देने वाला अपनी मौत मरेगा, हमें आगे निकलना है (यह शीर्षक बना है)। असल में प्रधानमंत्री ने जो कहा और अखबारों में जो छपा या इंटरनेट पर उसमें भिन्नता और विविधता ही दिलचस्प है।

एक वाक्य है, प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें भरोसा है कि देश की जनता चौकीदार को पसंद करती है, उसे राजाओं, महाराजाओं की जरूरत नहीं है (यह शीर्षक है)। चौकीदारी को जागरूकता और सतर्कता का प्रतीक बताते हुए बताया कि कैसे एक सजग नागरिक विपक्ष के झूठ का पर्दाफाश कर सकता है। यहां बताने की जरूरत यह थी कि चौकीदार को चोर क्यों कहा जा रहा है और उसपर उनका क्या कहना है। लेकिन रिपोर्टर कह रहा है कि उन्होंने मिशन शक्ति पर सवाल उठाने वालों को भी आड़े हाथ लिया।

अगले पांच साल के लिए फिर स्पष्ट बहुमत के साथ मजबूत सरकार की जरूरत बताते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि पिछला पांच साल पुराने गढ्डों को भरने में निकल गया (शीर्षक है)। अब उन पर भव्य इमारत खड़ी करने का काम बाकी है। पहले कार्यकाल में उनका जोर आम लोगों की बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, आवास जैसी जरूरतों को पूरा करने पर रहा। इसी के तहत हर घर में शौचालय से लेकर बिजली का कनेक्शन, उज्ज्वला के तह गैस सिलेंडर, मुफ्त इलाज जैसी सुविधाएं मुहैया कराई गई।

प्रधानमंत्री ने कहा कि देश कई दशक से आतंकवाद का दंश झेल रहा था। सभी जानते थे कि आतंकी कहां से आते हैं और उन्हें ट्रेनिंग कहां मिलती है। लेकिन पहली बार आतंकवादियों को उनकी पनाहगाह में घुसकर मारने का काम किया गया। उन्होंने साफ किया कि राजनीतिक नफा-नुकसान की सोच बेमानी है और उनके लिए राष्ट्र और उसका सम्मान सर्वोपरि है (शीर्षक है)। लेकिन सच यह है और आप जानते हैं कि कश्मीर में फिर सीआरपीएफ की बस के पीछे चल रही एक कार में पुलवामा हमले की ही तरह बम फटा। हालांकि इसमें कोई हताहत नहीं हुआ पर यह उस मामले से कम गंभीर नहीं है। लेकिन इसपर मीडिया में भी शांति है। प्रधानमंत्री ने तो अब विषय ही बदल लिया है। दूसरी घटना से साबित होता है कि पहली घटना के बाद जो कुछ किया गया वह बेकार गया। विषय बदलने का कारण यह भी हो सकता है।

मिशन शक्ति को कांग्रेस के कार्यकाल में सार्वजनिक नहीं करने के बयान पर कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम को आड़े हाथ लिया। कहा कि जब अमेरिका, रूस और चीन इसे सार्वजनिक कर चुका है तो भारत क्यों नहीं करेगा। इसी तरह भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण की बात भी सार्वजनिक की थी। मोदी ने कहा कि यदि भारत के पास शक्ति है तो उसके बारे में दुनिया को मालूम भी होना चाहिए। लेकिन यह नहीं बताया कि रफाल की शक्ति और इसकी आड़ में कीमत क्यों छिपा रही है सरकार। प्रधानमंत्री ने ‘चौकीदारों’ से विपक्ष के फैलाए जा रहे झूठ से बचने और उसका पर्दाफाश करने की अपील की। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि उनके लिए चौकीदार महात्मा गांधी के भरोसे के विचार के प्रतिनिधि हैं (शीर्षक)। आइए देखें इस भाषण के आधार पर किस अखबार ने क्या शीर्षक लगाया है।

गड्ढे भरे हैं, अब उम्मीदें पूरी करेंगे – हिन्दुस्तान
फ्रंटफुट पर चौकीदार – नवभारत टाइम्स
राजा – महाराजा नहीं, चौकीदार चाहिए – दैनिक जागरण
देश के खजाने पर नहीं पड़ने दूंगा भ्रष्ट पंजा – अमर उजाला
अपनी मौत मरेगा पाक – नवोदय टाइम्स
चौकीदार हूं, जनता के पैसों पर ‘पंजा’ नहीं पड़ने दूंगा – राजस्थान पत्रिका
खेल वहां होना चाहिए, जहां से आतंकवाद को नियंत्रित किया जा रहा है – दैनिक भास्कर
पाकिस्तान अपनी मौत मरेगा, छोड़िए उसे, हम आगे बढ़ें – इंडियन एक्सप्रेस
देश को चौकीदारों की जरूरत है, राजाओं की नहीं – हिन्दुस्तान टाइम्स
मोदी ने गांधी का उल्लेख किया; कहा ‘पाकिस्तान को भूल जाइए’ – द टेलीग्राफ
खेल’ को वहां ले गया जहां से आतंक को रिमोट के जरिए नियंत्रित किया जा रहा था – टाइम्स ऑफ इंडिया (खबर पहले पन्ने पर नहीं है, पेज आठ)

