दलित वर्गों के लिए सांविधानिक संरक्षण ज़रूरी-डॉ.अांबेडकर

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
काॅलम Published On :


डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी – 6

 

पिछले दिनों एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में डॉ.आंबेडकर को महात्मा गाँधी के बाद सबसे महान भारतीय चुना गया। भारत के लोकतंत्र को एक आधुनिक सांविधानिक स्वरूप देने में डॉ.आंबेडकर का योगदान अब एक स्थापित तथ्य है जिसे शायद ही कोई चुनौती दे सकता है। डॉ.आंबेडकर को मिले इस मुकाम के पीछे एक लंबी जद्दोजहद है। ऐसे मेंयह देखना दिलचस्प होगा कि डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की शुरुआत में उन्हें लेकर कैसी बातें हो रही थीं। हम इस सिलसिले में हम महत्वपूर्ण  स्रोतग्रंथ  डॉ.अांबेडकर और अछूत आंदोलन  का हिंदी अनुवाद पेश कर रहे हैं। इसमें डॉ.अंबेडकर को लेकर ख़ुफ़िया और अख़बारों की रपटों को सम्मलित किया गया है। मीडिया विजिल के लिए यह महत्वपूर्ण अनुवाद प्रख्यात लेखक और समाजशास्त्री कँवल भारती कर रहे हैं जो इस वेबसाइट के सलाहकार मंडल के सम्मानित सदस्य भी हैं। प्रस्तुत है इस साप्ताहिक शृंखला की छठीं कड़ी – सम्पादक

 

.51

 

चोट लगने से काॅंग्रेसी की मौत

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 4 अक्टूबर 1930)

 

सचिव, एफ वार्ड जिला काॅंग्रेस कमेटी, लिखते हैं-

‘एफ’ वार्ड जिला काॅंग्रेस कमेटी के सदस्य ने, जो वृहस्पतिवार की रात में जख्मी हो गया था, शुक्रवार की सुबह के.ई.एम. अस्पताल में दम तोड़ दिया। यह काॅंग्रेसी उन हमलावरों में शामिल था, जिन्होंने गोलमेज सम्मेलन में डा. आंबेडकर के भाग लेने के सम्मान में किए गए दलित वर्गों के प्रदर्शन पर हमला किया था।

मृतक की शवयात्रा कामगार मैदान, परेल से आरम्भ होगी और उसी स्थल पर शाम को जनसभा होगी।

 

 

.52

 

दलित वर्ग और गोलमेज सम्मेलन

डा. आंबेडकर को थैली देने का भ्रामक प्रचार

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 4 अक्टूबर 1930)

 

डा. सोलंकी और डा. आंबेडकर के अन्य मित्रों  द्वारा डा. आंबेडकर को गोलमेज सम्मेलन में जाने से पूर्व दलित वर्गों की ओर से कुछ धन दिए जाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने परचे बॅंटवा कर दलितों से चन्दा देने की अपील की है। इस अपील में उन्होंने यह कहकर भोली-भाली अशिक्षित लोगों को भ्रमित किया है कि जब तक डा.आंबेडकर के पास खर्च करने के लिए धन नहीं होगा, तब तक वे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने नहीं जा सकते। उन्होंने इस तथ्य को दबा दिया कि गोलमेज सम्मेलन के अन्य प्रतिनिधियों की तरह डा. आंबेडकर को भी सरकार से ही सारे खर्चे और भत्ते मिलेंगे।

 

काॅंग्रेस-समर्थक सभा

गोलमेज सम्मेलन के लिए दलित वर्गों के विरोध को कम करने की दृष्टि से डा. आंबेडकर के समर्थकों का एक गुट पिछले शुक्रवार को कामगार मैदान, परेल में सभा का आयोजन करके गलत रंग देने का कोशिश कर रहा था, किन्तु उनकी गुण्डागर्दी के कारण इसे छोड़ दिया गया।

इस तथ्य को जानने के बाद कि वीरचन्द पानचन्द शाह इस सभा की अध्यक्षता करने जा रहे हैं, वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सभा का आयोजन काॅंग्रेस ने किया है, या दलित वर्गों ने। यह गलत समझ ‘क्राॅनिकल’ में प्रकाशित काॅंग्रेस डिप्रेस्ड क्लास पार्टी के सचिव डा. बी. जे. देवरुखकर के विरोधाभासी वक्तव्य से पैदा हुई थी।

