मोदी सरकार की मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ देशभर में प्रदर्शन

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केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा कोरोना काल में श्रम कानूनों में किये जा रहे बदलाव और श्रमिकों के अधिकारों को निरस्त करने की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाने की मांग को लेकर मजदूर संघठनों ने देशभर में विरोध प्रदर्शन किया। मजदूर संगठनों ने इस विरोध प्रदर्शन के जरिये कई सरकारों द्वारा काम के घंटे 8 से 12 करने का विरोध किया। मजदूर संगठनों ने रेलवे और कोल इंडिया समेत तमाम पीएसयू का निजीकरण बंद करने, सभी सेक्टर में अनुबंध और आउसोर्स में काम कर रहे श्रमिकों और कर्मचारियों की छंटनी को रोकने की भी मांग की।

देश की 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियन्स के आह्वान पर ये विरोध प्रदर्शन किया गया। इसमें सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन काग्रेस, ट्रेड यूनियन को-ऑíडनेशन सेंटर, ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस, इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन काग्रेस,  ऑल इंडिया यूनाइटेड ट्रेड यूनियन सेंटर, सेल्फ-एम्प्लाइड वुमेंस एसोसिएशन, लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन, हिंद मजदूर सभा, और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन काग्रेस शामिल है।

मजदूर संगठनों ने दिल्ली में केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया है। वहीं बिहार की राजधानी पटना में भी बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ।

 

वहीं देश के 41 कोल ब्लॉकों को निर्यात के उद्देश्य से व्यावसायिक खनन के लिए कॉरपोरेटों को नीलाम करने तथा कोल इंडिया के निजीकरण की केंद्र सरकार की मुहिम के खिलाफ कोयला मजदूरों की तीन दिनों की देशव्यापी हड़ताल आज दूसरे दिन भी जारी रही। व्यावसाइक खनन को मंजूरी समेत केंद्र सरकार की तमाम मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ केंद्रीय श्रमिक संगठन एटक, सीटू, एक्टू, इंटक, बीएमएस और एचएमएस के आह्वान पर ये तीन दिवसीय हो रही है।

तीन दिवसीय हड़ताल के जरिए श्रमिक संगठन मांग कर रहे हैं कि कोयला उद्योग में व्यावसायिक खनन का फैसला वापस लिया जाये, कोयला उद्योग के निजीकरण की नीति वापस हो, सीएमपीडीआइ को कोल इंडिया से अलग नहीं किया जाये, ठेका मजदूरों को हाइ पावर कमेटी की अनुशंसा के अनुसार मजदूरी मिले और राष्ट्रीय कोयला वेतन समझौता को पूर्णतः लागू किया जाये। बता दें कि कोल इंडिया हर दिन औसतन 13 लाख टन कोयले का उत्पादन करता है, इस तरह तीन दिनों तक चलने वाली इस हड़ताल से कोयला उत्पादन में 40 लाख टन का नुकसान होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

 

बिहार 

बिहार की राजधानी पटना में मजदूर संगठनों ने मोदी व नीतीश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। पटना जंक्शन गोलम्बर से ऐक्टू नेता आरएन ठाकुर, रणविजय कुमार, शशि यादव, सरोज चौबे, जितेंद्र कुमार, महासंघ (गोप गुट) के प्रेमचन्द कुमार सिन्हा, एटक के गजनफर नवाब, कौशलेंद्र वर्मा, हरदेव ठाकुर, सीटू के गणेश शंकर सिंह, दीपक भट्टाचार्य, इंटक के चंद्रप्रकाश सिंह, टीयूसीसी के अनिल शर्मा, एआईयूटीयूसी के सूर्यकर ,अनामिका, यूटीयूसी व एआईएम के नृपेन कृष्ण महतो आदि नेताओं के नेतृत्व में जुलूस निकला, जो डाकबंगला चौक तक गया जहां मोदी का पुतला फूंका गया।

डाकबंगला चौक पर मोदी का पुतला दहन के बाद हुए संक्षिप्त सभा को ट्रेड यूनियन नेताओं ने सम्बोधित करते हुए प्रवासी समेत असंगठित, मनरेगा व सभी मजदूरों को 10000 रुपये लॉक डाउन भत्ता देने, 7500 रु 6 माह तक गुजारा भत्ता व प्रति व्यक्ति 10 किलो मुफ्त अनाज देने, प्रवासी समेत सभी मजदूरों को गृह जिले में स्थाई रोजगार देने व यात्रा खर्च का भुगतान करने, मृतक प्रवासी मजदूरों के परिजन को 20 लाख मुआवजा देने तथा मनरेगा सहित सभी मजदूरों की 500 रुपये दैनिक या 15,000 रुपये मासिक न्यूनतम मजदूरी लागू करने की मांग को उठाया।

नेताओं ने मोदी और नीतीश सरकार पर गम्भीर आरोप लगाते हुए कहा कि लॉक डाउन में जब सभी अपने घरों में बन्द थे तब मोदी व नीतीश सरकार ने लॉक डाउन को मजदूरों को गुलाम बनाने के अवसर के रूप में इस्तेमाल किया, ताबड़तोड़ 44 श्रम कनूनों को समाप्त कर गुलामी के 4 कोड़ व 8 घण्टा के बदले 12 घण्टा कार्य दिवस आदेश देश के मजदूरों लर थोप दिया, साथ ही देश की अकूत सम्पतियों को कॉरपोरेटों को लूट की निजीकरण वाली खुली छूट दे दिया, जिसे मोदी आत्मनिर्भरता बता रहे है जबकि निजीकरण गुलामी का रास्ता है।

