पहला पन्ना: केंद्रीय मंत्री से झड़प में चार किसान घायल, पर बताते शरमायें अख़बार!


असल में भारतीय किसान यूनियन ने भाजपा नेताओं के बायकाट की अपील कर रखी है। ऐसे में संजीव बलयान किसानों के पारिवारिक कार्यक्रमों में बिना बुलाए पहुंच जा रहे हैं। सोमवार को इसी कारण भाजपा समर्थकों और गांव वालों का झगड़ा हो गया। चार लोगों को अस्पताल में दाखिल कराया गया है। आरोप है कि पुलिस ने मंत्री और उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की उल्टे पांच किसानों को रोक लिया। दूसरी ओर, अखबारों ने खबर भी नहीं छापी।   


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


आज पहले पन्ने की एक खबर कई अखबारों में नहीं दिखी या मामूली सी दिखी। खबर है, केंद्रीय मंत्री संजीव बलयान और गांव वालों के संघर्ष में चार लोगों के घायल होने की। द हिन्दू में यह खबर पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में है। इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स में नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया की छोटी-छोटी खबरों में कौन ढूंढ़े। डबल कॉलम और ऊपर में तो नहीं ही है। 

द टेलीग्राफ से पता चलता है कि संजीव बलियान मुजफ्फरनगर के सांसद हैं और 2013 के दंगा अभियुक्त। कोलकाता से छपने वाले द टेलीग्राफ ने लखनऊ डेटलाइन से दिल्ली के पास, मुजफ्फरनगर की खबर को लीड बनाया है और दिल्ली के अखबारों में द हिन्दू ने इसे सिंगल कॉलम में छापा है। बड़ी घटना है इसलिए खबर अंदर होगी लेकिन पहले पन्ने के लिए खबरों का चयन भी तो मुद्दा है ही। असल में भारतीय किसान यूनियन ने भाजपा नेताओं के बायकाट की अपील कर रखी है। ऐसे में संजीव बलयान किसानों के पारिवारिक कार्यक्रमों में बिना बुलाए पहुंच जा रहे हैं। सोमवार को इसी कारण भाजपा समर्थकों और गांव वालों का झगड़ा हो गया। चार लोगों को अस्पताल में दाखिल कराया गया है। आरोप है कि पुलिस ने मंत्री और उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की उल्टे पांच किसानों को रोक लिया। दूसरी ओर, अखबारों ने खबर भी नहीं छापी।   

ख़बर है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने दो पन्ने की प्रेस विज्ञप्ति जारी करके केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन से स्पष्टीकरण मांगा है – पर यह खबर मैं जो पांच अखबार देखता हूं उनमें सिर्फ द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया है कि 50 पार वालों को टीका लगाने की शुरुआत होगी तो सरकार की योजना निजी क्षेत्र को भी शामिल करने की है। सवाल यह है कि कोरोना की दवा उपलब्ध होने का दावा किए जाने के बाद टीकाकरण की आवश्यकता है कि नहीं और हो या नहीं, उसकी सूचना उसी प्राथमिकता से क्यों नहीं? और कैसे हो जब आईएमए मंत्री से जवाब मांग रहा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में आज ही पहले ही पन्ने पर एक और खबर है, महाराष्ट्र के मामलों में हफ्ते भर में आठ प्रतिशत की वृद्धि। यह साधारण नहीं है और महाराष्ट्र में मामले बढ़ रहे हैं तो देश के दूसरे हिस्सों में ऐसा न हो इसके उपाय किए जाने चाहिए। खबर यह होनी चाहिए थी कि केंद्र और दिल्ली सरकार इस सूचना को कैसे लेती है और यह इस सूचना से निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है कि सरकार टीकाकरण के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी की संभावना को टटोल रही है। आपदा में अवसर नारे के लिए और अवसर निकाल पाने वालों के लिए तो ठीक है। पर खबरें आम आदमी की चिन्ता दूर करने वाली होनी चाहिए। अगर महाराष्ट्र में मामले बढ़ रहे हैं और यह खबर आप दे रहे हैं तो इसके साथ यह बताना चाहिए कि सरकार क्या कर रही है या कुछ नहीं कर रही है या पता नहीं किया है। 