उन्होंने कहा कि काॅंग्रेस डिप्रेस्ड क्लास पार्टी का उद्देश्य काॅंग्रेस के कार्यक्रम के अनुसार दलित समुदाय के हितों के लिए काम करना है। पिछले शुक्रवार की सभा का आयोजन काॅंग्रेस ने नहीं, बल्कि उनकी पार्टी ने किया था। श्री शाह को सभापति चुनने का साधारण सा कारण यह था कि वह बम्बई प्रान्तीय काॅंग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। इसलिए वह दलित वर्गों के बारे में यह वक्तव्य देने के लिए कि काॅंग्रेस उनके लिए क्या कर रही है और स्वराज में उनकी क्या स्थिति होगी, एकदम सही व्यक्ति हैं। काॅंग्रेस के स्यवंसेवकों को सभा में केवल शान्ति-व्यवस्था को बनाए में सहायता करने के लिए बुलाया गया था।

 

.53

 

हिन्दू दुकानदार पर घातक हमला

हमलावर डा. आंबेडकर की सभा से लौट रहे थे

 

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 4 अक्टूबर 1930)

एक हिन्दू बीड़ी दुकानदार को वृहस्पतिवार की रात में परेल के निकट मौत का सामना करना पड़ा। कानूनी जाॅंच से पता चला है कि मृतक डा. आंबेडकर की सभा से, जो उनके सम्मान में परेल में हुई थी, घर वापिस जा रहा था। उसके साथ उसका पड़ोसी शंकर बापूजी था। जब वे दोनों ऐलफिंस्टन ब्रिज के निकट पहुॅंचे, तो उसी वक्त पहले से घात लगाकर बैठे हुए कुछ लोगों ने उन पर हमला कर दिया, जिनकी पुलिस ने अभी तक पहिचान नहीं की है। कुछ काॅंग्रसी स्वयंसेवकों ने उन्हें काॅंग्रेस के अस्पताल पहुॅंचाया। किन्तु उनमें एक की हालत गम्भीर थी, जिसे के. ई. एम. अस्पताल ले जाया गया, जहाॅं दाखिल करने के तुरन्त बाद उसकी मृत्यु हो गई।

केरोनेर की अदालत में इस मामले की सुनवाई हुई। अगली सुनवाई पुलिस की जाॅंच रिपोर्ट आने के बाद होगी।

 

 

.54

 

दलित वर्गों की माॅंगें

 

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 4 दिसम्बर 1930)

निम्नलिखित तार भारत के ‘दलित’ वर्गों के नाम पर लन्दन सम्मेलन (गोलमेज) के अध्यक्ष को भेजा गया है–

‘दलित वर्ग एकमत से केन्द्रीय और प्रान्तीय विधानसभाओं में संख्यात्मक सीटों के साथ पृथक निर्वाचन की माॅंग करते हैं, बशर्ते वह मुसलमानों को दिया जाता है। वे प्रमाण, नामाॅंकन, संयुक्त निर्वाचन और गैर-दलितों के द्वारा दलितों का प्रतिनिधित्व किए जाने के बारे में साइमन कमीशन की सिफारिशों से असन्तुष्ट हैं और बिटिश भारत और भारतीय राज्यों में सेना, पुलिस और सिविल सेवाओं में वैधानिक आरक्षण की माॅंग करते हैं।

 

 

.55

 

 

डा. आंबेडकर के सम्मान में अन्तरजातीय भोज

(दि बाम्बे क्राॅनिकल, 3 मार्च 1931)

 

बम्बई नगरपालिका में कार्यरत दलित वर्गों- भंगी समुदाय की एक विशाल सभा रविवार को इम्प्रेस सिनेमा, ग्राण्ट रोड के निकट म्यूनिसिपल चाल में सम्पन्न हुई, जिसकी अध्यक्षता श्री निकलजे ने की। सभा में कराची से बम्बई विधान परिषद के लिए नवनिर्वाचित दलित सदस्य डा. आंबेडकर और श्री वाघेला के लिए बधाई सन्देश पारित किया गया। सभा की समाप्ति के बाद अन्तरजातीय भोज हुआ। इस भोज में डा. आंबेडकर, श्री वाघेला, एमएलसी, श्री चित्रे, सहस्रबुद्धे, डी. वी. प्रधान, एस. एन. शिवतारकर, पगाड़े, जाधव, जिनाभाई राठोड़, नारायण भाई और बहुत से अन्य लोगों ने भाग लिया। लगभग सौ लोगों ने भोज किया। भोज में शामिल सभी लोगों का फोटो लिया गया। तत्पश्चात डा. आंबेडकर की जय के नारें लगाए गए।

