कर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत

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प्रकाश के रे 

जेरूसलम
चलना चाहता हूं तुम्हारी सड़कों पर, जो सुनहरी हैं
और मैं वहां दौड़ना चाहता हूं जहां देवदूतों ने पांव धरे
जेरूसलम
तुम्हारी नदी के तट पर सुस्ताना चाहता हूं
उस नगर में, ईश्वर के नगर में
ईश्वर का नगर
जेरूसलम, जेरूसलम

-पॉला स्टेफानोविच एवं इवोनिल डा सिल्वा के गीत का अंश



Saint Damasus

चौथी सदी के आखिरी दशकों और पांचवीं सदी में जेरूसलम ईसाई धर्म के तौर-तरीके तय करने का केंद्रीय मंच बन गया था. इस मंच पर अनेक किरदार मुख्य भूमिकाओं में थे. इन्हीं में से एक था- रोम का जरोम. वह बिशप डामासस (366-84) का सचिव था. डामासस भयंकर हिंसा के बाद बिशप चुना गया था और उसके लोगों ने विरोधी उम्मीदवार के सौ से ज्यादा समर्थकों की हत्या की थी. कुछ सौ साल बाद रोम के बिशप के पद को ही अधिकृत रूप से पोप कहा जाने लगा था. बिशप बनते ही उसने रोम और आसपास के इलाकों को ईसाई तीर्थस्थल में बदलने के लिए कोशिशें शुरू कर दीं. रोम में ईसाइयत के शुरुआती दिनों से जुड़ी जगहों को चिन्हित किया गया तथा इतिहास पर मनगढ़ंत किस्सों का लेप भी चढ़ाया गया. इस सिलसिले में डामासस ने रोम में ईसाइयत ले जाने वाले धर्मदूतों- पीटर और पॉल- की साझा भूमिका को रेखांकित करने की जगह पीटर को प्रमुखता दी. जाहिर है कि इन कोशिशों में डामासस के सचिव जरोम की समझ और निगरानी बहुत काम आयी होगी. रोम को महत्वपूर्ण तीर्थस्थल के रूप में स्थापित करना था, फिर यूरोप की अहम भाषा- लैटिन- को ईसाइयत से जोड़ना जरूरी था. डामासस खुद भी इस भाषा में कविताएं लिखता था. उसने 382 में अपने सचिव जरोम को बाइबल के लैटिन अनुवाद का जिम्मा दे दिया. पिछली सदी के कुछ लैटिन अनुवाद आपस में विरोधाभासी थे और नये अनुवाद से झंझटों का निपटारा किया जा सकता था.

जरोम एक तेजतर्रार आदमी था, पर झगड़ालू और महत्वाकांक्षी भी बहुत था. ‘ए हिस्ट्री ऑफ क्रिश्चियानिटी’ में मैककुलॉक ने लिखा है कि वह बिशप और संत बनने की इच्छा रखता था. पोप डामासस की मौत के तुरंत बाद जरोम ने रोम छोड़ दिया और उसके इस फैसले की भरोसेमंद वजहें बता पाना मुश्किल है. रोम में धार्मिक के अलावा डामासस और जरोम की एक और ख्याति थी. दोनों को ही व्याभिचारी माना जाता था और रोम की धनी अधेड़ महिलाओं की इनकी सोहबत के खूब चर्चे थे. डामासस का तो नाम ही रख दिया गया था- अधेड़ स्त्रियों के कानों को गुदगुदाने वाला. मोंटेफिओरे का मानना है कि उसकी मौत के बाद जरोम पर से स्कैंडल के आरोप तो हटा लिये गये, पर उसे और उसकी मित्र पाओला को शहर छोड़ देना पड़ा. उनके साथ पाओला की किशोर बेटी यूस्टोशियम भी थी.

Saint Jerome

सीरिया और पैलेस्टीना में प्रवास करते हुए उसने रोम में अपने असर को यूं बयान किया है- ‘समूचे शहर में मेरी प्रशंसा की गूंज थी. तकरीबन हर कोई मुझे पुजारी के सबसे बड़े पद (बिशप) के लायक समझता था. दिवंगत डामासस मेरे शब्द बोलते थे. मुझे पवित्र, विनम्र और प्रभावशाली वक्ता कहा जाता था.’ सीरिया के रेगिस्तानों में आध्यात्मिक साधना करने के अनुभवों के बारे में लिखते हुए उसने सेक्स, वासना और चाहत के बारे में भी लिखा है. पाओला, उसकी किशोर बेटी और अन्य स्त्रियों के साथ इहलौकिक और पारलौकिक आनंद मनाते हुए जरोम जेरूसलम पहुंचा. वहां इन लोगों ने इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अलग कस्बानुमा मोहल्ला बनाया. इस समूह की सबसे धनी सदस्या मेलानिया थी जिसकी सालाना आमदनी 1.20 लाख पौंड सोना थी. इसने माउंट ऑफ ओलिव्स पर अपना एक मठ स्थापित किया जहां एक हुजूम आत्मा के साथ शरीर की जरूरतों को भी साधता था. वासना का माहौल इतना सघन था कि जरोम जैसा व्यक्ति भी घबरा उठा था. एक तीर्थयात्री ग्रेगरी लिखता है कि व्यभिचार, धोखा, जहर देना, झगड़ा करना, चोरी, मूर्तिपूजा, हत्या जैसी बातें रोजमर्रा की घटनाएं थीं.

