‘यूपी में चुनाव-कर्नाटक में तनाव’ शिवमोगा के हालात पर स्पेशल रिपोर्ट

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
ख़बर Published On :


रविवार, 20 फरवरी 2022 की शाम को कर्नाटक के शिवमोगा में एक 26 वर्षीय बजरंग दल के कार्यकर्ता की चाकू से गोदकर हत्या कर दी गई और इसके बाद वो ही हुआ, जो उम्मीद बजरंग दल, भाजपा और साथी संगठनो का प्रिय मॉडल रहा है। इलाके में तनाव का माहौल बन गया और हालात बिगड़ने लगे। माहौल वही बनाया गया, जो न केवल ऐसे तमाम मामलों में बनाया जाता रहा है बल्कि जो कर्नाटक में हिजाब के बहाने पिछले 15 दिन से अधिक से बना हुआ है। हत्या के इस मामले को सांप्रदायिक रंग दे दिया गया। बिना पुलिस की जांच, किसी आधिकारिक बयान और सरकारी स्टेटमेंट के इस मामले को हिजाब मामले से जोड़कर, इलाके के अल्पसंख्यक समुदाय के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने की क़ोशिश होने लगी। सोशल मीडिया पर भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं, आईटी सेल और नफ़रत से भरे कई और लोगों ने इस आग को शिमोगा से यूपी पहुंचाने की कोशिश शुरू कर दी। सत्य से परे और नफ़रत से पगे ट्वीट और व्हॉट्सएप संदेश कन्नड़ से हिंदी तक अनुवाद हो कर सोशल मीडिया और मोबाइल संदेशों तक भरने लगे।

जो कुछ हमारी पड़ताल में मिला..

मृतक का आपराधिक-सांप्रदायिक इतिहास और रंजिश

मीडिया विजिल ने जब शिवमोगा ज़िले में मृतक हर्षा के बारे में पड़ताल शुरू की तो शुरुआती बातों से धीरे-धीरे हमको हर्षा के बजरंग दल और उग्र हिंदुत्व के कार्यकर्ता के तौर पर इतिहास मिला। हर्षा के ख़िलाफ़ 5-6 मामले, पिछले 5 साल में ही ऐसे पता चले, जो कि मीडिया में भी सामने आए। हमको स्थानीय लोगों ने और पत्रकारों ने बताया कि हर्षा, शिवमोगा में लगातार स्थिति को पिछले कुछ सालों से नाज़ुक बनाने में लगे कुछ दक्षिणपंथी गुटों से जुड़ा रहा था। 2020 में ही शिवमोगा के मुस्लिम व्यापारियों पर भीड़ के हमले की साज़िश  में भी हर्षा के ख़िलाफ़ केस दर्ज हुआ था। इसके अलावा हर्षा के ख़िलाफ़ 2017 में हमले का मामला दर्ज है। इन मामलों में वे मामले भी हैं, जो जानलेवा हमले के हैं। साथ ही सांप्रदायिक दंगे फैलाने की कोशिश करने वाले आरोपियों में भी हर्षा का नाम है। 

मृतक हर्षा की तस्वीर

शिवमोगा, कर्नाटक के उन ज़िलों में से है, जहां पिछले 5-6 साल में लगातार हिंदुत्ववादी संगठनों ने मुस्लिमों समेत बाकी अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ लगातार हालात को तनावपूर्ण और हिंसक बनाने की कोशिश की है। हर्षा, इस पूरे खेल का एक हिस्सा भर ही था। डोडापेट थाने में हर्षा की एक फेसबुक पोस्ट को लेकर भी, केस दर्ज हुआ था – जिस पोस्ट को लेकर लगातार ये माहौल बनाया जा रहा है कि उसकी वजह से ही हर्षा की हत्या हुई। हमने सोमवार की दोपहर, शिवमोगा के एसपी को संदेश भेज कर, उनसे इस मामले पर जानकारी चाही पर उनका कोई जवाब, हमको ये ख़बर लिखने तक प्राप्त नहीं हुआ था।