 

 

.56

 

 

दलित वर्ग और भावी संविधान

डा. आंबेडकर के विचा

(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 28 फरवरी 1931)

 

‘आंबेडकर सेवा दल’ की बटालियन ने बेलार्ड तट पर डा. आंबेडकर का भारी स्वागत किया। वे शुक्रवार की सुबह ही बम्बई पहुॅंचे थे। इस अवसर पर टाइम्स आॅफ इंडिया के प्रतिनिधि ने उनका साक्षात्कार लिया, जिसमें उन्होंने यह वक्तव्य दिया-

‘मेरी नजर में गोलमेज सम्मेलन राजनीति की विजय है। यह कहना मूर्खता होगी कि संविधान की जो रूपरेखा सम्मेलन ने तैयार की है, उसमें कोई दोष नहीं है, परन्तु मेरे विचार में वे अनिवार्य प्रकृति के नहीं हैं। सच के विपरीत मानते हुए भी यह सम्मेलन उन लोगों के लिए एक अवसर है, जो भारतीय समस्या के शान्तिपूर्ण समाधान में विश्वास करते हैं और उसके निर्माण में सुधार चाहते हैं। मेरी सबसे बड़ी निराशा यह है कि संविधान का जो प्रारूप सम्मेलन ने तैयार किया है, वह इतना अलोकतान्त्रिक है कि प्रतिबन्धित मताधिकार पर आधारित है। यह बहुत दयनीय है कि मि. गाॅंधी ने सम्मेलनों के परिणामों पर अपनी घोषणाओं की रिपोर्ट को देखते हुए संविधान के इस पहलू को पूरी तरह नजरअन्दाज कर दिया है। इसके विपरीत वे उन तत्वों पर जोर दे रहे हैं, जो मैं समझता हूॅं, बहुत ही नगण्य और क्षणिक हैं। दलित वर्गों और मजदूरों के प्रतिनिधि के रूप में हमने व्यस्क मताधिकार के लिए लड़ाई लड़ी है। हालाॅंकि इसमें हम असफल हुए हैं, क्योंकि दूसरी सारी पार्टियों ने नेहरू रिपोर्ट के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में झूठा खेल खेला है। मुझे उम्मीद है कि मि. गाॅंधी जब समाधान की अपनी शर्तों के साथ यह जरूर देखेंगे कि जो संविधान बनेगा, वह एक अच्छा लोकतांत्रिक संविधान होगा।

‘यदि मि. गाॅंधी भारत के आम लोगों और स्त्रियों के लिए राजनीतिक अधिकार सुरक्षित कराने के हमारे प्रयासों में असफल होते हैं, तो मैं उन्हें एक महान विश्वासघाती कहने में बिल्कुल भी संकोच नहीं करुॅंगा, जैसा कि उनका सविनय अविज्ञा जनता के शोषण का निकृष्ट आन्दोलन था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि मि. गाॅंधी का राजनीतिक दर्शन बहुत से लोगों को मालूम नहीं है, इसलिए उन जननेताओं के लिए, जो अपनी गणना उनके अनुयायियों और शिष्यों में करते हैं, उचित होगा कि सिविल अवज्ञा के उनके आन्दोलन में उनकी और सहायता करने से पहले उनसे व्यस्क मताधिकार के प्रश्न पर उनके विचार पूछ लें।

 

अल्पसंख्यक समस्या

‘अवश्य ही सबसे महत्वपूर्ण समस्या अल्पसंख्यकों की समस्या है, जिसके निराकरण के बिना भारत स्वतन्त्र नहीं हो सकता। दुर्भाग्य से सम्मेलन इस समस्या का निराकरण करने में असफल हो गया है। किन्तु राजनीतिक सुधार की दिशा में अगला कदम उठाने से पूर्व इसका समाधान हो जाना चाहिए। वह (मि. गाॅंधी) भारत में इस बात को महसूस नहीं करते हैं कि वास्तव में सम्मेलन ने जो राजनीतिक शक्ति प्रदान की है, वह बहुसंख्यक समस्या के एक सम्मत समाधान पर निर्भर करती है। दलित वर्गों के प्रश्न पर, जिनका सम्मेलन में आर. एम. श्रीनिवासन और मैंने प्रतिनिधित्व किया था, मुझे खुशी है कि भारत के भावी संविधान में उनका स्थान सुरक्षित है और उनकी समस्याओं का अन्त हो जायेगा।’

 

57.

