अख़बारनामा: बुलंदशहर कांड के पीछे बड़ी साज़िश के संकेत,अख़बारों में छोटा हुआ कवरेज!

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संजय कुमार सिंह


बुलंदशहर हिंसा का मामला उलझ रहा है। साजिश की बू आने लगी है। कल मैंने लिखा था कि ऐसा कुछ हिन्दी अखबारों में नहीं है और फालतू की बेमतलब सूचनाएं दी गई थीं। आज यह घटना ज्यादातर हिन्दी अखबारों के पहले पन्ने से हट गई है या छोटी हो गई है। इसलिए, आज मैं अखबारों में यहां-वहां छपी खबरें बताऊंगा ताकि आप जान सकें कि आपका अखबार आपको कितनी निष्पक्षता से खबरें दे रहा है। आप जानते हैं कि कल आपके अखबारों ने नहीं बताया कि बुलंदशहर कांड साजिश लग रही है। अब यह खबर और पुष्ट हुई है तो नजर आनी मुश्किल हो गई है।

राजस्थान पत्रिका में बुलंदशहर आज लीड है। फ्लैग शीर्षक है, मुख्य आरोपी अब भी पुलिस की गिरफ्त से बाहर। मुख्य शीर्षक है, आखिर पुलिस ने माना इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या बड़ी साजिश। अखबार ने मारे गए युवक सुमित के वायरल वीडियो से एक तस्वीर भी छापी है जिसमें वह दोनों हाथों में ईंट-पत्थर लिए नजर आ रहा है। इसके साथ लिखा है हिंसा में मारे गए सुमित का वीडियो वायरल। वीडियो में कथित सुमित पत्थर लेकर जाता दिख रहा है। कुछ देर बाद ही उसे गोली लग जाती है। वहीं उसके पिता ने कहा है कि सुमित का नाम एफआईआर से नहीं हटा तो वे भूखे रहकर जान दे देंगे। उनका पूरा परिवार तीन दिनों से भूख हड़ताल पर है। अखबार ने इसके साथ बुलंदशहर के बवाल पर गहराते सवाल शीर्षक के तहत लिखा है, गोकशी के शक के बाद हुए बवाल के बाद साजिश शब्द की गूंज सुनाई दे रही है। साजिश की थ्योरी के साथ कुछ सवाल भी जुड़े हैं। अखबार ने उन्हें भी आमने-सामने दो कॉलम में छापा है। अखबार ने मुख्य मंत्री की फोटो के साथ लिखा है, योगी गोकशी पर बोले, इंस्पेक्टर पर साधी चुप्पी। और एक अन्य खबर में यह भी बताया है, एफआईआर में कई नाम बोगस हैं।

हिन्दुस्तान में भी पहले पन्ने पर दो कॉलम में छोटी सी खबर है, “बुलंदशहर में तीसरे दिन भी गोकशी के बाद तनाव”। शीर्षक से लगता है कि गोकशी के बाद तीसरे दिन भी तनाव की जगह कुछ और छप गया है। पर असल में खबर यह है कि वहां लगातार तीसरे दिन गोकशी की घटना सामने आई है। यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में भी है। खबर के मुताबिक, गोकशों ने एक खेत में गोवंशीय पशु को काट दिया। कुछ लोगों के मौके पर पहुंचने के बाद आरोपी भाग खड़े हुए। बाद में पुलिस ने चार आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उनको गिरफ्तार कर लिया। मामले की जांच शुरू कर दी है। अखबार में अंदर गोकशी पर हिंसा नाम से एक पूरा पन्ना है और इसमें एक खबर है, सुमित के दोनों हाथ में ईंटे कर रहा पथराव। इस खबर के मुताबिक सुमित के परिजनों ने पहले मीडिया से कहा था कि सुमित अपने दोस्त को बाइक से छोड़ने मुख्य रास्ते तक गया था। पर वह मारा गया।

दैनिक भास्कर ने कल लिखा था कि सुमित के परिवार के लोग मारे गए पुलिस अधिकारी के बराबर, 50 लाख रुपए, की मांग कर रहे थे, पांच लाख पर माना।” आज सुमित के वीडियो की खबर दैनिक भास्कर के दिल्ली एडिशन में पहले पेज पर तो नहीं है। यहां सिंगल कॉलम में एक खबर है जिसका शीर्षक है, बजरंग दल के योगेश राज की ओर से दर्ज कराई एफआईआर में दो बच्चों के नाम शामिल।

अमर उजाला में यह खबर पहले पेज पर छह कॉलम में टॉप पर है। शीर्षक है, जिसकी पुलिस को तलाश … उसने वीडियो जारी कर कहा – मैं निर्दोष। उपशीर्षक है, बजरंगदल का बुलंदशहर जिला संयोजक बोला – घटना स्थल पर था ही नहीं, पुलिस हिस्ट्री शीटर बता रही। यहां भी एक पेज बुलंशहर में बवाल के नाम से है। इस पेज पर लीड है, 72 घंटे बाद भी मुख्य आरोपी पुलिस की गिरफ्त से बाहर है। यहां एक और खबर है, बच जाता सुमित तो बेनकाब हो जाता बवाल का सूत्रधार। इस खबर में सुमित के पोस्टमार्टम रिपोर्ट की चर्चा विस्तार से की गई है पर उसका वीडियो मिलने और हाथ में ईंट होने के बाद भी सरकारी मुआवजा मिलने की घोषणा प्रमुखता से नहीं है लेकिन यह फिर बताया गया है कि हत्या उसी बोर से की गई है जिससे इंस्पेक्टर सुबोध को गोली लगी है।