कहने की जरूरत नहीं है कि इनमें हिन्दुस्तान का शीर्षक प्रधानमंत्री और भाजपा के लिए सबसे अनुकूल है और इंडियन एक्सप्रेस व टेलीग्राफ का सबसे प्रतिकूल। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक कल सोशल मीडिया पर भी वायरल था और पक्ष-विपक्ष या समर्थन-विरोध को छोड़कर अगर सही रिपोर्टिंग और एडिटिंग की बात की जाए तो “हिम्मत की पत्रकारिता” यही है।

आज एक और खबर चर्चा करने लायक हैं। यह है, राहुल गांधी का वायनाड से भी चुनाव लड़ने का फैसला। यह कांग्रेस की रणनीति है और कुछ नया नहीं है। इसका आभास कुछ दिन पहले हो गया था और राहुल गांधी के विरोधी इसपर वही कह रहे हैं जो तब कह रहे थे। आज इसपर कांग्रेस का जवाब भी है और ज्यादातर अखबारों ने दोनों छापे हैं। इसलिए उसमें मजा नहीं है। आपकी सूचना और आपको याद दिलाने के लिए मैं कुछ तथ्य बता रहा हूं। आप राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के फैसले को इन तथ्यों के आलोक में देखकर अपना निर्णय ले सकते हैं। सानूं की – वाला मामला हो कोई बात ही नहीं है।

भारतीय जनता पार्टी ने जब नरेन्द्र मोदी को पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया तो उन्होंने बनारस से चुनाव लड़ने की घोषणा की। आप जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री थे और उनका कोई लोकसभा क्षेत्र नहीं था। उस समय राजनीतिक पंडितों ने कहा था कि बनारस से मोदी के चुनाव लड़ने से भाजपा को हिन्दी पट्टी में लाभ होगा। हुआ भी। उस समय भाजपा के लिए सुरक्षित सीटों में एक गांधीनगर थी। वहां से अमित शाह चुनाव नहीं लड़े वे विधायक थे। नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद अमित शाह भाजपा अध्यक्ष बने और दिल्ली आ गए।

अगर दिल्ली आना ही था तो उन्हें भी लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहिए था। नहीं लड़े। मैं कहूं कि हिम्मत नहीं थी इसलिए। कोई मतलब है इसका? दिलचस्प यह है कि इस बार वे गांधीनगर से चुनाव लड़ रहे हैं किसलिए? यह काम उन्हें 2014 में करना चाहिए था। पर पार्टी अध्यक्ष (और मित्र के प्रधानमंत्री बने) बगैर लाल कृष्ण आडवाणी का टिकट कैसे काटते? पर राहुल गांधी को वायनाड से लड़ने में ऐसी कोई दिक्कत नहीं हुई। त्वरित टिप्पणी तो इसपर भी लिखी जा सकती है। पर क्या मतलब?

अमेठी में राहुल गांधी को चुनौती देने जा रही स्मृति ईरानी भी राज्यसभा की सदस्य हैं और लोकसभा चुनाव जीत भी गईं तो किसी एक सदन की सदस्य ही रह पाएंगी। मेरे कहने का मतलब यह है कि अमित शाह और स्मृति ईरानी दोनों अगर एक लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और अपनी वीरता दिखा रहे हैं तो इसलिए भी कि वे राज्यसभा के सदस्य पहले से हैं, सुरक्षित हैं। यह अलग बात है कि राहुल गांधी को भी जरूरत हुई तो राज्यसभा में आ जाएंगे।

चुनाव हारना अगर इतना ही बुरा होता तो स्मृति ईरानी कई बार हार चुकी हैं और अरुण जेटली हार कर भी लगातार वित्त मंत्री रहे। बीमार होने के बावजूद। कहने का मतलब यह है कि इन बातों का कोई खास मतलब नहीं है और भाजपा भी यह सब करती रही है लेकिन राहुल गांधी के मामले में हौवा बना दिया गया है। यही राजनीति है और यही राजनीतिक कौशल। आप इससे किसी को भगोड़ा और वीर मत मानिए। इसमें किसी त्वरित टिप्पणी और किसी के बयान का बहुत मतलब नहीं है क्योंकि वह अपनी गिरेबां नहीं देखता है।