चुनाव चर्चा: प.बंगाल में दीदी के सामने गल नहीं रही है ‘दादा’ की दाल!


आज की तारीख में लगता है बंगाल में भाजपा की दाल नहीं गल रही है, दिल्ली बोर्डर पर किसान आंदोलन के जारी रहने से भाजपा की हालत और खराब हो सकती है. ममता कितनी कमजोर होगी ये भविष्य के गर्भ में है लेकिन वाम दलो का कांग्रेस और अन्य के साथ अपने नये गठबंधन की बदौलत सत्ता में लौटने की कोशिश करना, चुनाव को लगातार नया कोण देता जा रहा है।


चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
काॅलम Published On :


पश्चिम बंगाल में चुनावी पारा चढ़ा हुआ है। सूबे की विधानसभा की 294 सीटों के  आठ चरणों में चुनाव हैं. पहले चरण का मतदान 27 मार्च को होगा, उसके बाद  1, 6, 10, 17, 22, 26 और 29 अप्रैल को वोट पड़ेंगे। पूरे भारत में फिलहाल एकलौती महिला मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बनाई आलइंडिया तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) पार्टी की बंगाल में  पिछले दस बरस से सरकार है. ममता बनर्जी ‘दीदी ‘के नाम से पूरे भारत में लोकप्रिय हैं जो दरअसल बांग्ला सम्बोधन है. चुनावी राजनीति में दादा बन चुकी बीजेपी ने दीदी को गद्दी से उतारने और पश्चिम बंगाल में अपना झंडा फहराने की कल्पना को साकार करने के लिए सारे घोड़े खोल दिये हैं।

 

ममता पर हमला 

ममता बनर्जी को केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से ज़ेड प्लस की सुरक्षा प्राप्त है. फिर भी उन पर राज्य विधान सभा के चुनाव प्रचार के दौरान नंदीग्राम में 10 मार्च को हिंसक हमला हो गया. इसमें वह घायल हो गई. इस वारदात के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर निर्वाचन आयोग को कुछ कडे कदम उठाने पडे.

जिला पुलिस अधीक्षक प्रवीण प्रकाश को निलम्बित कर कई अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की गई. भारतीय पुलिस सेवा के विवेक सहाय को निदेशक सुरक्षा पद से हटा निलंबित कर दिया गया. उनके खिलाफ आरोपों के मामले में 15 मार्च तक निर्वाचन आयोग को रिपोर्ट देने कहा गया. भारतीय प्रशासनिक सेवा की 2005 बैच की स्मिता पांडे को विभू गोयल की जगह नया जिलाधिकारी एवम जिला निर्वाचन अधिकारी तैनात किया गया. 2009 बैच के आईपीएस अफसर सुनील कुमार यादव को तुरंत नया एसपी नियुक्त किया गया. पूर्व पुलिस महानिदेशक (इंटेलिजेंस पंजाब) अनिल कुमार शर्मा को विशेष पुलिस पर्यवेक्षक और एक अन्य आला अफसर विवेक दुबे को पश्चिम बंगाल चुनाव संचालन का निरीक्षण करने कहा गया.

आयोग ने मतदान से पहले की सुरक्षा के लिये अन्य चुनावी राज्यों की तरह ही केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ ) की 12 कम्पनियां अग्रिम रूप से भेजने के निर्देश भी दिये हैं लेकिन हिंदी में कें.चु.आ के संक्षिप्त नाम से आम लोगो के तंज़ का विषय बना हुआ केंद्रीय निर्वाचन आयोग अपनी गड़बड़ी कबूल करने तैयार नहीं है.

प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने इन पाँच राज्यों में चुनाव कार्यक्रम की निर्वाचन आयोग की आधिकारिक घोषणा से पहले ही उसकी पब्लिक मुनादी कर दी थी. आरोप है कि मोदी जी की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा ) केंद्रीय सत्ता और धनबल के दम पर ममता जी को चुनावी शिकस्त देने में लगी है. मोदी सरकार ने चुनाव अधिसूचना के ऐन पहले बंगाल के लिये कई लोकलुभावन योजनाओ की घोषणा कर दी. निर्वाचन आयोग ने ममता बनर्जी पर नंदीग्राम में पूर्व नियोजित हमला होने की बात से इनकार कर कहा कि सुरक्षा में चूक के चलते उन्हें चोटें आईं. ममता ने इसे साजिशन हमला कहा है.

 

भाजपा के साम्प्रदायिक कार्ड

भाजपा ने साम्प्रदायिक कार्ड खेल कर ममता को हिंदुत्व विरोधी सिद्ध करने की फूहड़ कोशिश की. उन्हे ‘जय श्रीराम’ के नारे और ‘मां दुर्गा’ के बहाने घेरा. ममता ने डट कर मुकाबला किया और कहा कि टैगोर और नज़रुल इस्लाम की भूमि ने कभी भी मज़हबी नफरत को पनाह नही दी.

 

टैगोर

भाजपा के मातृ संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयमसेवक संघ’ (आरएसएस ) के सरसंघचालक यानी प्रमुख, मोहन भागवत ने बिल्कुल हास्यास्पद दावा किया कि टैगोर ने हिन्दुत्व की परिकल्पना का विकास किया. जगजाहिर है टैगोर मानवतावादी थे और वह साम्प्रदायिक सियासत के प्रबल विरोधी थे. आरएसएस से जुडे एक न्यास के उटपटांग बयान देने वाले अध्यक्ष दीनानाथ बत्रा ने केंद्र सरकार की शैक्षणिक संस्था, एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों से टैगोर से संबंधित सामग्री हटाने की खुली मांग की थी.