दैनिक जागरण में पहले पेज पर बुलंदशहर हिंसा की कोई खबर नहीं है। अखबार का पेज 14 राष्ट्रीय जागरण है और इसमें तीन कॉलम की एक खबर है, गोकशी के चार आरोपित गए जेल योगेश राज का सुराग नहीं। इसके साथ सिंगल कॉलम में एक और खबर है जिसका शीर्षक है, आरोपित योगेश राज ने सोशल मीडिया पर बताया खुद को निर्दोष। बाकी सब खबरें कहां हैं, ढूंढिए।

नवोदय टाइम्स ने पहले पेज पर छोटी सी खबर (हालांकि दो कॉलम में) छापी है, पुलिस को साजिश का शक। और इसके साथ केजरीवाल बोले, भाजपा ने खुद रची थी घटना की साजिश। नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने दो कॉलम की छोटी सी खबर है, गोकशी के आरोपियों में बच्चों के नाम थे। हंगामे के बाद हटे।

अंग्रेजी अखबारों में द टेलीग्राफ ने लिखा है पुलिस इंस्पेक्टर और एक युवक की हत्या के बाद योगी आदित्यनाथ की सरकार यह पता करने में लगी है कि 25 गायों की हत्या किसने की। मुख्यमंत्री ने गाय मारने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं। उत्तर प्रदेश के डीजीपी ने लखनऊ में पत्रकारों से कहा है कि यह रीवर्स इंवेस्टीगेशन है। अखबार के मुताबिक, दिन भर में यह पता चला कि मुख्य मंत्री आदित्य नाथ ने मंगलवार की रात एक बैठक में गोकशी पर ज्यादा ध्यान दिया। सूत्रों बताया कि यह बैठक ढाई घंटे चली और इसमें इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह तथा सुमित कुमार सिंह की मौत पर बमुश्किल 15 मिनट चर्चा हुई। वे (मुख्यमंत्री) यह भी जानना चाहते थे कि आस-पास वधशालाएं हैं कि नहीं और वे वैध हैं अथवा नहीं। वे अवैध वधशालाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में भी जानना चाहते थे। और यह भी कि वैध वधशालाएं सभी सरकारी नियमों का पालन कर रही हैं कि नहीं उसका पता लगाने की कोशिश पुलिस ने कभी की या नहीं। हालांकि, अखबार ने लिखा है कि इस विवरण का पुष्टि मुख्यमंत्री से नहीं की जा सकी। पर कई सूत्रों ने गुरूवार को कहा कि मुख्यमंत्री ने गोकशी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के आदेश दिए हैं। अखबार ने इस खबर को पहले पेज पर टॉप के सात कॉलम में छापा है और शीर्षक है, रिवर्स प्रोब काऊ, काऊ, काऊ …. (टू पीपुल ऑल्सो डायड) यानी “प्रतिवर्ती जांच : गाय, गाय गाय ….. (दो आदमी भी मरे)”।

टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पेज पर नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पेज पर है। शीर्षक का अनुवाद इस प्रकार होगा, आरोपी ने वीडियो पोस्ट किया; सरकार, पुलिस गो हत्या पर केंद्रित। अखबार ने उत्तर प्रदेश पुलिस के डीजी ओपी सिंह के इस बयान को हाईलाइट किया है, “यह एक साजिश थी और हम जांच कर रहे हैं कि क्यों उस खास दिन (3 दिसंबर) और खेतों में उस स्थान, जहां गायों को मारा गया …. का चुनाव किया गया”।
इंडियन एक्सप्रेस में भी यह खबर पहले पन्ने पर दो कॉलम में है। ऊपर भीड़ की हिंसा का निशाना बनी पुलिस चौकी की फोटो के साथ दो कॉलम में खबर छापी है जिसका शीर्षक है, “एसएचओ की हत्या : मुख्य अभियुक्त ने पुराने जख्मों को हरा करने के लिए गाय का उल्लेख किया उपशीर्षक है, मस्जिद के मैनेजर का नाम लिया गोहत्या के आरोप में चार गिरफ्तार। अखबार में अंदर भी बुलंदशहर की घटना से जुड़ी खबरें छापी हैं। इनमें एक तो मुख्यमंत्री और डीजीपी द्वारा साजिश की आशंका से संबंधित है और दूसरी, भाजपा सांसद द्वारा मुख्य आरोपी के समर्थन की खबर है। कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दी अखबारों में ऐसी खबरें या तो गायब हैं या उस प्रमुखता से नहीं हैं जिससे होनी चाहिए।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।