झारखंड: भूख से मर गयी 5 साल की निमनी, पर सरकार जाँचेगी शुगर लेवल!

विशद कुमार विशद कुमार
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सत्ता बदलती है तो जाहिर है उसका चरित्र भी बदलता है, राजनीतिक चरित्र भी बदलता है, लेकिन नौकरशाही चरित्र यथावत रहता है। यही वजह है कि सत्ता परिवर्तन की जन-अपेक्षाएं धरी की धरी रह जाती हैं। यह इस बात का प्रमाण है कि सत्ता परिवर्तन से नहीं व्यवस्था परिवर्तन से जन अपेक्षाएं पूरी हो सकेंगी। झारखंड में सत्ता बदलाव तो हुआ, मगर नौकरशाही चरित्र में बदलाव नहीं दिख रहा है। यही वजह है कि हेमंत सरकार के पांच महीने के भीतर आठ लोगों की मौत भूख से हो गई है। ताजा मामला लातेहार जिला के मनिका प्रखण्ड अन्तर्गत डोंकी पंचायत के हेसातु गांव का है जहां एक 5 वर्षीया बच्ची निमनी कुमारी की भूख से मौत हो गई है।

हेमंत सरकार में पहली मौत झारखंड के गढ़वा जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर और भण्डरिया प्रखण्ड मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर उत्तर पूर्व के घने जंगलों के बीच बसे 700 की अबादी वाले एक आदिवासी बहुल कुरून नामक एक गांव में हुई। इसी गांव की 70 वर्षीय सोमारिया देवी की भूख से मौत पिछले 02 अप्रैल 2020 की शाम हो गई। सोमरिया देवी अपने 75 वर्षीय पति लच्छू लोहरा के साथ रहती थी। उसकी कोई संतान नहीं थी। मृत्यु के पूर्व यह दम्पति करीब 4 दिनों से अनाज के अभाव में कुछ खाया नहीं था। इसके पहले भी ये दोनों बुजुर्ग किसी प्रकार आधा पेट खाकर गुजारा करते थे।

वहीं पिछले 6 मार्च 2020 को झारखंड के बोकारो जिला मुख्यालय से लगभग 50 किलोमीटर दूर कसमार प्रखंड अंतर्गत सिंहपुर पंचायत का करमा शंकरडीह टोला निवासी भूखल घासी की भी भूख से मौत हो गई थी। उसकी मौत के पहले उसके घर में लगातार चार दिनों तक चुल्हा नहीं जला था, मतलब बीमार भूखल घासी को लगातार चार दिनों से खाना नहीं मिला था। इसके अलावा गढ़वा के रामप्रीत भुइयां और शांति देवी, रामगढ़ की उपासी देवी, बोकारो की मीना मरांडी और जगलाल मांझी की भूख से मौतें हुई हैं।

पिछले 16 मई की शाम को लातेहार जिला के मनिका प्रखण्ड अन्तर्गत डोंकी पंचायत के हेसातु गांव की एक 5 वर्षीया बच्ची निमनी कुमारी की भूख से मौत हो गई है। घटना के संबंध में बच्ची की मां कलावती देवी ने बताया कि पिछले करीब पांच दिनों से घर में खाना नहीं बन रहा था और परिवार के सभी सदस्य खाली पेट रहने व सोने को मजबूर थे। उसके पहले वह गांव में इधर-उधर से मांग कर खाना जुटा रही थी, लेकिन बाद में उन लोगों ने भी कुछ देने से इंकार कर दिया।

घटना के दिन सुबह बच्ची थोड़ा असामान्य थी। दोपहर साढे़ बारह बजे के करीब वह 4-5 अन्य बच्चों के साथ नदी में नहाने गई थी। उधर से आने के बाद उसे हल्का बुखार आ रहा था, फिर उसने उल्टी की। बाद में वह ठीक हो गयी थी। लेकिन शाम को अचानक बेहोश हो गई। आस-पास के लोगों ने फरका (मिरगी बीमारी) समझकर घरेलू इलाज करना शुरू किया। जब तक लोग मनिका अस्पताल ले जाने के लिए गाड़ी, मोटर साईकिल की व्यवस्था करते, तब तक बच्ची की जान जा चुकी थी। गांव की सहिया दीदी भी इस बात को स्वीकारती हैं कि इनके घर में अनाज नहीं था।

