घाट घाट का पानी : असंतुष्टों के बीच

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Still from presentation of Macbeth by Heiner Muller



जर्मन लेखकों, कलाकार-नाटककारों और चिंतकों में से मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया है हाइनर म्युलर ने. वह मेरे पड़ोसी थे, लेकिन उनसे पहली बार परिचय हुआ ब्रेष्त के पांच छात्रों में से एक, कवि और नाट्य निर्देशक क्लाउस ट्रागेलेन के ज़रिये.

क्लाउस की पत्नी क्रिस्टा रेडियो में मेरे साथ काम करती थी. मैं जब बर्लिन आया तो उसे विभागाध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था. वजह यह थी कि क्लाउस उन दिनों पश्चिम जर्मनी गये हुए थे और टेलिविज़न के एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि पूर्वी जर्मनी में उनके लिये काम करने के अवसर नहीं रह गये हैं. क्लाउस और क्रिस्टा के घर में पूरब और पश्चिम के लेखकों व कलाकारों का आना-जाना लगा रहता था–  हेलसिंकी घोषणा के बाद पश्चिम के नागरिकों के लिये दैनिक वीसा के साथ पूर्वी बर्लिन आना सरल हो गया था, पूरब के नागरिक हालांकि पश्चिम नहीं जा सकते थे–  खैर, गुप्तचर विभाग श्टाज़ी क्रिस्टा से जानना चाहता था कि उसके घर में कौन से लोग आते हैं, क्या बात होती है. क्रिस्टा ने कुछ कहने से इंकार कर दिया था और इसके बाद उसे विभागाध्यक्ष के पद से हटा दिया गया था.

क्रिस्टा मुझसे दस-बारह साल बड़ी है, लेकिन मेरे बर्लिन पहुंचते ही उसने मुझे मां की तरह अपने डैनों में समेट लिया था. ट्रागेलेन परिवार में मेरी हैसियत लगभग घर के सदस्य जैसी थी. क्लाउस और हाइनर युवावस्था से ही गहरे मित्र थे. साठ के दशक में ट्रागेलेन ने बर्लिन-कार्ल्सहोर्स्ट के अर्थशास्त्र महाविद्यालय के छात्रों के साथ मिलकर हाइनर म्युलर के नाटक डी उमज़िडलरिन या विस्थापिता का मंचन किया था. इस नाटक में पोलैंड का हिस्सा बन गये पुराने जर्मन इलाकों से आये शरणार्थियों के पूर्वी जर्मन समाजवादी समाज में तालमेल की समस्याओं की गहराई में झांकने की कोशिश की गई थी. पूर्वी जर्मन नाटक के इतिहास में मील के पत्थर के रूप में इस नाटक व उसके मंचन को देखा जाता है, लेकिन मंचन के बाद संस्कृति विभाग ने इसे पार्टी-विरोधी घोषित कर दिया. ट्रागेलेन को पार्टी से निकाल दिया गया, चरित्र शोधन के लिये देश के दक्षिण में कोयले की खान में मज़दूर के तौर पर काम करने के लिये भेज दिया गया, ताकि उसे कामगारों की ज़िंदगी का सही परिचय मिले. हाइनर पार्टी सदस्य नहीं थे, उन्हें सिर्फ़ लेखक संघ से निकाला गया. तर्क यह दिया गया कि हाइनर म्युलर ने लेखक संघ का चंदा नहीं दिया था.

