क्या आपको पता भी था? आज देश भर की ट्रेड यूनियन्स की भूख हड़ताल थी, विरोध और प्रदर्शन था!

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ज़ाहिर है कि आपको शायद ये पता भी नहीं चला होगा लेकिन आज देश भर में लगभग सभी ट्रेड यूनियन्स से एक साथ मिलकर, श्रम क़ानूनों से खिलवाड़ के ख़िलाफ़ भूख हड़ताल की, देश भर में लगभग हर राज्य में विरोध प्रदर्शन हुए। आपको नहीं पता चला होगा, क्योंकि आपके पसंदीदा टीवी चैनल्स ने बापू की समाधि पर भूख हड़ताल पर बैठे और हिरासत में लिए जाते मज़दूर नेता नहीं दिखाए। आपकी पसंदीदा वेबसाइट्स ने इस बारे में कोई ख़बर नहीं छापी कि बड़े शहरों से लेकर, छोटे गांवों तक मज़दूर विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। किसी फेसबुक पर इनकी कोई तस्वीरें साझा नहीं की गई और किसी ट्विटर पर इनके नाम कोई हैशटैग ट्रेंड नहीं करवाया जा रहा था। लेकिन ये हुआ..बड़े पैमाने पर हुआ और इसी देश में हुआ!

कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बहाने मजदूर वर्ग और मेहनतकश लोगों पर हो रहे चौतरफा हमले के खिलाफ केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच ने देशव्यापी विरोध दिवस मनाया। देशव्यापी विरोध दिवस के मौके पर दिल्ली में बापू की समाधि राजघाट पर धरने और भूख हड़ताल पर बैठे ट्रेड यूनियन के राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। हलांकि शाम को उन्हें छोड़ दिया गया।

जिन ट्रेन यूनियन नेताओं को गिरफ्तार किया गया, उनमें तपन सेन, राजीव डिमरी, विद्या सागर गिरि, अशोक सिंह, हरभजन सिंह, आरके शर्मा, त्रिलोक सिंह, हेमलता, एआर सिंधु, आरके पराशर, लता, अमितावा गुहा शामिल थे। कई महिलाओं को भी गिरफ्तार किया गया था।

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देशव्यापी विरोध दिवस के जरिये ये नेता मांग कर रहे थे कि- “लॉकडाउन के चलते फंसे हुए मज़दूरों को तत्काल उनके घर सुरक्षित पहुंचाया जाए, सभी को भोजन उपलब्ध कराया जाए, राशन का सर्वव्यापी वितरण व पूरे लॉक डाऊन के दौरान के वेतन सुनिश्चित किया जाए, असंगठित क्षेत्र के सभी श्रमिकों को (चाहे वे पंजीकृत हों या न हों या स्वरोज़गार प्राप्त हों) कैश पहुंचाया जाए, सरकारी कर्मचारियों व पेंशनरों के मंहगाई भत्तों को स्थिर रखना रद्द किया जाए व स्वीकृत पदों का निरस्त बंद किया जाए।” इन मांग को लेकर यूनियनों और उनके सदस्यों की तरफ से सरकार को लाखों आवेदन भी भेजे जा रहे हैं।

इस विरोध-दिवस का आयोजन ऐक्टू, इंटक, एटक, सीटू, एच.एम.एस, ए.आई.यू.टी.यू.सी, यू.टी.यू.सी, टी.यू.सी.सी, एल.पी.एफ, सेवा जैसे केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों के संयुक्त आह्वान पर किया गया था। संघ-भाजपा समर्थित भारतीय मजदूर संघ के अलावा सभी केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों ने आज के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बैंक, बीमा, कोयला, रेल इत्यादि क्षेत्रों के मजदूर-फेडरेशनों ने भी प्रदर्शन में भागीदारी की।

देश के लगभग सभी राज्यों में, मजदूरों ने केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा श्रमिकों को मौत के मुंह में धकेलने के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करवाया. इससे पहले भी ट्रेड यूनियनों ने अपने-अपने कामकाज के इलाकों में प्रदर्शन किया है परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा बुलाया गया यह पहला विरोध-प्रदर्शन था। बिहार, दिल्ली, तमिलनाडु, राजस्थान, कर्नाटक, असम, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, तेलंगाना इत्यादि राज्यों में कई जगहों पर कार्यक्रम किए गए।

