आपके अखबार ने सर्जिकल स्ट्राइक करने वाले फौजी की राय बताई?


उन्होंने कहा है, “सर्जिकल स्ट्राइक गोपनीय तरीके से हुआ था, इसे राज ही रखते तो बेहतर होता”


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संजय कुमार सिंह


उन्होंने कहा है, “सर्जिकल स्ट्राइक गोपनीय तरीके से हुआ था, इसे राज ही रखते तो बेहतर होता”

सर्जिकल स्ट्राइक याद है? संभवतः पहली बार किसी प्रधानमंत्री ने उस पर अपना 56 ईंची सीना ठोंका था और इसका राजनीतिक उपयोग किया था। उस समय इस चर्चा के पक्ष-विपक्ष में जो कहा गया और अखबारों में जो छपा वह तब की बात थी। अब उस स्ट्राइक में मुख्य भूमिका निभाने वाले लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हूडा रिटायर हो गए हैं। मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल में शुक्रवार को एक पैनल चर्चा में भाग लेते हुए उन्होंने कहा था कि हमने इसे गोपनीय तरीके से ही अंजाम दिया था। पत्रकारों से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि पीओके में घुसकर आतंकियों पर सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता पर शुरुआती उत्साह स्वाभाविक था। सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिकरण किए जाने से जुड़े सवाल पर उन्होंने कहा कि यह सवाल राजनेताओं से पूछा जाना चाहिए। भाजपा ने इस पर चुप्पी साध रखी है।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को ट्वीट किया, “जनरल आपने सच्चे सिपाही की तरह बात रखी। भारत को आप पर गर्व है। मिस्टर 36 को सेना का इस्तेमाल निजी संपत्ति की तरह करने में कोई शर्म नहीं है। उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का इस्तेमाल राजनीतिक फायदे और राफेल सौदे का इस्तेमाल अनिल अंबानी की वास्तविक पूंजी को 30 हजार करोड़ रुपये बढ़ाने के लिए किया।” हूडा ने साफ-साफ कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादी ठिकानों के खिलाफ 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक को जरूरत से ज्यादा प्रचार दिया गया और इसे राजनीतिक रंग दे दिया गया था। उन्होंने यह भी कहा है कि सर्जिकल स्ट्राइक गोपनीय तरीके से हुआ था, इसे राज ही रखते तो बेहतर होता।

टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पेज पर है। “सर्जिकल स्ट्राइक के ‘प्रचार’ विवाद में फंस गई सेना”। तीन कॉलम के इस शीर्षक के नीचे सिंगल कॉलम की दो खबरें हैं और बीच में जनरल बिपिन रावत की फोटो के साथ उनका कोट, “ये (डीएस हूडा की टिप्पणी) उनकी अपनी समझ है। इसलिए उस पर हम टिप्पणी न करें।” इसके एक तरफ की खबर का शीर्षक है, “मुख्य भूमिका वाले अधिकारी की टिप्पणी को सेना प्रमुख ने हल्का कर दिया” और “दूसरे का शीर्षक, “पूर्व सैनिक के बयान ने राहुल को मौका दिया” है। इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर पहले पेज पर नहीं है।

द टेलीग्राफ में यह खबर पहले पेज पर तीन कॉलम में बॉटम है। फ्लैग शीर्षक, “सेवानिवृत सैनिक की टिप्पणी पर भाजपा शांत” है। मुख्य शीर्षक, “सर्जिकल स्ट्राइक के अत्यधिक प्रचार का उल्टा असर” है। इस खबर के बीच वाले कॉलम में जनरल बिपिन रावत की फोटो है। अखबार ने लिखा है जनरल बिपिन रावत को विवादास्पद बयानों के लिए नहीं जाना जाता है। पर शनिवार को समाचार एजेंसी एएनआई से उनका यह कहना कि, “वे इस हमले से जुड़े महत्वपूर्ण लोगों में एक हैं इसलिए मैं उनकी बातों का बहुत सम्मान करता हूं।” वे हूडा की शुक्रवार की बातों पर टिप्पणी कर रहे थे। अखबार ने हूडा की बातों का विस्तार से वर्णन किया है।

हिन्दी अखबारों में नवोदय टाइम्स ने राहुल गांधी की प्रतिक्रिया राहुल गांधी की फोटो के साथ पहले पेज पर सिंगल कॉलम में है। सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर हमला फ्लैग शीर्षक के साथ इस खबर का मुख्य शीर्षक, “मिस्टर 36 को शर्म नहीं राहुल” है। नवभारत टाइम्स में पहले पन्ने पर फास्ट न्यूज की खबरों में एक खबर सर्जिकल पर घमासान भी है।

दैनिक जागरण में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। अमर उजाला में सेना प्रमुख की फोटो के साथ सिंगल कॉलम की खबर है, जिसका शीर्षक, “जीतू के खिलाफ साक्ष्य होंगे तो पूरा सहयोग : सेना प्रमुख” है। जीतू के एक फौजी है जिसपर बुलंदशहर हिंसा के दौरान इंस्पेक्टर को गोली मारने का आरोप है। अखबार ने इसी में नीचे लिखा है, दीपेन्द्र सिंह हूडा के बयान पर सेनाध्यक्ष ने कहा कि वह हुड्डा के शब्दों की इज्जत करते हैं। हालांकि यह एक व्यक्ति की निजी धारणा है इसलिए मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता।

दैनिक भास्कर में यह खबर पहले पन्ने पर है। फ्लैग शीर्षक है, उत्तरी कमान के प्रमुख रहे लेफ्टिनेंट जनरल हुड्‌डा बोले, “सर्जिकल स्ट्राइक का जरूरत से ज्यादा प्रचार हुआ, यह गलत था”… इसके साथ राहुल गांधी की टिप्पणी आधे कॉलम की फोटो के साथ सिंगल कॉलम में है। शीर्षक, “मोदी ने सर्जिकल स्ट्राइक का राजनीतिक इस्तेमाल किया : राहुल” है।

राजस्थान पत्रिका ने इस खबर को पहले पन्ने पर प्रमुखता से छापा है। फ्लैग शीर्षक, “हमला : पूर्व सैन्य अधिकारी ने उठाया था सवाल” है। मुख्य शीर्षक है, “सर्जिकल स्ट्राइक हो या रफाल मोदी तलाशते हैं फायदा, मिस्टर 36 को शर्म नहीं : राहुल।” अखबार ने इसके साथ तीन खबरें छापी हैं, राहुल गांधी की फोटो के साथ, एक ट्वीट से दो निशाने और उनके निजी विचार हैं, सेना प्रमुख बिपिन रावत की प्रतिक्रिया तथा ढिंढोरा नहीं पीटें शीर्षक से डीएस हूडा के मूल बयान का अंश। इसमें लिखा है, एक ऑपरेशन का ढिंढोरा पीटने से सफलता बोझ बन सकती है। अन्य ऑपरेशन सफल नहीं हो पाए तो क्या होगा? नेतृत्व को इस बारे में सोचना होगा। राजनीतिक फायदा उठाना ठीक नहीं है। और राजनीतिक नेतृत्व है कि चुप्पी साधे बैठा है। बात-बात पर देशद्रोही घोषित करने वाले समर्थक भी शांत हैं। अखबारों का हाल तो आपने देख ही लिया।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।