मौत के मुहाने पर स्पिनिंग मिलें, अखबारों में मंदी का विज्ञापन छप रहा है

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आज इंडियन एक्सप्रेस के पेज नंबर तीन पर बड़ा सा विज्ञापन छपा है। लिखा है कि भारतीय स्पीनिंग उद्योग सबसे बड़े संकट से गुज़र रहा है जिसके कारण बड़ी संख्या में नौकरियाँ जा रही हैं। आधे पन्ने के इस विज्ञापन में नौकरियाँ जाने के बाद फ़ैक्ट्री से बाहर आते लोगों का स्केच बनाया गया है। नीचे बारीक आकार में लिखा है कि एक तिहाई धागा मिलें बंद हो चुकी हैं। जो चल रही हैं वो भारी घाटे में हैं। उनकी इतनी भी स्थिति नहीं है कि वे भारतीय कपास ख़रीद सकें। कपास की आगामी फ़सल का कोई ख़रीदार नहीं होगा। अनुमान है कि अस्सी हज़ार करोड़ का कपास होने जा रहा है तो इसका असर कपास के किसानों पर भी होगा।

इस विज्ञापन पर दो टिप्‍पणियां काबिले गौर हैं। पहली टिप्‍पणी रवीश कुमार की और दूसरी पुष्‍य मित्र की :


रवीश कुमार

कल ही फ़रीदाबाद टेक्सटाइल एसोसिएशन के अनिल जैन ने बताया कि टेक्सटाइल सेक्टर में पचीस से तीस लाख के बीच नौकरियाँ गईं हैं। हमें इस संख्या पर यक़ीन नहीं हुआ लेकिन आज तो टेक्सटाइल सेक्टर ने अपना विज्ञापन देकर ही कलेजा दिखा दिया है। धागों की फ़ैक्ट्रियों में एक और दो दिनों की बंदी होने लगी है। धागों का निर्यात 33 प्रतिशत कम हो गया है। मोदी सरकार ने 2016 में छह हज़ार करोड़ के पैकेज और अन्य रियायतों का ज़ोर शोर से एलान किया था। दावा था कि तीन साल में एक करोड़ रोज़गार पैदा होगा। उल्टा नौकरियाँ चली गईं। पैकेज के एलान के वक्त ख़ूब संपादकीय लिखे गए। तारीफ़ें हो रही थीं। नतीजा सामने हैं। खेती के बाद सबके अधिक लोग टेक्सटाइल में रोज़गार पाते हैं। वहाँ का संकट इतना मारक है कि विज्ञापन देना पड़ रहा है। टीवी में नेशनल सिलेबस की चर्चा बढ़ानी होगी।

पुष्‍य मित्र

यह विज्ञापन मंदी का संकेत भर नहीं है। यह अखबारों के मुंह पर भी तमाचा है। यह सूचना खबर के रूप में छपनी चाहिये थी। टेक्‍सटाइल मिल वालों ने पहले पत्रकार से ही सम्पर्क किया होगा कि देखिये हमारी यह दुर्दशा है, खबर लिखिए। मुमकिन है पत्रकार इस खबर का प्रस्ताव लेकर सम्पादक के पास भी गया होगा। मगर सम्पादक ने मना कर दिया होगा, कौन सरकार का कोप भाजन बने। सरकार के खिलाफ खबर लिखने की वजह से पहले ही कई अखबारों का विज्ञापन बन्द है। जब खबर नहीं छपी होगी तो एसोसियेशन ने यह विज्ञापन जारी किया होगा। आज के वक़्त की यही त्रासदी है। विज्ञापन को खबर के रूप में पहले पन्ने पर छापा जा रहा है, टीवी पर 24 घंटे गाया जा रहा है। मगर जो असली खबर है उसके लिए परेशान लोगों को विज्ञापन देना पर रहा है। पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं।


रवीश कुमार और पुष्‍य मित्र के फेसबुक से साभार


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