लाहौर में महिलाएँ युद्ध के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरीं, क़ैदी पायलट भारत को वापस करने की माँग की !


धवार को विंग कमांडर अभिनंंदन के पाकिस्तानी सेना के हाथ पड़ जाने की खबर छिपाने में जुटे भारतीय चैनल शुक्रवार को इमरान खान के ऐलान के बाद “भारत की कूटनीतिक जीत” और “झुक गया पाकिस्तान” जैसे बैनर लेकर हाजिर हो गए।


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लाहौर में आज सैकड़ों महिलाओं और अमनपसंद नागरिकों ने सड़क पर उतरकर न सिर्फ युद्ध का विरोध किया बल्कि भारतीय पायलट विंग कमांडर अभिनंदन को सकुशल भारत को वापस करने की माँग की। उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध को हर हाल मे रोकने को जरूरी बताया। वे तमाम प्लेकार्ड लिए हुए थे जिन पर लिखा था कि जंग समस्या का हल नहीं है। यह भी लिखा था कि वे लोग भारत से नफरत नहीं करते।

उधर, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की पोती फातिमा भुट्टो ने भी विंग कमांडर अभिनंदन को वापस करने की माँग की है। उन्होंने न्यूयार्क टाइम्स मे एक लेख लिखकर कहा है कि न उन्हें भारतीय जवानों का मारा जाना पसंद होगा और न पाकिस्तानी जवानों का। नीचे रैली की तस्वीरें देखिए–


वैसे शाम होते-होते पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान को वापस करने का ऐलान कर दिया। अभिनंदन शुक्रवार को भारत वापस आएँगे।  इमरान खान ने फिर शांति की पेशकश की है। इमरान इस तनाव के बीच लगातार जिस भाषा में अमन की पेशकश कर रहे हैं, उसे लेकर दुनिया भर में उनकी तारीफ की जा रही है।

लेकिन इधर, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि एक ‘पायलट प्रोजेक्ट’ पूरा हुआ है। ये रिहर्सल था। आगे असली होगा। उनके इस बयान की पाकिस्तान पर काफी ऐतराज जताया गया है। तमाम मीडिया चैनलों ने इमरान खान के रुख पर सवाल उठाते हुए कहा है कि भारत में इसे पाकिस्तान का झुकना कहा जा रहा है।

दिलचस्प बात ये है कि बुधवार को विंग कमांडर अभिनंंदन के पाकिस्तानी सेना के हाथ पड़ जाने की खबर छिपाने में जुटे भारतीय चैनल गुरुवार को इमरान खान के ऐलान के बाद “भारत की कूटनीतिक जीत” और “झुक गया पाकिस्तान” जैसे बैनर लेकर हाजिर हो गए। जबकि सभ्यता का तकाज़ा ये है कि एक बार शुक्रिया कहा जाता। याद रखिए कि पाकिस्तान न कोई शर्त लगाई और न देर की। पायलट ने भी अपने साथ अच्छे सलूक की बात की है। शक नहीं कि भारत सरकार और सेना बेहद प्रोफेशनल तरीके से काम करते नजर आ रही है, लेकिन भारतीय चैनल पत्रकारिता का प्रोफेशनलिज्म इस कदर भूल चुके हैं कि उन्हें कोई राह चलता भी जोकर कह देता है।

ज्यादातर भारतीय चैनल और अखबार इन दिनों एम्बेडेड यानी नत्थी पत्रकारिता की मिसाल रच रहे हैं। वे उन दिनों की याद दिला रहे हैं जब इराक युद्ध को कवर करने गए तमाम पत्रकारों ने वहाँ खतरनाक रासायनिक हथियारों की रिपोर्ट लिखी थीं जबकि कोई प्रमाण नहीं था। उन्होंने सच्चाई की पड़ताल करने की जगह अमेरिकी जरूरतों के लिहाज से रिपोर्टिंग की। नतीजा ये हुआ कि मेसोपोटामिया की सभ्यता रचने वाला इराक बरबाद हो गया। आज पश्चिम के वे तमाम अखबार औऱ पत्रकार माफी माँग रहे हैं लेकिन सभ्यता के विनाश में उनकी भूमिका इतिहास में दर्ज हो गई है।

     


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