चीफ़ जस्टिस की भृकुटि टेढ़ी- थानों में होता है मानवाधिकार हनन, थर्ड डिग्री का इस्तेमाल!


“पुलिस प्रशासन के कुछ अफसर इस बात को भूल जाते हैं की उनका काम जनता की ढाल बनना, उन्हें कानूनी मदद दे कर उनका कानून पर विश्वास कायम रखना हैं न की जनता को डराना और मारना। कई बार ऐसा भी होता है की पढ़े लिखे कानून जानने वाले लोग जब पुलिस को उनका काम याद दिलाने की कोशिश करते हैं उनसे एफआईआर न करने की वजह पूछते है तो पुलिस ऊपर ही चार्ज लगाने की धमकी दे डालती है। ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता की संवैधानिक अधिकारों और कानूनी की जानकारी होने पर पुलिस लोगो का उत्पीड़न करना बंद कर देगी। इस दिशा में सरकारों को भी सख्ती बरतने की जरूरत है, तभी मानवाधिकारों को सही रक्षा हो पाएगी।”


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नेशनल लीगल सर्विस अथॉरिटी (NALSA) के वीजन और मिशन मोबाइल ऐप और डॉक्युमेंट की शुरुआत करते हुए, भारत के चीफ जस्टिस (CJI) एनवी रमना ने रविवार को एक बयान दिया जिसमे उन्होंने पुलिस स्टेशनों में होने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन पर कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा की हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पुलिस थाने में तुरंत कानूनी मदद नहीं मिल पाती है। मानवाधिकारों का हनन सबसे अधिक पुलिस थानों में ही होता है। NALSA को पुलिसकर्मियों को जागरूक करने के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की जरूरत है।

पुलिस की ज्यादतियों को रोकना जरूरी…

चीफ जस्टिस के साथ इस कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज और NALSA के कार्यकारी अध्यक्ष उदय उमेश ललित भी मौजूद थे। चीफ जस्टिस ने कहा, “इस ऐप के जरिए लोगों को मुफ्त में कानूनी सलाह दी जाएगी। हमारे यहां आरोपी के मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए कानून है। इसके बावजूद हिरासत में उत्पीड़न और मौत के मामले सामने आते रहते हैं। कई रिपोर्ट से पता चलता है कि विशेष अधिकार प्राप्त लोगों पर भी थर्ड-डिग्री का इस्तेमाल किया जाता है। पुलिस की ज्यादतियों को रोकने के लिए लोगों को संवैधानिक अधिकारों और मुफ्त कानूनी सहायता के बारे में बताना जरूरी है।

हम एक ऐसा समाज चाहते हैं जहां कानून का राज बना रहे। इसके लिए यह आवश्यक है कि समाज के उच्च वर्ग और गरीब वर्ग के लिए न्याय के अवसर समान हों। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक और आर्थिक अलगाव के कारण किसी को भी उसके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है। हमें ऐसे भविष्य का सपना देखना चाहिए जहां समानता हो और सभी के अधिकार सुरक्षित हों। इसलिए न्याय तक पहुंच के नाम पर एक मिशन चलाया जा रहा है, जो कभी खत्म नहीं होगा।”

पुलिस के कारण लोगो का कानून पर विश्वास कम..

भले ही यह बातें NALSA के वीजन और मिशन मोबाइल ऐप और डॉक्युमेंट की शुरुआत करते हुए कही गई हो लेकिन अगर चीफ जस्टिस की सभी बातों पर गौर करे तो उनके यह आरोप गलत नही है। आप बराबर पुलिस की शर्मनाक हरकतों के किस्से खबरों के जरिए सुनते रहते है। कई मामलों में पीड़ितों ने पुलिस पर आरोप लगाए हैं की पुलिस ने एफआईआर नहीं लिखी। कुछ मामलों में पुलिस गरीब महिलाओं से कारवाई के नाम पर पैसे ऐठती रही है। कभी पुलिस का लोगो को बेवजह पीटने का विडियो वायरल हो जाता है। कभी पुलिस पीड़ितों के साथ ही अपराधियों वाला व्यवहार कर लोगी का कानून व्यवस्था से विश्वास उठने का काम करती है। पुलिस का आम लोगो के साथ ऐसा व्यवहार भी सब से बड़ा कारण है की कुछ गरीब वा कम जानकर लोग पुलिस के पास जाने से डरते हैं।

पुलिस प्रशासन के कुछ अफसर इस बात को भूल जाते हैं की उनका काम जनता की ढाल बनना, उन्हें कानूनी मदद दे कर उनका कानून पर विश्वास कायम रखना हैं न की जनता को डराना और मारना। कई बार ऐसा भी होता है की पढ़े लिखे कानून जानने वाले लोग जब पुलिस को उनका काम याद दिलाने की कोशिश करते हैं उनसे एफआईआर न करने की वजह पूछते है तो पुलिस ऊपर ही चार्ज लगाने की धमकी दे डालती है। ऐसे में यह भी नहीं कहा जा सकता की संवैधानिक अधिकारों और कानूनी की जानकारी होने पर पुलिस लोगो का उत्पीड़न करना बंद कर देगी। इस दिशा में सरकारों को भी सख्ती बरतने की जरूरत है, तभी मानवाधिकारों को सही रक्षा हो पाएगी।