बताते चलें कि हेसातु गांव में लगभग 110 परिवार बसते हैं, जिसमें खेरवार, साव और कुम्हार जाति सहित 35 भुईयां (दलित) परिवार के लोग रहते हैं जो पूरी तरह भूमिहीन हैं। उन्हीं दलित परिवारों में से एक है जगलाल भुईयां का परिवार। जगलाल भुईयां के 8 बच्चों में 6 बेटीयां और 2 बेटे हैं, जिनमें से निमनी कुमारी (5वर्ष) की मौत भूख से हुई है। जगलाल लातेहार शहर के निकट सुखलकट्ठा में ईंटा पाथने का काम करके अपना व अपने परिवार का किसी तरह पेट पालता था। होली के समय वह जब घर आया था तब केवल 15 किग्रा चावल लेकर आया था। होली के बाद वह सुखलकट्ठा फिर चला गया। लेकिन लॉक डाउन के कारण काम ठप्प रहा। आर्थिक तंगी बनी रही, वह किसी तरह परिवार की भूख मिटाने की कोशिश करता रहा। 17 मई को सुबह वह अपनी बच्ची की मौत की खबर सुनकर घर पहुंचा। लेकिन वह अपनी मृत बच्ची की एक झलक भी नहीं देख पाया। क्योंकि ग्रामीणों ने पहले ही लाश को दफना दिया था।

नरेगा सहायता केन्द्र टीम के सदस्य तथा प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज बताते हैं कि उन्होंने अपने सहयोगी पचाठी सिंह और दिलीप रजक के साथ जगलाल भुईयां के घर के अन्दर का मुआयना किया, जिसमें उन्होंने देखा कि अनाज का एक दाना घर में नहीं था। हां, घटना के बाद आनन-फानन में मनिका के सीओ प्रभारी प्रखंड विकास पदाधिकारी नंद कुमार राम ने रात आठ बजे पीड़ित परिवार को 8 पैकट में 40 किलो चावल और पांच हजार रूपये दे गए थे। वही अनाज घर में मिला।

ज्यां द्रेज बताते हैं कि ”इस बीच, कलावती अपने बच्चों को खिलाने के लिए संघर्ष करती रही थी, ज्यादातर समय घर में भोजन नहीं मिलता था। उसे अपने जन धन योजना खाते में 500 रुपये की एक किस्त और स्कूल व आंगनवाड़ी से थोड़ी मात्रा में भोजन या नकदी के अलावा सरकार से कोई सहायता नहीं मिली थी। वह और उसके बच्चे मुख्य रूप से इधर-उधर से उधार लेकर या मांगकर कभी कभी खा लिया करते थे।” वे बताते हैं कि जब हमने कलावती से पूछा कि पिछले कुछ दिनों में वह और उसके बच्चे क्या खा रहे थे? तो वह बिलखते हुए बोली, “जब हमारे पास खाने के लिए कुछ नहीं है, तो हम क्या खा सकते हैं?”

इस घटना ने सरकारी दावों की पूरी पोल खोल कर रख दी है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून में ऐसे भूमिहीन दलित परिवारों को स्वतः शामिल करने के प्रावधान के बावजूद इन्हें राशन कार्ड से वंचित रखा गया। सिर्फ यही नहीं, गांव में 5 सदस्यों वाले अन्य भूमिहीन परिवार विनोद भुईयां को सफेद कार्ड (202100010836) थमा दिया गया है। पलामू प्रमण्डल में ऐसे हजारों दलित भूमिहीन परिवार हैं जिनको या तो सफेद कार्ड थमा दिया गया है, या जिनके राशन कार्ड हैं ही नहीं। जगलाल भुईयां के रोजगार कार्ड (JH-06-004-006-004/59032) को भी 2 सितंबर 2013 को ही प्रशासन ने अन्य कारण बताते हुए निरस्त कर दिया है। गांव के करीब डेढ़ दर्जन ऐसे परिवार हैं, जिनके रोजगार कार्डों को बिना किसी वैध कारण के 4-5 साल पहले ही निरस्त कर दिया गया है। इतने अभाव वाले गांव हेसातु व नैहरा में किसी तरह का मनरेगा कार्य नहीं चल रहा है।