1979 में मैं जब पूर्वी बर्लिन पहुंचा तो शासक दल की सांस्कृतिक नीति करवटें ले रही थी. 1971 में एरिश होनेकर के पार्टी महासचिव बनने के बाद नाटक और लेखन के जगत में थोड़ा उदारवादी सा दौर आया था, लेकिन बहुतेरे लेखकों की रचनायें छापी नहीं जा रही थीं, पार्टी के संस्कृति विभाग का पंजा नाट्य जगत पर कसा हुआ था. चंद साल पहले ट्रागेलेन और आइनार श्लेफ़ को बर्लिनर आंसाम्ब्ले में नाट्य निर्देशक की ज़िम्मेदारी दी गई थी और आलोचकों की राय में यह ब्रेष्त की मौत के बाद (पूर्वी) जर्मन नाट्यजगत का स्वर्णयुग था. पूर्वी जर्मन लेखकों और कलाकारों को पश्चिम की यात्रा और वहां काम करने की अनुमति भी दी जाने लगी थी. लेकिन 1976 में तेज़तर्रार गीतलेखक वोल्फ़ बियरमान्न द्वारा पश्चिम जर्मनी के कोलोन के एक कन्सर्ट में पूर्वी जर्मन नेतृत्व की तीखी आलोचना के बाद उनकी पूर्वी जर्मन नागरिकता छीन ली गई. इसके विरोध में पूर्वी जर्मनी के 100 से अधिक पहली पांत के लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने पार्टी नेतृत्व को एक पत्रक भेजा था, जिसकी प्रतिलिपि फ़्रांसीसी वार्ता संस्था एएफ़पी को भी दी गई थी. काफ़ी उथलपुथल की स्थिति थी. कई लेखकों और कलाकारों को देशनिकाले का सामना करना पड़ा, कइयों को महीनों तक जेल में बंद रखा गया.

इस माहौल में क्लाउस ट्रागेलेन स्विटज़रलैंड और पश्चिम जर्मनी में यथार्थवादी-प्रगतिशील-समाजवादी–  कुछ भी कह लीजिये– नाट्य मंचन कर रहे थे. हाइनर म्युलर को लंबे अरसे के बाद पूर्वी जर्मनी में ही एक नाट्य मंचन का मौक़ा दिया गया– शेक्सपीयर का मैकबेथ. लेकिन हाइनर म्युलर के मैकबेथ की उंगलियां तो पूर्वी जर्मन यथार्थ की ओर इशारा कर रही थीं. मेरे बर्लिन पहुंचने के चंद हफ़्तों बाद ही युवा संगठन फ़्री जर्मन यूथ का अधिवेशन हुआ जिसमें एक सांस्कृतिक बौने यानी संगठन के संस्कृति सचिव हार्टमुट क्योनिष ने हाइनर म्युलर (और शेक्स्पीयर) पर ज़बरदस्त हमला करते हुए कहा कि हमारी जनता को इनकी पतनोन्मुख कला की ज़रूरत नहीं है.

एक कट्टर कम्युनिस्ट के तौर पर मैं पूर्वी बर्लिन आया था लेकिन कुछ समझने-बूझने से पहले ही मैं एक ऐतिहासिक सांस्कृतिक भंवर में फ़ंस चुका था. समझ-बूझ नहीं थी, लेकिन इतना जानता था कि हर हालत में मुझे सांस लेने के लिये हवा की ज़रूरत है. आने वाले सालों में मेरा ठौर हवा की इस ज़रूरत के ज़रिये ही तय होता रहा.

क्रिस्टा और क्लाउस से मेरे गहरे संबंध बने हुए हैं लेकिन गर्मी के महीनों में वे एस्तोनिया के एक गांव में रहते हैं और जाड़े में मैं भारत में होता हूं. अभी उनके घर गया था– उनकी बेटी मारिया का जन्मदिन था. क्लाउस की स्टडी की दीवार पर किताबों के रैक के बीच आज भी टंगी हुई है खान मज़दूर की वर्दी और हेलमेट- खान मज़दूर के तौर पर काम करने का स्मारक. मुझे पूर्वी जर्मनी के एक दूसरे मशहूर नाटककार पेटर हाक्स के एक नाटक की याद आ रही थी– श्टाइन के घर में अनुपस्थित श्रीमान ग के बारे में बातचीत. श्रीमान ग यानी गोएथे लेकिन यहां श्रीमान ग थे क्रिस्टा और क्लाउस ट्रागेलेन, हाइनर म्युलर और उनके साथ जुड़ी हुई महत्वपूर्ण और हलकी-फुलकी घटनायें, जिनमें से कुछ अब इतिहास का हिस्‍सा बन चुकी हैं.



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