कानपुर में संघ के बड़े नेता से प्रताड़ित बीजेपी का युवा नेता करेगा 1 सितंबर से सीएम आवास पर अनशन


कैसे किसी को अपराधी बनाया जाता है, इसे समझना हो तो शशि प्रकाश के प्रार्थनापत्र से समझिये जो उसने प्रेस को जारी किया है। शशि प्रकाश का आरोप है कि उसके परिवार और घरेलू काम में मदद करने वाले दलित परिवार के राजेश के साथ कई बार मारपीट हुई पर हर बार अनुपम किशोर त्रिवेदी के दबाव में पुलिस ने उसके परिवार के ख़िलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया। स्थानीय पुलिस एन्काउंटर की धमकी देती है। हालत ये है कि उसने 6 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी से मिलकर शिकायत की तो 8 अगस्त को एक और मुकदमा उसके ख़िलाफ़ लिखा दिया गया। चोरी, डकैती, मारपीट की तमाम धाराएँ लगायी जाती हैं लेकिन यह नहीं लिखा जाता कि घटना कब और कहाँ हुई। प्रताड़ित करने की हद पार हो गयी है।


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कानपुर के घाटमपुर स्थित गाँव रेउना निवासी 27 बरस का नौजवान शशि प्रकाश त्रिपाठी कुछ समय पहले तक बीजेपी का कट्टर समर्थक और नेता था। बीएससी और एम.ए करने के बाद बीएड कर रहा है। कुछ दिन पहले तक एक स्कूल में क्लर्क की नौकरी भी पा गया था लेकिन आज उसके सामने सिर्फ़ अंधकार है। नौकरी छोड़नी पड़ी है और बीएड भी पूरा करने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। पुलिस के डर से घर से बाहर रहने को मजबूर है। घर चलाने के लिए जमाई गयी खाद-बीज की दुकान बंद है। मुख्यमंत्री योगी से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं के दरवाज़े पर सर पटक चुका है, लेकिन न्याय की आशा कहीं नहीं जगी। निराश होकर उसने बीजेपी की ओर से मिले अपने परिचय पत्र को फेंक दिया है और न्याय न मिलने पर 1 सितंबर से मुख्यमंत्री आवास पर परिवार समेत आमरण अनशन की धमकी दी है।

शशि प्रकाश की कहानी सत्ता के असल चरित्र की बानगी है। आमतौर पर माना जाता है कि यूपी में बीजेपी का बोलबाला है और उसकी पार्टी के नेताओं की पौ बारह है। लेकिन इस तंत्र का मज़ा तो वही ले सकता है जो शक्तिवान है। कोई ग़रीब हो तो चाहे ब्राह्मण क्यों न हो, (जिन्हें बीजेपी का आम मतदाता माना लिया गया है) अगर शक्ति से टकराता है तो उसका क्या हश्र हो सकता है ये शशि प्रकाश की कहानी से पता चलता है। शशि प्रकाश बीजेपी युवा मोर्चा का सेक्टर प्रभारी है।

शशि प्रकाश के कुनबे में मकान को लेकर कुछ झगड़ा है। ज़ाहिर है मामाल सिविल प्रकृति का है, लेकिन शशि प्रकाश पर आधा दर्जन से ज़्यादा मुक़दमे दर्ज हो चुके हैं। वजह ये है कि जिस चाचा से झगड़ा चल रहा है, उसके रिश्तेदार आरएसएस के कानपुर प्रांत के प्रचार प्रमुख हैं। नाम है अनुपम किशोर त्रिवेदी। वे शशि प्रकाश के चाचा नरेंद्र कुमार के दामाद के बड़े भाई हैं। पूरा पुलिस प्रशासन चाचा के साथ है और शशि प्रकाश ही नहीं, उसकी माता और पिता भी कई मुक़दमों की वजह से मुल्ज़िम बन चुके हैं।

कैसे किसी को अपराधी बनाया जाता है, इसे समझना हो तो शशि प्रकाश के प्रार्थनापत्र से समझिये जो उसने प्रेस को जारी किया है। शशि प्रकाश का आरोप है कि उसके परिवार और घरेलू काम में मदद करने वाले दलित परिवार के राजेश के साथ कई बार मारपीट हुई पर हर बार अनुपम किशोर त्रिवेदी के दबाव में पुलिस ने उसके परिवार के ख़िलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया। स्थानीय पुलिस एन्काउंटर की धमकी देती है। हालत ये है कि उसने 6 अगस्त को मुख्यमंत्री योगी से मिलकर शिकायत की तो 8 अगस्त को एक और मुकदमा उसके ख़िलाफ़ लिखा दिया गया। चोरी, डकैती, मारपीट की तमाम धाराएँ लगायी जाती हैं लेकिन यह नहीं लिखा जाता कि घटना कब और कहाँ हुई। प्रताड़ित करने की हद पार हो गयी है।

शशि प्रकाश हताश है। उसका कहना है कि उसके पिता तीस साल से बीजेपी के कार्यकर्ता हैं। तमाम नेताओं के घर आना जाना है। लेकिन संघ के नेता का नाम आने से कोई कुछ करने की स्थिति में नहीं है। कानपुर ग्रामीण के बीजेपी अध्यक्ष कृष्ण मुरारी शुक्ल बेटा बताते थे, अब  उन्होंने फोन उठाना बंद कर दिया है। बीजेपी सांसद देवेंद्र सिंह भोले उसे नाती बताते थे, उन्होंने भी हाथ जोड़ लिये कि इस मामले में कुछ नहीं कर सकते। बीजेपी के तमाम नेता और कार्यकर्ता उसके साथ हो रहे अन्याय को देख रहे हैं, लेकिन संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख का इतना आतंक है कि कुछ बोलने की हिम्मत नहीं करते।

शशि ने अब बीजेपी छोड़ने का ऐलान कर दिया है। साथ ही कहा है कि अगर 1 सितंबर तक न्याय न मिला तो लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास पर आमरण अशन करेगा।  विपक्ष के नेताओं से भी संपर्क किया है। यूपी में कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू से मुलाक़ात की है और इंसाफ़ दिलाने की गुहार लगायी है। उसका साफ़ कहना है कि बीजेपी में ग़रीबों की पूछ नहीं है। एक युवा को बेरोज़गार और अपराधी बनाने में जब संघ का ही नेता जुट जाये तो फिर हालात की गंभीरता को समझा जा सकता है।


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