यह दिलचस्प है कि टाइम्स ऑफ इंडिया में आज पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है और सिंगल कॉलम की खबरों को छोड़कर कुल पांच खबरें हैं। इनमें तीन कोरोना और कोरोना के टीके से संबंधित हैं। फिर भी आईएमए जैसी संस्था स्वास्थ्य मंत्री से सवाल पूछ रही है वह शीर्षक नहीं है। तीसरा शीर्षक है, विशेषज्ञ चाहते हैं कि 50 पार वालों के लिए टीके की व्यवस्था आसान होनी चाहिए (वॉक इन यानी गए और लगवा आए) न कि इसके लिए ऐप्प हो। कोई दो राय नहीं है कि बाकी की खबरें अंदर हो सकती हैं पर एक ही विषय पर पहले पन्ने पर तीन खबरें हों और मंत्री के आचरण पर सवाल से संबंधित खबर न हो तो संपादकीय स्वतंत्रता और विवेक का सम्मान करने के बाद भी मामला अटपटा तो है ही। 

ऐसा इसलिए भी है कि हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर जो खबर छापी है उसका शीर्षक है, दूसरे दौर की आंशका के मद्देनजर सरकार की योजना टीकाकरण में तेजी लाने की है। यह एक रूटीन सी खबर है जबकि टाइम्स ऑफ इंडिया महाराष्ट्र में मामले बढ़ने और (टीकाकरण में तेजी लाने के लिए) निजी क्षेत्र को भी शामिल करने की संभावना टटोलने की खबर दे रहा है। मुझे लगता है कि प्रस्तुति का यह अंतर समझने की चीज है। अखबार बनाने वालों के लिए इससे बचना मुश्किल है और यह होता रहेगा। लेकिन यह इरादतन हो तो पाठक को समझना चाहिए, सतर्क रहना चाहिए। 

कोरोना से संबंधित टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने की तीन और जो एक छोड़ दी गई यानी कुल मिलाकर चार खबरों में से एक भी अगर दिल्ली के ही दूसरे अखबार में पहले पन्ने पर न हो तो आप क्या कहेंगे? निश्चित रूप से संपादकीय विवेक तब विश्लेषण का विषय हो सकता है और मैं यही करना चाहता हूं। आपको बताना चाहता हूं कि अखबारों की आपको खबरें देने की प्राथमिकता बहुत विचित्र है और आपको इसे समझना चाहिए। इंडियन एक्सप्रेस और द हिन्दू में आज कोरोना से संबंधित कोई भी खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में एक लाइन की यह सूचना जरूर है कि अंदर पेज 13 पर बताया है (एक्सप्लेन्ड) कि कोरोना के मामलों में वृद्धि क्यों हो रही है। 

देश में जब कोरोना के 500 मामले थे तो लॉकडाउन किया गया था। अब जब मामले दोबारा बढ़ रहे हैं और लॉकडाउन खत्म हो रहा है तो यह बताया जाना जरूरी तो है कि मामले क्यों बढ़ रहे हैं लेकिन पहले पन्ने पर क्यों नहीं? शायद इसलिए कि एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर एक खबर है, असम, बंगाल के लिए परियोजनाएं, प्रधानमंत्री ने वास्तविक परिवर्तन का वादा किया। निश्चित रूप से यह संपादकीय विवेक का मामला है और मैं उसी विवेक की चर्चा कर रहा हूं। इसलिए आपको बताऊं कि एक खबर आज ही किसी अखबार में दिखी, “तृणमूल कांग्रेस पर तुष्टिकरण का आरोप”। प्रधानमंत्री चुनाव वाले राज्यों में सरकारी योजनाओं का उद्घाटन करें, परिवर्तन का दावा करें और एक राज्य में सत्तारूढ़ दल पर तुष्टिकरण का आरोप लगे। सब खबरें हैं और सबका महत्व है। सब किसी को पसंद होंगी और किसी को बुरी लगेंगी। आप अपना पहला पन्ना वही बनाएंगे जो आपको अच्छा लगेगा। और अब यह समझने की चीज है। 

आज की खबरों में एक प्रमुख खबर द हिन्दू में पहले पन्ने पर तीन कॉलम में है। “दिल्ली दंगे के पीड़ितों को 26 करोड़ रुपए से ज्यादा दिए गए।” दिल्ली दंगे से संबंधित यह खबर दूसरे अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 


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