पत्रकारिता का झंडा बुलंद: सुप्रीम कोर्ट से विनोद दुआ के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला ख़ारिज!


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, “प्रत्येक पत्रकार केदार नाथ सिंह मामले (जो आईपीसी की धारा 124 ए के तहत देशद्रोह के अपराध के दायरे को परिभाषित करता है) के तहत सुरक्षा पाने का हकदार है।”


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
ख़बर Published On :


सुप्रीम कोर्ट ने आज देश के नामी पत्रकारा विनोद दुआ के ख़िलाफ़ दर्ज देशद्रोह और अन्य अपराधों से जुड़ी एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया। विनोद दुआ के एक यूट्यूब शो में सरकार की आलोचना से जुड़ी आलोचना को लेकर हिमाचल प्रदेश तथ्य अन्य जगहों पर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज हुआ था। जस्टिस यू.यू.लरित और जस्टिस विनीत सरन ने 6 अक्टूबर को हुई अंतिम सुनवाई के बाद फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।

पीठ ने कहा कि, “प्रत्येक पत्रकार केदार नाथ सिंह मामले (जो आईपीसी की धारा 124 ए के तहत देशद्रोह के अपराध के दायरे को परिभाषित करता है) के तहत सुरक्षा पाने का हकदार है।”

विनोद दुआ के खिलाफ भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत ‘देशद्रोह, सार्वजनिक उपद्रव, मानहानि सामग्री की छपाई और सार्वजनिक शरारत के अपराधों’ के लिए भाजपा नेता श्याम ने शिमला जिले के कुमारसैन पुलिस स्टेशन में 6 मई को एफआईआर दर्ज कराई गई थी। श्याम ने आरोप लगाया था कि दुआ ने अपने यूट्यूब शो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर वोट पाने की खातिर ‘मौतों और आतंकी हमलों’ का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था। इसी के साथ बीजेपी के दिल्ली प्रवक्ता नवीन कुमार ने भी विनोद दुआ के खिलाफ़ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कराया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 14 जून को सुनवाई करते हुए अगले आदेश तक विनोद दुआ को गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान कर दिया था। हालांकि, कोर्ट ने दुआ के खिलाफ चल रही जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया

विनोद दुआ इन दिनों काफ़ी बीमार हैं। वे और उनकी पत्नी कोविड से जुड़ी समस्याओं को लेकर अस्पताल में हैं।

विनोद दुआ ने प्रेस की स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार बताते हुए याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि प्रेस की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है।”

विनोद दुआ ने अपने ख़िलाफ़ दर्ज एफआईआर रद्द करने की मांग कअलावा  उत्पीड़न के लिए दंडात्मक हर्जाना भी मांगा है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह निर्देश देने की मांग की है कि मीडिया के ख़िलाफ़ प्राथमिकी तब तक दर्ज न हो जब तक कि प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा गठित समिति द्वारा मंजूरी नहीं दी जाती। इस समिति में प्रमुख रूप से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित न्यायाधीश, विपक्ष के नेता और राज्य के गृह मंत्री शामिल होने चाहिए।

विनोद दुआ के पक्ष में आया यह फ़ैसला ऐतिहासिक महत्व का है। आज कल सरकार की आलोचना करने वाले तमाम पत्रकार निशाने पर हैं और गाहे-बगाहे सरकार समर्थक उनके ख़िलाफ़ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करा देते हैं। उम्मीद है कि अब इस प्रवृत्ति पर लगाम लगेगी।


Related