सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी: बिना पुख्ता सबूत के समन भेजने की शक्ति का इस्तेमाल न करे अदालतें!

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सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि अगर कोई व्यक्ति आरोपी नहीं है, लेकिन ऐसा लगता है कि उसने कोई अपराध किया है, तो ऐसे मामलों में अदालतें लापरवाही से अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत समन जारी करने की शक्ति का प्रयोग तभी किया जाना चाहिए जब किसी व्यक्ति के खिलाफ ठोस और पुख्ता सबूत हों।

धारा 319 CRPC के तहत शक्ति का इस्तेमाल लापरवाह तरीके से न करे..

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि यह एक और मामला है जिसमें सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति का प्रयोग करते हुए एक नए व्यक्ति को समन जारी कर इस अदालत में लाया गया है। पीठ ने दोहराया कि धारा 319 सीआरपीसी के तहत शक्ति का इस्तेमाल आकस्मिक और लापरवाह तरीके से नहीं किया जा सकता है।

यह है मामला..

सुप्रीम कोर्ट ने यह सभी टिप्पणी रमेश चंद्र श्रीवास्तव की याचिका पर फैसला सुनाते हुए की। दरअसल, श्रीवास्तव के ड्राइवर का शव 2015 में मिला था। मृतक ड्राइवर की पत्नी ने आरोप लगाते हुए अदालत में बयान दिया कि श्रीवास्तव को आरोपी नहीं बनाया गया है। उसने ही अपने दोस्तों की मदद से उसके पति की हत्या कर दी।

यह मामला निचली अदालत में चल रहा था तब मृतक की पत्नी के बयान के आधार पर श्रीवास्तव को आरोपी के रूप में तलब किया था। जिसके बाद ही श्रीवास्तव ने निचली अदालत के आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने श्रीवास्तव की याचिका रद्द कर दी। यहां से याचिका खारिज होने के बाद उसने उच्चतम न्यायालय की ओर रुख किया। शीर्ष अदालत ने श्रीवास्तव की अपील को स्वीकार कर लिया और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश और निचली अदालत के उन्हें आरोपी के रूप में तलब करने के आदेश को खारिज कर दिया।

अपीलकर्ता ने यह तर्क दिया..

इस मामले के तहत निचली अदालत ने हत्या मामले में एक गवाह के बयान का संज्ञान लेते हुए सीआरपीसी की धारा 319 के तहत दायर आवेदन को स्वीकार करते हुए मृतक के मालिक को तलब किया था। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा था। लेकिन शीर्ष अदालत के समक्ष याचिका दायर कर अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि अदालतों ने केवल बयान के आधार पर सीआरपीसी की धारा 319 के तहत शक्ति को लागू करने में गलती की है। जिसके बाद मानले को समझते हुए हाई कोर्ट ने दोनो अदालतों के फैसलों को रद्द कर दिया।

बता दें, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 319 के तहत, जब, किसी अपराध की जांच या मुकदमे के दौरान, सबूतों से यह प्रतीत होता है कि मामले में जिस व्यक्ति को आरोपी नहीं बनाया है उसने अपराध किया है। तब अदालत ऐसे व्यक्ति के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है।

अगली सुनवाई पर सभी पक्ष मौजूद रहें..

अब इस मामले की अगली सुनवाई सत्र न्यायाधीश 30 सितंबर 2021 को करेंगे। पीठ ने कहा कि उस दिन सभी पक्ष मौजूद रहेंगे. इसके बाद, अदालत हरदीप सिंह मामले (2014 के फैसले) में इस अदालत द्वारा निर्धारित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए उचित आदेश पारित करेगी। पीठ ने अपील की अनुमति दी और निचली अदालत को उपरोक्त सिद्धांतों के आलोक में मामले पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश दिया।


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