कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है, कि सिर्फ़ दिखने वाला है?

राजशेखर त्रिपाठी
काॅलम Published On :

Courtesy AFP


शाखा बाबू एक बार फिर बालाकोट मोड में हैं। एक्साइटमेंट का पारावार नहीं है। भूलता जा रहा जुमला फिर याद आ रहा है… अकेले-अकेले मुस्कियाते हैं, कुछ-कुछ बुदबुदाते हैं, लेटे-लेटे अपना हाथ चमकाते हैं, खुद को ही कुछ समझाते हैं। मगर आख़िरी बात ऊंची आवाज़ में मुंह से छूट ही जाती है।

“…मुमकिन है!”

नीचे चटाई पर बैठी नेनुआ छील रही पतोहू… भृकुटि तरेर कर पूछती है… का?

शाखा बाबू धरा गया सा महसूस करते हैं… टालने की कोशिश में टीवी का रिमोट टटोलने लगते हैं…

टीवी पर चतुर्दिक बजते राष्ट्रराग के बीच हर चैनल पर एक ही ख़बर है। कश्मीर में कुछ बड़ा होने वाला है!

तीन दिन से यही सुनते-सुनते शाखा बाबू भी पक गए हैं। अब झुंझलाहट मच रही है।

“अरे ससुर तो बताते काहें नहीं कि का होने वाला है?”

अचानक टीवी पर उमर अब्दुल्ला का चेहरा चमकता है। उसकी भी शिकायत यही है।

“जनाब कोई कुछ बताता ही नहीं कि क्या होने वाला है, पूछो तो कहते हैं, कुछ तो है, मगर क्या है किसी को पता ही नहीं…”

उसके बाद  माथे पर दुपट्टा कसे, भर आंख काजर पसारे महबूबा मुफ़्ती बिलखती हैं

“कश्मीर की अवाम कू तो पता चले कि हो क्या रहा है। इतना पेनिक और कियास है लोगूं के भीतर, टूरिस्ट्यों को एडवायज़री है, यात्रा रोक दी, इस्ट्यूड़ेंट को वापस बेज रे हैं….जब कुच नहीं है तो ये सब क्या है”

अब्दुल्ला और मुफ़्ती की बेचैनी देख कर शाखा बाबू की अपनी बैचैनी को बड़ी ठंड पड़ी। इतनी पड़ी कि पतोहू से गरम चाय की डिमांड कर डाली। हालांकि चाय का वक्त हो भी चुका था और मौका देख कर तिवारी जी ने भी एंट्री मारी।

“का महराज कुछ बुझा रहा है, का होने वाला है… कि खाली हुंआं-हुंआं ही हो रहा है”

शाखा बाबू की नज़र में तिवारी जी का कैरेक्टर थोड़ा ढीला है। शाखा में तो जाते हैं, लेकिन कभी-कभी मनबढ़ई भी बतियाते हैं। अब यही लीजिए… सारी कवायद को हुआं-हुआं कह दिया।

चिढ़ कर शाखा बाबू बोले…

“… अरे जब मोदी कर रहा है तो हुंआं-हुंआं कइसे कह रहे हो यार ! एतना बवाल अइसहीं मचा है ! जात्रा रोकी गयी है कभी पहले… जात्री लौटाए गए हैं पहले कभी… इस तरह  लोगों को कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया था कभी?”

“नहीं कहा तो नहीं गया था!”

“तो फेर?”

“लेकिन लाया तो गया था। कश्मीरी पंडितों को भगा कर लाए नहीं थे जगमोहन?”

“का बात करते हो यार”?

शाखा बाबू की चिढ़ बढ़ती जा रही थी… “जगमोहन भगा लाए थे? अरे कहो भगाया जा रहा था तो जगमोहन ले आए थे”।

“खैर बतिया वही है… आप भी सहिए कह रहे हैं!”

“सहिए नहीं…बिलकुल सही कह रहे हैं”

चाय आ गयी थी। तिवारी जी ने एक लंबा जीSSSS कह कर कप उठाया। तब तक टीवी पर गवर्नर सतपाल मलिक का कोहंड़े जैसा मुंह चमका जिसमें  कुंदरू जैसे फंसे हुए दो छोटे छोटे होंठ हिले।

यहां दोनों के कप जहां थे वहीं ठहर गए।

मलिक साहब ने बड़े सूफियाना अंदाज में कहा-

“किसी ने भी मुझे कोई संकेत नहीं दिया कि क्या होने वाला है… चिंता की बात नहीं है… आज कुछ नहीं होने वाला… कल किसने देखा है… कल जो होगा वो मेरे भी हाथ में नहीं!”

अब शाखा बाबू तिवारी को देखें और तिवारी शाखा बाबू को। आख़िरकार तिवारी जी ने ज़ोर का सुड़ुक्का मारा और हाSSSआSSS की ध्वनि के साथ चाय की पहली चुस्की का धुआं बाहर उगलते बोले-

“ई गवन्नर है कि का है महराज… मलहम लगा रहा है कि मजा ले रहा है?”

शाखा बाबू के सपूत का भी गृहप्रवेश हो गया। बाहर से दिन भर जो सुन कर आते हैं सबसे पहले बाप के आगे फड़ लगाते हैं। यहां तो लोहा पहले ही गरम था।

“न ऊ मलहम लगा रहा है, न मज़ा ले रहा है। ओसे न कौनो पूछ रहा है, न बता रहा है। अब तो जो हो रहा है सब सीधे मोटा भाई की मर्जी से हो रहा है!”

अकबकाए शाखा बाबू ने पूछा कौन मोटा जी?

“अरे महाराज… तिवारी जी ने संभाला- मोटा नहीं, मोटा भाई। मल्लब अमित शाह, गृहमंत्री!”

“आच्छा… आच्छा… हं sssऊ तो है थोड़ा ज़्यादा मोटा!”

सुनकर सपूत की सुलग गयी-

“भाक महराज… अरे गुजरात में मोटा मने बड़ा और मोटा भाई मने बड़ा भाई!”

भुनभुनाते हुए सपूत अपने शर्ट की बटन खोलते भीतर घुस गए। उनके पौव्वा पान का समय भी तेज़ी से बीता जा रहा था।

शाखा बाबू ने तिवारी से भेद लेने के अंदाज़ में पूछा-

“ई अमित शाह अचानक बहुत चर्चा में आ गए हैं हो! आदमी कारसाज है का?”

तिवारी जी की कप में चाय चुक गयी थी। वो फिर अपने लुहेड़ई वाले रंग में आ गए।

“अब लीजिए… अरे महाराज, मोदी जी केवल माया हैं ! अमित शाह ही उनके पीछे की छाया हैं। माया और छाया की जोड़ी तो अब बनी है। पांच साल तो देखते-बूझने में निकल गया। इसी में दो साल कश्मीर में महबूबा-महबूबा भी गाए लोग। लेकिन समझ में आ गया कि जोमाटो की बिरयानी भी मियां के हाथ से आई तो भक्तों की भृकुटी चढ़ती है!”

मतलब!!!

“मतलब कुछ नहीं, जनता ने जिस काम के लिए वोट दिया था, सरकार को काम वो ही करना चाहिए। न भी कर पाए तो करते हुए दिखना चाहिए।”

तिवारी जी तो पूरी लंठई के साथ ये जा वो जा…

अब शाखा बाबू हैरान हैं कि कश्मीर में कुछ बड़ा होने भी वाला है कि सिर्फ बड़ा होता दिखने वाला है।