 

बम्बई में दलित वर्गों की सभा

ताज के प्रति वफादारी व्यक्त की

(दि टाइम्स आॅफ इंडिया, 2 सितम्बर 1930)

 

बम्बई के दलित वर्गों की एक विशाल जनसभा, जिनमें गुजराती और महारटटा दोनों शामिल थे, इस शनिवार को डा. पी. जी. सोलंकी की अध्यक्षता में बम्बई के टाउन हाल में हुई। यह सभा हाल ही में नागपुर में सम्पन्न दलित वर्गों की काॅंग्रेस में तैयार की गईं माॅंगों को विस्तार से समझाने के लिए आयोजित की गई थी। सभा के मुख्य वक्ता दलित वर्ग काॅंग्रेस के अध्यक्ष डा. बी. आर. आंबेडकर थे।

डा. आंबेडकर ने दलित वर्गों के लिए संवैधानिक संरक्षण और गारण्टी सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने दलितों से सविनय अवज्ञा आन्दोलन से दूर रहने का आहवान किया। डा. सोलंकी ने गुजराती-भाषी लोगों को सम्बोधित किया और डा. आंबेडकर के विचार को ही उनके समक्ष रखा। उन्होंने दलित वर्गों के लोगों को ब्रिटिश ताज के प्रति ही अपनी निष्ठा बनाए रखने की सलाह दी। किन्तु उन्होंने उन्हें भारत में बने हुए स्वदेशी वस्त्र और अन्य वस्तुओं का उपयोग करने की सलाह देते हुए सरकार और मि. गाॅंधी की निषेध नीति के पक्ष में भारतीय उद्योगों का समर्थन किया। उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन या ऐसे किसी भी अभियान से, जो सरकार विरोधी हो, बचने की भी अपील की। उन्होंने उन्हें हर तरह से सरकार के प्रति निष्ठावान बने रहने पर जोर दिया, जबकि उसी समय उन्होंने देश के हित में चल रहे सभी आन्दोलनों में लोगों का सहयोग करने को कहा।

 

 

.58

 

गोपनीय

एसबी. 1244                                                                                                                                         27 मई 1931

 

मुझे आपको सूचित करना है कि डा. आंबेडकर गोलमेज सममेलन में दलित वर्गों का प्रतिनिधित्व करने के बाद इंग्लैण्ड से भारत के लिए रवाना होने से पहले ‘डेली वर्कर’ के कार्यालय में डब्लू. एम. होम्स और डब्लू. रस्ट से मिले हैं। इससे पूर्व वह लण्दन में ‘वर्कर‘स वेलफेयर लीग आॅफ इंडिया के ग्लाइन इवांस से मिल चुके थे। ब्रिटिश कम्युनिस्टों के गलियारे में यह आशा व्यक्त की गई है कि वह उनके विŸाीय साधनों में योगदान कर सकते हैं। कहा जाता है कि वह इंग्लैण्ड में 700 पाउण्ड की एक प्रिन्टिंग प्रेस खरीद चुके हैं। पर किस मकसद से खरीदी है, यह नहीं मालूम नहीं हो सका।

 

 

59.