रोमन शासन के सानिध्य और संरक्षण तथा बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों की मौजूदगी ने जेरूसलम के उत्सवों की रूप-रेखा भी बदल दी. कई पुराने त्योहारों को नये नाम दिये गये. जिस रास्ते से ईसा मसीह सलीब ढोते हुए गये थे, उसकी महत्ता बढ़ गयी. यहूदी समुदाय के धार्मिक जगहों के नामों को ईसाई पहचान में बदल दिया गया. जेरूसलम में 380 के दशक में तीर्थयात्रा पर आयी स्पेनी नन इजेरिया ने लिखा है कि होली सेपुखर चर्च में पवित्र प्रतीकों की संख्या भी बढ़ती जा रही थी. अब वहां शाह सुलेमान की अंगूठी के साथ डेविड को जिसके तेल से राज्याभिषेक किया था, वह पात्र भी था. ये चीजें जीसस के कांटों के ताज और उनको गोदनेवाले भाले के साथ रखी हुई थीं. जेरूसलम में भक्ति और भावना के पागलपन की हद तक जाना कोई नयी बात नहीं थी. इसी को आज ‘जेरूसलम सिण्ड्रोम’ कहा जाता है. ईसा मसीह के सलीब को हिफाजत से रखना भी एक बड़ा काम बन गया था. तीर्थयात्री उसे चूमते हुए अक्सर लकड़ी चबा जाते थे.

Saint_Paula_Saint_Jerome_Saint_Eustochium

इस माहौल से ऊब कर जरोम जेरूसलम छोड़ कर ईसा की जन्मस्थली बेथेलहम चला गया और बाइबिल के अनुवाद में लग गया. लेकिन वह जेरूसलम आता रहता था और उसने शहर में हो रहे तमाशे पर बेबाकी से लिखा भी है. एक जगह वह ब्रिटिश तीर्थयात्रियों की उद्दंडता को देख कर कहता है कि ब्रिटेन में जेरूसलम के बजाय स्वर्ग जाना अधिक आसान है. वह अपनी पुरानी दोस्त पाओला को भी नहीं बख्शता. सलीब के सामने उसे भावुक होकर प्रार्थना करते हुए देख कर जरोम कहता है कि वह ऐसे पूजा कर रही है, मानो उस पर जीसस अभी भी लटके हुए हों. पाओला द्वारा कब्र को चूमने की तुलना वह बहुत दिनों से प्यासे व्यक्ति को पानी मिलने से करता है. उसके आंसुओं और शोक मनाने पर भी जरोम तंज करता है. हालांकि बाद में पाओला के देहांत पर उसकी बेटी को जरोम ने एक बेहद मार्मिक पत्र लिखा था और उसकी महानता को रेखांकित किया था. जरोम ने बेथेलहम में पाओला की कब्र पर स्मारिका के शब्द भी लिखे थे. जरोम, पाओला और यूस्टोशियम को ईसाई परंपरा में संत की पदवी दी गयी है. जरोम यहूदियों से भी अतिशय घृणा करता था. उसने उन्हें बहुत भला-बुरा कहा है. टेंपल माउंट पर यहूदियों की सालाना प्रार्थना पर वह कहता है कि सिपाही उनसे पैसे लेकर उन्हें कुछ देर और रोने की अनुमति देते हैं. रोते और प्रार्थना करते यहूदियों को माउंट ऑफ ओलिव्स से देखते हुए वह इसे जीसस की जीत बताता है. पर, यहूदियों के लिए वह मौका बेहद खास था. मोंटेफियोरे ने यहूदी रब्बाई बरेखा को उद्धृत किया है. रब्बाई के शब्दों में, ‘वे चुप आते हैं और चुप चले जाते हैं, वे रोते हुए आते हैं और रोते हुए चले जाते हैं, वे रात के अंधेरे में आते हैं और अंधेरे में ही चले जाते हैं.’

यह सब हो रहा था, तभी इजेरिया नामक एक संपन्न स्पेनी तीर्थयात्री भी जेरूसलम और आसपास बाइबल से जुड़ी जगहों को ईसाई मान्यताओं और कर्मकांडों में पैबस्त करने के प्रयासों में लगी हुई थी. जेरूसलम बहुत तेजी से एक ईसाई शहर में तब्दील हो रहा था और यहूदियों के प्रतीक धुंधले पड़ रहे थे. कुछ दशक बाद जेरूसलम में एक महारानी आती है. उसके आने से यहूदियों की उम्मीदों को नयी जिंदगी मिलती है. उसी समय एक ईसाई फकीर भी शहर आता है जिसके साथ उग्र लड़ाकू चेलों का गिरोह भी था. इस फकीर के बारे में मान्यता थी कि वह न तो कभी बैठता था और न ही लेटता था. परंतु, उसके या उसके चेलों के साथ किसी तरह की पंगेबाजी भयानक हिंसा या उत्पात को आमंत्रित कर सकती थी. महारानी और इस लड़ाकू फकीर की कथा के साथ हम पांचवी सदी के तकरीबन मध्य में खड़े हैं.

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  

नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई

दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है 


(जारी) 

Cover Photo : Rabiul Islam