लेकिन स्थानीय पत्रकारों ने इस बात की पुष्टि की, कि पुलिस के सूत्रों ने उनको ऑफ द रेकॉर्ड ये जानकारी दी है कि इस हत्या का संबंध हर्षा की फेसबुक पोस्ट से नहीं बल्कि उसके अतीत से था। मामले में 2 लोगों की गिरफ्तारी हुई, जबकि कुछ और लोगों की शिनाख़्त की गई है और पुलिस उनकी भी गिरफ्तारी कर सकती है और पूछताछ के लिए भी कुछ लोगों को हिरासत में लिए जाने की संभावना है। हमको पुलिस के सूत्रों से ऑफ द रेकॉर्ड ये भी पता चला कि इस मामले को लगातार हालिया हिजाब विवाद से जोड़ कर, सांप्रदायिक तनाव बनाने की कोशिश है लेकिन पुलिस ऐसा न होने देने की कोशिश में है। हमारे इस सवाल पर कि ये कोशिश कौन कर रहा है, हमारे सूत्र की ओर से चुप्पी साध ली गई।

कर्नाटक के गृह मंत्री – अरागा ज्ञानेंद्र

इस बारे में हमारे सूत्र की पुष्टि कर्नाटक के गृहमंत्री अरागा ज्ञानेंद्र ने अपने आधिकारिक बयान में कर दी, जब उन्होंने कहा, “इस हत्या का हिजाब मामले से कुछ लेनादेना नहीं है और इस हत्या के कारण बिल्कुल अलग हैं। शिवमोगा एक संवेदनशील शहर है। यह हत्या की वारदात, मुख्य सड़क पर हुई है और पुलिस हाई अलर्ट पर है। हमें सुराग मिले हैं , इस मामले में 4-5 लोग शामिल हैं और जल्दी ही हम आरोपियों को गिरफ़्तार कर लेंगे।”

कैसे शिवमोगा में गुजरात-दिल्ली का दंगा मॉडल दिखा

भड़काऊ बयान – दिल्ली दंगों की तरह

शिवमोगा में हत्या की इस वारदात के बाद, पुलिस के हरकत में आने से पहले ही हिंदुत्ववादी संगठन हरकत में आ चुके थे। ये सबकुछ बिल्कुल दिल्ली के 2020 के दंगों और गुजरात के 2002 के मामले से काफीकुछ मिलता-जुलता था। दिल्ली की ही तरह, सबसे पहले भाजपा समेत तमाम हिंदुत्ववादी संगठनों के नेताओं ने भड़काऊ बयान देने शुरू कर दिए और सोशल मीडिया पर ट्वीट्स की भरमार हो गई। इसमें भारतीय जनता पार्टी के आला नेता और केंद्रीय मंत्री तक शामिल थे।

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह का ट्वीट

इसके साथ ही सोशल मीडिया पर Harsha, #JusticeforHarsha और #SaveShimogaHindus ट्रेंड करने लगा। व्हॉट्सएप पर भड़काऊ मैसेज और तस्वीरें, कर्नाटक ही नहीं, हिंदी पट्टी में भी तैरने लगी।

दिल्ली दंगों की ही तरह स्थानीय नेताओं के बयान

भड़काऊ बयान देते रहने के आदी हैं केएस ईश्वरप्पा

इसके बाद आया कर्नाटक के मंत्री और शिवमोगा से ही आने वाले केएस ईश्वरप्पा का बयान आया, जो अगर किसी आम नागरिक ने दिया होता तो शायद उसकी कुछ ही घंटों में गिरफ्तारी हो जाती। ईश्वरप्पा जो कि कर्नाटक सरकार में ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री हैं, उन्होंने कहा, “मैं बजरंग दल कार्यकर्ता की हत्या से काफी विचलित हूं। उनकी हत्या ‘मुसलमान गुंडों’ ने की है। मैं परिस्थिति का विश्लेषण करने के लिए शिवमोगा जा रहा हूं। हम गुंडागर्दी को बर्दाश्त नहीं करेंगे।” 

मौके पर स्थानीय नेता का जाना और माहौल बिगड़ना – दिल्ली दंगे की तरह

शाम को जब हमने पता किया कि केएस ईश्वरप्पा कहां है, तो हमको जानकारी मिली कि वे अंतिम संस्कार के स्थान पर हैं। यानी कि एक भड़काऊ बयान देने के बाद, वे शिवमोगा आए और उनको हर्षा के अंतिम संस्कार और अंतिम यात्रा की अगुआई करने की इजाज़त ऐसी संवेदनशील स्थिति में पुलिस ने दी।

शिवामोगा से 50 किलोमीटर से भी कम दूर स्थित होन्नाली से भाजपा विधायक एम पी रेणुकाचार्य ने मुआवजे का एलान करते हुए कहा, “हर्षा के परिजनों के लिए 2 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाएगा। हर्षा का जाना मेरे अपने बेटे को खोने जैसा है। मैं उनके परिवार के साथ खड़ा हूं, उन्हें 2 लाख रुपये दे रहा हूं।”

स्थानीय नहीं, बाहरी लोगों की उन्मादी भीड़ – दिल्ली 2020 की तरह

हमने जब शिवमोगा के कुछ स्थानीय लोगों से बात की, तो उनका पहला डर ये था कि उनकी पहचान सामने नहीं आनी चाहिए। उनमें से कुछ पहचान छिपाए जाने का भरोसा होने के बाद हमसे बात करने को तैयार हुए और हमको एक इनपुट जो और मिला, वो भी दिल्ली के 2020 के दंगों से मिलता-जुलता था। स्थानीय निवासियों ने कहा कि जिन इलाकों में आगज़नी और तोड़फोड़ की घटना हुई, वहां जो भीड़ उन्होंने देखी वह स्थानीय लोगों की नहीं थी। हमसे एक व्यक्ति ने बिल्कुल आत्मविश्वास से कहा, “जो भीड़ हमने देखी, वो हमारे इलाके की नहीं थी। हमने कभी उनको नहीं देखा था…हम लगभग सबको जानते हैं।”

हत्या के मामले को हिंदू-मुस्लिम मामले में बदलना – गुजरात की तरह

गुजरात में ये 2002 के पहले भी हुआ है और 2002 के बाद भी…हत्या के एक मामले को घंटे भर के भीतर ही, हिंदू-मुस्लिम विवाद में बदल दिया गया। इस बारे में बिना किसी सुबूत या बिना किसी तथ्य के इस बारे में सीधे-सीधे एक समुदाय को दोषी घोषित कर के, न केवल अफ़वाहें फैलाई गई बल्कि सड़क पर भी वबाल शुरू कर दिया गया।

अंतिम यात्रा को जुलूस में बदलना और हिंसा का माहौल भड़काना – अहमदाबाद 2002 – गुजरात की तरह

गुजरात में गोधरा कांड के बाद, मृतकों के शव को अंतिम संस्कार के लिए जैसे जुलूस की शक़्ल में सड़क पर निकाला गया था और इसके कारण पूरे शहर में सांप्रदायिक उन्माद फैल गया था। लगभग वैसी ही कोशिश शिवमोगा में भी की गई। हर्षा के शव को किसी शवयात्रा की तरह नहीं, बल्कि भगवे झंडों से भरे, एक भड़काऊ और माहौल बिगाड़ने वाले जुलूस की तरह निकाला गया – जिसमें 5000 के आसपास लोगों के शामिल होने की बात कही जा रही है।। नतीजा पूरी तरह तो वैसा नहीं हुआ, जिसमें स्थानीय लोगों की समझदारी भी शामिल है लेकिन हिंसा की घटनाएं हुई। पुलिस ने आख़िर शवयात्रा को जुलूस में बदलने की इजाज़त क्यों दी, ये समझाना पुलिस का काम है।

अंतिम यात्रा की अगुआई सांप्रदायिक बयान देने के ठीक बाद, राज्य सरकार के मंत्री ने की – गुजरात 2002 की तरह

तीस्ता सेतलवाड़, अपनी क़िताब संविधान की सिपाही के संस्मरणों में अहमदाबाद 2002 को दर्ज करते हुए लिखती हैं, “गोधरा अग्निकांड के कुछ पीड़ित मृतकों के शवों को वाहनों के साथ एक जुलूस में अहमदाबाद लाया गया। जले हुए, क्षत-विक्षत शवों को जुलूस में अहमदाबाद लाने का फैसला सबसे आला राजनैतिक नेतृत्व द्वारा किया गया था। जली हुई अनजान लाशों को दो अलग-अलग अंतिम यात्राओं के जुलूस में निकाला गया, जिससे आरएसएस के स्त्री-पुरुषों की उत्तेजित भीड़ आक्रोशित और प्रेरित हुई, जिसका नतीजा अहमदाबाद में अगले दिन – 28 फरवरी को मचे हाहाकार के रूप में दिखाई दिया। आचार्य गिरिराज किशोर को इन जुलूसों में शामिल होने के लिए विशेष पुलिस सुरक्षा दी गई थी। सरकार के पास गिरिराज किशोर के लिए पुलिसकर्मी थे, लेकिन दंगा पीड़ितों के लिए नहीं।”

इसी तरह शिवमोगा में भी न केवल पुलिस ने हर्षा की शवयात्रा को पहले से बने हुए तनावपूर्ण माहौल में एक धार्मिक उन्मादी जुलूस की तरह निकलने दिया बल्कि पहले ही एक भड़काऊ सांप्रदायिक बयान दे चुके के एस ईश्वरप्पा को उस भीड़ की अगुआई करने दी। इसके बाद इसी भीड़ ने मुस्लिम इलाकों से गुज़रते हुए, पत्थरबाज़ी की और उन्मादी नारे लगाए। हालांकि मुस्लिम समुदाय की ओर से भी पत्थरबाज़ी की ख़बरें मिली हैं पर किसी भी समझदार शख़्स को समझ मे आ सकता है कि स्थिति कैसे बनने दी गई।

मुस्लिम इलाकों में पथराव, आगज़नी और तोड़फोड़ – माहौल बिगाड़ने की खुली साज़िश

हमारी टीम के पास दिल्ली में सुबह से ही शिवमोगा से अपुष्ट ख़बरें और वीडियो आ रहे थे, जिसमें भीड़ तोड़फोड़, पथराव और आगज़नी करती दिखाई दे रही थी। इन दृश्यों में पुलिस भी थी। हमने इनकी पुष्टि के लिए शिवमोगा और आसपास के कई पत्रकारों से बात की। इन पत्रकारों ने इनमें से कुछ वीडियोज़ और तस्वीरों की पुष्टि की, जिसमें बाक़ायदा मुस्लिम आबादी वाले इलाकों में घरों, दुकानों और वाहनों पर हमले साफ़ दिखाई दे रहे हैं। हमको दो इलाकों के नाम ख़ासतौर पर बताए गए, जो कि आज़ाद नगर और इमामबाड़ा थे। हम पुष्टि के बाद ही इन तस्वीरों और वीडियोज़ को प्रकाशित करना चाहते थे, जिनकी पुष्टि बाक़ायदा इलाके के वरिष्ठ पत्रकारों ने की, जो कि लगातार इस पूरी घटना को कवर कर रहे हैं।

शिवमोगा से हमें स्थानीय पत्रकारों से मिली तस्वीरें

इसके अलावा इस हिंसा में दो पत्रकारों को भी चोट आने की ख़बर है। जिनसे हम संपर्क करने की कोशिश में हैं।

स्थिति इतनी मुश्किल की शिवमोगा का पुलिस बल कम पड़ा

स्थिति की गंभीरता को समझने के लिए बहुत ज़्यादा विस्तार में और गहनता से जाने की आवश्यकता भी नहीं है, अगर आप सिर्फ शिवमोगा पुलिस की उस मांग को जान लें – जो उसने अपने महकमे और राज्य सरकार से की। सोमवार दोपहर होते-होते, शिवमोगा पुलिस समझ चुकी थी कि इस स्थिति से निपटना उसके अकेले के बस में नहीं है। स्थिति हाथ से निकल रही है और तनाव बढ़ता जा रहा है। शिवमोगा पुलिस ने बेंगलुरू से 500 अतिरिक्त पुलिस बल/विशेष बल की मांग की, जो कि आपातकालीन दंगा नियंत्रण उपकरणों, हथियारों और वाहनों से लैस हों। इससे साफ है कि स्थिति क्या बना दी गई थी। शिवमोगा पुलिस से बात करने पर, अतिरिक्त बलों की मांग की पुष्टि तो पुलिस के सूत्र करने को तैयार थे लेकिन स्थिति बिगड़ती जा रही है – इस पर कोई बयान ऑफ द रेकॉर्ड भी कोई देने को तैयार नहीं था। पुलिस के सूत्रों और स्थानीय पत्रकारों ने ऑफ द रेकॉर्ड ही रहने की शर्त पर हमसे कहा, ‘हां, लगभग दिल्ली जैसा माहौल हो जाएगा, अगर कर्फ्यू न लगाया गया तो…’ 

शिवमोगा से प्राप्त तस्वीरें

अंत में…शिवमोगा में फिलहाल कर्फ्यू है..

रात में 9.25 पर हमको शिवमोगा के एक स्थानीय पत्रकार का संदेश मिला, जिसमें लिखा था – ‘Curfew imposed officially in Shivamogga city limits till Wednesday morning: Shivamogga SP Lakshmiprasad’ यानी कि शिवमोगा के एसपी के मुताबिक शिवमोगा शहर की सीमाओं में आधिकारिक तौर पर बुधवार सुबह तक कर्फ्यू लगा दिया गया है।

क्या यूपी के चुनाव का कर्नाटक में तनाव है?

इस तथ्य के लिए हालांकि किसी पुष्टि की ख़ास ज़रूरत नहीं है लेकिन भारतीय जनता पार्टी के आला नेताओं और तमाम और कार्यकर्ता-नेताओं ने इसकी पुष्टि अपने बयानों से ही कर दी है। राजनीति में हर बात साबित करने के लिए, किसी आंकड़े या तथ्य की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन कर्नाटक में हिजाब को लेकर उठे विवाद के साथ ही ये साफ होना शुरू हो गया था कि भौगोलिक लोकेशन भले ही कर्नाटक है लेकिन निशाना उत्तर प्रदेश है। ज़ाहिर है कि उत्तर प्रदेश में ऐसा कुछ किसान आंदोलन के बाद, न तो आसान था और न ही अप्रत्याशित तो ऐसे में कर्नाटक के विवाद को यूपी चुनाव में ध्रुवीकरण के लिए भुनाना आसान था। लेकिन आप यूपी विधानसभा चुनाव के पहले चरण के ठीक साथ उठे हिजाब विवाद को देखें तो भले ही भारतीय जनता पार्टी इस से अपने किसी संबंध को नकारती रही हो, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी ने अपने चुनाव प्रचार, भाषणों और बयानों में हिजाब और मुस्लिम महिलाओं को भुनाने की पुरज़ोर क़ोशिश की है।

और यही ट्रेंड अब हर्षा की हत्या के मामले में देखने को मिला है। इस मामले पर सीधे किसी पीएम मोदी या सीएम योगी का कोई बयान या भाषण तो नहीं आया लेकिन केंद्रीय मंत्रियों से लेकर भाजपा के नेताओं ने इस पर बयानबाज़ी ही नहीं, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश भी शुरू कर दी। हालांकि सोमवार शाम तक कर्नाटक के गृहमंत्री का बयान आ गया था कि इस हत्या का संबंध हिजाब मामले से नहीं है लेकिन यूपी भाजपा के ही तमाम नेता यहां तक कि उत्तर प्रदेश भाजपा के प्रवक्ता इस मामले को हिंदू बनाम मुस्लिम बनाने में खुलेआम जुट गए थे। आपकी आसानी के लिए हम यूपी भाजपा के दो प्रवक्ताओं के ट्वीट साझा कर दे रहे हैं। इनसे ज़ाहिर है कि भाजपा, इस मामले को यूपी में वोटों के ध्रुवीकरण के लिए भुनाने की कोशिश में लग चुकी है।

यूपी भाजपा के प्रवक्ता प्रशांत उमराव की ट्वीट, जो लगभग आपराधिक रूप से सांप्रदायिक है

 

यूपी भाजपा के ही एक और प्रवक्ता की भड़काऊ ट्वीट

रिपोर्टिंग अभी जारी है…

हमारी शिवमोगा मामले की तफ़्तीश अभी ख़त्म नहीं हुई है। ये रिपोर्ट अभी तक प्राप्त इनपुट्स और तथ्यों के आधार पर लिखी गई है। लेकिन हम लगातार इस मामले पर तथ्यों की जांच करते रहेंगे और एक पुख़्ता रिपोर्ट आपके सामने रखने की कोशिश करेंगे। हम पत्रकारों, सूत्रों और स्थानीय लोगों से मिले सारे इनपुट्स की अपनी ओर से पुष्टि नहीं कर सकते हैं लेकिन ज़्यादातर तथ्यों, वीडियोज़ और तस्वीरों को हमने यथासंभव क्रॉस वेरिफाई किया है।

 

आभार – कर्नाटक के शिमोगा ज़िले के पत्रकारों, ख़ासकर कल्पा मीडिया के एडिटर इन चीफ़ अनिरुद्ध वशिष्ठ और उनकी टीम को वीडियो-तस्वीरों समेत कुछ अहम इनपुट्स के सत्यापन के लिए। बेंगलुरू के पत्रकार और एक्टिविस्ट साथियों का। पुलिस महकमे के ख़बरें और इनपुट्स साझा करने वाले सूत्रों और स्थानीय नागरिकों का – जिन्होंने हमको अहम जानकारियां दी। 

 

मीडिया विजिल के लिए ये रिपोर्ट, मयंक ने की है। मयंक फिलहाल मीडिया विजिल के एक्सीक्यूटिव एडिटर हैं।


Related