अख़बारनामा: ‘स्नूपेंद्र’ कांग्रेस की ग़लतियों को आगे बढ़ा रहे हैं, पर कोई बताता नहीं !

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संजय कुमार सिंह

वैसे तो आज के अखबारों में कई खबरें चर्चा के लायक हैं पर आम आदमी को सीधे प्रभावित करने वाले एक सरकारी आदेश से केंद्र की भाजपा सरकार के इरादे, उसकी सोच, आम आदमी की निजता की उसकी परिभाषा के साथ पिछली सरकार के फैसलों पर उसकी रीति-नीति और कार्यशैली का भी पता चलता है। 2019 के आम चुनावों के पहले सरकार की प्राथमिकताओं पर जनमत बनाने के मामले में सीधे तौर पर ऐसी खबरों का महत्व होगा। इसपर चर्चा और सरकारी पक्ष को जानना-बताना मीडिया का ही काम है। पारदर्शिता का दावा करने वाली सरकार ने जब भ्रष्ट घोषित सरकार के आरटीआई कानून का बाजा बजा दिया है, प्रधानमंत्री प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते तो यह काम अखबारों और टीवी चैनल पर ही होना है। ऐसे में यह काम कैसे हो रहा है, आपको पता होना चाहिए।

आइए, आज देखें कि नया आदेश है क्या, इसका विरोध क्यों हो रहा है? सरकार इसपर क्या कह रही है? वह कितना विश्वास करने लायक है तथा अखबारों ने उसे कैसे छापा है। सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में अगर सभी आरोपी बरी हो गए तो यह कोई नई बात नहीं है। और अगर आप इस मामले को फॉलो कर रहे हों और जानते हों कि इस मामले में एक जज की संदिग्ध मौत हो चुकी है और आपने उस मौत को फॉलो किया हो तो आप सब कुछ जानते हैं और चूंकि यह सब पहले से सार्वजनिक है इसलिए आज की खबर सूचना भर है उससे कुछ बदलने वाला नहीं है। इसलिए आज मैं इस और ऐसी दूसरी खबरों की चर्चा नहीं कर रहा हूं।

केंद्र सरकार ने ‘देश हित’ में नौ केंद्रीय एजेंसियों और दिल्ली पुलिस (जी हां, सिर्फ दिल्ली पुलिस) को आपके कंप्यूटर (आपका स्मार्ट फोन भी तकनीकी तौर पर कंप्यूटर ही है) की सूचनाओं को बीच में सुनने / देखने , उसपर नजर रखने, उसमें रखी या भेजी गई सूचना को डीक्रिप्ट करने के लिए अधिकृत कर दिया है। इससे देश में राजनीतिक भूचाल आया हुआ है पर सरकार और भाजपा का कहना है कि यह 2009 से लागू एक कानूनी प्रावधान की सामान्य गजट अधिसूचना है। इसके जरिए इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि यह प्रावधान कांग्रेस की पिछली सरकार ने किया था। पर विपक्ष और निजता की बात करने वाले कहते हैं कि गए साल के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद स्थिति बदल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने गए साल और इस साल आधार के उपयोग को सीमित करने के आदेश के जरिए निजता को बुनियादी अधिकार कहा है।

अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसे पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर छापा है। मुख्य अखबार में लीड सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ से जुड़ी खबर ही है। अखबार ने खबर का शीर्षक लगाया है, “सरकार ने एजेंसियों को कंप्यूटर की निगरानी करने की अनुमति दी, निजता का डर फैला”। उपशीर्षक है, “विपक्ष ने ऑरवेलियन स्टेट होने का धमाका किया; जेटली ने कहा, प्रावधान यूपीए सरकार ने किए थे”। यहां ‘ऑरवेलियन स्टेट’ का मतलब समझने की जरूरत है। असल में यह एक विशेषण है जो उस स्थिति या आईडिया या सामाजिक स्थिति को बयान करता है जिसकी पहचान जॉर्ज ऑरवेल ने स्वतंत्र और मुक्त समाज के कल्याण के लिए विध्वंसात्मक (स्थिति) के रूप में की थी। आपके हिन्दी अखबार ने बताया? इस लिहाज से यह शीर्षक वैसा नहीं है जैसा मामला है। अखबार ने विपक्ष के ऑरवेलियन स्टेट से ही काम चलाने की कोशिश की है। हालांकि, तूफान की तैयारी शीर्षक से चार बयान छापे हैं। इनमें दो राहुल गांधी और आनंद शर्मा के हैं तो दो अरुण जेटली और रविशंकर प्रसाद के।

इंडियन एक्सप्रेस ने भी सोहराबुद्दीन मामले को पांच कॉलम में लीड बनाया है। इस सूचना के साथ कि सोहराबुद्दीन के भाई सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की योजना बना रहे हैं। निगरानी आदेश की खबर तीन कॉलम में छपी है। शीर्षक है, निगरानी आदेश के लिए विरोध झेल रही सरकार ने आदेश का बचाव किया : नया नहीं है, कड़ी जांच होगी। इसके साथ सरकार का स्पष्टीकरण भी है कि 2009 के आदेश को स्पष्ट किया गया है और बताया गया है कि कौन निगरानी कर सकता है, बिल्कुल सरकारी बोली में।

टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर चार कॉलम में लीड है। दो लाइन का शीर्षक है, डाटा निगरानी आदेश से हंगामा, सरकार ने कहा, 2009 में यूपीए का बनाया नियम है। इंट्रो है, 10 एजेंसियां फोन और कंप्यूटर की जासूसी कर सकती हैं। इसके साथ बॉक्स में बताया गया है कि 2009 में क्या किया गया था और यह भी कि अब क्या बदला है और वह यह है कि सरकार ने 10 एजेंसियों के नाम घोषित कर दिए हैं और उन्हें निगरानी के लिए केंद्रीय गृह सचिव की अनुमति लेनी होगी पर “आपात स्थिति” में ये एजेंसियां अपने स्तर पर कार्रवाई कर सकती हैं और मंजूरी तीन दिन बाद ले सकती हैं।

कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने अपने अलग अंदाज में इस खबर को छह कॉलम में लीड बनाया है। साथ में प्रधानमंत्री की फोटो है जिसमें वे पर्दे के पीछे आधे दिख रहे हैं। कैप्शन है : “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस साल मई में नई दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में। शुक्रवार को शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना के प्रमुख आदित्य ठाकरे ने ट्वीट किया, तो अब मैक्सिमम गरवनेंस, मिनिमम गवरन्मेंट से हम मैक्सिमम स्नूपिंग, मिनिमम सेंस ऑफ प्राइवेसी फ्रॉम गवरनमेंट की ओर जा रहे हैं”। आपको याद होगा कुर्सी पाने के लिए फेंके गए जुमलों में एक जुमला मैक्सिमम गवरनेंस, मिनिमम गवरन्मेंट (मोटे तौर पर अधिकतम काम, न्यूनतम सरकार) का भी था। राज ठाकरे का यह ट्वीट उसी पर तंज है कि अब अधिकतम जासूसी हो रही है और सरकार की ओर से निजता की समझ न्यूनतम रह गई है। अखबार ने अपनी खबर का मुख्य शीर्षक लगाया है, “स्नूपेन्द्र लॉग्स इन”। उपशीर्षक है, “अगर यूपीए ने आपके कंप्यूटर में घुसपैठ करने का आधार बनाया तो मोदी गलत को ठीक क्यों नहीं कर सकते?” हिन्दी में किसी अखबार से ऐसी उम्मीद तो नहीं कर सकते हैं लेकिन आइए देखें हाल क्या है।

दैनिक भास्कर ने इसे सात कॉलम में टॉप पर छापा है। हालांकि, लीड सोहराबुद्दीन की खबर ही है। जासूसी वाली खबर का विस्तार और डिसप्ले अच्छा है। इतना विस्तार सिर्फ राजस्थान पत्रिका ने दिया है। नवोदय टाइम्स में यह खबर लीड है हालांकि, “निगरानी कानून पर हंगामा” शीर्षक से लगता है कि हंगामा ज्यादा होने के कारण यह खबर लीड बनी है जबकि खबर अपने आप में लीड बनाने लायक बात है और वही शीर्षक में होना चाहिए था। उपशीर्षक, 10 केंद्रीय एजेंसियों को मिला कंप्यूटर डेटा की निगरानी का अधिकार में भी वह बात नहीं है। अखबार ने इसके साथ एजेंसियों के नाम छापे हैं और तीन लोगों का कोट। पर इस आदेश में क्या गड़बड़ है वह हाइलाइट नहीं किया गया है। यहां तक कि इंट्रो भी, विपक्ष ने बताया मौलिक अधिकारों का हनन तो सरकार ने दी सफाई – यह आलू मटन करी में से सिर्फ आलू परोसने की तरह है।

हिन्दुस्तान में भी यह खबर टॉप पर है और शीर्षक है, “घेराबंदी : कंप्यूटर डाटा की निगरानी पर विपक्ष हमलावर”। नवभारत टाइम्स में यह खबर लीड है। शीर्षक है, “आपके कंप्यूटरजी पर रहेगी सरकारी नजर”। उपशीर्षक है – “विपक्ष ने सवाल उठाया, सरकार बोली – जरूरत पर ही जांच”। अमर उजाला में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अंदर शीतकालीन सत्र की खबरों के पन्ने पर लीड है। खबर यहां भी विस्तार से है पर पहले पन्ने पर नहीं होना कम महत्वपूर्ण नहीं है। अखबार ने जिन खबरों को पहले पन्ने पर रखा है उन्हें आप खुद देखिए और अपने अखबार को जानिए। राजस्थान पत्रिका में यह खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, “सरकारी वायरस : गृहमंत्रालय का नोटिफिकेशन, ई मेल कॉल की भी निगरानी।” मुख्य शीर्षक है, “अब 10 एजेंसियों से आपके कंप्यूटर डेटा पर नजर रख सकेगी सरकार”। मैंने खबर बता दी और ये भी बता दिया कि किस अखबार ने इस खबर को कैसे छापा है। आप देखिए आपका अखबार आपको कैसी सूचनाएं दे रहा है। और क्या नहीं दे रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )