पहला पन्ना: किसान आंदोलन के 100 दिन होने पर विस्तृत ख़बर अख़बारों से ग़ायब!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


इंडियन एक्सप्रेस में आज पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम की खबर है, “सूरत की बैठक का सिमी से संपर्क होने के आरोप के 19 साल बाद 127 बरी।” गुजरात मॉडल अब देश भर में लागू होने के बावजूद इस खबर का दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं होना मायने रखता है। कल खबर थी कि कवि वरवर राव को जमानत मिल गई वह भी आज पहले पन्ने पर तो नहीं है। जब 127 लोगों के महीनों निरपराध जेल रहने की खबर नहीं है तो एक कवि को कौन पूछे। किसान आंदोलन के 100 दिन कल पूरे हुए। इस मौके पर चक्का जाम का आयोजन भी किया गया था और अपनी तरह के इस पहले और अब तक के अकेले आंदोलन के 100 दिन पूरे होने की खबर कल लीड नहीं थी तो आज यह खबर हो सकती थी कि कल 100 दिन पूरे होने पर चक्का जाम किया गया था, सफल रहा या फिस्स हो गया या भागीदारी कम या ज्यादा रही।

यहां मामला आंदोलन के 100 दिन पूरे होने और उसे नहीं के बराबर कवर करने का था। ऐसे आंदोलन के एक मील का पत्थर हासिल करने की सूचना औपचारिकातावश भी दी जा सकती थी। लेकिन इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर इसकी खबर नहीं है। फोटो भी नहीं। हिन्दुस्तान टाइम्स में सिंगल कॉलम में है। द हिन्दू में चार कॉलम की फोटो के साथ सूचना है जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया में फोटो छोटी और सूचना ज्यादा है। यहां यह खबर टॉप पर है। द टेलीग्राफ में किसानों की खबर पहले पन्ने पर नहीं है। वहां एक खास खबर पहले पन्ने पर है क्योंकि आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोलकाता जाने वाले हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने पश्चिम बंगाल चुनाव की खबर को लीड बनाया है और शीर्षक है, “मजबूत दांव : भाजपा ने नंदीग्राम में ममता के खिलाफ सुवेन्दु को उतारा।” कहने की जरूरत नहीं है कि मजबूत दांव सुवेन्दु के कारण ही है और अखबार के शीर्षक से लग रहा है कि यह दांव भाजपा का है। तथ्य यह है कि सुवेन्दु तृणमूल कांग्रेस में थे, पिछली बार तृणमूल के टिकट पर चुनाव लड़े और भारी मतों से जीते थे। इस बार चुनाव से कुछ पहले (दिसंबर में) भाजपा में शामिल हो गए। मामला सामान्य तब होता जब तृणमूल ने यहां किसी और को टिकट दिया होता और उसकी भिड़ंत तृणमूल के टिकट पर पिछली बार भारी मतों से जीतने वाले सुवेन्दु अधिकारी से होती। भाजपा उम्मीदवार को तब 10 हजार से कुछ ऊपर वोट मिले थे।

आम तौर पर चुनाव के पहले दल बदलने की खबरों से लगता है कि डूबते जहाज को छोड़कर लोग जा रहे हैं। कई बार यह सच भी होता है पर अखबारों का काम सच को झूठ या झूठ को सच बताना नहीं, सच बताना है। जनता को तय करना होता है कि कौन डूब रहा है या कौन क्यों जहाज से कूद रहा है। राजनीति करनी हो तो इसका मुकाबला करना होगा। वैसे जीतने वाले विधायक को खरीद लेने का आसान और भ्रष्ट विकल्प भी है। ममता बनर्जी ने इसका मुकाबला करने के लिए सुवेन्दु अधिकारी को खुद टक्कर देने का निर्णय किया। वे दो जगह से चुनाव लड़ सकती थीं। पर अपना पुराना विधानसभा क्षेत्र छोड़कर नंदीग्राम से लड़ रही हैं। अगर आपको लगता है कि ममता बनर्जी को पुराने विधानसभा क्षेत्र से हारने का डर होगा और वे यहां जीतने आई हैं (भाजपा उम्मीदवार की घोषणा बाद में हुई फिर भी) तो मुझे कुछ नहीं कहना है।

स्पष्ट है कि वे भाजपा छोड़ने वाले सुवेन्दु अधिकारी को उन्हीं के मैदान में पटकनी देना चाहती है और उन्हें यकीन होगा तभी जोखिम ले रही हैं। वे किसी और कमजोर या मजबूत उम्मीदवार को टिकट देकर खेल देखती रह सकती थीं। पर वे खुद खेल रही हैं या कहिए लड़ रही हैं। इससे तृणमूल को अपने ऊपर जो भरोसा है उसका तो पता चलता ही है भाजपा के प्रचार और रणनीति की भी पोल खुलती है। जीतने और सरकार बनाने का दावा करने वाली पार्टी अभी 56 उम्मीदवारों की ही घोषणा कर पाई है (यही खबर है)। फिर भी टाइम्स ऑफ इंडिया बता रहा है कि दांव बड़े और मजबूत हैं। आठ चरणों में चुनाव कराने का राज अपनी जगह है ही।

