चुनाव चर्चा: उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे आमचुनाव की दिशा

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काॅलम Published On :


चन्द्र प्रकाश झा 

28 मई 2018 को निर्धारित लोकसभा उपचुनावों के बाद संसद के मानसून  सत्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की ताकत को लेकर अंदेशा बढ़ गया है। यूपी के गोरखपुर और फूलपुर तथा बिहार की अररिया की तरह अगर भाजपा हारी तो मौजूदा 16 वीं लोकसभा में पार्टी का अपने दम पर हासिल साधारण बहुमत  ख़त्म हो जाने में कोई संदेह नहीं रह जाएगा

लोकसभा में निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या 543 है। एंग्लो -इंडियन समुदाय के दो सदस्य मनोनीत होते हैं।  संसद के पिछले बजट सत्र में इस सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की छह नोटिसें दाखिल की गयीं थी जिनपर स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कोई चर्चा ही नहीं कराई। यह संदेह पूरी तरह से तभी ख़त्म होंगे जब अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस पर  चर्चा के बाद मत -विभाजन हो।  या फिर सरकार द्वारा पेश किये जाने वाले विश्वास -मत प्रस्ताव पर अधिकृत शक्ति परिक्षण हो।

खबरों के मुताबिक़  लोकसभा में भाजपा की प्रभावी ताकत 271 सीटें ही रह गईं हैं , जो बहुमत के आँकड़े 272 से एक कम है। हाल में कर्नाटक विधान सभा के सदस्य चुने जाने के बाद उसकी सदस्यता की शपथ लेने से पहले  शिमोगा लोकसभा सीट से राज्य के मुख्यमंत्री रहे एवं भाजपा  नेता बी एस येदुरप्पा ने और भाजपा के ही  श्रीरामुलु ने बलारी  लोकसभा सीट से से इस्तीफा दे दिया था।

बहरहाल, लोकसभा की चार सीटों पर उपचुनाव के लिए 28 मई को मतदान होने हैं। मतगणना 31 मई को कराई जाएगी। उसी शाम तक परिणाम मिल जाने की संभावना है।  ये सीटें , उत्तर प्रदेश की कैराना , महाराष्ट्र की पालघर और भंडारा -गोंदिया तथा नागालैंड की हैं। इनके साथ ही कर्नाटक समेत सात राज्यों की 10 विधानसभा सीटों पर भी उपचुनाव कराये जा रहे हैं।  इनमें कर्नाटक की दो ( जयानगर और राजराजेश्वरी नगर ) के अलावा  उत्तर प्रदेश  की  नूरपुर  , उत्तराखंड की थराली , महाराष्ट्र की  ( पालुस -कडेगाँव  ) , बिहार की जोकीहाट , झारखंड की  गोमिया और सिल्ली  ,  केरल की  चेंगनूर , पंजाब की शाहकोट , मेघालय की अम्पति और  बंगाल की महेशतला  सीट भी हैं। इन उपचुनावों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी पार्टी , भाजपा के लिए प्रचार करने का कोई  मौक़ा नहीं मिला।  क्योंकि वह हाल में संपन्न कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार में और फिर नेपाल और रूस की भी अपनी यात्रा में लगे रहे। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के   ‘सर्वश्रेष्ठ’ प्रचारक रह चुके हैं।  इसलिए उन्हें  फिर चुनाव प्रचार की मुद्रा में आने में वक़्त नहीं लगा।  वह 27 मई को  बागपत में  एक एक्सप्रेस वे सड़क के उदघाटन के उपलक्ष्य में आयोजित एक रैली में भाषण देंगे।  बागपत , कैराना और नूरपुर से ज्यादा दूर नहीं है। निर्वाचन आयोग द्वारा लागू आदर्श चुनावी आचार संहिता के बावजूद , बागपत की रैली का सारे टीवी चैनल लाइव प्रसारण करेंगे। मोदी जी के चुनाव प्रचार को रोकना मुश्किल ही नहीं शायद नामुमकिन भी है। यह सब चर्चा , हम चुनाव चर्चा के पिछले अंकों में कर्नाटक चुनाव के दौरान 12 -13 मई को नेपाल की उनकी ‘ हवनकारी’  यत्रा के सन्दर्भ में कर  चुके हैं।