बिहार में ऐक्टू के प्रदर्शनकारियों को पुलिस ने रोकने का भरपूर प्रयास किया परन्तु ट्रेड यूनियनों ने अपना कार्यक्रम जारी रखा। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में भी पुलिस की प्रदर्शनकारियों से झड़प हुई। तमिलनाडु में कई ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के ऊपर मुकद्दमे दर्ज किए गए हैं। इंडियन रेलवेज एम्प्लाइज फेडरेशन (आई.आर.ई.एफ) ने कपूरथला, रायबरेली, वाराणसी, चित्तरंजन इत्यादि जगहों पर प्रदर्शन किया।

उधर पटना में संयुक्त ट्रेड यूनियनों के आह्वान पर राष्ट्रीय प्रतिरोध दिवस मनाया गया। इस दौरान यहां जमकर हंगामा भी हुआ। यहां पुलिस ने ऐक्टू नेता आरएन ठाकुर को गिरफ्तार कर लिया था। जिसके बाद ऐक्टू कार्यकर्ताओं ने जमकर हंगामा किया और उन्हें छुड़ा लिया। इसके बाद कार्यकर्ताओं ने अंबेडकर मूर्ति से जुलूस निकाला और श्रम कार्यालय पर मजदूर विरोधी आदेश की प्रतियां जलाई।

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एक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने कहा, “चारों तरफ हाहाकार फैला हुआ है, मजदूर पैदल चलकर गाँव जाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें कई मजदूर मारे भी जा चुके हैं। मालिकों ने न सिर्फ मजदूरों की छटनी की, बल्कि वेतन देने से भी मना कर दिया। देश में आई-टी सेक्टर से लेकर औद्योगिक और निर्माण क्षेत्र के मजदूर छटनी और भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। अगर केंद्र सरकार को मजदूरों की जरा भी चिंता होती तो वह श्रम-क़ानूनों को और सख्त बनाती, पर केंद्र स्तर पर लेबर-कोड और राज्य स्तर पर ‘आर्डिनेंस’ के माध्यम से सारे अधिकार छीने जा रहे हैं। काम के घंटे बढ़ाए जा रहे हैं। हम इसका विरोध करते हैं.”

उत्तर प्रदेश में वर्कर्स फ्रंट से जुड़े मजदूरों और मजदूर किसान मंच के कार्यकर्ताओं ने अपना विरोध दर्ज कराया। और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ट्विटर और ईमेल द्वारा मांग पत्र भेजा। सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली, गोण्ड़ा, आगरा, इलाहाबाद, जौनपुर, लखनऊ आदि जिलों में विरोध कार्यक्रम किए गए।

वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष दिनकर कपूर और मजदूर किसान मंच के अध्यक्ष पूर्व आई0 जी0 एस.आर. दारापुरी ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा की जा रही श्रमिक विरोधी कार्यवाहियां देश के विकास को अवरूद्ध कर देगी। सरकार ने मजदूरों को न र्सिफ बेसहारा छोड़ दिया है बल्कि उसे मिले संविधान प्रदत्त अधिकारों को भी छीनने में लगी हुई है।

उन्होंने कहा कि असहाय मजदूरों पर लाठी चलवाकर बहादुर बन रही आरएसएस-भाजपा की सरकारें अंदर से बेहद डरी हुई है। बड़े कारापोरेट घरानों के लाभ के लिए लगातार तानाशाही की ओर यह सरकार बढ़ रही है और न्यूनतम प्रतिवाद का अधिकार भी यह सरकार नहीं दे रही है, यहां तक कि सरकार से सोशल मीडिया पर भी असहमति व्यक्त करने पर मुकदमें कायम किए जा रहे है। केन्द्र सरकार के इन हमलों का मुकाबला राजनीतिक प्रतिवाद से किया जायेगा।

ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि कोरोना महामारी का बहाना बनाकर सरकार मज़दूरों और मेहनतकशों पर हमला करने वाले एक के बाद एक फ़ैसले लिए जा रही है, जबकि देश का मज़दूर वर्ग और आम लोग लॉकडाउन के चलते, पहले से ही गहरे संकट और दुखों का सामना कर रहे हैं। इस संदर्भ में तमाम ट्रेड यूनियनों ने एकजुट होकर कई बार प्रधानमंत्री और श्रममंत्री के सामने लॉक डाउन के दौरान मज़दूरों को पूरा वेतन दिए जाने और मज़दूरों की छंटनी न करने से संबंधित सरकार के निर्देशों/परामर्शों का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन किये जाने का मसला उठाया है। लेकिन सरकार पर इसका कोई असर नहीं हुआ है।

नेताओं ने कहा कि इसी तरह से राशन के वितरण और महिलाओं के खाते में कुछ रुपये डाले जाने, जैसी सरकार की खुद की घोषणाओं का ज़मीनी स्तर पर कोई असर नहीं हुआ है। अधिकांश लाभार्थियों तक यह सुविधाएं पहुंची ही नहीं हैं।

