मोदी राज में मानवाधिकारों पर हमला बढ़ा- ह्यूमन राइट वॉच


मोदी राज में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवालों के घेरे में है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी राज के दौरान मानवाधिकारवादियों, दलितों, मुस्लिमों और पत्रकारों के साथ लगातार बुरा सुलूक हुआ है। उन्हें परेशान, उत्पीड़ित और गिरफ्तार किया जा रहा है।  


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मोदी राज में मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सवालों के घेरे में है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी राज के दौरान मानवाधिकारवादियों, दलितों, मुस्लिमों और पत्रकारों के साथ लगातार बुरा सुलूक हुआ है। उन्हें परेशान, उत्पीड़ित और गिरफ्तार किया जा रहा है।  

रिपोर्ट में 2020 में मोदी सरकार की ओर  से जम्मूकश्मीर के मुस्लिमबहुल क्षेत्रों पर भेदभावपूर्ण प्रतिबंध लगाने की तीखी आलोचना की गयी है। रिपोर्ट के मुताबिक वहाँ सैकड़ों लोगों को बिना किसी दोष के जन सुरक्षा कानून के तहत हिरासत में रखा गया। यह क़ानून दो साल तक बिना सुनवाई हिरासत में रखने की अनुमति देता है। इसी तरह इंटरनेट पर पाबंदी अगस्त 2019 से ही जारी है जिससे घाटी में लोगों को ख़ासा परेशानी उठानी पड़ रही है।

ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि भारत में अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों के खिलाफ हमले जारी है जबकि उन भाजपा नेताओं और समर्थको के खिलाफ कार्यवाई नहीं हुई है जिन्होंने मुसलमानो की छवि ख़राब की या उनके खिलाफ हिंसा की। रिपोर्ट में दिल्ली दंगो का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ज्यादातर पीड़ित मुस्लिम परिवार से थे जबकि कपिल मिश्रा जैसे बीजेपी नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं हुई जिन्होंने भड़काऊ भाषण दिये।

रिपोर्ट में कहा गया है कि बीजेपी सरकार के राज में दलितों के खिलाफ अत्याचार 7 फीसदी तक बढ़ गया है। लॉकडाउन में भी हाशिये पर रहने वाले समुदायों को ही सबसे ज्यादा नुकसान हुआ जिन्हे रोज़गार, खानारहना जैसे ज़रूरतों से वंचित होना पड़ा। कई पत्रकारों को कोविड -19 पर रिपोर्टिंग के लिए आपराधिक मामलों में गिरफ्तार हुए, उन्हें बीजेपी समर्थको और पुलिस के हमलों का सामना करना पड़ा। कई मामलों में, वे ग्रामीण भारत में काम करने वाले स्वतंत्र पत्रकार थे, जो सरकार की महामारी से निपटने की आलोचना के लिए निशाने पर आये।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस दौरान पुलिस हिरासत में मौतों में इज़ाफ़ा हुआ जिससे पता चलता है कि पुलिस की ताकत के दुरुपयोगी की कोई जवाबदेही नहीं है। अक्टूबर 2020 तक यानी  साल के पहले 10 महीनों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस हिरासत में 77 मौतें, न्यायिक हिरासत में 1,338 मौतें, और 62 कथित रूप से एक्स्ट्रा जुडिशल किल्लिंग्स दर्ज कीं।