साम्प्रदायिक नफ़रत से भरे ट्रोल को, मसाला मोंक के फाउंडर का खुला ख़त

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
समाज Published On :


मसालों से लेकर अचार और दादी मां की रसोई से लेकर नौजवानों के पसंदीदा पेय तक के मिक्स और स्वाद को देसी उत्पाद के तौर पर तैयार करने वाली एक कंपनी है, मसाला मोंक। मसाला मोंक तमाम सामुदायिक समूहों के साथ काम करके अपने उत्पाद तैयार करती है और ऑनलाइन उनको बेचती है। कंपनी के फाउंडर हैं शशांक अगरवाल और शशांक (जैसा कि कंपनी की वेबसाइट कहती है) एक ट्रेवल और फूड ब्लॉगर भी हैं – जिन्होंने अपनी दिलचस्पी को व्यापार का चेहरा दिया। लेकिन ये कहानी शशांक की या मसाला मोंक की नहीं है – न ही हम किसी कंपनी का प्रचार करने के लिए ये ख़बर लिख रहे हैं। मामला है देश में लगातार बढ़ते साम्प्रदायिक ज़हर को काउंटर करते एक मज़ेदार लेकिन मारक ख़त का, जो कि इस कंपनी के संस्थापक शशांक अगरवाल ने एक शख़्स को लिखा।

मसाला मोंक के फेसबुक पेज पर साम्प्रदायिक टिप्पणी और उसका जवाब

कहानी शुरु होती है, मसाला मोंक के फेसबुक पेज से – जहां एक राजीव सेठी नाम का शख़्स मसाला मोंक के उत्पादों के बहाने मुस्लिम विरोधी टिप्पणी करता है। यह शख़्स, जो कि उपभोक्ता नहीं – ट्रोल ज़्यादा लगता है; कोरोना के माहौल के बहाने – साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाता दिखता है और इस पर मसाला मोंक की सोशल मीडिया टीम तुरंत ही राजीव सेठी को उचित उत्तर देती है।

 

ये सारी बात यहीं पर ख़त्म हो सकती थी। आमतौर पर इस तरह के उत्पाद बनाने वाली कोई भी कंपनी इस तरह की किसी बहस को आगे बढ़ाने से बचती है। लेकिन यहां पर सीन में आते हैं, कंपनी के फाउंडर – शशांक अगरवाल। शशांक तय करते हैं कि वे इस मामले को ऐसे नहीं जाने देंगे। सबसे पहले वो अपने निजी फेसबुक अकाउंट से इस टिप्पणी का स्क्रीनशॉट साझा करते हुए, लिखते हैं, ‘और फिर ऐसा एक मूर्ख आता है…’

इसके बाद शशांक तय करते हैं कि वो इस शख़्स के नाम एक खुला ख़त लिखेंगे। वो लिखते भी हैं और राजीव सेठी नाम के इस शख़्स और इसके जैसे तमाम उन लोगों की धज्जियां उड़ा देते हैं – जो देश में इस संकट के समय में भी मज़हबी उन्माद और ज़हर बांटने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। शशांक की ये चिट्ठी कमाल के व्यंग्य और समझदारी का एक आला उदाहरण है और इसलिए हम इस चिट्ठी का हिंदी अनुवाद आपके लिए कर के, प्रकाशित कर रहे हैं, जिससे समझा जा सके कि उम्मीदें अभी भी क्यों कायम हैं, क्यों समाज में बढ़ती साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ बोलना और लड़ना ज़रूरी है और ये कैसे किया जा सकता है। शशांक ने अपने ओपेन लेटर में लिखा;

 

प्रिय श्री सेठी,

मसाला मोंक डॉट कॉम के फाउंडर के तौर पर मैं आपको आश्वस्त कर सकता हूं कि हमारे गुणवत्ता के कुछ ख़ास मानक हैं, हालांकि आपके बारे में ऐसा नहीं लगता है। ख़ैर, ये एक अलग कहानी है और मैं विषय से हटना नहीं चाहता। 

मसाला मोंक में हम ये सुनिश्चित करते हैं कि हमारी लार ISO9002 प्रमाणित हो और हमारे सभी थूकने वाले सभी पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के पास, गतिज मौखिक प्रक्षेपण (Dynamic Oral Propulsion) में पीएचडी हो। जब वो अपनी Submandibular Gland (लार ग्रंथि) से म्यूकस (कफ़) को प्रक्षेपित करें तो उसमें वे अहमदाबाद सम्मेलन में तय की गई सर्वोत्तम विधि का पालन करें। इसलिए न केवल हमारे उत्पादों को देखकर आप लार टपका सकते हैं, आप इस बात को लेकर निश्चिंत हो सकते हैं कि हमारे यहां थूक की गुणवत्ता को लेकर भी सर्वोत्तम मानक अपनाए जाते हैं। 

इसके अलावा हम आपको बताना चाहते हैं कि हमारे यहां कोई भी मुस्लिम काम नहीं करता है। दरअसल MasalaMonk.com में कोई भी काम नहीं करता, बल्कि यहां हर शख़्स मज़े कर रहा है; वे सभी अपने काम को लेकर इतने जुनूनी हैं कि ये उनके लिए काम नहीं बल्कि शौक है। 

आप चाहें तो अक़बर, रफ़ी, आएशा, फ़िरदौस, मलिक, तबस्सुम से पूछ सकते हैं..उनको हमारे ग्राहकों के पसंदीदा उत्पादों को प्यार से सजाते हैं और आपकी तरह हमारे किसी ग्राहक को कभी भी इस बात की फ़िक्र नहीं हुई कि उन उत्पादों को कौन पैक कर रहा है।  

लेकिन मैं समझ सकता हूं..निश्चित तौर पर बड़े होते वक़्त आपका परिचय कभी भी अच्छे स्वाद से नहीं हुआ। जैसा कि कहावत है, ‘हम जो खाते हैं, वैसे ही हो जाते हैं..’ और इसलिए इसमें आपका कोई दोष नहीं है। मैं आपको सलाह दूंगा कि आप हमारे कैटेलॉग में मौजूद सभी उत्पाद ऑर्डर करें और जल्दी ही आपके स्वभाव और किरदार में बदलाव आने लगेगा और आप उन सभी विभिन्नताओं को अपना लेंगे, जो भारत को एक बनाती हैं।

तब तक,

ख़ुदा हाफ़िज़

शशांक अगरवाल

(मूल अंग्रेज़ी से भावानुवाद)

और अब पढ़िए वो मूल चिट्ठी, जो शशांक ने फेसबुक पर मसाला मोंक के पेज पर साझा की थी,

 

शशांक अगरवाल की ये चिट्ठी न केवल तीख़ा और ज़रूरी व्यंग्य कैसे लिखा जाए – इसलिए पढ़ी जानी चाहिए, बल्कि इसलिए भी कि क्यों आख़िर समाज के हर स्तर पर अब नफ़रत के ख़िलाफ़ हस्तक्षेप ज़रूरी है। शशांक अगरवाल और मसाला मोंक को इसके लिए बधाई दी ही जानी चाहिए और हां, मसाला मोंक के एक उत्पाद का नाम – अम्मीजी की चाय भी है…

 

(ये ख़बर, फेसबुक पर शशांक और उनकी कंपनी के पेज पर हुई गतिविधि के आधार पर लिखी गई है।)


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