घाट घाट का पानी : पश्चिम होते पूरब में कम्युनिस्ट


उज्‍ज्‍वल भट्टाचार्य के साप्‍ताहिक स्‍तंभ का सतरहवां अध्‍याय


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काॅलम Published On :


क्या यह एक क्रांतिकारी दौर था? समता और आज़ादी का एक सपना टूटकर चूर-चूर हो गया – यह कैसी क्रांति है? लेकिन यह प्रतिक्रांति भी नहीं थी. जिसे समाजवाद कहा जा रहा था, उसकी जगह पर विकसित पूंजीवादी व्यवस्था लाने का बीड़ा उठाया गया, लेकिन जनता के बहुमत के समर्थन के साथ. पिछली प्रणाली के समर्थक नहीं के बराबर रह गये थे. एक छोटा सा तबका उदारवाद व बाज़ार के कुछ तत्वों के साथ समाजवाद का एक नया प्रयोग चाहता थे, लेकिन जनता का बहुमत – और सबसे बड़ी बात कि मज़दूर वर्ग – अब किसी प्रयोग के लिये तैयार नहीं था. पश्चिम जर्मन व्यवस्था उसके लिये सफलता का पर्यायवाची था, वह उसमें शामिल होने के लिये बेताब था.

इसका असर कम्युनिस्ट पार्टी पर भी पड़ा. उसे भी नई, यानी पूंजीवादी व्यवस्था में अपनी जगह ढूंढ़नी थी.

पूर्वी जर्मनी की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी का नाम था जर्मनी की समाजवादी एकता पार्टी. 1989 में इस पार्टी के पूर्ण व उम्मीदवार सदस्यों की संख्या लगभग 23 लाख थी. ध्यान दिया जाना चाहिये कि पूर्वी जर्मनी की आबादी साढ़े आठ करोड़ से कुछ कम थी. साथ ही, पार्टी सदस्य मिस्ड कॉल से नहीं बनाये जाते थे, बल्कि छानबीन के बाद पुरस्कार के रूप में पार्टी सदस्यता प्रदान की जाती थी. कामगारों के लिये पार्टी सदस्य बनना कुछ आसान था, बुद्धिजीवियों के लिये मुश्किल, क्योंकि पार्टी चाहती थी कि सदस्यों के बीच कामगारों का ऊंचा अनुपात बना रहे.

पूर्वी जर्मन संविधान में ही निर्धारित कर दिया गया था कि देश में इस पार्टी की नेतृत्वकारी भूमिका होगी. यानी वह देश की सत्तारूढ़ पार्टी होगी. पूर्वी जर्मनी में शुरू हुए असंतोष के बाद 1 दिसंबर, 1989 को संसद ने संविधान की इस धारा को निरस्त कर दिया. 3 दिसंबर को पार्टी महासचिव एगोन क्रेन्त्ज़ सहित समूचे पोलिटब्युरो ने इस्तीफ़ा दे दिया. 4 फ़रवरी, 1990 को नये पार्टी अधिवेशन में पार्टी का नाम बदलकर पार्टी ऑफ़ डेमोक्रेटिक सोशलिज़्म रखा गया. ग्रेगोर गीज़ी इस पार्टी के अध्यक्ष बने. 18 मार्च, 1990 में हुए पूर्वी जर्मनी के एकमात्र बहुदलीय स्वतंत्र चुनाव में इस पार्टी को 16 फ़ीसदी से अधिक वोट मिले.

अनेक राजनीतिक प्रेक्षकों का ख़्याल था कि पश्चिम जर्मनी की कम्युनिस्ट पार्टी की तरह यह पार्टी भी देश के एकीकरण के बाद निष्प्रभावी हो जाएगी. लेकिन हर चुनाव में उसे प्रतिनिधित्व मिलता गया. 2007 में पार्टी को संसद में प्रतिनिधित्व के लिये आवश्यक न्यूनतम पांच फ़ीसदी वोट नहीं मिल पाये थे, लेकिन अपने चुनाव क्षेत्रों से सीधे जीतकर आने के कारण संसद में उसके दो सदस्य थे. 2007 के बाद देश के पश्चिमी हिस्से में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी से टूटकर बने वामपंथियों के मंच डब्लूएएसजी के साथ पार्टी का एकीकरण हुआ. अब यह पार्टी देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है, और पहली बार एक प्रदेश थुरिंजिया में उसके नेतृत्व में प्रादेशिक सरकार बनी है. इसके अलावा यह पार्टी बर्लिन व पूरब के तीन अन्य प्रदेशों में समय-समय पर सत्तारूढ़ मोर्चे में शामिल रही है. देश के पूर्वी हिस्से में वह सदस्य संख्या की दृष्टि से सबसे बड़ी पार्टी है, व उसे कहीं अनुदारवादी सीडीयू तो कहीं सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के पीछे दूसरे नंबर पर सबसे अधिक वोट मिलते हैं. पश्चिमी हिस्से में वह अभी तक प्रभावशाली नहीं हो पाई है, लेकिन कई प्रदेशों में उसे पांच फ़ीसदी से अधिक वोट मिलने लगे हैं.

1989-90 के दौर में पार्टी के 90 फ़ीसदी से अधिक सदस्यों ने इस्तीफ़ा दे दिया था. लेकिन नई पार्टी में जो सदस्य बचे थे, उनकी 95 फ़ीसदी पूरानी पार्टी के सदस्यों में से थी. इन दो परस्परविरोधी आंकड़ों के कारण पार्टी नेतृत्व दावा करता था कि वह नई भावनाओं वाली एक लोकतांत्रिक पार्टी है, जबकि विरोधियों का दावा था कि इसमें पुरानी तानाशाही पार्टी के सदस्य भरे हुए हैं. इस बीच पार्टी में नई पीढ़ी के सदस्यों का बोलबाला है. पार्टी लोकतांत्रिक समाजवाद लाना चाहती है, व पूर्वी जर्मनी में कायम कम्युनिस्ट प्रणाली को नकारती है. पार्टी के अंदर लेनिनवादी, नारीवादी, त्रॉत्स्कीवादी व अन्य अनेक मंच हैं, जो पार्टी संविधान के तहत काम करते हैं.

जर्मनी के एकीकरण के समय जिन बच्चों की उम्र पांच साल थी, इस बीच वे 33 साल के हो चुके हैं. यानी देश के पूरब की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये पूर्वी जर्मनी का अतीत कोई निजी अनुभव नहीं रह गया है. लेकिन 40 साल की कम्युनिस्ट प्रणाली का लोगों के मन पर गहरा असर रह गया है. ऐसी बात नहीं है कि वे उन दिनों की वापसी चाहते हैं. लेकिन ख़ासकर जब सामाजिक समस्यायें बढ़ती हैं तो वे कम्युनिस्ट प्रणाली के साथ नई प्रणाली की तुलना करते हैं. पूर्वी जर्मनी में कोई बेरोज़गार नहीं था, सबके लिये शिक्षा व स्वास्थ्य के समान अवसर थे, जबकि एकीकरण के लगभग 25 साल बाद आज भी पूरब के प्रदेशों की हालत पश्चिम के मुक़ाबले काफ़ी बदतर है. इसके अलावा पश्चिम जर्मन सांस्कृतिक बुलडोज़र को सफलता ज़रूर मिली, लेकिन लोग अक्सर ठहरकर पूछते भी हैं : रुकना भई, हमारी भी कोई ज़िंदगी थी, उसका साहित्य था, उसके गीत थे…

फिर उनका रोज़मर्रा उन्हें ज़िंदगी के संघर्ष में वापस बुला ले जाता है.