 

लॉकडाउन के चलते रोज़गार छीने जाने, वेतन न मिलने और किराये के घर से निकाले जाने की वजह से जब मेहनतकश लोगों को अमानवीय त्रासदियों का सामना करना पड़ रहा है। लाखों प्रवासी मज़दूर सैकड़ों मील दूर सड़कों, रेलवे लाइनों और खेतों से गुजरते हुए अपने गांवों की ओर पैदल ही जाने को मजबूर हैं। भूख, थकान और सड़क हादसों में सैकड़ों मज़दूर अपनी जान गवां चुके हैं। लेकिन लॉकडाउन की तीन अवधियों के बाद भी, 14 मई की सबसे नयी घोषणा सहित, सरकार की तमाम घोषणाओं में आम लोगों को उनके दुख-तकलीफों से राहत देने की बात करने की जगह, झूठे बयान दिये गये हैं व अपनी उपलब्धियों की डींगें मारी गई हैं।

ट्रेड यूनियन नेताओं ने कहा कि बहुसंख्यक आबादी की दुख-तकलीफों के प्रति सरकार का रवैया बेहद क्रूर और असंवेदनशील है। अब सरकार बड़े ही संदेहास्पद तरीके से इस लंबे लॉक डाउन का इस्तेमाल करते हुए मज़दूरों और ट्रेड यूनियनों के अधिकारों पर हमला कर रही है और तमाम श्रम कानूनों को ख़त्म करने की दिशा में काम कर रही है। ऐसा करने के लिए वह अपनी राज्य सरकारों को बड़ी क्रूरता से श्रम-विरोधी और जन-विरोधी क़दम उठाने की खुली छूट देने की रणनीति चला रही है, जिसके चलते अन्य राज्य सरकारों को भी इन क़दमों का अनुसरण करना पड़ रहा है, जो कि सरासर मज़दूरों के अधिकारों और रोज़गार के ख़िलाफ़ है।

 

नेताओं ने कहा कि मोदी सरकार मज़दूरों को बिना किसी अधिकार के बंधुवा बनाकर पूंजी के हित में उनको वेतन की गारंटी, सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और सबसे महत्वपूर्ण, आत्मसम्मान से वंचित करना चाहती है ताकि मज़दूरों के खून-पसीने से मुनाफ़ा बनाने वालों के मुनाफे़ सर्वाधिक हो जायें। यह मानवाधिकारों के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।

उन्होने कहा कि देश के मज़दूर वर्ग को अंग्रेजों के जमाने की शोषण व्यवस्था में ढकेला जा रहा है। ट्रेड यूनियन आंदोलन ऐसे अतिदुष्ट क़दमों को चुपचाप स्वीकार नहीं कर सकता है और इन मज़दूर-विरोधी, जन-विरोधी नीतियों को हराने के लिये दृढ़ निश्चय करता है कि अपनी पूरी ताक़त लगाकर एकजुटता से लड़ेगा। गुलामी को वापस लाने की कोशिश के खिलाफ़ आने वाले दिनों में हम और भी बड़े देशव्यापी प्रतिरोध खड़ा करेंगे।

आप जब, अपने मनपसंद पकवान को पका कर, उसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए खींच रहे थे, उसी वक़्त इन मज़दूरों को पुलिस खींच कर हटा रही थी। आप जब नेटफ्लिक्स पर अपनी पसंद की मूवी सर्च कर रहे थे, ये तपती धूप में हाथ में तख़्ती लेकर, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करचते हुए खड़े थे। ये लड़ रहे थे क्योंकि आप नहीं लड़ेंगे, जबकि कामगार आप भी हैं और श्रम क़ानूनों का ख़ात्मा कर दिए जाने के बाद बचेंगे आप भी नहीं…तो क्या अभी भी आप तय करेंगे कि ये पता रखें कि देश में राजनीति, सिनेमा और हिंदू-मुस्लिम डिबेट के अलावा भी कुछ हो रहा है…क्योंकि आप जिस मीडिया को मनोरंजन की तरह डिनर टेबल पर बैठे देख रहे हैं, वह मनोरंजन भी है तो सस्ता ही है और वो आपको ये ख़बर नहीं देगा। 

 

अरविंद कुमार सिंह, राजनैतिक-सामाजिक एक्टिविस्ट रहे हैं। टीवी पत्रकारिता कर चुके हैं और संप्रति मीडिया विजिल टीम का हिस्सा हैं।  

 


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