 

स्वामी विवेकानंद

भाजपा ने स्वामी विवेकानंद को हिंदुत्व प्रचारक के रूप में पेश किया. जगजाहिर है वह दरिद्र में ही नारायण को देखते थे निर्धनों की सेवा को ही ईश्वर की सच्ची आराधना मानते थे. वे आरएसएस और भाजपा को प्रिय मनुवादी जातिप्रथा के प्रबल विरोधी थे.

 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस

भाजपा की इस दलील को भी बंगाल के लोगो ने हास्यास्पद माना कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस का हिन्दू राष्ट्रवाद से सम्बंध था. भाजपा ने चुनाव प्रचार में मोदी सरकार के करीब सात बरस के प्रचार और जुमलो की फेहरिस्त पेश की. उसने आरएसएस के हजारों स्वयंसेवक के अलावा केंद्रीय सत्ता और धनबल को झोंक दिया.उसके समर्थक भी दबी जुबा से कहते हैं बंगाल में भाजपा को नेता और उम्मीदवार टीएमसी से लेने पडे हैं.

 

ममता राज

भाजपा ने ममता के समर्थन में ‘बंगाल की बेटी’ के नारे का माखौल उड़ाया जो अविवाहित हैं और जिनका अपना नाभिकीय परिवार नहीं है. उनके भतीजे अभिषेक के ठिकाने पर केंद्रीय एजेंसी, सीबीआई ने छापे मारे मगर बंगाल के लोग अपनी दीदी के दीवाने बने हुए लगते है. ममता ने उनके खिलाफ परिवारवाद और भ्रष्टाचार के आरोपो को भाव नहीं दिया. टीएमसी ने मोदी सरकार के कृषि कानूनों का संसद और उस के बाहर विरोध किया है. भाजपा ने चुनाव प्रचार में दावा किया कि ममता राज में राज्य के 75 लाख किसानों को केंद्र सरकार की किसान सम्मान निधि का लाभ नहीं पहुंचने दिया गया .

 

वाम -कांगेस महागठबंधन

बंगाल के मशहूर फुरफुरा शरीफ़ से जुडे पीरज़ादा अब्बास नकवी ने ‘इंडियन सेक्युलर फ्रंट’ (आईएसएफ ) बनाकर भाजपा की चुनावी व्यूह रचना तोड़ दी. उसका वामदलों के साथ सीटों का समझौता हो गया. हर चुनावी राज्य में भाजपा के अप्रत्यक्ष मददगार और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के मित्र हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की मुस्लिम सियासत की अपनी पार्टी ‘आल इंडिया मजलिस- ए- इत्तेहादुल मुसलमीन’ ( एआईएमआईएम) है. आईएसएफ ने एआईएमआईएम को आगे नहीं बढने दिया.

 

कोलकाता ब्रिगेड मैदान रैली

भारत में रैली आदि के आयोजन के लिये कोलकाता के ब्रिगेड मैदान से बड़ी जगह नहीं है. रविवार के दिन दो मार्च को वामपंथी दलों द्वारा आयोजित तथा कांग्रेस और आईएसएफ समर्थित रैली में 10 लाख लोग शामिल हुए. इस रैली के अन्य संदेश भी थे कि ममता राज में कम्यूनिस्ट का सफाया नही हो सका है और ‘गड़बड़ गोदी मीडिया’ का मिथ्या प्रचार है कि चुनावी मुकाबला टीएमसी और भाजपा के बीच है. सबसे बडा संदेश यह था कि चुनाव में महागठबंधन और टीएमसी का प्रदर्शन जो भी हो भाजपा की बुरी पराजय तय है.

कट्टर वामपंथी कह्ते है ममता बनर्जी , बंगाल में भाजपा को न्यौता देकर लाने के ‘अपराध’ से बरी नहीं हो पाई हैं। कभी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी तो कभी पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की तारीफ़ के पुल बाँधने और गुजरात दंगों के बाद भी मोदी जी की तारीफ करने की ममता बनर्जी की कारगुजारी इतनी ज्यादा है कि वे भुलायी नहीं जा सकते हैं.

राजनीतिक चिंतक अरुण माहेश्वरि के अनुसार वामपंथ ‘बांग्ला रैनेसां’ की लंबी ऐतिहासिक प्रक्रिया की ऐतिहासिक पहचान है. बंगाल में लगातार 34 बरस राज करने वाले वाम दल 2011 के चुनाव में हार जरुर गये पर नष्ट नहीं किये जा सके. ममता पूंजीवाद का दूत बन पूंजी के घोड़े पर सवार हो कर नहीं आई थी। वह ‘टाटा बाबू’ के खिलाफ किसानों की जमीन की रक्षा की एक दुर्धर्ष लड़ाई के साथ, नंदीग्राम और सिंगूर के संघर्ष के बीच से आई थी लेकिन ममता बनर्जी में भाजपा को रोकने की क्षमता नहीं है क्योंकि वह उसकी ही ‘बी टीम’है. ममता खेमे से अनेक नेता भाजपा पाले में गए. माकपा के भी कई क्रिमिनल नेता भाजपा में चले गए .

बहरहाल , आज की तारीख में लगता है बंगाल में भाजपा की दाल नहीं गल रही है, दिल्ली बोर्डर पर किसान आंदोलन के जारी रहने से भाजपा की हालत और खराब हो सकती है. ममता कितनी कमजोर होगी ये भविष्य के गर्भ में है लेकिन वाम दलो का कांग्रेस और अन्य के साथ अपने नये गठबंधन की बदौलत सत्ता में लौटने की कोशिश करना, चुनाव को लगातार नया कोण देता जा रहा है।

 

*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।