नेताओं ने मजदूरों को गुलाम बनाने, मजदूरों के सारे अधिकार हड़पे जाने, निजीकरण व सरकार की कॉरपोरेट दलाली के खिलाफ आमलोगों से एकजुट हो मुकाबला करने व देश को बचाने का आह्वान किया।

इस बीच ऐक्टू नेता रणविजय कुमार ने बताया कि आज देशभर में तथा पटना सहित पूरे बिहार के सभी जिलों में प्रतिरोध दिवस कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर लगभग सभी जिलों में ऐक्टू व अन्य ट्रेड यूनियनों द्वारा मोदी-नीतीश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया गया। उन्होंने बताया कि पटना के अलावा भगलपुर, नालन्दा, जहानाबाद, गया, रोहतास, आरा, अरवल, पूर्वी व पश्चमी चंपारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, सिवान, गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, भगलपुर, मुंगेर, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, सहरसा, सुपौल आदि सभी जिलों में प्रतिरोध दिवस पर मोदी नीतीश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन व पुतला दहन किया गया।

आशा कार्यकर्ता संघ भी विरोध में शामिल

एक्टू व महासंघ (गोप गुट) से सम्बद्ध बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ भी मजदूर संगठनों के विरोध प्रदर्शन में शामिल हुआ। आशा कार्यकर्ता संघ की बिहार अध्यक्ष शशि यादव ने कहा है कि सरकार से 1000 रु के मासिक पारितोषिक के शीघ्र भुगतान के लिए आशा तथा आशा फेसिलिटेटर का टैगिंग व मैपिंग का काम जल्द से जल्द पूरा करे तथा इस काम में हो रहीं कमीशनखोरी पर रोक लगाई जाए। उन्होंने मांग की, कि कोविड-19 कार्य में लगे सभी आशा कार्यकर्ताओं को PPE किट आपूर्त्ति की जाय, सभी आशा व आशा फेसिलिटेटर को 10 हजार लॉकडाउन प्रोत्साहन राशि 6 माह तक दिया जाय, कोविड-19 कार्य में लगे सभी आशा व आशा फेसिलिटेटर को 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा कराया जाए और तमाम बकाया का भुगतान शीघ्र किया जाय।

शशि यादव ने कहा कि कोरोना से बचाव के अभियान में आशा कर्मी जान जोखिम में डालकर आगे बढ़कर काम कर रही हैं लेकिन अभी तक उन्हें किसी भी तरह की कोई अग्रिम प्रोत्साहन राशि नही मिली है। पूरे देश से आवाज़ उठ रही है कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में अग्रिम मोर्चे पर डटी आशाओं को केंद्र सरकार नियमित मासिक मानदेय दे, लेकिन मोदी सरकार बहरी बनी हुई है।

छत्तीसगढ़

कोयले के व्यवसायिक खनन और निजीकरण के खिलाफ छत्तीसगढ़ के किसान और आदिवासी संगठनों ने भी किया विरोध प्रदर्शन किया। किसानों और आदिवासियों के बीच खेती-किसानी और जल, जंगल, जमीन से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाले 25 से अधिक संगठनों के नेतृत्व में प्रदेश के कई गांवों में किसानों और आदिवासियों ने अपने-अपने घरों से, खेत-खलिहानों और मनरेगा कार्यस्थलों में एकत्रित होकर विरोध प्रदर्शन किया। किसान संगठनों के अनुसार आज राजनांदगांव, महासमुंद, धमतरी, गरियाबंद, कोरबा, चांपा, मरवाही, सरगुजा, सूरजपुर, बस्तर तथा बलरामपुर सहित 15 से ज्यादा जिलों में प्रदर्शन हुए हैं।

इन संगठनों ने कोयले के व्यावसायिक खनन की अनुमति देने और कोल इंडिया जैसी नवरत्न कंपनी के विनिवेशीकरण और निजीकरण के लिए मोदी सरकार द्वारा चलाई जा रही मुहिम के खिलाफ अपना विरोध जाहिर किया और कहा कि कोल खनन के लिए होने वाले विस्थापन के खिलाफ संघर्ष में वे अपनी जान दे देंगे, लेकिन देशी-विदेशी कॉर्पोरेट कंपनियों को अपनी जमीन और जंगल पर कब्जा नहीं करने देंगे।

छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने बताया कि  इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, दलित-किसान आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा और छग मजदूर-किसान महासंघ आदि संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने किया।

सूरजपुर और कोरबा के कोयला क्षेत्रों में ये प्रदर्शन कोयला मजदूरों और ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर किये गए। ये सभी संगठन राज्य सरकार से भी मांग कर रहे हैं कि झारखंड की तरह छत्तीसगढ़ सरकार भी केंद्र के इस कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दें, क्योंकि केंद्र सरकार का यह फैसला राज्यों के अधिकारों और संविधान की संघीय भावना का भी अतिक्रमण करता है।

झारखंड और छत्तीसगढ़ की सरकारें भी इस नीलामी के खिलाफ खुलकर सामने आ गई है। इसका नतीजा यह हुआ है कि सघन वन क्षेत्र हसदेव अरण्य की चार कोयला खदानों को नीलामी की प्रक्रिया से बाहर रखने की घोषणा केंद्र सरकार को करनी पड़ी है।