हाथरस में अमीर की बेटी होती तो क्या यूँ ही फूँका जाता शव- हाईकोर्ट


अदालत में मीडिया को जाने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन सुनवाई के बाद पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने जो जानकारी दी वह यूपी की योगी सरकार को शर्मसार करने के लिए काफ़ी है। सीमा कुशवाहा ने बताया कि इस दलील पर अदालत ने कड़ा रुख अख़्तियार करते हुए कहा कि जिस अंतिम संस्कार में गंगाजल का इस्तेमाल होता है, उसमें प्रशासन ने केरोसिन तेल और पेट्रोल का इस्तेमाल कर शव जलाया। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने पूछा कि क्या किसी अमीर आदमी की बेटी तो भी क्या इसी तरह जला दिया जाता?


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हाथरस मामले में आपराधिक लापरवाही दिखाने वाली यूपी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज़ोरदार लताड़ लगायी है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस राजन रॉय ने प्रशासन के रवैये पर बेहद नाराज़गी जताते हुए पूछा कि क्या ग़रीब दलित की बेटी न होकर किसी अमीर शख़्स की बेटी होती तो भी क्या उसका शव रात में यूँ ही पेट्रोल डालकर जला दिया जाता ? हाईकोर्ट ने मामले का स्वत: संज्ञान लिया है और इस मामले का परीक्षण कर रहा है कि हाथरस केस में संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ है या नहीं?

सोमवार को अदालत में पीड़िता के पांच परिजनों और प्रशासनिक अफसरों का बयान दर्ज किया गया। डीएम प्रवीण कुमार ने तर्क दिया कि गाँव में भीड़ बढ़ रही थी और हालात बेकाबू हो सकते थे, इसलिए उन्होंने रात में अंतिम संस्कार का फ़ैसला किया। इसके पीछे कोई राजनीतिक दबाव नहीं था।

अदालत में मीडिया को जाने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन सुनवाई के बाद पीड़ित पक्ष की वकील सीमा कुशवाहा ने जो जानकारी दी वह यूपी की योगी सरकार को शर्मसार करने के लिए काफ़ी है। सीमा कुशवाहा ने बताया कि इस दलील पर अदालत ने कड़ा रुख अख़्तियार करते हुए कहा कि जिस अंतिम संस्कार में गंगाजल का इस्तेमाल होता है, उसमें प्रशासन ने केरोसिन तेल और पेट्रोल का इस्तेमाल कर शव जलाया। यह मानवाधिकार का उल्लंघन है। अदालत ने पूछा कि क्या किसी अमीर आदमी की बेटी तो भी क्या इसी तरह जला दिया जाता?

पीड़िता के परिवार ने हाईकोर्ट में कहा कि न तो उन्हें अपनी मृत बेटी का शव देखने दिया गया और न ही अंतिम संस्कार करने दिया गया। वकील सीमा कुशवाहा ने बताया कि कोर्ट में पीड़ित परिवार ने मामले की सुनवाई यूपी से बाहर कराने की मांग की है। इसके अलावा जांच कर रही सीबीआई की रिपोर्टों को गोपनीय रखने और मामले के पूरी तरह से खत्म होने तक परिवार को सुरक्षा प्रदान की जाये।

हाईकोर्ट ने इस मामले का स्वत:संज्ञान लिया है। कोर्ट इस बात का परीक्षण कर रहा है कि क्या पीड़ित लड़की और उसके परिवार के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है? क्या ग़रीब और दलित होने की वजह से सरकारी अमले ने संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया? क्या अंतिम संस्कार में सनातन हिंदू धर्म की रीतियों का पालन किया गया? क्या प्रशासन ने यह सब ‘दमनपूर्वक’, ‘ग़ैरक़ानूनी तौर पर’ और ‘मनमाने ढंग’ से किया?

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा था कि संविधान का अनुच्छेत 21 जीने का अधिकार देता है। इमें मरने के बाद शव को ‘गरिमा’ के साथ सम्मानजनक बर्ताव पाने का हक़ भी शामिल है। मामले की सुनवाई 2 नवंबर को होगी जिसके लिए यूपी के एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) और गृह विभाग के विशेष सचिव को तलब किया गया है।



 


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