नागालैंड : राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट नेशनल डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीडीपी) के नीफ्यू रिओ के इस्तीफा से रिक्त है जो उन्होंने गत मार्च भाजपा के संग पीपुल्स डेमोक्रेटिक अलायंस की साझा सरकार में मुख्यमंत्री बनने के बाद दिया।  उपचुनाव में मुख्य मुकाबला एनडीडीपी के तोखेहो येप्थोमी और नगा पीपुल्स फ्रंट ( एनपीएफ ) के सी अपोक जमीर के बीच है।  कांग्रेस ने एनपीएफ को समर्थन दिया है।

उत्तर प्रदेश :  कांग्रेस और बसपा ने नूरपुर और कैराना उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं खड़े किये हैं। दोनों सीटों पर उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन का माहौल है जिसे निषाद पार्टी आदि का भी समर्थन प्राप्त है। चुनाव प्रचार में एक बड़ा मुद्दा , क्षेत्र के गन्ना उत्पादकों का चीनी मीलों के पास अर्से से बकाया धनराशि का भुगतान, गन्ना का समुचित सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य और चीनी मिलों की खास्ताहाल वित्तीय स्थिति है। यह सब वास्तविक मुद्दे हैं जिनकी काट भाजपा के गैर-मुद्दों से होती नहीं नज़र आती है।  मोदी सरकार के पाकिस्तान से  लाखों टन चीनी आयात करने का निर्णय भी  मुद्दा है।  मुद्दा यह भी है कि क्षेत्र में विगत में हुए मुजफ्फरनगर दंगे जैसे फसाद अब और न हो।

कैराना  लोकसभा सीट भाजपा के हुकुम सिंह के  फरवरी 2018 में निधन से रिक्त है। वह क्षेत्र के रसूखदार गूजर नेता थे। गूजर हिन्दू और मुस्लिम भी होते हैं।  प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा ने  उन्ही की पुत्री  मृगांका सिंह  को  प्रत्याशी बनाया जिनका मुख्य मुकाबला  राष्ट्रीय लोक दल की उम्मीदवार,  तबस्सुम हसन से है। दोनों गुजर समुदाय से हैं जो हिन्दू और मुस्लिम भी होते हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र में मुस्लिम आबादी करीब 40 फीसदी बताई जाती है। उपचुनाव  प्रचार आदि की बागडोर  रालोद अध्यक्ष अजित सिंह के सुपुत्र एवं मथुरा से पूर्व लोकसभा सदस्य जयंत चौधरी ने संभाल रखी  है।  तबस्सुम हसन को, भाजपा-विरोधी  महागठबंधन के फार्मूला के तहत रालोद का उम्मीदवार बनाया  गया।  उनके  पुत्र नाहिद हसन , कैराना से ही समाजवादी पार्टी के विधायक हैं जिन्होंने पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रूप में पहली बार चुनावी मैदान में उतरी मृगांका सिंह को परास्त कर दिया था। नाहिद हसन, पूर्व सांसद मरहूम मुनव्वर हसन के पुत्र है।  कैराना वही जगह  है जहां  हिन्दुस्तानी  शास्त्रीय संगीत के  किराना घराने का जन्म हुआ था. पिछले विधान सभा चुनाव से पहले कैराना में  साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के भगवा शिविर के प्रयास स्थानीय समुदाय की गंगा –जमुनी तहज़ीब ने विफल कर दिए थे।

नूरपुर विधान सभा सीट, भाजपा के विधायक लोकेन्द्र सिंह चौहान के फरवरी 2018 में एक सड़क दुर्घटना में मौत से रिक्त है। उनकी पत्नी , अवनी सिंह को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया। सपा ने अपना प्रत्याशी, नईमुल हसन को बनाया है।   नूरपुर उपचुनाव में चार निर्दलीय समेत कुल 10 प्रत्याशी हैं.

महाराष्ट्र : कोंकण क्षेत्र में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित पालघर लोकसभा सीट, भाजपा के चिंतामन वंगा के जनवरी 2018 में हुए निधन से रिक्त है। उन्हीं के पुत्र श्रीनिवास वंगा  उपचुनाव में शिवसेना प्रत्याशी हैं।  भाजपा ने कांग्रेस के पूर्व मंत्री एवं सांसद राजेंद्र गावित को और कांग्रेस ने भी एक पूर्व सांसद दामू सिंगड़ा को प्रत्याशी बनाया है। मुंबई महानगरी के पास  इस निर्वाचन क्षेत्र में आदिवासियों के हितों के लिए लड़ने वाली लिजेंड्री  गोदावरी पारुलेकर के समय से कम्युनिस्टों का असर रहा है। उपचुनाव में कुल सात प्रत्याशियों में माकपा के युवा नेता किरण राजा गेहला, और भाकपा ( माले ) के शंकर बड़ते  भी शामिल हैं। भंडारा-गोंदिया की लोकसभा सीट दिसंबर 2017 में भाजपा के नाना पटोले के इस्तीफा से रिक्त है जो उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने पर दिया।  कांग्रेस और शिव सेना ने प्रत्याशी खड़े नहीं किये हैं।  मुख्य मुकाबला भाजपा के हेमंत पटले और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मधुकर कुकदे के बीच माना जाता है।  चुनाव मैदान में 8 निर्दलीय समेत कुल 18 प्रत्याशी हैं.  पूर्व मंत्री एवं कांग्रेस नेता पतंग राव कदम के निधन से पश्चिम महाराष्ट्र के सांगली जिला के पालुस -कडेगाँव की रिक्त विधानसभा सीट पर उपचुनाव में  उनके पुत्र एवं कांग्रेस प्रत्याशी  विश्वजीत कदम के निर्विरोध निर्वाचित होने की औपचारिकता ही बाकी है।  वह  2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में पुणे सीट से कांग्रेस के विफल उम्मीदवार थे। विधान सभा का कार्यकाल अक्टूबर 2019 तक ही है. शिवसेना द्वारा कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन घोषित करने के बाद सत्तारूढ़ भाजपा ने भी अपना प्रत्याशी वापस ले लिया।  अन्य के नामांकन पत्र भी या तो वापस ले लिए गए या खारिज कर दिए गए।

बिहार : जोकीहाट विधान सभा सीट पर उपचुनाव में मुख्य मुकाबला पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल  और मौजूदा मुख्यमंत्री नितीश कुमार के जनता दल (यूनाइटेड) के बीच माना जाता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री तस्लीमुद्दीन के पुत्र शाहनवाज आलम, राजद प्रत्याशी है।  कुल नौ प्रत्याशियों में जनता दल ( यूनाइटेड ) के मुर्शीद आलम भी हैं।  गौरतलब है कि यह विधान सभा सीट अररिया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है जहां मार्च 2018 में हुए उपचुनाव में राजद  ने जनता दल ( यूनाईटेड )  समर्थित भाजपा प्रत्याशी को भारी शिकस्त दी थी।

झारखंड : भाजपा शासित इस राज्य की दो विधान सभा सीटों पर उपचुनाव में महागठबंधन की रणनीति के तहत कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी नहीं उतारा है। गोमिया सीट पर भाजपा अपने ही गठबंधन के घटक दल , आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (एजेएसयू) से उलझ गई है।  वहाँ  भाजपा के माधव लाल सिंह का मुकाबला  विपक्षी झारखंड मुक्ति मोर्चा के उमेश कुमार महतो से ही नहीं एजेएसयू  के लम्बोदर महतो से भी है।  कुल 12 प्रत्याशियों में छह निर्दलीय हैं। दूसरी सीट , सिल्ली में   मुख्य मुकाबला एजेएसयू  के सुदेश कुमार महतो और राजद के ज्योति प्रसाद से है।  कुल नौ प्रत्याशियों में पांच निर्दलीय हैं।