 

बम्बई, 10 जून 1931

 

महोदय,

संलग्नक के सम्बन्ध में मुझे सादर अवगत कराना है कि यह सत्य है कि डा. भीमराव रामजी आंबेडकर जब  इंग्लैण्ड में दलित वर्गों की ओर से गोलमेज सम्मेलन में प्रतिनिधि थे, तो उन्होंने लगभग रु. 8,500 की एक प्रिन्टिंग प्रेस बिक्री एजेन्ट मैसर्स जाॅन डिकिन्सन एण्ड को. लि. के माध्यम से मैसर्स डावसन पेने एण्ड इलियट लि.ए इंजीनियर्स ओटले, इंग्लैण्ड से क्रय की थी। पे्रस को कामटीपुरा, तीसरी गली, बम्बई में जाया गया है और वहाॅं भारत भूषण प्रिन्टिंग प्रेस में स्थापित किया गया है, जहाॅं उसका उपयोग डा. आंबेडकर के पत्र ‘जनता’ तथा अन्य साहित्य की छपाई में होगा। इस प्रेस की क्षमता अखबार की 1100 प्रतियाॅं छापने की है। इस प्रेस के मूल्य का भुगतान डा. आंबेडकर के द्वारा किया गया है। किन्तु यह कहना कठिन है कि भुगतान उन्होंने  अपने पास से किया है अथवा उन सहकारी समितियों से कर्ज लिया है, जिनसे वह जुड़े हैं। मुझे याद आता है कि उन्होंने अपने सचिव सीताराम एन. शिवतारकर को दलित वर्ग सहकारी समिति के कोष से कुछ बड़ी धनराशि तुरन्त इंग्लैण्ड भेजने के लिए पत्र लिखा लिखा था।

ब्रिटिश कम्युनिस्टों को डा. आंबेडकर के आर्थिक योगदान के सम्बन्ध में मैंने पक्का पता लगा लिया है कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसा करने के लिए सक्षम नहीं है, विशेष रूप से तब तो बिल्कुल नहीं, जब वह ग्रेट ब्रिटेन और भारत दोनों कम्युनिस्टों की काली सूची में हैं। ‘डेली वर्कर’ के कार्यालय में डब्लू. एम. होम्स और डब्लू. रुस्ट से उनकी मुलाकात सम्भवतः प्रिन्टिंग प्रेस मशीन को खरीदने के लिए उनके अनुभव को जानने के बारे में हुई प्रतीत होती है, जिसे वह उस समय खरीदना चाहते थे।

 

 

60.

 

 

गोपनीय                                                               पुलिस मुख्यालय

संख्या 2872/बी,                                                                  बम्बई, 12 जून 1931

 

प्रिय काउगिल,

कृपया अपने अर्द्धशासकीय पत्र सं. 60/ए. जनरल/30-।।, दिनाॅंक 16 मई 1931 का सन्दर्भ ग्रहण करें, जो ला बुशर्डियर को सम्बोधित है।

डा. बी. आर. आंबेडकर जब गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के दौरान इंग्लैण्ड में थे, तब उन्होंने रु. 8,500 में एक प्रिन्टिंग प्रेस एजेन्ट मैसर्स जाॅन डिकिन्सन एण्ड को. लि. के माध्यम से मैसर्स डावसन पेने एण्ड इलियट लि.ए इंजीनियर्स ओटले, इंग्लैण्ड से क्रय की थी। इस प्रेस को भारत भूषण प्रिन्टिंग प्रेस, कामतीपुरा, तीसरी गली, में स्थापित किया गया है, जहाॅं इसका उपयोग डा. आंबेडकर के मराठी पत्र ‘जनता’ की छपाई में किया जायेगा।

उन्होंने किसी भी कम्युनिस्ट कोष में कोई धन नहीं दिया है, क्योंकि वह और उनका वर्ग, जिसका वह प्रतिनिधित्व करते हैं, कम्युनिज्म का विरोध करता है।

भवदीय,

एच. ई. बटलर

 

 

पिछली कड़ियाँँ-

5. अंधविश्वासों के ख़िलाफ़ प्रभावी क़ानून ज़रूरी- डॉ.आंबेडकर

4. ईश्वर सवर्ण हिन्दुओं को मेरे दुख को समझने की शक्ति और सद्बुद्धि दे !

3 .डॉ.आंबेडकर ने मनुस्मृति जलाई तो भड़का रूढ़िवादी प्रेस !

2. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

1. डॉ.आंबेडकर के आंदोलन की कहानी, अख़बारों की ज़़ुबानी

 



कँवल भारती : महत्‍वपूर्ण राजनीतिक-सामाजिक चिंतक, पत्रकारिता से लेखन की शुरुआत, दलित विषयों पर तीखी टिप्‍पणियों के लिए ख्‍यात, कई पुस्‍तकें प्रकाशित। चर्चित स्तंभकार। मीडिया विजिल के सलाहकार मंडल के सदस्य।