झारखंड में CRPF के ख़िलाफ़ प्रदर्शन: ‘माओवादी तो बहाना है, जल-जंगल-जमीन निशाना है!’

रूपेश कुमार सिंह रूपेश कुमार सिंह
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झारखंड में सीआरपीएफ से आम ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी त्रस्त हैं, जिसके कारण नये सीआरपीएफ कैंप के निर्माण की बात सुनने पर ही भड़क उठते हैं। ग्रामीण एक स्वर में कहते हैं कि हमें अस्पताल और स्कूल चाहिए, ना कि सीआरपीएफ कैंप। ग्रामीणों का मानना है कि सीआरपीएफ कैंपों के निर्माण से उनका उत्पीड़न और बढ़ेगा।

गिरिडीह जिला के पारसनाथ पहाड़ को सरकार और झारखंड पुलिस भाकपा (माओवादी) के छापामारों का शरणस्थली समझती है, इसलिए इसे चारों तरफ से घेरने के लिए कई सीआरपीएफ कैंप के निर्माण की घोषणा हुई है और इसके लिए जमीन का चयन भी किया जा रहा है। जबकि खुखरा थानान्तर्गत पर्वतपुर में एक सीआरपीएफ कैंप का निर्माण भी शुरु हो चुका है और इस निर्माण स्थल की सुरक्षा में एक कम्पनी सीआरपीएफ बगल के पांडेयडीह गांव के स्कूल में 16 नवंबर से ही अस्थायी कैंप बनाकर जम गये हैं। इससे अगल-बगल के गांवों में काफी आक्रोश है।

मालूम हो कि पारसनाथ पहाड़ के आसपास सीआरपीएफ व आईआरबी के कैंप पहले से ही मौजूद हैं, जिनपर अक्सर ग्रामीण आदिवासी-मूलवासी जनता के उत्पीड़न व दमन के आरोप लगते रहते हैं। 16 दिसंबर को खुखरा थाना अंतर्गत तुईयो पंचायत के पर्वतपुर में बनने जा रहे पुलिस कैंप के विरोध में ग्रामीणों ने आंदोलन शुरू कर दिया। आसपास के गांवों के सैकड़ों महिला, पुरुष, बच्चों व बूढ़ों ने हरवे हथियार के साथ रैली की शक्ल में पर्वतपुर पहुंचकर इस पर विरोध जताया। ग्रामीण चतरो गांव की तरफ से रैली की शक्ल में पर्वतपुर पहुंचे और पुलिस कैंप निर्माण स्थल पर सभा का आयोजन किया। इस दौरान सीआरपीएफ के जवान भी किनारे मौजूद देखे गए।

दो घंटे तक सभा करने के बाद सभी यहां से कैंप को वापस कराने के संकल्प के साथ लौट गए। महिलाओं के हाथों में हंसुआ व पुरुष के हाथ में टांगी व धनुष बाण थे। वे लोग पुलिस कैंप वापस करो के नारे के साथ यहां पहुंचे। पहले नारेबाजी की फिर सभी ने बैठकर सभा की। ग्रामीणों के आंदोलन की खबर सुनकर गिरिडीह के झामुमो विधायक सुदिव्य कुमार सोनू भी यहां पहुंचे थे, लेकिन वे आंदोलन कार्यक्रम शुरू होने के पहले यह कहकर लौट गए कि उनकी बातों को वे मुख्यमंत्री के पास रखेंगे। उन्होंने एक आवेदन की मांग की। ग्रामीणों ने कहा कि वर्तमान सरकार ‘अबुआ दिशोम अबुआ राज’ के नाम पर बनी है, लेकिन यहां उल्टा दिख रहा है। जहां एक अस्पताल की जरूरत है, वहां पुलिस कैंप दिया जा रहा है जो बर्दाश्त नहीं होगा। आनेवाले समय में यहां के लोगों को इससे परेशानी होगी।

लोग रैयत जमीन पर कैंप निर्माण की प्रक्रिया शुरू करने का आरोप लगा रहे थे। चुनकू मांझी ने आरोप लगाया कि यह उनकी जमीन है। वे किसी भी परिस्थिति में यहां कैंप का निर्माण नहीं होने देंगे। ग्रामीणों की भीड़ में पर्वतपुर, नावाडीह, पांडेयडीह, भोलाटांड़, बेलाटांड़, नोकोनिया, बारीटांड़, चतरो, कोल्हूटांड़, चपरी, सोहरिया, महेशडुबा आदि गांवों के लोग शामिल थे।

इससे पहले 5 दिसंबर को मधुबन थाना के ढोलकट्टा गांव के ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मिलकर अपने गांव में प्रस्तावित सीआरपीएफ कैंप के निर्माण का विरोध किया था और सीआरपीएफ पर ढोलकट्टा के ग्रामीण आदिवासियों के साथ मारपीट का आरोप लगाया था।

10 दिसंबर को डुमरी थाना के टेसाफुली गांव में हजारों ग्रामीण आदिवासियों का जुटान हुआ था (जिसमें दर्जनों गांव के महिला-पुरुष शामिल हुए थे) और टेसाफुली में प्रस्तावित सीआरपीएफ कैंप का जमकर विरोध किया था, जिसे स्थानीय मीडिया ने भी प्रमुखता से प्रकाशित किया था।

अब सवाल उठता है कि आखिर झारखंड के गिरिडीह जिला के पारसनाथ पहाड़ के चारों तरफ सीआरपीएफ कैंप के निर्माण का असली मकसद क्या है? जबकि इसी पहाड़ पर 9 जून, 2017 को डोली मजदूर मोतीलाल बास्के की हत्या सीआरपीएफ कोबरा ने दुर्दांत माओवादी बताकर कर दी थी। इसके खिलाफ हुए जबरदस्त आंदोलन में वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी शामिल हुए थे। जिसका फायदा भी इन्हें पिछले चुनाव में मिला और पारसनाथ पहाड़ के इर्द-गिर्द के सारे विधानसभा क्षेत्र में इनके उम्मीदवारों की जीत भी हुई। सीआरपीएफ कैंपों के अंधाधुंध निर्माणों पर ग्रामीणों का कहना है कि ‘माओवादी तो बहाना है, जल-जंगल-जमीन ही निशाना है।’


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