लव में ‘जेहाद’ खोजने वालों को झटका, गुजरात HC ने धर्मांतरण क़ानून की कई धाराओं पर रोक लगाई

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गुजरात हाई कोर्ट ने लव में जेहाद खोजने वालों के इरादे पर पानी फेर दिया है। उसने राज्य के धर्मांतरण विरोधी नए कानून की अंतरधार्मिक विवाह संबंधी कुछ धाराओं के क्रियान्वयन पर गुरुवार को रोक लगा दी। मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जस्टिस बिरेन वैष्णव की खंडपीठ ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए इस क़ानून की कुछ धाराओं को असंवैधानिक बताते हुए उन पर रोक लगा दी है।

बीजेपी ने लव जेहाद को बड़ा मुद्दा बनाया हुआ है। उसकी राज्य सरकारें इसके नाम पर अंतर्धार्मिक विवाहों को मुश्किल बनाने के लिए तमाम क़ानूनी प्रावधान कर रही हैं। 15 जून को गुजरात में नया धर्मांतरण विरोधी क़ानून अस्तित्व में आया था। इसमें दस साल तक की जेल की सजा और विवाह में धोखाधड़ी या जबरन धर्म परिवर्तन के लिए अधिकतम 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है। इसे धार्मिक स्वोतंत्रता ऐक्ट, 2003 में संशोधन करके लाया गया था। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की गुजरात शाखा ने पिछले महीने दायर एक याचिका में कहा था कि कानून की कुछ संशोधित धाराएं असंवैधानिक हैं।

मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ ने गुरुवार को कहा, ‘‘हमारी यह राय है कि आगे की सुनवाई लंबित रहने तक धारा तीन, चार, चार ए से लेकर धारा चार सी, पांच, छह एवं छह ए को तब लागू नहीं किया जाएगा, यदि एक धर्म का व्यक्ति किसी दूसरे धर्म व्यक्ति के साथ बल प्रयोग किए बिना, कोई प्रलोभन दिए बिना या कपटपूर्ण साधनों का इस्तेमाल किए बिना विवाह करता है और ऐसे विवाहों को गैरकानूनी धर्मांतरण के उद्देश्य से किए गए विवाह करार नहीं दिया जा सकता।’’

उन्होंने कहा, ‘अंतरधार्मिक विवाह करने वाले पक्षों को अनावश्यक परेशानी से बचाने के लिए यह अंतरिम आदेश जारी किया गया है।’

गुजरात के नये क़ानून के अनुसार “बेहतर लाइफ स्टादइल, दैवीय आशीर्वाद” के बहाने धर्म परिवर्तन के लिए उकसाना दंडनीय अपराध माना गया है। इस विधेयक में ‘धर्मांतरित’ व्यक्ति के माता-पिता, भाई, बहन या उसके रक्त संबंधियों, शादी या गोद लेने के जरिए बने रिश्तेदारों को इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार दिया गया है.

हाल ही में गुजरात धर्म स्‍वतंत्रता संशोधन (लव जिहाद) कानून के तहत दर्ज हुए एक मुकदमे में नया मोड़ तब आया जब शिकायतकर्ता महिला ने खुद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर बताया कि उस पर विवाह व धर्म परिवर्तन का कोई दबाव नहीं डाला गया है। इसलिए उसकी ओर से 17 जून, 2021 को दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया जाए।

 

 


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