28 साल के भाजपा उम्मीदवार ने लिया मीडिया के खिलाफ स्‍टे, अखबारों ने खबर ही नहीं दी!

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संजय कुमार सिंह

इंडियन एक्सप्रेस ने आज पहले पन्ने पर एक बड़ी और मीडिया के लिए गंभीर खबर छापी है। खबर के मुताबिक बेंगलुरु दक्षिण से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार, 28 साल के तेजस्वी सूर्या को स्थानीय अदालत से अस्थायी स्थगनादेश मिला है और उनके खिलाफ “अवमानना वाली” खबरें नहीं छापी जा सकती हैं। अदालत ने 49 मीडिया संस्थानों को सूर्या से संबंधित झूठे, दुर्भावनापूर्ण और अपमानजनक खबरे छापने से प्रतिबंधित किया है। इनमें अंग्रेजी और कन्नड़ के अखबार तथा टीवी चैनल के साथ फेसबुक, व्हाट्सऐप्प, यूट्यूब, याहू और गूगल शामिल हैं। यह अस्थायी स्थगनादेश 29 मार्च को जारी हुआ इंडियन एक्सप्रेस में आज इसकी खबर है।

खबर के मुताबिक अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि याचिकाकर्ता ने ट्वीटर के एक प्रकाशन की एक प्रति पेश की है जो तेजस्वी सूर्या के खिलाफ ‘मीटू केस’ कहा जाता है। कहने की जरूरत नहीं है कि चुनाव से पहले मीडिया के खिलाफ इस तरह का आदेश बड़ी खबर है और भले ही यह हिन्दी मीडिया के लिए नहीं है पर हिन्दी पाठकों के लिए तो सूचना है ही। खासकर भाजपा के प्रशंसकों और कार्यकर्ताओं के लिए तो यह उपलब्धि भी कही जा सकती है। अंग्रेजी मीडिया पर प्रतिबंध है तो वहां यह खबर कितनी और क्या छपती लेकिन हिन्दी मीडिया में यह खबर तो होनी ही चाहिए और यह भी कि तेजस्वी सूर्या पर क्या आरोप हैं और वह कौन है जो ऐसा आदेश ले आया।

अगर यह प्रतिबंध हिन्दी अखबारों पर भी होता तो हिन्दी में खबर वैसे नहीं होनी थी। लेकिन हिन्दी अखबारों पर प्रतिबंध नहीं है तो यह खबर होनी ही चाहिए थी। इसलिए भी कि, सूर्या भाजपा कर्नाटक युवा मोर्चा के महासचिव हैं। बेंगलुरु दक्षिण सीट पर 18 अप्रैल को वोटिंग होनी है। इससे पहले इस सीट पर बीजेपी के दिवंगत नेता अनंत कुमार सांसद थे। अनंत कुमार 1996 के बाद से यहां रिकॉर्ड छह बार चुने गए थे। सूर्या का मुकाबला इस सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता बीके हरिप्रसाद से होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि इस सीट से अनंत कुमार की पत्नी तेजस्विनी भी दावेदार थीं और उन्हें टिकट मिलना तय माना जा रहा था। राज्य यूनिट के प्रमुख बीएस येदियुरप्पा ने सार्वजनिक तौर पर उन्हें टिकट दिए जाने की घोषणा की थी। बाद में पार्टी की केंद्रीय चुनाव समिति ने कर्नाटक हाईकोर्ट में वकालत कर रहे 28 वषीर्य सूर्या को उम्मीदवार बनाया है। एक भाजपा नेता के मुताबिक, “सूर्या हमारी राष्ट्रीय सोशल मीडिया टीम के भी सदस्य हैं।”

तेजस्वी बीजेपी नेता के परिवार से आते हैं और वह आरएसएस से भी जुड़े हैं। इंटरनेट पर उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार वे बीजेपी नेता रवि सुब्रमण्यम के भतीजे हैं। पेशे से वकील तेजस्वी सूर्या ने बेंगलुरु के इंस्टिट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज से पढ़ाई की है। वह लंबे समय से आरएसएस और स्‍टूडेंट यूनियन से जुड़े रहे हैं। अपनी जोरदार भाषण शैली और संप्रेषण कला की वजह से उन्‍होंने वरिष्‍ठ नेताओं के दिल में अपनी जगह बनाई। एनडीटीवी की एक खबर के अनुसार टिकट मिलने के बाद सूर्या ने पांच साल पहले महिला आरक्षण विधेयक के खिलाफ अपनी राय दी थी और इसकी वजह से उन्हें फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन यह अदालती आदेश लेने का कारण नहीं हो सकता है। तेजस्वी सूर्या एक अच्छे वक्ता के रूप में जाने जाते हैं हालांकि, उनके भाषणों पर ध्रुवीकरण का आरोप भी लगता है। तेजस्वी सूर्या ने ‘एराइज इंडिया’ नाम के एक संगठन की स्थापना की है और माना जाता है कि वह बीजेपी आईटी सेल से भी जुड़े हैं।

बेंगलुरु दक्षिण लोकसभा सीट पर अब तक कुल 16 बार चुनाव हुए हैं। छह बार कांग्रेस को यहां से जीत मिली है। तीन बार जनता पार्टी के उम्मीदवार ने यहां जीत हासिल की और साल 1991 से लगातार लात बार भाजपा इस सीट से जीतती आ रही है। इसमें से छह बार बीजेपी के अनंत कुमार यहां से विजयी हुए हैं। गए साल 12 नंवबर को 59 साल की उम्र में अनंत कुमार का निधन हो गया। वह कैंसर से पीड़ित थे। कुमार के परिवार में पत्नी और दो बेटियां हैं।

पुलवामा जैसे हमले की कोशिश 
आज एक और बड़ी खबर है, पुलवामा जैसी कोशिश नाकाम। नवोदय टाइम्स ने इस खबर को लीड बनाया है। बाकी अखबारों में भी लीड है या पहले पन्ने पर। इस खबर के साथ जो विवरण है उससे मामला समझ में नहीं आ रहा है। पहले के सवालों का जवाब है नहीं इसलिए इसे पुलवामा जैसा कहना भी मुश्किल है और अभी भी पूरे विवरण नहीं हैं। हो सकता है, सुरक्षा एजेंसियों ने दिए नहीं हों और मौके पर गए संवादादाताओं ने बताया नहीं हो या गए ही नहीं हों। तमाम अगर मगर है। इस लिहाज से मुझे लगता है कि इस खबर को सबसे सही ट्रीटमेंट राजस्थान पत्रिका ने दिया है। और शीर्षक व विवरण भी संतुलित है।

दैनिक जागरण का शीर्षक है, जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर पुलवामा जैसा हमला दोहराने के साजिश। उपशीर्षक है, सीआरपीएफ काफिले के पास बनिहाल में आतंकियों ने किया कार धमाका। कहने की जरूरत नहीं है कि जब धमाका हो ही गया तो साजिश कैसी? यह स्थिति तब है जब पाकिस्तान के आतंकवादी शिविर पर हवाई हमले में 300 आतंकवादी मारे जा चुके हैं, पुलवामा हमले की साजिश करने वाले कई मारे गए और अजहर मसूद के मारे जाने की खबर भी अखबार छाप चुके हैं।

जाहिर है, आतंकवाद पर नियंत्रण की कोशिशों के तहत जो कुछ किया बताया गया वह पर्याप्त नहीं रहा और आतंकवाद वैसे ही जारी है। पर एक अभियान के तहत अखबारों ने ऐसी खबरें छापीं जैसे आतंकवाद नियंत्रित कर लिया गया हो या कर ही लिया जाएगा। सवाल उठता कि सफलता के तमाम दावों और इतने उपायों (तथाकथित सख्ती) के वावजूद यह हमला कैसे संभव हुआ? अगर भारत में आतंकवादी वारदातें पाकिस्तान से संचालित होती हैं तो क्या अजहर और 300 अन्य आतंकवादियों के ‘मरने’ का कोई असर नहीं हुआ है। अब सरकार की योजना क्या है। आगे क्या कार्वाई होगी – यह सब कौन बताएगा। क्या अखबार वही रिपोर्ट करेंगे तो प्रधानमंत्री चुनावी रैली में बोलेंगे या एएनआई के फीड जो दूरदर्शन दिखाएगा?

अमर उजाला में भी यह खबर लीड है। शीर्षक है, सीआरपीएफ काफिले के पास पिर धमाका, कार ने मारी टक्कर। उपशीर्षक है, पुलवामा जैसे हमले की आशंका बस को मामूली नुकसान कोई जवान घायल नहीं। अमर उजाला ब्यूरो की इस खबर का एक अंश इस प्रकार है, “… कार में एक बड़ा सिलेंडर भी रखा हुआ था अगर दूसरा सिलेंडर भी फट जाता तो स्थिति भयावह हो सकती थी। घटना शनिवार सुबह 10.30 बजे हुई। जवाहर टनेल के पास जम्मू आ रहे सीआरपीएफ काफिले में शामिल बस के पीछे से आ रही सफेदसैन्ड्रो कार टकरा गई। जवान कुछ समझ पाते इसके पहले धमाके के साथ कार में आग लग गई। घटना के बाद पांच घंटे तक काजीकुंड से लेकर रामबन तक हाईवे को खंगालने के बाद सीआरपीएफ के काफीले को आग बढ़ने की मंजूरी दी गई।”

आप जानते हैं कि पुलवामा हमले के समय भी बहुत सारे सवाल उठे थे। और ये सवाल घटना के समय से लेकर काफिले की सुरक्षा तक से संबंधित थे। पर सरकार की तरफ से एक ही जवाब नहीं आया। अखबारों ने सवाल नहीं पूछे ना अपनी ओर से पाठको को बताने की जरूरत समझी। यह हमला पुलवामा जैसा क्यों है? सिर्फ इसलिए कि कार में बम फटा है। अगर ऐसा है तो कार सीआरपीएफ की बस के पीछे कैसे चल रही थी? कायदे से काफिला गुजरने के समय दूसरी गाड़ियों को रोक दिया जाना चाहिए। क्या इतना भी नहीं किया जाता है? अगर नहीं रोका गया था तो भंयकर चूक है और जैसा कि लगता है, काफिला गुजरने के बाद इस गाड़ी को जाने दिया गया होगा। इसीलिए यह बस से पीछे रह गई। तो चूक अलग तरह की है। पर खबरों से कुछ पता नहीं चल रहा है।”