ग्राम पंचायत मुखिया पार्वती देवी का कहना है कि लॉक डाउन शुरू होने के समय 10 हजार रूपये आपदा राहत में सरकार ने दिया था। वह कब का खत्म हो चुका है। इधर सरकार लगातार लॉक डाउन की अवधि लगातार बढ़ा रही है। लेकिन आपदा राहत में राशि आवंटित करना तो दूर पंचायत के खाते में जो 13वें वित्त की राशि पड़ी है, उसे आपदा राहत मद में उपयोग हेतु 15 दिन पहले प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को मार्गदर्शन हेतु लिखा गया है। उस पर उक्त अधिकारी ने किसी तरह का संज्ञान नहीं लिया। इसके अतिरिक्त हेसातु गांव से 36 ऐसे लोगों की सूची डीलर के सहयोग से प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को सौंपी गई है, जो खाद्यान्न संकट का सामना कर रह हैं। लेकिन इसपर भी सरकारी अधिकारी ने किसी तरह की कार्रवाई नहीं की।”

हेसातु गांव के ठीक बगल में पगार और शैलदाग गांव है, जहां के राशन डीलर को मार्च महीने के खाद्यान्न की कालाबाजारी के आरोप में जिला प्रशासन ने निलंबित कर दिया है। लेकिन जिला प्रशासन उस डीलर पर आज तक न ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955’ के तहत प्राथमिकी दर्ज करा पाया है और न ही राशन से वंचित परिवारों को खाद्यान्न ही वितरण करवा पा रहा है। मनिका के सेमरी गांव के 175 राशन कार्डधारियों की भी ठीक यही स्थिति है।

बता दें कि 18 मई को नरेगा सहायता केन्द्र टीम के ज्यां द्रेज ने अपनी टीम के साथ इस गांव में आकर इन्हीं 36 परिवारों के बीच राशन का वितरण किया है।

झारखण्ड नरेगा वाच के संयोजक जेम्स हेरेंज कहते हैं कि ”भोजन के अधिकार पर काम कर रहे सामाजिक संगठनों की हमेशा से मांग रही है कि प्रत्येक जरूरतमंद परिवार को राशन कार्ड से जोड़ा जाए, खासकर भूमिहीन दलित, आदिवासी परिवारों को। सभी दालित आदिवासी व दलित गांव और टोलों में आंगनबाड़ी केन्द्र खोले जाएं। लोगों को भूखमरी से बचाने के लिए दीदी किचन जैसी व्यवस्था को आंगनबाड़ी तथा विद्यालय के स्तर पर प्रारंभ किया जाए। प्रत्येक गांव एवं टोलों में युद्ध स्तर पर मनरेगा योजनाओं को शुरू किया जाए। सरकार एक मजबूत शिकायत निवारण प्रणाली की व्यवस्था करे।”

निमनी कुमारी की भूख से हुई मौत पर लातेहार के सीएस डा. एस.पी. शर्मा से जब पूछा गया कि बच्ची की भूख से हुई मौत पर उनकी क्या राय है? तो उन्होंने कहा कि ”अभी तय नहीं है कि निमनी कुमारी की मौत भूख से ही हुई है। हमने जांच टीम भेजा है। वे बच्ची के परिवार वालों का ब्लड सूगर की जांच करेंगे, जब ब्लड सूगर लेबल डाउन मिलेगा तो समझा जाएगा कि परिवार को खाना नहीं मिला था, लेकिन जब ब्लड सूगर लेबल सामान्य हुआ तो समझा जाएगा कि उन्हें भोजन की कमी नहीं हुई है।”

डोंकी पंचायत की मुखिया के पति गोपाल ने बताया कि ”17 मई की रात को कुछ सरकारी लोग आए थे जिसमें एकाध नर्स भी थी। उन्होंने निमनी कुमारी के परिवार वालों की कुछ जांच किया है। क्या जांच किया हमें पता नहीं।”

इस बावत कि डा.शर्मा के बयान में कितना दम है, मैंने बोकारो के एक चिकित्सक डा. श्रीकांत से दूरभाष पर बात की तो उन्होंने जो बताया वह डा. एस.पी. शर्मा के बयान को पूरी तरह खारिज कर दिया। उन्होंने बताया कि ”मेडिकल साइंस में अभी तक यह जानने का कोई तरीका नहीं है कि किसी की मौत की भूख वजह से हुई है। इसकी वजह यही कि लंबे समय तक भूख के कारण शरीर के अंदर की प्रतिरोधक क्षमता खत्म होने लगती है। फिर मौत किसी भी कारण से हो सकती है। मानव शरीर में ब्लड शुगर की मात्रा तब तक बनी रहती है जब तक कि शरीर के अंग पूरी तरह काम करना न बंद कर दे। ऐसे में मृतका के परिजनों के खून में ब्लड शुगर की जांच से इसकी पुष्टि तो कभी नहीं हो सकती कि मृतका की मौत की वजह भूख से हुई। चूंकि खाना खा लेने या फिर शर्बत आदि पी लेने से ब्लड शुगर की मात्रा आधे घंटे के अंदर सामान्य हो जाती है।’

वहीं निमनी की भूख से मौत पर उठे सवाल के बीच सूबे के खाद्य आपूर्ति मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने कहा है कि ”बच्ची और उसके परिवार को आहार मिल रहा था। ऐसे में भूख से बच्ची की मौत सही प्रतीत नहीं होती है।”

18 मई को राजधानी के प्रोजेक्ट भवन में मीडिया से बातचीत के क्रम में रामेश्वर उरांव ने कहा कि ”यह भी सही है कि बच्ची और उसका परिवार गरीब था। ऐसे में यह जांच का विषय है कि बच्ची की मौत कैसे हुई?”जब मंत्री से पूछा गया कि लड़की की मां तो कह रही है कि बच्ची की मौत भूख से हुई है, तो उन्होंने कहा कि ”यह तो आप कह रहे है, लेकिन हकीकत यही है कि पीड़ित परिवार के पास आहार था।”

स्वतंत्र पत्रकार रुपेश कुमार सिंह भूख से होने वाली मौतों पर कहते हैं कि “रघुवर दास की सरकार में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत भूख से हुई थी, जिसपर जांच कमिटी भी बैठी थी। हेमंत सोरेन ने सत्ता संभालते ही पिछली सरकार के दौरान भूख से हुई मौतों को भी नकार दिया, जबकि विपक्ष में रहते हुए उस समय इन्होंने भी इसे भूख से हुई मौत बताया था। जाहिर है इससे इस सरकार की गरीब दलित-आदिवासी विरोधी चरित्र स्पष्ट रूप से सामने आया है।”

रूपेश कहते हैं  कि “एक बात स्पष्ट है कि भूख से मरनेवालों में हमेशा गरीब दलित-आदिवासी ही होते हैं, क्योंकि इनके पास खेती की जमीन नहीं है। इनका जीवनयापन मजदूरी के बल पर ही चल रहा है और आज जब लाॅकडाउन में इन्हें काम नहीं मिल रहा है, तो भूख से इनकी मौत स्वाभाविक है।” रुपेश कहते हैं कि ”अगर झारखंड में भूख से हो रही मौत को रोकना है, तो भूमि के असमान वितरण को सुधारना होगा और हर परिवार को खेती के लिए जमीन उपलब्ध कराना होगा।”

कहना ना होगा कि वर्तमान लॉक डाउन ने गरीबों पर चारों तरफ से कोहराम मचा दिया है। जहां एक तरफ देश के हर प्रमुख शहर से अप्रवासी मजदूर अपने बाल बच्चों के साथ जैसे तैसे पैदल अपने घरों की ओर कूच कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ गांवों में जगलाल भुईयां सरीखे गरीब परिवार हैं, जिनके बच्चे भूख से मरने को विवश हैं। इस भूमिहीन परिवार के पास न राशन कार्ड है न रोजगार कार्ड। सिर्फ यही नहीं सरकारों की लोभ लुभावन घोषणाओं के बावजूद पूरे लॉक डाउन अवधि में इस परिवार को किसी तरह का आपदा राहत कोष से कोई खाद्यान्न भी नहीं मिला, न डीलर ने इनको किसी प्रकार का राशन दिया और न ही प्रखण्ड प्रशासन ने इस परिवार के बारे कोई सुधि ली। जबकि प्रखण्ड प्रशासन को डोंकी पंचायत से ऐसे 36 परिवारों की सूची 15 दिन पहले ही सौंपी गई है जो खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं।


विशद कुमार, झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार हैं और लगातार जन-सरोकार के मुद्दों पर मुखरता से ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं।