चुनाव चर्चा: सीरिया में बशर फिर राष्ट्रपति, दुनिया हैरान!

चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
काॅलम Published On :


‘सीरिया अरब गणराज्य’ के राष्ट्रपति चुनाव में एक बार फिर बशर-अल-असद जीत गये. वे अबतक कुल मिलाकर चौथी बार जीते. पिछले हफ्ते बुधवार को खत्म चुनावों में उन्हे 95.1% वोट मिलने का दावा किया गया. असद के विरोध में चुनावी मुकाबला में उतरे दो उम्मीदवारों में महमूद अहमद मारी को 3.3 फीसदऔर अब्दुल्ला सालौम अब्दुल्ला को 1.5 फीसद वोट ही मिले. विरोधी दलों ने इसे चुनावी पाखंड कहा. अमेरिका ने कहा ये चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे. लेकिन राष्ट्रपति असद ने राजधानी दमिश्क मे खुद वोट डालने वक़्त ही जीत पक्की होने का ऐलान कर ये भी फरमा दिया विरोध के स्वर का भाव उनके लिए “ज़ीरो ” है. असद के बोल थे ‘ सीरिया वैसा नहीं है जैसा वो बताने की कोशिश कर रहे हैं, जहाँ गृह- युद्ध छिड़ा है. हम चुनाव से साबित कर रहे हैं सीरिया की अवाम एकजुट है’.  उन्होने जहाँ वोट दिया वो कभी विद्रोहियों का गढ़ था लेकिन 2018 में उस पर सीरियाई सेना ने दोबारा क़ब्जा जमा लिया.

सीरिया 2011 से गृह–युद्ध की स्थिति में तबाही का मंजर है. जब लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन शुरू हुए तो असद हुकुमत ने उसे कुचल दिया. उसमें करीब चार लाख लोगो के मारे जाने का अनुमान है. आधी आबादी विदेश भाग गयी. विदेशो में करीब 60 लाख सीरियाई शरणार्थी हैं. गृहयुद्ध के दौरान ही 2014 के पिछले चुनाव में विपक्ष के दलो ने भाग नही लिया था. उस एकतरफ़ा चुनाव में असद को 88% वोट मिले. इस बार की वोटिंग भी सेना के कब्जा वाले इलाकों में ही कराई गई. विदेशों में कुछ सीरियाई दूतावासों में वोटिंग कराई गयी. सीरिया के भीतर और बाहर दो करोड़ से कुछ कम वोटर हैं.

 

चुनावी धांधली के विरोध में प्रदर्शन, संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप

विद्रोही नियंत्रित इदलिब प्रांत में चुनाव के विरोध में बड़ा प्रदर्शन हुआ जहाँ विपक्षी आला नेताओं ने शरण ले रखी है. ‘सीरियन निगोशिएशन कमीशन’ के प्रवक्ता याह्या अल-अफ़रीदी ने कहा : ‘ये चुनाव अवाम का अपमान है. लोकतंत्र विरोधी असद हुकुमत रूस और ईरान की मदद से चल रही है. इस चुनाव से अवाम पर ज़ुल्म और बढेगा. सीरिया की करीब 15 राजनैतिक पार्टियो में अरब समाजवादी (बाथ) पार्टी , सीरियन अरब समाजवादी दल, अरब समाजवादी संघ, सीरियाई साम्यवादी दल और अरब समाजवादी एवम् एकतावादी दल प्रमुख हैं.

अमेरिका ने ही नहीं युरोप के फ़्रांस, जर्मनी, इटली और ब्रिटेन ने भी वोटिंग से पहले ही जारी साझा बयान में चुनाव प्रक्रिया को ” अवैध ” घोषित कर कहा कि बिना संयुक्त राष्ट्र निगरानी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सम्भव नही है. चुनाव तब हुए जब वे संयुक्त राष्ट्र की पहल से नए संविधान का मसौदा बना रहे हैंं ताकि वहाँ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में लाखों शरणार्थियों और आम अवाम की शिरकत हो.

सीरिया का मौजूदा संविधान 1973 में अपनाया गया. राष्ट्रपति चुनाव 7 बरस पर होता है. ये चुनाव दरअसल जनमत संग्रह है। राष्ट्रपत , बाथ पार्टी का महासचिव भी होता है। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति मुसलमान ही हो सकता है. लेकिन सीरिया में इस्लाम राजधर्म नहीं है। 1963 से आपातकाल लागू है जिसे हुकुमत ने इसरायल के खिलाफ युद्ध और आतंकवादी हिंसा के आधार पर लागु किया है। 1974 में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद इसरायल ने गोलानके सीरियाइयों को सीरिया में व्यापार करने की इजाजत दे दी।

 

असद

पिछले 20 बरस से हुकुमत पर काबिज बशर-अल-असद 55 बरस के हैं. वे 2000 से ही सीरिया के राष्ट्रपति हैं. उनके पिता हाफ़िज़ अल-असद ने करीब 25 बरस हुकुमत की थी. सीरियाई सेना की रूस और ईरान मदद कर रहे हैं. रूस ने हवाई हमलों से साथ दिया. ईरान ने अपनी मिलिशिया को मदद के लिए भेजा. सीरिया के ज़्यादातार हिस्सों पर विद्रोहियों, जिहादियों और कुर्दों की सेना का कब्जा है. संकट के तत्काल राजनीतिक समाधान के आसार नहीं लगते.

चीनी न्यूज एजेंसी ‘सिन्हुआ’ की रिपोर्ट है कि सीरियाई संसद के अध्यक्ष हमौदेह सब्बाग ने गुरुवार को जारी बयान में असद को 2014 के चुनाव में मिले 88.7 प्रतिशत वोट की तुलना में और ज्यादा 95.1 फीसद मिलने का दावा किया. कुल 1.8 करोड़ वोटरो में से करीब 1.4 करोड़ ने वोट दिये. उनके मुताबिक कुल वोटरो के 78.64 प्रतिशत ने वोट डाले. मतदान बुधवार को संपन्न हुआ. वोटिंग बूथ आधी रात तक खुले रहे। गुरुवार रात असद समर्थकों ने दमिश्क के उमय्यद स्क्वायर पर जीत का जश्न मनाया.

 

इतिहास और भूगोल

ईसाईयत और इस्लाम में भी सीरिया अहम है. मुसलमान दमिश्क की तरफ़ नमाज अदा करते रहे हैं. सीरियाई अरब गणराज्य के पश्चिम में लेबनॉन और भूमध्यसागर, दक्षिण-पश्चिम में इजराइल , दक्षिण में ज़ॉर्डन , पूरब में इराक़ और उत्तर में तुर्की है। इसरायल और इराक़ के बीच अवस्थित सीरिया का बडा सामरिक महत्व है। राजधानी दमास्कस पहले भी सीरिया के कई साम्राज्य की राजधानी थी. अप्रैल 1946 में फ्रांस से स्वाधीनता मिलने के बाद सीरिया की हुकुमत में बाथ पार्टी दबदबा रहा है। 1963 से ही देश में आपातकाल लागू है.

सीरिया नाम ग्रीक भाषा से आया. प्राचीन काल में यवन क्षेत्र को ‘ सीरीयोइ ‘ कहते थे। इसका प्रयोग असीरियाई लोगों के लिए होता था।असीरिया शब्द अक्कदी भाषा के अस्सुर से आया है। सीरिया शब्द का मतलब बदलता रहा है। पहले सीरिया का अर्थ भूमध्यसागर के पूरब में मिस्र और अरब सागर के उत्तर तथा सिलीसिया के दक्षिण का क्षेत्र था जिसका विस्तार अर्वाचीन मानव सभ्यता मेसोपोटामिया तक था.रोमन साम्राज्य के समय सीरियाई क्षेत्रों को कई टुकडो में बाँट दिया गया. जुडया को फ़लीस्तीन नाम दिया गया जो अभी के फलीस्तीन के अलावा इसरायल और ज़ॉर्डन भी हैं. ईसा के 330 साल पहले जब मकदूनिया (मेसेडोनिया) के सिकन्दर ने फ़ारस के शाह दारा तृतीय को तीन युद्धों में हराया तब सीरिया पर यवनों का अधिकार हो गया। सन् 1400 में तैमूर लंग ने सीरिया पर हमला कर भारी तबाही मचाई।

बीसवीं सदी के आरंभ तक सीरिया उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन तुर्क) का हिस्सा था. फिर फ्रांस का राज हो गया जो 1946 तक चला। फ्रांस का राज ख्तम होने के बाद राजनैतिक अस्थिरता रही. बाथ पार्टी का हुकुमत पर प्रभुत्व हो गया. पेट्रोलियम सीरिया का प्रमुख निर्यात है। सीरिया की 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है और 10 प्रतिशत ईसाई हैं। सुन्नी मुस्लिम कुल जनसंख्या के 74 प्रतिशत हैं, शिया क़रीब 13 प्रतिशत है.अरबी आधिकारिक भाषा है। कुर्द इलाकों के लोग कुर्द भाषा बोलते हैं। शिक्षित नागरिक अंग्रेज़ी और फ्रेंच भी बोलते हैं।

 

शांति प्रार्थना गीत : कंदीसा

बहरहाल , गृह युद्ध के अलावा तेल और कृषि उत्पादन में गिरावट के कारण भी सीरिया की अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई है। देखना है विश्व समुदाय अपनी सबसे पुरानी सभ्यता को और तबाह होने से बचाने के लिये सियासत में शांति कायम करने के लिये कितनी जल्दी कितना कारगर उपाय करता है. विडम्बना है कि विश्व की सबसे पुरानी शांति प्रार्थना की उत्पत्ति सीरिया में ही हुई मानी जाती है. इस प्रार्थना को भारत के ‘इंडियन ओशन’ बैंड ने दुनिया भर में लोकप्रिय बना कर अप्रतिम योगदान दिया है. उसके कंदीसा एल्बम का शीर्षक गीत वही शांति प्रार्थना है जो अरेमिक भाषा मेैं है और जो आज भी सीरियाई मूल के भारतीय गिरिजाघरों में गायी जाती है।़

 

*मीडिया हल्कों में सीपी के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं।