विधायकों के इस्तीफ़े बिना जाँच किए स्वीकार कर सकते हैं स्पीकर: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों के इस्तीफे को लेकर एक व्यवस्था देते हुए फैसला सुनाया है कि विधानसभा अध्यक्ष के पास विधायकों के इस्तीफ़े स्वीकार करने की शक्ति है और वह बिना जांच के इन्हें स्वीकार कर सकते हैं।

यह फैसला न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, एस. रवींद्र भट और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने भाजपा के तीन विधायकों की विशेष अनुमति याचिका पर दिया। अपने फैसले में पीठ ने कहा कि अगर विधायक कह रहे हैं कि उन्होंने दबाव में या डर से इस्तीफा दिया तो क्या उन्होंने इसकी शिकायत किसी से की? इसपर विधायकों के वकील ने कहा कि यह डर ही था कि उन्हें इस्तीफा पत्र लिखने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करनी पड़ी।

पूरा मामला..

दरअसल, भाजपा विधायक टी. होइकिप, सेमुल ज़ेंडई और एस. सुभाष चंद्र सिंह ने 17 जून 2020 को मणिपुर विधान सभा अध्यक्ष को अपने त्याग पत्र (resignation letter) भेजा थे। उन्होंने खुद इस्तीफा अपने हाथ से लिखा था और इसके बाद उन्होंने प्रेस वार्ता कर इस जानकारी को सार्वजनिक किया। विधायको के इस प्रक्रिया के बाद उसी दिन शाम को स्पीकर ने उनके इस्तीफे स्वीकार कर लिए और अगले दिन 18 जून को शासकीय गजट (government gazette) में इस संबंध में एक अधिसूचना (notification) भी जारी की गई।

इंफाल हाई कोर्ट ने भी याचिका की थी खारिज..

विधायकों ने जारी की गई नोटिफिकेशन को मणिपुर हाई कोर्ट में चुनौती दी और कहा कि अध्यक्ष ने इस बात की जांच नहीं की कि इस्तीफे क्यों दिए गए? इसे देने के पीछे क्या विधायकों पर कोई दबाव या धमकी दी? लेकिन विधायकों की याचिका को इंफाल हाई कोर्ट ने 13 जुलाई 2021 को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने कहा कि यदि इस्तीफे वास्तविक और स्वैच्छिक हैं, तो उन्हें स्वीकार करने में स्पीकर की ओर से कोई गलती नहीं है।

दबाव में या डर से इस्तीफा दिया तो शिकायत क्यों नही की…

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में विधायकों की ओर से विशेष अनुमति याचिका दाखिल की है। जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सवाल किया की अगर विधायक कह रहे हैं कि उन्होंने दबाव में या डर से इस्तीफा दिया तो क्या उन्होंने इसकी शिकायत किसी से की? पीठ के इसी सवाल पर विधायकों के वकील ने कहा कि यह डर ही था कि उन्हें इस्तीफा पत्र लिखने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस भी करनी पड़ी।

यह बताते हुए कोर्ट ने याचिका खारिज की..

शीर्ष अदालत मामले को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब कोई शिकायत नहीं की गई तो इसे दबाव में कैसे माना जा सकता है? कोर्ट ने आगे कहा की प्रक्रिया और कार्य के नियमन के नियम 315 (3) और संविधान के अनुच्छेद 190 (3) (B) के तहत, स्पीकर यह जांच कर सकते हैं कि क्या विधायकों ने वास्तव में और स्वेच्छा से अपना इस्तीफा जमा किया है। लेकिन साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा, लेकिन यह जांच कैसे होगी? किस प्रकार से होगी? यह पूरी तरह से विधानसभा अध्यक्ष के विवेक (Discretion) पर छोड़ दिया गया है। इसी के साथ कोर्ट ने विधायकों की याचिका खारिज कर दी।