पश्चिम बंगाल चुनाव की यह खबर द हिन्दू में नहीं है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर लीड है। शीर्षक है, नंदीग्राम में दीदी का मुकाबला अधिकारी करेंगे। मेरे ख्याल से यह पहले से तय था और न भी हो तो सबको पता था। द टेलीग्राफ ने इस खबर को पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में रखा है और शीर्षक है, (सुवेन्दु) अधिकारी नंदी (ग्राम) से (लड़ेंगे), एकमात्र आश्चर्य भाषा। इस खबर में बताया गया है कि भाजपा की 56 उम्मीदवारों की सूची कम से कम दो दिन की देरी से आई है। इसमें कोई बड़ा आश्चर्य नहीं है पर जब यह माना जा रहा है कि पार्टी सांस्कृतिक तौर पर अलग, असंबद्ध या कटे होने के आरोपों का मुकाबला कर रही है तो भाजपा की सूची बांग्ला में नहीं है। और भाजपा नेता ही सवाल उठा रहे हैं कि ग्रामीण बंगाल में कितने लोग अंग्रेजी या हिन्दी समझेंगे जबकि शहरों में नाम को बांग्ला में टाइप करने के लिए ना बांग्ला आना जरूरी है ना लिखना या टाइप करना। अंग्रेजी में लिखे नामों को कंप्यूटर से बांग्ला में किया जा सकता है। ऊपर की दो तीन लाइन का अनुवाद तो मैं जमशेदपुर में बड़ा होने का कारण कर सकता हूं।

द हिन्दू की आज की लीड है, “कोविड-19 के मामले महाराष्ट्र में बढ़ने के बीच फिर 18,000” पार। अखबार ने इसके साथ उपशीर्षक से बताया है, डर न होने से अनुचित व्यवहार, महामारी से थकान कारण बताया गया। यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में तो पहले पन्ने पर नहीं है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस में भी यह लीड है। शीर्षक है, कुछ राज्यों में वृद्धि, केंद्र ने कहा टीकाकरण बढ़ाया जाए। अखबार ने यह भी बताया है कि पिछले 24 घंटे में 108 मौतें हो चुकी हैं। हिन्दुस्तान टाइम्स में टीकाकरण की खबर चार कॉलम में है। मामले बढ़ने की सूचना या चिन्ता पहले पन्ने पर तो नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में आज टॉप पर लीड के बराबर में कर्नाटक की खबर जरूर प्रमुखता से है जो दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है।

खबर है कि कर्नाटक के छह मंत्रियों ने मीडिया के खिलाफ अदालत से स्टे लिया है। इससे पहले एक मंत्री का सेक्स वीडियो आया था और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। अब छह मंत्रियों के स्टे लेने का मतलब है कि उन्हें भी ऐसे वीडियो के प्रसारित होने का डर है और डर का मतलब है वीडियो तो होगा ही। वीडियो नहीं होता तो डरने की क्या जरूरत थी? और वीडियो नहीं हो तो भाई लोगों ने काम ऐसे किए ही होंगे जिसका वीडियो होने और उसके सार्वजनिक होने से मुश्किल में पड़ने का डर हो। कैसे-कैसे लोग मंत्री बन जाते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि कर्नाटक में भाजपा की सरकार है और विधायक खरीदकर सरकार बनी थी। बाद में उपचुनाव भी हुए थे और सारा खेल नियमपूर्वक हुआ है। इंडियन एक्सप्रेस ने एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड में बताया है, ये वो विधायक हैं जो 2019 में कांग्रेस जनता दल एस गठजोड़ छोड़ कर भाजपा में चले गए थे। इस तरह आप समझ सकते हैं कि पहले पन्ने पर क्यों नहीं है। आपके अखबार में अंदर है क्या?

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के सिलसिले में आज कोलकाता में रैली करने वाले हैं। इस मौके पर इंडियन एक्सप्रेस ने दिल्ली से कोलकाता के अपने पाठकों को बताया है, “भाजपा की पहली सूची : नंदीग्राम में सुवेन्दु बनाम ममता; मोदी की रैली आज।” और आज द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की मुख्य खबर का शीर्षक है, “प्रधानमंत्री जी, स्वागत है, पर आपने कुछ किया नहीं”। मुख्य शीर्षक से ऊपर जो फ्लैग शीर्षक है उसका संदर्भ छोड़ दूं तो बाकी की हिन्दी होगी, “महामारी में सरकार कहां नाकाम रही? मनुष्यों के साथ सम्मान का व्यवहार करने में।” प्रधानमंत्री आज जब कोलकाता में हैं और बहुत संभावना है कि कोलकाता का यह अखबार भी देखेंगे ही, तो अखबार ने यह शीर्षक अपने लिए नहीं लगाया है। प्रधानमंत्री के लिए ही है और बिल्कुल आम आदमी के हित में है। भले ही प्रधानमंत्री को आंख में आंख डालकर उनका काम याद दिलाना पसंद नहीं हो और ‘मन की बात’ करने के आदी, प्रधानमंत्री यह बता चुके हैं कि सरकार का काम बिजनेस करना नहीं है। सरकार का काम चुनाव लड़ना और भाजपा का प्रचार करना ही नहीं है लेकिन उन्हें कौन बताए।

द टेलीग्राफ की आज की खबर की शुरुआत होती है, “अगर आप इसे पढ़ रहे हैं… कोविड महामारी से निपटने का आपका तरीका नाकाम घोषित हो जा चुका है”। अखबार ने बताया है कि कलकत्ता क्लब में द टेलीग्राफ नेशनल डिबेट 2021 का आयोजन सुभाष बोस इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट ने किया था। विषय था, “सदन की राय में, महामारी के वर्ष में, भारत जीवन और आजीविका में संतुलन बनाए रखने में नाकाम रहा।” अखबार ने लिखा है कि विषय का प्रस्ताव करने वालों को कुछ करना ही नहीं पड़ा और यह एक ऐसा मुकाबला था जो आसानी से जीत लिया गया। महुआ मोइत्रा को कहना पड़ा कि उन्हें कुछ करना ही नहीं पड़ा। सच यह है कि उन्हें ‘गोले दागने’ का मौका ही नहीं मिला। अखबार ने लिखा है कि मुकाबला था ही नहीं, प्रधानमंत्री जी, आपका पक्ष हार गया।


लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।