पंजाब :  शाहकोट विधान सभा सीट विपक्षी शिरोमणि अकाली दल के विधायक अजित सिंह कोहार के निधन से रिक्त है।  राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने  हरदेव सिंह लड्डी शेरोवालिया,  शिरोमणि अकाली दल ने नायब सिंह कोहार और आम आदमी पार्टी ने रतन सिंह कक्कर कलां  को अपना प्रत्याशी  बनाया है।

उत्तराखंड :  थराली सीट राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक मंगल शाह के निधन से रिक्त है।  भाजपा ने उनकी पत्नी मुन्नी देवी शाह को उपचुनाव मैदान में उतारा है जिनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस के प्रोफ़ेसर जीत राम से है।  कुल 5 प्रत्याशियों में माकपा के कुंवर राम और उत्तराखंड क्रान्ति दल के छबी लाल शाह भी हैं।

बंगाल : महेशतला सीट राज्य में सत्ताधारी , तृणमूल कांग्रेस की विधायक कस्तूरी दास के फरवरी 2018 में निधन से रिक्त है। उनके पति दुलाई चंद्र दास को तृणमूल ने प्रत्याशी बनाया है जिनका मुख्य मुकाबला भाजपा के सुजीत कुमार घोष और  माकपा के प्रवत चौधरी से है। कांग्रेस ने माकपा का समर्थन किया है।

केरल :  चेंगनूर विधान सभा सीट राज्य में सत्तारूढ़ वाम –लोकतांत्रिक मोर्चा का नेतृत्व कर रही माकपा के विधायक के के रामचंद्रन नायर के जनवरी 2018 में हुए निधन से रिक्त है।  उपचुनाव में माकपा ने साज़ी चेरियन को बनाया है। प्रत्याशियों में  कांग्रेस के डी विजय कुमार , भाजपा के पीएस श्रीधरन पिल्लै  और 10 निर्दलीय भी शामिल हैं।  एक ख़ास बात यह है कि इस उपचुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी , राष्ट्रीय लोक दल , सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इण्डिया और आम्बेडकरवादी  पार्टी ऑफ़ इंडिया ने भी अपना –अपना उम्मीदवार खड़ा किया है।

मेघालय : अम्पट विधान सभा सीट पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के इस्तीफा से रिक्त है।  उन्होंने मार्च 2018 के विधान सभा चुनाव में सोंगसक सीट से भी जीतने पर अम्पट विधान सभा छोड़ दी थी।  सीट दिया था।  उपचुनाव में राज्य में सत्तारूढ़ मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस ( एमडीए ) का नेतृत्व कर रही  एनपीपी ने क्लीमेंट जी मोमिन  को और कांग्रेस ने मुकुल संगमा की पुत्री मियानी डी शिरा को प्रत्याशी बनाया है।  मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने एनपीपी प्रत्याशी का प्रचार कर कांग्रेस की हार की उम्मीद की है। पिछले विधान सभा चुनाव में कांग्रेस 21 सीटें जीत कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी  . भाजपा के गठबंधन एमडीए को 19 सीट ही मिली थी जिसने सरकार बना कर विलियमनगर  सीट पर स्थगित चुनाव बाद में  जीत ली। कांग्रेस अगर अम्पट उपचुनाव  जीत गई तो वह मेघालय में  नई सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है।

कर्नाटक : विधान सभा की दो सीटों  , जयानगर और राजराजेश्वरी नगर ( बंगलुरु ) के लिए नए सिरे से  चुनाव के तहत 28 मई को मतदान और 31 मई को मतगणना कराए जाएंगे . निर्वाचन आयोग ने जयानगर सीट पर भाजपा प्रत्याशी एवं निवर्तमान विधायक बी एन विजयकुमार के निधन के कारण और राजराजेश्वरी नगर में  वोटर कार्ड , वोटिंग स्लिप आदि की जब्ती -बरामदगी के मद्देनजर पहले की चुनाव प्रक्रिया रद्द कर दी थी।

 



(चंद्र प्रकाश झा  वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)